युद्ध - ‘मोर्चा लेने क्यों गए थे?’ …
युद्ध - ‘मोर्चा लेने क्यों गए थे?’ …
भावुक बोहुस्लावा ने दुश्मन के सैनिक की माँ को, उसके बेटे को अपने आश्रय में सुरक्षित होने का आश्वासन दे दिया था। मोबाइल पर उस माँ से कही जा रही बोहुस्लावा की बातें सुनकर, मैं असमंजस (Confusion) में पड़ गया था। मैं सोच रहा था, भूखे सैनिक को खाना खिला देना और उसे कोई दुश्मन का सैनिक की जगह आम नागरिक समझे, इस हेतु उसके वस्त्र बदलवा देने तक का, बोहुस्लावा का दया भाव उचित था मगर अपने आश्रय में सुरक्षित रखने की अति भाव विह्वलता (Mood swings) को यथार्थ निभा पाना कठिन था।
बोहुस्लावा की मोबाइल पर बात खत्म हुई तो मैंने उससे अपनी भाषा में कहा - बोहुस्लावा हम स्वयं अपने घर छोड़ने को विवश हुए हैं। हम खुद गुप्त रूप से बंकर जैसे बेसमेंट में छुपकर रह रहे हैं। हम ही जब अपने जीवन को खतरे में अनुभव कर रहे हैं, तब आपका इसकी माँ को दिया भरोसा, हम कैसे निभा पाएंगे ?
मेरे इस प्रश्न पर मैंने, बोहुस्लावा के मस्तक पर चिंता के बल (रेखाएं) पड़ जाना देखा था।
बोहुस्लावा ने विचार करते हुए कहा था - हम इसे बेसमेंट में अपने साथ ले जाकर छुपाएंगे।
मैंने पूछा - वहाँ के लोगों से इस के बारे में क्या कहेंगे ?
बोहुस्लावा ने बताया - इसे मैं अपना भाई बताऊंगी।
मैंने कहा - यह हमारी भाषा नहीं जानता है, दुश्मन की भाषा में बात करता है। इसके लिए उनसे क्या कहोगी ?
बोहुस्लावा ने कहा - मैं इसे समझा दूँगी कि यह वहाँ कुछ न कहे। मैं उन लोगों को बताऊंगी कि यह एक एक्सीडेंट में बोलने की क्षमता खो बैठा है। इसका उपचार चल रहा है, अभी यह गूँगा है।
मुझे बोहुस्लावा की बातें नाटकीय सी लग रहीं थीं। मुझे संशय था कि बेसमेंट के साथी परिवार बोहुस्लावा की इन बनावटी बातों पर विश्वास करेंगे।
मुझे कुछ और उपाय नहीं सुझाई दिया था। हम दोनों, बच्चों और उस सैनिक को अपने साथ लेकर बेसमेंट की दिशा में बढ़ने लगे थे। बोहुस्लावा, उस सैनिक को जिसका नाम आंद्रेई था, वह सब समझा रही थी, जो उसने मुझसे कहा था। आंद्रेई उसकी भाषा में बोहुस्लावा के दिए निर्देश सुनकर, किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह सिर हिला रहा था।
आंद्रेई यद्यपि दुश्मन का सैनिक था तब भी मैं सोच रहा था इस तरह के कायर लड़के को सेना में नहीं जाना चाहिए। यद्यपि अपनी जान की परवाह किसे नहीं होती मगर युद्ध लड़ते समय अपनी जान की सोचने वाला कोई, सैनिक कैसे हो सकता है।
बोहुस्लावा और आंद्रेई, आंद्रेई की भाषा में ऐसे बात कर रहे थे जैसे वे सच में भाई बहन हैं। हमारे दोनों बच्चों को उनकी वार्तालाप जरा भी समझ नहीं आ रही थी। वे उन्हें ऐसे बात करते हुए सुनकर, हँसते हुए मुझे देख रहे थे। मैं भी उन्हें हँसता हुआ देख खुश था कि चलो बच्चों को अभी हँसने योग्य बात कोई तो मिली थी।
अब दोनों बच्चे आपस में और बोहुस्लावा और आंद्रेई बातों में मगन हुए थे। मैं पुनः विचारों में खो गया था कि यह स्त्रीजात (Feminine) भी ईश्वर की बड़ी विचित्र सी कृति है।
बोहुस्लावा ने एक दिन पूर्व ही अपने देशवासी पुरुष का दुष्कर्म सहा है। फिर संयोग से उस दुष्कर्मी के, पिछली रात मारे जाने पर खुशी भी मनाई है। मगर उसे आज जैसे ही यह दुश्मन देश का पुरुष, शरण में आया हुआ मिला तो बोहुस्लावा का हृदय पसीज (Exude) गया।
बोहुस्लावा ने न केवल आंद्रेई की माँ को उसके बेटे का सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया बल्कि अब यह उसे भाई की तरह का स्नेह देते हुए, उसकी सुरक्षा के उपाय करने लगी है।
कभी दूर और कभी पास, हमारी भूमि पर लड़े जा रहे युद्ध के गोलाबारी के धमाके लगातार चल रहे थे। मुझे इसमें ध्वस्त हुआ मेरा अपना घर और कई और भवनों का विचार आ गया था। मुझे लग रहा था आंद्रेई के देश ने मानवता को ताक पर रख कर (Put on hold) हमारे देश के आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रों को भी तहस नहस करने की दुष्टता की है। जबकि हम, विशेषकर बोहुस्लावा श्रेष्ठ मानवता का परिचय देते हुए, आश्रय में आए दुश्मन के सैनिक की रक्षा के उपाय कर रहे हैं।
विचारों में खोकर मैं धमाकों और आसमान में गूँजते युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट की ओर से बहरा हो गया था। जबकि बाकी चारों उससे दहल जाते हुए, छुप छुप कर चल रहे थे।
मैं सोच रहा था बोहुस्लावा मूर्ख नहीं है फिर भी करुणा में विभोर होकर (Full of compassion), वह यह खतरा नहीं देख रही है कि आंद्रेई भी छली हो सकता है। वह भरोसा जीतकर मौका पाकर बेसमेंट की औरतों पर बलात्कार की कोशिश भी कर सकता है। पता नहीं 36 घंटे तक भूखा रहा यह अपरिचित पुरुष, 36 दिनों से सेक्स का भूखा भी हो।
मैं विचार तंद्रा में था तब हम चलते हुए बेसमेंट के पास पहुँच गए थे। अब बोहुस्लावा ने आंद्रेई को चुप हो जाने और अब चुप ही रहने के लिए कहा था। बोहुस्लावा का इतने समय में विश्वास और बढ़ गया था, उसने अब तक अपने कन्धों पर टाँगी रखी आंद्रेई की गन उसे वापस दे दी थी।
हम बेसमेंट में पहुँचे थे। वहाँ के स्त्री पुरुषों ने हमारे साथ एक अजनबी को देखा तो उनमें से एक पुरुष ने इस बारे में प्रश्न किया था। बोहुस्लावा ने जैसा पूर्व में तय कर लिया था, वही सब उनसे बता दिया था। आंद्रेई गूँगा है यह जानकर, इस गठीले नौजवान युवक को उन लोगों ने करुणा से देखा था।
दोपहर बाद हम सब पुरुषों ने, अपनी मशीनगन लेकर अपनी सरकार की भावना अनुरूप, दुश्मनों से लड़ने निकलने का तय किया था। हम जिस समय बेसमेंट से निकल रहे थे, उस समय बोहुस्लावा सहित सभी औरतें, हमें लेकर चिंतित लग रहीं थीं। जबकि आंद्रेई जमीन पर पड़ा बेसुध सो रहा था। कदाचित उसे कई दिनों से सोने नहीं मिला था।
हम बेसमेंट से बाहर आए थे। यद्यपि हम प्रशिक्षित सैनिक नहीं थे। फिर भी हममें मातृभूमि रक्षा की भावना जोर मारने के साथ ही, अपने पास मशीनगन होने का बोध साहस प्रदान कर रहे थे। हम उस दिशा में बढ़ रहे थे जहाँ गोलियों के चलने की आवाजें अधिक आ रहीं थीं।
यहाँ दुश्मन की सेना जमीन पर नहीं थी। कई स्थानों पर हमें हमारी सेना की टुकड़ियों के साथ ही, अपने ऊपर कम ऊंचाई पर उड़ते हेलीकॉप्टर (Chopper) दिखाई पड़ रहे थे। हम उन्हें अपने सिर पर देखकर, अतिरिक्त जोश में मशीनगन से हवाई फायर कर रहे थे। जो उन तक नहीं पहुँच रहे थे। हममें जोश था। हम, हमारा प्रतिरोध दर्शाने का काम कर रहे थे। वे दुश्मन के वायु सैनिक हमें सिविल ड्रेस में देखकर हम पर बम वर्षा नहीं कर रहे थे। जबकि हमारी सैन्य टुकड़ियों को देख वहाँ बम फेंक रहे थे। शहर सूना था। दुश्मनों के ऐसे बम और दूर से आ रही टारगेटेड मिसाइलों से हम सड़कों भवनों और सार्वजनिक स्थलों को विनष्ट होता देख कर दुःख कर रहे थे।
हममें से एक बोला था - युद्ध हमें अपने देश में नहीं लड़ना चाहिए था। इससे क्षति हमारी ही हो रही है। जिन्हें हमने वर्षों की मेहनत से खड़ा किया और नगर सुंदर बनाया, वे पलक झपकते खंडहर और मलबे के ढ़ेर में बदल रहे हैं।
मैंने उत्तर दिया - दुश्मन देश में हम कैसे घुस सकते थे, जब वह हमसे सैकड़ों गुना शक्तिशाली है।
यह सुनकर एक अन्य ने कहा - जब ऐसा था तो क्या हमें युद्ध लड़ने के विकल्प पर जाना चाहिए था ? या दूसरे माध्यम से हमारे बैर और मतभेद दूर करने की हमारी नीति उचित होती।
मैंने कहा - यह हमारे नीति निर्धारकों (Policy makers) के ऊपर था। अब जो भी हो रहा है, हमें उसमें ही अपने देश की मदद करनी है।
हमें बीच बीच में मिलते हमारे सैनिक गौर से देखते थे। फिर आम नागरिक के रूप में पहचान कर हमारा हौसला बढ़ा देने वाले शब्द कहते थे।
मैं सोच रहा था कि हम मिसाइलों एवं बम के हमलों में इनकी सहायता क्या ही कर सकते थे। बस अपने हाव-भाव (Gesture) से इतना ही उन्हें अनुभव करा सकते थे कि - ‘हे वीर सैनिकों आप लड़ो, हम आपके साथ हैं’।
अब हम चलते हुए वहाँ पहुँच गए थे जहाँ लग रहा था कि दोनों देशों के बीच के सैनिकों में सीधी गोलियाँ चलाईं जा रहीं थीं। यहाँ हमारा सावधान रहना आवश्यक था। हम छुपने का स्थान देख कर एक बड़ी होर्डिंग के पीछे छुप कर, दुश्मनों के सैनिकों को आसपास आने की प्रतीक्षा में थे।
हमें हमारे ही सैनिक कभी कभी पास दिखाई पड़ रहे थे। हम दो घंटे प्रतीक्षा करते रहे थे कि हमें मौका मिले तो हम कुछ दुश्मनों का, अपनी मशीनगन से सफाया करें। यह नहीं हो पाया था। इसके विपरीत यह हुआ कि जब हमने तय किया कि हमें लौटना चाहिए और लौटते हुए खाने की विशेषकर बच्चों को प्रिय सामग्रियाँ लेकर बेसमेंट लौटना चाहिए। तब हम छुपे स्थान से निकल कर बेसमेंट की दिशा में बढ़ने लगे थे।
मेरे दो अन्य साथी और मैं आगे और हमारा एक साथी कुछ पीछे चल रहा था। तभी हमें पास से फायर और पीछे के साथी की चीखने की ध्वनि सुनाई पड़ी थी। हमने पीछे पलटकर देखा तो हमारा साथी, जमीन पर औंधा पड़ा कराह रहा था।
हमें समझ आया हमारे और दुश्मन के सैनिकों के क्रॉस फायरिंग में गोली, हमारे साथी को लगी थी। उसके कूल्हे पर पतलून (Trouser), खून से लाल एवं गीला हुआ था। हमने आसपास देखते हुए, डरते डरते उसे उठाया था।
भाग्य से वह सीधा खड़ा हो पा रहा था। इसका अर्थ यह था कि गोली उसके कूल्हे के माँसल हिस्से को चीरते हुए निकल गई थी। कूल्हे की हड्डी टूटने से बच गई थी।
मैंने अपनी शर्ट उतारकर उसके घायल कूल्हे पर कस कर बाँधी थी ताकि खून बहना रोका जा सके। फिर एक साथी और मैं, उसे सहारा देकर चला रहे थे। वह धीमी गति से चल पा रहा था।
बेसमेंट लौटते हुए हमारा काम बढ़ गया था। एक के घायल होने से हमारी चलने की गति कम हुई थी। हमें भोजन सामग्री के अतिरिक्त, अब बैंडेज एवं दर्द निवारक एवं अन्य दवाइयां और चाहिए थीं।
उसे सहारा देकर चलते हुए मेरे मन में विचार यह था कि -
जब यह साथी इस अवस्था में बेसमेंट पहुँचेगा तो क्या इसके पत्नी और बच्चे हम से यह तो नहीं कहेंगें -
आप लोग मशीनगन लेने क्यों गए थे ? आप सब अप्रशिक्षित होते हुए दुश्मन से मोर्चा लेने क्यों गए थे ?
