यूँ ही...एक प्रेम कथा
यूँ ही...एक प्रेम कथा
"ओ हंसिनी ओ हंसिनी, कहाँ उड़ चली, मेरे अरमानों के पंख लगाकर, कहाँ उड़ चली।"
हंस आसमान की तरफ देखकर गाये जा रहा था, गाये जा रहा था। आधा घण्टा होने को आया मगर पूरी तरह तन्मय होकर गीत गाते उस हंस ने अपनी एक पंक्ति के गाने के आगे नहीं बढ़ाया।
" काहे भैया, आगे नहीं गाइयेगा क्या?", बड़ी देर तक इंतजार करने के बाद आखिरकार बगुला राम चुप नहीं रह पाए।
" मना किये थे न ! कर दिए डिस्टर्ब! अरे जेतना आएगा उतना ही न गाएंगे न। तुम चुप लगाकर गाना सुनो।" मानव वेषधारी हंस की घुड़की से बगुला अवतार चुप लगा कर एक ओर गर्दन झुका के फिर से नमकीन की दूसरी या तीसरी बार भरी प्लेट साफ़ करने में व्यस्त हो गए।
आँख बंद किये हंस भाव विभोर होकर गाने में लगा था। चेहरे पर फैला दिव्य आलोक संगीत द्वारा लौकिक से पारलौकिक जगत को अनुभूत करने के दावे को पुष्टता देता प्रतीत हो रहा था।
" पापा, अब बस भी करो, पढ़ना है मुझे पापा!" शिकायती लहजे में मुन्ना भी अब मुँह बिसारने लगा। हंस के रंग में भंग पड़ रहा था। आँख खोलकर उसने बगुले की तरफ देखा। बगुले के नमकीन की तरफ बढ़े हाथ वहीं रुक गए, गिलास कुछ छिपने वाले अंदाज में कुहनी की तरफ चला गया। आँख का इशारा बगुला समझ गया और तुरन्त बच्चे को पुचकार कर , बहलाते हुए अंदर भेज दिया गया।
" अमां यार एक बात बताओ, तुम गा तो बहुत बढ़िया रहे हो मगर ये हंसिनी अब तक तो किसी पेड़ पर जाकर बैठ गई होगी न कि अब भी आसमान में ही उड़ रही है?", एक सांस में अपना गिलास खाली करके रखते हुए बगुला फिर बोल उठा।
हंस की भौहें वक्र हो गईं। " मौसम देखे हो बाहर? कैसा है?"
"बहुत बढ़िया, मने कि रोमांटिक टाइप है। बारिश का ", बगुले ने खिड़की की तरफ बिना देखे मदहोश होते हुए कहा और सोफे पर लुढ़क गया।
" रोमांटिक! बताएं तुमको ...? ", हंस ने हाथ खींच कर बगुले को सीधा बैठा दिया" कीचड़ नहीं दिख रही साले तुमको?"
बगुला एकदम अटेंशन हो गया। "कोई गम्भीर बात है, हम तो समझे थे कि मौसम का नशा है और।" बगुले की आँखें फैल गई थी।
" ये बरसात हो रही है उससे पानी और मिट्टी ने कितना कीचड़ कर दिया है घर में। हंस ने बोला था हंसिनी को.... तनिक झाड़ू लगा दो, साफ- सफाई कर दो पर वह नहीं सुनी और उड़ गई आसमान में। बस हंस इसीलिए यह गाना गाये जा रहा है- गाये जा रहा है।" हंस फिर से गाने में व्यस्त हो गया कि तभी हंसिनी मतलब मानव बेषधारी हंस की सहधर्मिणी नेपथ्य से केंद्र में उदित हो गई।
हंस की जुबान तालु से चिपक कर शब्द खोज रही थी, संगीत की दिव्यता से दमकता उसका मुख मंडल अब कोयले की राख से हो गया था। हंसिनी आसमान से उतर कर अपने आशियाने में आ गई थी।
बगुले ने फुर्ती दिखाते हुए मेज का सब सामान सोफे के किनारे पर छुपा दिया था।
हंसिनी को मानव रूप में आते देख हंस भी मानव रूप में परिवर्तित होता जा रहा था था और बगुला भी। रूप परिवर्तन के इस घटनाक्रम में हंसिनी अचानक मानव रूप में परिवर्तित होते- होते शेरनी बन गई थी और हंस महाशय चूहा बन कर कुर्सी में सिमटे जा रहे थे। कुछ ही देर में बगुला अपनी गाड़ी से अपने घोंसले की तरफ उड़ा मेरा मतलब है चला जा रहा था और हंस .... मैं तेरे प्यार में क्या - क्या न बना.... गाते हुए घर की सफाई कर रहा था। कमरे में हंसिनी बच्चे को होमवर्क कराते हुए व्हाट्सअप पर अपना स्टेटस अपलोड कर रही थी-" पंछी बनूँ ,उड़ती फिरूँ!"

