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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

युद्ध - जीवन के और सत्तर वर्ष …

युद्ध - जीवन के और सत्तर वर्ष …

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युद्ध - जीवन के और सत्तर वर्ष …बंकर से अधिक सही इसे बेसमेंट कहना होगा, जहाँ और कुछ लोगों के साथ मैं और मेरा परिवार पिछले चार दिनों से रह रहे थे। मेरा नाम बॉरिस्को है। मेरी उम्र 42 वर्ष है। अपनी पत्नी बोहुस्लावा और 11 वर्षीय बेटे और 7 वर्षीय बेटे के साथ घर से आकर सभी यहाँ छुपे हुए थे। 

यह एक निर्माणाधीन टॉवर का बेसमेंट था। बड़े से इस बेसमेंट की अभी ग्राउंड लेवल पर छत ही निर्माण की गई थी। लोहे की मोटी छड़ों की अच्छी मात्रा में प्रयोग से यह काफी मजबूत और सुरक्षित प्रतीत होती थी। 

हमारे यहाँ आ जाने पर, देश की सीमाओं से हमारे शहर तक आ गए युद्ध में, हमें अपने घर से यहाँ रहना अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित लग रहा था। दिन रात आस पास से दूर तक मिसाइलें, गन चलने सहित गोलों के फटने की आवाजें गूँजती सुनाई पड़तीं थीं। वातावरण में बारूदी गंध फैली हुई थी। 

बेसमेंट होने से यहाँ ऑक्सीजन कम था। प्रकाश भी कम रहता था। निर्माणाधीन होने से इसमें रोशनी के लिए लैंप्स भी कुछ ही लगे थे। जिनमें बिजली भी अगले दिन से नहीं आ रही थी। शायद हमले में प्रयोग की गई किसी मिसाइल ने, बिजली ट्रांसफॉर्मर को ही क्षति पहुँचा दी थी। 

यहाँ रहने को तो जगह बहुत थी मगर सोने बैठने को फर्श ही था। वॉश-बेसिन, टॉयलेट एवं पानी का सही प्रबंध नहीं था। हम घर से भागते हुए बैग्स में कुछ कपड़े और ओढ़ने के कपड़े लाए थे मगर वह चार दिनों में फर्श पर बैठे और लेटे रहने से गंदे हो गए थे। 

बोहुस्लावा और मेरे दोनों बच्चे घर की पर्याप्त सुविधाओं में रहने के अभ्यस्त थे। अतः यहाँ बेसमेंट में रहना उनके लिए कठिन हो रहा था। बोहुस्लावा और मैं तो जैसे तैसे रह रहे थे। मगर बच्चों के मुख, निराशा और यहाँ की कठिनाइयों से कुम्हला से (Withered) गए थे। 

पहले दिन से हम यह मान रहे थे कि यह युद्ध शायद अधिक दिन नहीं चलेगा। ऐसे रहने की मुसीबत दो तीन दिनों में टल जाएगी किंतु अब चार दिन हो गए थे। पहले दिन की अपेक्षा युद्ध अब अधिक तीव्र हो गया मालूम पड़ता था। अब लग रहा था, अधिक खतरनाक अस्त्र-शस्त्र दोनों और से प्रयोग में लाए जा रहे थे। इनकी आवृत्ति (Frequency) भी बढ़ी थी, साथ ही शोर भी बढ़ गया था। 

हमारे साथ लाया भोजन भी दो दिन में खत्म हो गया था। तीसरे दिन बेसमेंट में छुपे और पुरुषों के साथ छुपते छुपाते हम बाहर निकले थे। हम एक रेस्टारेंट में घुस कर खाने की सामग्री एवं पानी की बोतलें उठा ले आए थे। जिससे हमारे पेट तो भर रहे थे। मगर बोहुस्लावा एवं बच्चों को फर्श पर ही मल-मूत्र त्याग करने में शर्म आती थी। 

आज मेरा सब्र टूट रहा था जब भूखे होने पर भी, मेरे बेटे ने बोहुस्लावा से कहा - माँ, मैं ना खाना खाऊँगा, ना ही पानी पियूँगा। खाने-पीने से मुझे मल-मूत्र त्याग को जाना पड़ता है। मुझसे जैसा करना पड़ रहा है वैसा नहीं बनता है। देखो ना यहाँ सब तरफ कितनी गंदगी और दुर्गंध फैली है । 

बेटे की बात सही थी। कम प्रकाश, कम ऑक्सीजन, बारूद और मल-मूत्र की गंदगी, दुर्गंध वाली इस जगह में हम बिना नहाए, बिना साफ वस्त्रों में आदि मानवों की तरह रहने को लाचार थे। 

भाई की बात सुनकर, मेरी मासूम बेटी ने पूछा - माँ, हम कब तक यहाँ रहेंगें? हम कब अपने घर चलेंगें? 

बोहुस्लावा ने निरीह दृष्टि से मुझे देखा था। किसी तरह वह अपने को रोने से रोक पाई थी। 

आज फिर हमारा खाना खत्म होने वाला था। मुझे और लोगों के साथ फिर खतरा उठाकर खाने के प्रबंध के लिए, इस बेसमेंट से निकल कर जाना था। 

मैंने दोनों बच्चों को अपने बाहुपाश में लिया था। अपने सीने से लगाकर (झूठी) तसल्ली देते हुए कहा था - बच्चों, बस आज शायद आखिरी दिन होगा। कल यह सब ठीक हो जाएगा। 

बेटी ने पूछा - सच में पापा? 

मैंने कहा - हाँ बेटे! और आज अभी हम लोग बाहर जाएंगे तब वापस आएंगे तो खाने की अच्छी अच्छी चीजों के साथ मैं, कोल्ड ड्रिंक और चॉकलेट भी लेकर आऊँगा। 

अब बेटे ने कहा था - पापा, क्या मुझे आइसक्रीम मिलेगी? अगर आइसक्रीम मिली तो मैं उसे खा लूँगा। फिर दुर्गंध आदि की परवाह भी नहीं करूँगा। 

मैं खुद संदेह में था कि मैं आइसक्रीम ला भी पाऊंगा या नहीं फिर भी मैंने दिलासा के लिए कहा - हाँ बेटे, आपके पापा आइसक्रीम भी लेकर आएंगे। 

जब हम छह लोग मिलकर खाने के प्रबंध के लिए जा रहे थे तब बोहुस्लावा की उदास आँखों में भाव ऐसे थे जैसे कह रही हो - खाने को कुछ न मिले तो कोई बात नहीं। हम भूखे रह लेंगें मगर आप सकुशल, अवश्य ही लौट आना। 

इस बार हम सभी ने बड़े बेग लिए थे। मैंने भी दो बेग ले लिए थे। हम बाहर निकले थे तभी कुछ दूर पर गोला फटने की आवाज आई थी। हम बचते बचाते उस रेस्टारेंट में पहुँचे थे, जहाँ से दो दिन पूर्व हमने खाने की सामग्री चुराई थी। वहाँ अब कुछ नहीं था। हम जैसे और लोग शायद इसे खाली कर चुके थे। 

हमें अब नई जगह के लिए भटकना पड़ रहा था। जहाँ से हमारे कुछ और दिन खाने का प्रबंध हो सके। जबकि चारों ओर फायरिंग, बम फटने की आवाजें रुक रुक कर आ रहीं थीं। हमें अपने जीवन के लिए भोजन चाहिए था, मगर इस चक्कर में हमारा जीवन बचा रहेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी। 

हम छह में चार फैमिली वाले थे। जबकि दो नौजवानों के साथ उनके बूढ़े माँ-पिता थे। हमें अपने लिए नहीं अपने बड़े-बूढ़ों, बच्चों एवं पत्नी के लिए, अपने प्राणों पर खतरा लेना ही था। 

हमें दूर तक जाना पड़ा था। एक सूने पड़े मॉल में, हम मुश्किल से शटर तोड़ कर घुसे थे। फिर उसके भीतर एक डिपार्टमेंटल स्टोर में से हमने पानी, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, चॉकलेट और अन्य सामग्रियाँ अपने बैग्स के हवाले की थी। मैंने विशेषकर वहाँ रखे बड़े फ्रिज से बहुत सी आइसक्रीम ली थी। जब मुझे लगा कि हमारे पास अब तीन दिन खाने को पर्याप्त है, तब मैं रुक गया था। अब मेरे दोनों बैग्स इतने भारी थे कि उन्हें लेकर वापस बेसमेंट तक लौटना बहुत कठिन होने वाला था। 

इस बीच मेरे तीन साथी, वाइन शॉप में घुस गए थे। उन्होंने अपने बेग में वोडका एवं व्हिस्की की बोतलें भी भर लीं थीं। 

वापस लौटने के सीधे रास्ते में दोनों पक्षों की सेनाओं में मुठभेड़ अधिक होते दिखाई देने पर, हम लंबे रास्ते तक भारी भारी बेग टाँगे लौटे थे। इस रास्ते में मुझे अपने अपार्टमेंट का ध्वस्त हुआ दुखद मंजर देखने मिला था। भारी बेग एवं भारी हृदय लौटते हुए, मैं सोच रहा था कि बेटी के प्रश्न का उत्तर क्या बचा है। युद्ध रुक गया तब भी लौटने के लिए हमारा घर अब रहा नहीं था। 

हम लौटे तब दिन ढ़लने ही वाला था। मुझे कुशल देख बोहुस्लावा की आँखों में खुशी थी। बच्चे चॉकलेट और आइसक्रीम देख खुश हुए थे। रात में सब जब खा रहे थे तब मेरे साथियों ने मुझे ड्रिंक्स के लिए बुलाया था। हमने लूटी हुई वोडका पीकर अपने दुःख-दर्द भूले थे। वापस परिवार के पास आकर, मैंने बोहुस्लावा का दिया खाना खाया था। फिर बेसुध जमीन पर सो गया था। 

अगली सुबह उठा तो बोहुस्लावा रो रही थी। मेरे एवं बच्चों के पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया था। बस रोते ही जा रही थी। आस पास की कुछ और महिलाएं भी इसी हालत में थीं। मेरा माथा ठनका था। मैं बोहुस्लावा के गले में हाथ डालकर उसे बेसमेंट के बाहर ले आया था। 

बोहुस्लावा ने अकेले में मुझे बताया - रात अँधेरे में कुछ सैनिक, टार्च लेकर बेसमेंट में आए थे। उन्होंने सो रहे बच्चों एवं पुरुषों के बीच से हम चार औरतों के मुँह दबाकर, हमें बेसमेंट के बाहर खींचकर ले गए थे। तारों भरे आसमान के नीचे सर्द जमीन पर चारों के साथ उन्होंने एकाधिक बार रेप किया था। फिर वे हमें छोड़ कर चले गए थे। 

बोहुस्लावा ने यह भी बताया - अँधेरे में हम पहचान नहीं पाए थे। ये दुष्कर्मी सैनिक हमारे अपने देश के या दुश्मन के थे। 

मैंने बोहुस्लावा को सांत्वना (Consolation) देने के लिए कहा - डॉर्लिंग! तुम इतनी दुखी न होओ। ज़िंदगी में मैंने कुछ और औरतों से संबंध रखे थे। तुम्हारे साथ एक दो सैनिक ने दुष्कर्म कर लिया, मुझे इससे कोई अंतर नहीं पड़ने वाला। हममें प्रेम पहले जैसा ही रहेगा। 

बोहुस्लावा ने पूछा - यह सैनिक परस्पर देशों के विरुद्ध युद्ध (War) लड़ रहे हैं या ये हम औरतजात के विरुद्ध हैं? यहाँ बात संबंध की नहीं बात हम औरतों पर जबरदस्ती की है। 

मैंने उसे आलिंगन में लिया था। कहा - अब चलो, यहाँ जान का खतरा है। बच्चे नीचे अकेले हैं। 

वापस आते हुए मेरे मन में प्रश्न और दूसरे थे- 

किन लोगों ने धरती पर ये काल्पनिक सीमा रेखाएं खींचीं हैं? किस धर्म प्रवर्तक या भगवान ने, दूसरे धर्मावलंबी से नफरत करने को कहा है?

मुझे नहीं चाहिए कोई देश या धर्म का ऐसा बंधन जिसमें दूसरा, पहले पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हमें यूँ अपमानित करे। मुझे चाहिए अपने बच्चों का सम्मानजनक जीवन, जो उन्हें अभी कम से कम सत्तर वर्ष और जीना है।      



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