सोच - संस्मरण
सोच - संस्मरण
समाज की विशिष्ट विशेषता है रूढ़िवादी सोच और दोगली फ़ितरत। रूढ़िवादी से तात्पर्य इतना ही है कि ये समाज इस समाज के लोग कोई भी नया कार्य अगर स्वयं करें या अमीर करें तो स्टैंडर्ड करते हैं,सही है लेकिन जब वही काम कोई और गरीब असहाय मजबूरी में करे तो न जाने कितने अफवाहों और तानो का शिकार हो जाता है सिर्फ इतना ही ये समाज उसका जीना दूभर कर देता है, परिवार वाले तक साथ छोड़ देते हैं। कितनी सोचनीय सोच है न कि सक्षम को सभी पूछते हैं सराहते हैं लेकिन असहाय को कोई अपने आस पास भी नहीं चाहता मदद करना तो दूर की बात है।
कुछ दिनों पहले की बात है मैं पढ़ाई करने के लिए अपने घर परिवार से दूर रह रही थी। पढ़ाई शुरू किए हुए अभी कुछ महीने ही हुए थे कि ससुर जी नहीं रहे। ससुर जी के निधन के साथ ही पता चला कि हम काफी कर्ज़ मे डूबे हुए हैं। दोनों सदम
ें एक साथ लेकिन कर भी क्या सकते थे सिवाय सब्र के। बुरा वक़्त प्रारंभ हो चुका था समाज मे मेरे बाहर रह कर पढ़ने का मतलब कुछ गलत ही निकाल लिया और बहुत से वांछनीय अपराध मेरे माथे पर मढ़ दिए परिवार वाले भी साथ खड़े नहीं रहे, पढ़ाई छोड़ घर संभालने तक की बात कहने लगे। अकेले लड़ते हुए कई साल बीत गए पढ़ाई भी घर से ही पूरी करनी पड़ी और आज सब कुछ पीछे छोड़कर बहुत आगे निकल आए।
ये कैसी सोच है समाज की कि घर की बहू अगर पढ़ना चाहे तो गलत,नौकरी करना चाहे तो गलत, यहां तक कि वो अपराध भी बहुओं के सिर मढ़ दिए जाते हैं जो उसने किए तक नहीं, इससे भी अगर काम न चले तो चरित्रहीनता के लांछन लगा दिए जाते हैं और इन सबसे ज्यादा तकलीफ तब चरम पर होती है जब पति भी पत्नी के खिलाफ इतना कुछ सुनकर खामोश रह जाए उल्टा वो भी उसी भीड़ में शामिल हो..