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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

युद्ध - ‘जापान जैसे उठ खड़ा होना होगा’

युद्ध - ‘जापान जैसे उठ खड़ा होना होगा’

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युद्ध - ‘जापान जैसे उठ खड़ा होना होगा ’मैं अँधेरे में था। फायर करने के पहले देखना चाहता था कि आने वाला/वाले कौन हैं। सीढ़ी पर आने वाले की टार्च की रोशनी थी। शायद वह एक ही था। वह कौन है, यह मैं देख नहीं पा रहा था। मैंने इस शक में कि यह कोई दुश्मन सैनिक है, चिल्ला कर दुश्मन की भाषा में पूछा - कौन हो तुम, यहाँ क्यों आए हो? 

उसने उत्तर में कहा - बॉरिस्को, क्या यह तुम हो? मैं आंद्रेई हूँ। 

तुरंत ही मैं प्रसन्न हो गया था। मैंने गन अलग रख दी थी। अब आंद्रेई ने टार्च मेरी ओर किया था। वह मेरी तरफ आने लगा था। मेरे पास आया तो मैंने देखा, उसने नए कपड़े पहने हुए थे। उसकी पीठ पर बड़ा बेग एवं कंधे पर गन टँगी हुई थी। पास आकर बेग और गन धरती पर रखते हुए वह मेरे पास बैठ गया था। 

आंद्रेई ने टार्च की रोशनी बेसमेंट में, सब जगह डालने के बाद पूछा - बाकी लोग कहाँ हैं? 

कदाचित् मेरे चिल्लाने से बोहुस्लावा की नींद खुल गई थी। वह भी हम दोनों के पास आ गई थी। जबकि बच्चे एवं रुसलाना की नींद गहरी लगी होने से वे नहीं उठे थे। 

आंद्रेई के प्रश्न का उत्तर बोहुस्लावा ने दिया था - वे सब यहाँ से आज दोपहर चले गए हैं। तुम कैसे हो? इस बीच कहाँ रहे हो?

आंद्रेई ने उत्तर दिया - नगर से सबको पलायन करते देखने से, मुझे लगा कि यहाँ अब कोई न होगा। मैंने अधिकतर यह समय, जंगलों में भटकते हुए वहाँ रहकर बिताया है। अभी मैंने खाली पड़े नगर के मॉल में घुस कर जरूरी सामान चुराया और फिर यहाँ छुपने के लिए आया हूँ। आप लोगों का, अब भी यहाँ होना मेरे लिए सुखद आश्चर्य की बात है।

मैंने कहा - तुम्हारे देश ने नाभिकीय केंद्रों पर हमला किया है। इससे रेडियोधर्मी प्रदुषण/विकिरण (Radioactive pollution/radiation) के खतरे का अंदेशा करके जो भी भाग सकते थे, वे सब यह नगर छोड़ चले गए हैं। 

आंद्रेई ने बताया - मेरे पास बहुत सी सूचनाएं हैं। उनमें से एक यह भी है कि हमारी सेना ने नाभिकीय संयंत्रों को सावधानी से क्षति पहुँचाई है। इससे रेडियोधर्मी प्रदूषण/विकिरण नहीं फैलने वाला है। 

मैंने पूछा - इतने विश्वास से तुम यह कैसे कह सकते हो?

उसने बताया - यह हमारी सेना की सुनियोजित रणनीति है। नगर खाली करवाने के रेडियोधर्मी आशंका उत्पन्न करना उसी रणनीति में किया गया है। जब यह सफल हुआ है तब सेना यहाँ बच गए थोड़े से नागरिकों पर कोई प्रहार नहीं करेगी। सेना यही चाहेगी कि उसका कोई विरोध नहीं हो। 

मैंने कहा - मगर इस चक्कर में हमारे नगर, उजाड़, खंडहर हो रहे हैं। 

आंद्रेई ने कहा - हमारी सरकार पूर्वानुमान में चूक गई कि हमारी तुलना में कमजोर, आपका देश इतना संघर्ष करेगा। 

बोहुस्लावा ने कहा - मगर आपके देश के इस आक्रमण से हमारा बहुत विनाश हो गया है। 

आंद्रेई ने कहा - हाँ यह अमानवीय है। मैं भी इसके लिए अपराधी हूँ। मैंने निर्णय किया है कि मैं अभी और शेष पूरे जीवन, यहाँ रहकर पीड़ित लोगों की सहायता में अपना जीवन समर्पित करूँगा। 

यह दुश्मन देश का सैनिक था। मैं सोच रहा था कि एक के तानाशाह (Dictator) बन जाने से, किसी पूरे देश के लोग नफरत करने योग्य नहीं हो जाते हैं। मैंने यह नहीं कहा मगर मैं सोच रहा था, उस डिक्टेटर का ही नहीं, मेरे देश के शासक का भी बड़ा दोष है। जिसने अपने देश का सत्यानाश करवाया है। 

“बिगड़े हाथी या शक्तिशाली शेर से, ताकत से नहीं बुद्धिमत्ता से किए उपाय से आदमी जीतता है”। 

आंद्रेई ने अब कहा - मेरे इस बेग मैं खाने की बहुत सी सामग्री है, क्या आप कुछ खाना पसंद करेंगे। 

बोहुस्लावा ने हँसकर मना किया और कहा - सुबह बच्चे जागेंगे, तब सब साथ खाएंगे। 

यह कहकर बोहुस्लावा वापस सोने चली गई थी। आंद्रेई के आने से मेरा साहस बढ़ गया था। मुझे लग रहा था कि अब हम शेष रात निश्चिंत होकर सो सकते थे। 

सुबह जब मैं उठा तब आंद्रेई सोया हुआ ही था। जबकि सब उठ चुके थे। बोहुस्लावा का साहस बढ़ने से वह रुसलाना के साथ, बच्चों को लेकर बाहर गई थी। सब नित्य क्रियाओं से निबटकर आए थे। मैंने भी वही किया था। आज मुझे बाहर युद्ध गतिविधियाँ अत्यंत कम अनुभव हो रहीं थीं। सुदूर (Far away) बिरली ही धमाके की कोई आवाज गूँजती थी। 

मैं बेसमेंट में वापस आया तब सभी कुछ खा रहे थे। साथ ही बातें कर रहे थे। रुसलाना, बोहुस्लावा को बता रही थी कि जिस शेल्टर में वह रह रही थी, वहाँ जरूरतमंदों की देखभाल के लिए डॉ., नर्स और अन्य लोग कम बचे हैं। वह यह भी कह रही थी कि हमें अगर नगर में ही रहना है तो वहाँ चलना चाहिए। इससे हम अनेक गर्भवती युवतियों, प्रसूताओं एवं रोगियों के काम आ पाएंगे। 

बोहुस्लावा ने इस पर हामी भरते हुए, मुझे भी जंक फूड, नाश्ते के लिए दिया था। अब रुसलाना ने पूछा - यह आपके साथ का व्यक्ति कौन है?

मैं पहले नहीं सोच पाया था। इस प्रश्न पर मैं अचकचा गया था। फिर मैंने झूठ बताया - रुसलाना, यह आंद्रेई है, बिज़नेस के काम से यहाँ आया, दुश्मन देश का व्यक्ति है। युद्ध छिड़ जाने पर यहाँ फँस गया है। सबसे छुपकर रहते हुए यह हमें मिला था। तब बहुत भूखा था। हमने खाने को दिया तब से हमारा हितैषी और विश्वासपात्र हुआ है। 

उसने शंका से पूछा - मगर इसके पास गन है। इससे यह हम पर हमला भी कर सकता है। 

मैंने फिर झूठ कहा - यह किसी मारे गए दुश्मन के सैनिक के पास से, इसने आत्मरक्षा के विचार से उठा लाया है। यह अच्छा व्यक्ति है, हमें हानि नहीं पहुँचाएगा। 

मैं आंद्रेई को अपने ही देश का नागरिक नहीं बता सकता था, क्योंकि यह हमारी भाषा नहीं जानता था। रुसलाना आश्वस्त हुई, तब तक बोहुस्लावा को हिंट मिल चुकी थी कि कहीं भी जरूरत पड़ने पर आंद्रेई की क्या पहचान बतानी है। 

थोड़ी देर बाद आंद्रेई उठा था। रुसलाना और आंद्रेई की आपस में निगाहें मिलीं थीं। कुछ क्षणों वे एक दूसरे पर से दृष्टि हटा नहीं पाए थे। 

आंद्रेई अपनी ब्रश इत्यादि की किट लेकर बेसमेंट के बाहर गया था। लगभग डेढ़ घंटे बाद आया तो फ्रेश एवं क्लीन शेव्ड होने से, प्यारा सा लड़का लग रहा था। उसने अपने बेग से खाने की समाग्रियाँ बच्चों एवं हमारे सामने रखी थी। उसने बोहुस्लावा से कहा - 

जिसको जो भी पसंद है, आप उन्हें इनमें से खाने को दीजिए। 

रुसलाना ने खुश होकर, एक आइसक्रीम उठाई और आंद्रेई को प्यार से देखते हुए उसकी ही भाषा में कहा - धन्यवाद, मुझे यह वाला फ्लेवर बहुत पसंद है। 

आंद्रेई खुश हुआ और थोड़ा शरमाया भी था। बोहुस्लावा और मैं रुसलाना को आंद्रेई की भाषा का जानकार देखकर खुश हुए थे। ये दोनों आपस में मिल और बात कर सकते थे। 

खाने के बाद हम सबने सामान में से उपयोगी वस्तुएं, कुछ बेग में भरी थीं। फिर सब साथ, रुसलाना के बताए शेल्टर में पहुँचे थे। 

यहाँ दो नवजात बच्चों की माँ, छह गर्भवती औरतें, चार कमजोर वृद्ध व्यक्ति और इनमें से कुछ के, थोड़े से परिजन थे। 2 नर्स भीं थीं। बहुत सी दवाएं और चिकित्सा उपकरण भी वहाँ थे। खाने एवं पीने के लिए भी प्रचुर स्टॉक था। कमीं सिर्फ यह थी कि आवश्यकता अनुसार उपचार और देखभाल करने वाले लोग नहीं थे। 

रुसलाना ने हमें बताया - यह सामग्री मित्र देशों की पहुँचाई ऐड में से है। दो दिन पहले ही आई है। इस शेल्टर में कल के पहले डेढ़ सौ से अधिक व्यक्ति थे। दो डॉक्टर और छह नर्स और थीं। अधिकांश लोग कल ही यह शेल्टर छोड़ गए हैं। 

आंद्रेई ने कहा - कोई नहीं, हम आ गए हैं। हर किसी की जरूरत पर सेवा में उपस्थित रहेंगे। 

हममें आगे होकर बोहुस्लावा ने, सभी को हमारा परिचय दिया था। फिर वहाँ सब का परिचय प्राप्त करके, उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा - हम सभी यहीं रहकर, कमजोर वृद्ध एवं गर्भवती/प्रसूताओं की हर संभव सहायता करेंगे। 

इसके बाद बोहुस्लावा एवं रुसलाना ने, नर्स के साथ मिलकर ऐड में आई सामग्रियों को देखा था। उसमें रखे ‘एला लैम्बर्ट’ के भिजवाए लंबे समय उपयोग आ सकने वाले सैनेटरी पैड देख कर बोहुस्लावा खुश हुई थी। 

बोहुस्लावा ने कहा - अभी इसकी कमी मैंने स्वयं अनुभव की है। यहाँ इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध ये पैड अगर नगर के विभिन्न हिस्सों में, अब भी रह रहीं नारियों तक पहुँचाए जा सकें तो यह भला कार्य होगा। 

रुसलाना ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा - बॉरिस्को और आप मिलकर यह नेक काम अभी ही शुरू करें तो कैसा रहे? दोनों बच्चे, आंद्रेई और मैं, यहाँ की मदद के काम देख लेते हैं। 

बोहुस्लावा ने कहा - आप ठीक कहतीं हैं, रुसलाना। हम अभी ही यह शुरू करते हैं। फिर मैंने दो बेग में सैनेटरी पैड भरे थे। 

वहाँ उपस्थित एक वृद्ध के परिजन ने कहा - मेरी इ-बाइक में अभी बैटरी चार्ज्ड है। इस परोपकारी कार्य के लिए, आप उसका प्रयोग करें। 

यह अच्छा विचार था। बोहुस्लावा और मैंने रेड क्रॉस वाले एप्रिन पहने थे फिर हम दोनों बेग लेकर, पैड बाँटने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकले थे। 

बाइक में मेरे पीछे कंधों पर बेग टाँगे बैठी बोहुस्लावा ने खुश होकर कहा - बॉरिस्को अच्छा हुआ हमने पलायन नहीं किया, हमने यहाँ रहने का साहस किया है। इससे हमें इस परोपकारी कार्य का अवसर मिला है। 

मैंने कहा - बोहुस्लावा, आप के विचार भले हैं तो ईश्वर भी आपके साथ होता है। 

फिर हम जरूरतमंदों को ढूँढ़ ढूँढ़ कर सैनेटरी पैड बाँटने के काम में लग गए थे। 

पूरे नगर के भ्रमण में खोजते हुए, हमने 150 से कुछ अधिक लड़कियों एवं महिलाओं में पैड वितरित किए थे। पैड पाकर वे हमारा धन्यवाद कर रहीं थीं। हमने यह ‘एला लैम्बर्ट’ को किए जाने को कहा था, जिनके सौजन्य से ये सैनेटरी पैड्स उन तक पहुँचे थे। 

यह अच्छी बात थी कि सैनिकों ने हम पर कोई रोक टोक नहीं की थी। कुछ स्थानों पर उन्होंने मुस्कुरा कर इस कार्य के लिए हमारा उत्साह भी बढ़ाया था। 

शाम का धुंधलका छाने पर हम शेल्टर की ओर लौट रहे थे। तब नगर के विध्वंस और वीरानगी से व्यथित होकर बाइक पर पीछे बैठी बोहुस्लावा ने कहा - 

हमारी सरकार की जिद और बड़बोलेपन ने, शत्रुओं का कहर हम पर बरपाया है। हम तो बर्बाद हो गए हैं। 

मैंने कहा - जिन्होंने गलती की वे इसका खेद करें। हम व्यथित न हों। हम आज शून्य पर पहुँचे हैं, अब हमारे पास खोने को कुछ नहीं है जबकि पाने को बहुत कुछ है। हमें देश के नवनिर्माण में लग जाना चाहिए। 

बोहुस्लावा के हँसने का स्वर मुझे सुनाई दिया था फिर वह कह रही थी - क्या हम इक्कीसवीं सदी के जापान हैं?

मैंने कहा - हाँ, अब हमें जापान जैसे ही फिर उठ खड़ा होना होगा। 



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