Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

युद्ध - “नया आरंभ”

युद्ध - “नया आरंभ”

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हमारे नगर में प्रतिरोध न रह जाने से, युद्ध तीव्रता अब नगण्य पर आ गई थी। दुश्मन के सैन्य दल गश्त करने जैसे घूम रहे थे। वे अब नागरिकों से मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते थे। इससे शेल्टर में तनाव एवं चिंता घट गए थे। अब यहाँ सब विश्रांति (Relax) की अवस्था में रहते और हँसी ठिठोली भी कर लेते थे। 

अब अगर कोई अपने घर लौटना चाहे तो जा सकता था। फिर भी यहाँ से कोई नहीं गया था। अधिकतर परिवार के मुखिया या तो लड़ने के लिए अन्य स्थानों में हमारी सेना के साथ देने चले गए थे या कुछ घर के रोगी सदस्यों को छोड़ अन्य देशों में शरण लेने चले गए थे। ऐसे में जब यहाँ आवश्यकता की सभी वस्तुएं उपलब्ध थीं तब कई दिनों से छोड़े हुए अपने घर में रहने कोई नहीं जा रहा था। 

मेरे साथ केस दूसरा था। मेरा अपार्टमेंट तो दुश्मन के हमले में खंडहर हो चुका था। ऐसे में हम चाहते भी तो वापस नहीं जा सकते थे। 

शेल्टर में पुरुषों में स्वस्थ पुरुष, आंद्रेई और मैं ही थी। यहाँ पुरुष, स्त्री एवं बच्चे सब मिल कर कुल 27 लोग थे। ये सब एक परिवार की तरह रह रहे थे। अब कठिन एवं विपरीत परिस्थितियों में भी एक साम्यावस्था (Equilibrium) बन चुकी थी। 

आंद्रेई एवं मैंने तय किया था कि हम, युद्ध में मारे गए नागरिक और हमारे या दुश्मन के सैनिक, जिनके शव दफनाए नहीं जा सके थे, उन्हें तलाश कर उनकी अंतिम क्रिया करें। हमने घरों या सार्वजनिक जगहों में लावारिस पड़े शवों को ढूँढ़ कर अंत्येष्टि करना आरंभ किया था। इस उपकारी काम में हमारे साथ 7 और लोग जुड़ गए थे। हमने शवों की दशा बिगड़ने से, उनमें आ रही दुर्गंध से खोज की थी। पहले दिन में 11 एवं दूसरे दिन 23 मिले, ऐसे शवों को विधि पूर्वक दफन किया था। इस बीच बोहुस्लावा एवं रुसलाना जरूरतमंदों में सैनेटरी पैड एवं दवाओं के वितरण के लिए शेल्टर से निकलती रहीं थीं। 

हमारे दोनों बच्चों को विषम स्थितियों ने, समय के पहले ही बड़ा बना दिया था। वे शेल्टर में रहकर पराश्रित रोगियों एवं गर्भवती और प्रसूता स्त्रियों की सेवा में व्यस्त थे। वे नवजात बच्चों की, उनके माँ के बताए ढंग से देखभाल भी करते थे। 

इन सब के बीच एक रात दो बातें हुईं थीं। पहली यह थी कि एक अन्य गर्भवती महिला ने एक बेटी को जन्म दिया था। 

दूसरी यह थी कि शेल्टर में बिजली होने से, अपने चार्ज कर लिए मोबाइल पर, मुझे एक साथी का कॉल आया था। वह बेसमेंट में हमारे साथ रहा था। उसने बताया कि वह एवं उसका परिवार, एक मित्र पड़ोसी देश में शरण ले चुका था। कॉल करते हुए वह रो रहा था। 

उसने रोते हुए ही मुझे बताया कि शरणार्थी शिविर (Refugee camp) जिसमें वह परिवार सहित पहुँचा था, वहाँ किसी ने पिछली रात उसके 8 वर्षीय इकलौते बेटे का अपहरण कर लिया था। 

सुनकर मैं आवाक रह गया था। मैंने दिलासा देने के लिए कहा था - 

आप साहस से काम लीजिए, ईश्वर आपके बेटे को आपसे शीघ्र वापस मिलाएगा। 

इस पर उसका विलाप और बढ़ गया था उसने कहा - 

बॉरिस्को, कैसे मैं आपके जैसी आशा रखूँ? यहाँ हमारे शिविर में लगभग 600 लोग हैं। उनमें से आज सुबह ही हमें, 2 महिलाएं बीती रात हुए उन पर बलात्कार के कारण रोते हुए मिलीं हैं। इसके अतिरिक्त पिछले दो दिन में 3 किशोरियों एवं मेरे बेटे सहित 4 बच्चों का अपहरण हुआ है। हमें नहीं लगता कोई हमारी सहायता करेगा। दुनिया भर के माफिया, शरणार्थियों के आसपास ही सक्रिय हो गए हैं। (फिर पछतावे के स्वर में) - काश! बॉरिस्को मैं भी सपरिवार, आप जैसे वहीं रुक जाता। अपना देश ही अपना होता है। यहाँ हम इन शरणदाताओं की दया पर रह गए हैं। 

मैं क्या कहता, चुप रह गया था। कॉल खत्म होने पर मैंने बोहुस्लावा से ये सब बातें बताईं थीं।  

बोहुस्लावा ने कहा - यह अच्छा नहीं हो रहा है। हर किसी के साथ, ऐसा होना अत्यंत दुखद होता है। यह अच्छा ही हुआ कि हम भागे नहीं थे। अभी हम एक साथ हैं और यहाँ दुखियारों की सहायता भी कर पा रहे हैं। 

मैंने कहा - मेरा मन हुआ था कि आप, बच्चों को लेकर यहाँ से जाओ। अच्छा हुआ आपने यहाँ रहना ही चुना था। 

बोहुस्लावा के मुख पर व्यथा (Agony) स्पष्ट देखी जा सकती थी। उसने कहा - हम औरतें और निर्दोष बच्चे ही, हर सामान्य एवं असामान्य परिस्थितियों में अपराधी तत्व के आसान लक्ष्य (Soft target) हो जाते हैं। ना जाने किस युग एवं किस दुनिया में हम पर ये खतरे नहीं होंगे। 

बोहुस्लावा के सामने, मैं पुरुष होने के कारण फिर शर्मिंदा अनुभव कर रहा था। मैं सोच रहा था, बहुत से पुरुष और मैं ऐसे दुष्ट नहीं हैं। मैं बहुत से अच्छे काम कर रहा हूँ। फिर भी मुझमें क्षमता नहीं कि मैं दुष्टों कि कुप्रवृत्तियां बदल पाऊँ। 

अगली सुबह मैं नहा कर आया तब बोहुस्लावा भारतीय लड़की के जुड़वाँ बच्चों को गोद में लिए बैठी थी। हमारे बच्चे कौतुक (Curiosity) से उन्हें देख रहे थे। तभी आंद्रेई के पुकारने पर, हमारे दोनों बच्चे उसके किए जा रहे कार्य में सहायता करने चले गए थे। मैं बैठकर बोहुस्लावा एवं लड़की की बातें सुनने लगा था। 

लड़की बता रही थी - मेरा नाम अनुष्का है। मैं यहाँ मेडिकल डिग्री कोर्स करने आई हूँ। अभी इसके अंतिम वर्ष की विद्यार्थी हूँ। 

बोहुस्लावा ने पूछा - तुम्हारा अभी माँ बन जाना, क्या तुम्हें जल्दबाजी नहीं लगती है?

अनुष्का ने बताया - 

मेरी शादी नहीं हुई है। मैंने अपने देश भारत से दूर यहाँ पढ़ने के समय में, वहाँ के सामाजिक बंधनों से मुक्त अनुभव किया था। ही यहाँ हमने मौज मस्ती शुरू कर दी थी। मेरा एक भारतीय ही दोस्त था।

बोहुस्लावा ने पूछा - अभी भारत सरकार के द्वारा, यहाँ के सभी भारतीयों को एयर लिफ्ट करवाया गया है। क्या आपको भारत लौटने का अवसर नहीं मिल पाया था? 

अनुष्का ने बताया - मैं ही नहीं गई हूँ। हमारे समाज में कुँवारी लड़की का माँ बनना, अत्यंत निंदनीय बात होती है। ऐसी लड़की के पेरेंट्स भी उस से नाता तोड़ लेते हैं। मैं फँस गई थी। बच्चे के जन्म देने के पहले, अपने देश नहीं लौट सकती थी। अब जब ये जन्म ले चुके हैं, मैं इन्हें अनाथालय में देकर वापस जा पाऊँगी। 

यह बात सुनकर मैं अनुष्का और मासूम शिशुओं के मुख हैरत से देखता रह गया था। मैं सोच रहा था, एक माँ इतने प्यारे मासूम शिशुओं को, कैसे अनाथ जैसे पलने के लिए छोड़ सकती है। 

तब बोहुस्लावा पूछ रही थी - अनुष्का, ऐसा था तो तुमने सावधानी क्यों नहीं रखी थी?

अनुष्का ने बताया हम यूँ तो सावधानी रखते थे लेकिन कुछ अवसरों में, नशे की हालत में मुझसे चूक हुई थी। 

बोहुस्लावा ने पूछा - तुम्हारा दोस्त अब कहाँ हैं?

अनुष्का ने कहा - उसने मेरे गर्भवती हो जाने पर मुझसे ब्रेक अप कर लिया था। वह भी अनेकों विद्यार्थियों की तरह, अभी युद्ध काल में भारत लौट गया है। 

बोहुस्लावा ने कहा - मैंने तो भारत की अनुकरणीय संस्कृति के विषय में पढ़ा था। क्या ये उससे बिलकुल विरुद्ध बातें नहीं हैं?

अनुष्का ने कहा - हाँ ये बिलकुल विरुद्ध बातें हैं किंतु आज के वैश्विक परिदृश्य में दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों की अच्छाइयों/बुराइयों से हम भी अछूते नहीं रहे हैं। 

ये वार्तालाप चल रहा था, तभी कोई चिल्ला कर कहने लगा था - 

हमारे शासक ने इस्तीफा दे दिया है। अब आशा करनी चाहिए कि युद्ध विराम हो जाएगा। हम पर से मिसाइलों, रासायनिक एवं परमाणु बमों का खतरा अब खत्म हो जाएगा। 

यह सुनने के बाद अधिक जानकारी पता करने के लिए बोहुस्लावा, रुसलाना, आंद्रेई एवं मैं शेल्टर से बाहर आए थे। हमें अधिक कुछ पता नहीं चल पाया था। उस दिन बाहर एवं शेल्टर में हर्ष का वातावरण था। 

अगले दिन हमें पता चला कि हमारे नए शासक ने पदभार सम्हालते हुए कहा है - 

“हम धन्यवाद करते हैं उन मित्र देशों का जो युद्ध में हमारे साथ रहे हैं। हम आभार व्यक्त करते हैं विश्व के सभी देशों का जिन्होंने हम पर इस विपरीत समय में विभिन्न प्रकार से सहायता पहुँचाई है। हम क्षमा माँगते है, अपने देशवासियों से कि हम युद्ध में मित्र देशों के साथ देने की सीमाओं (Limitations) का सही अनुमान नहीं लगा पाए थे। हमने हमारे शक्तिशाली पड़ोसी से युद्ध में लड़ते हुए, अपनी और पड़ोसी देश दोनों की ही अत्यंत क्षति झेली है। एक संघ में रहकर हम दुनिया के सबसे बड़ी शक्ति थे। इस युद्ध में हुई क्षति से हम और हमारा पड़ोसी, अग्रणी देशों से 30-40 वर्ष पीछे पहुँच गए हैं। 

इस सब से हमने सबक लिया है कि हमें राष्ट्रहित में किसी से अपेक्षा करना ही था तो हम दूर के देशों की अपेक्षा, अपने पड़ोसी के ही छोटे भाई बनते। तब यह परिदृश्य इतना कुरूप नहीं होता। हम महाशक्ति ही बने रहते। 

इन सारी बातों के अतिरिक्त मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अपने तरफ से युद्ध विराम की पहल करते हुए हम, शेष विश्व एवं अपने नागरिकों को, तीसरे विश्व युद्ध एवं परमाणु खतरे की आशंकाओं से मुक्त करते हैं। धन्यवाद, धन्यवाद, सभी को धन्यवाद” 

स्पष्ट था हमारे नए शासक का यह रुख नम्र था। उन्होंने राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में, दुश्मन के स्थान पर पड़ोसी देश कहने की सावधानी रखी थी। दो ही घंटे में, पड़ोसी देश के शासक ने भी युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी। 

आंद्रेई ने कहा - अब इसी क्षण से दोनों देशों के पुनर्निर्माण का, समय आरंभ होता है। 

रुसलाना ने आकर आंद्रेई से गले मिलते हुए कहा - इसका आरंभ आंद्रेई और मैं चर्च में विवाह करते हुए करेंगे। 

मुझे बोहुस्लावा के संकल्प का स्मरण आया था। मैंने बोहुस्लावा को खींच कर आलिंगन में लेते हुए कहा - इस नए आरंभ में, बोहुस्लावा और मैं भी, आप दोनों के साथ ही फिर एक बार विवाह करेंगें। 

बोहुस्लावा के हृदय में भी कुछ चल रहा था। बोहुस्लावा ने मेरे से अलग होकर, रुसलाना और अनुष्का को एक साथ गले लगा लिया था और कहा - 

इसी आरंभ में मैं अनुष्का की लक्ष्मी को और रुसलाना अनुष्का के विजय को क्रमशः अपनी बेटी एवं बेटे के रूप में गोद (Adopt) ले लेंगे।  

अब आंद्रेई और मैं उसी तरह से भाई हो गए थे, जैसे हमारे राष्ट्र! 

(समाप्त)



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