युद्ध - ‘दुनिया में मेरा क्या बचता है ?
युद्ध - ‘दुनिया में मेरा क्या बचता है ?
पिछले 8-9 दिनों से अब तक, बेसमेंट में जो हमारे साथी परिवार थे, वे नूक्लीअर प्लांट पर दुश्मन के हमले वाले समाचार से विचलित हो गए थे। वे सब अलग अलग बॉर्डर की ओर जाने की तैयारी करने लगे थे। जिनके परिचित एवं रिश्तेदार, जिस पड़ोसी देश में थे, दोपहर बाद वे वहाँ जाने के लिए निकलने लगे थे।
मैंने उन्हें ना जाने के लिए समझाते हुए कहा - आवश्यक नहीं कि दुश्मन के हमले से हमारे परमाणु संयंत्र को वह क्षति हुई हो जिससे रेडिओएक्टिव विकिरण (Radiation) होता है।
भय अतिरेक में मनुष्य नकारात्मक ढंग से ही अधिक सोचता है। मेरे कहने पर उनमें से एक ने कहा -
बॉरिस्को, जैसा आप कहते हो संभावना उस बात की भी होती है। फिर भी आप सोचो ऐसा भी तो हो सकता है कि दुश्मन द्वारा संयंत्र को पहुँचाई गई क्षति, रेडिओएक्टिविटी के खतरे वाली हो। हम अपने परिवार वालों पर इसका खतरा लेना उचित नहीं समझते हैं।
एक अन्य बोला - बॉरिस्को, हमारी मानो तो आप सब भी यह अपना नगर, अपना देश छोड़ हमारे साथ चलो।
फिर वे परिवार एक एक करके, उस काफिले के अंग हो गए थे। जो युद्ध के हालात में घबरा कर अपनी मातृभूमि से विदा ले रहा था।
उनके जाते ही बेसमेंट में भयावह सूनापन (Terrible Desolation) व्याप्त हो गया था। बच्चों एवं बोहुस्लावा की आँखे नम हुईं थीं।
बोहुस्लावा के रुँधे गले से निकलती आवाज में कंपन था, जब उसने मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा - बॉरिस्को, इस विपरीत समय में उनके साथ रहते हुए, वह सब मुझे अपना परिवार लगने लगे थे। आज जब वे चले गए हैं तो मुझे लग रहा है, मौत हमारे सामने खड़ी है और हमें अकेले के प्रयास से, उसे अपने से दूर रखना है।
मैंने कहा - बोहुस्लावा जब तक आप मेरे साथ और मैं आपके साथ हूँ, हम अकेले कदापि नहीं हैं।
दोनों बच्चे हमारी बातें सुन रहे थे। मैंने उनके मनोविज्ञान को समझते हुए आगे कहा - अब हमारे ये दो बच्चे भी बड़े हुए हैं। हम दो नहीं हम चार हैं। चार की ताकत से संघर्ष करके हम हर विपत्ति से बच सकेंगे।
यह सुनकर मेरे बेटे-बेटी दोनों मुस्कुराए थे। बोहुस्लावा भी उन्हें देख कर अपनी आँखे पोंछते हुए मुस्कुरा रही थी। मैं यही चाहता था।
सभी के चले जाने से आज हमारे बच्चों के साथ खेलने के लिए, कोई साथी नहीं थे। दोनों ने बैडमिंटन रैकेट-शटल लेकर आपस में खेलना शुरू कर दिया था।
बोहुस्लावा उन्हें खेलते देख रही थी। उसके मुख पर चिंता की लकीरें देख कर मैं समझ रहा था, उसकी दृष्टि बच्चों पर अवश्य है लेकिन ध्यान उन पर नहीं होकर, किसी और बात पर है, जिससे वह चिंतित है।
मैंने पूछा - बोहुस्लावा किस बात की चिंता में आप अकेली घुल रही हो? आप अपने दुःख मुझसे बाँट लो। हम सुख दुःख के साथी हैं।
बोहुस्लावा के होंठों पर उदास मुस्कुराहट आई थी उसने कहा - बॉरिस्को, आप मेरी मुख मुद्रा (Face expression) देखकर ही बहुत कुछ समझ जाते हो।
मैंने हँसकर कहा - आप मुझसे अधिक इस विधा में दक्ष हैं। आप मेरी अनकही भी अधिक अच्छे से समझ लेती हो।
बोहुस्लावा शरमाई थी। उसने कहा -
जब आप मेरी प्रशंसा करते हैं, तब मुझे अच्छा तो लगता है मगर मैं यह भी जानती हूँ कि प्रशंसा करते हुए आप मुझसे कुछ विशेष भी चाहते हैं। हालांकि आपकी चाहतें पूरी होने में, मेरा साथ देना मेरा कर्तव्य और वादा है। मुझे उसमें आनंद भी आता है किन्तु अभी मैं चिंतित हूँ कि सबके टॉयलेट से इस गंदे हो गए बेसमेंट में, दिन तो ठीक है मगर हमारे अकेले परिवार का रात बिताना बहुत कठिन होगा।
अब मैं समझ पा रहा था कि उसकी चिंता किस बात को लेकर है। मैंने कहा - बोहुस्लावा, उस बात की अब चिंता न करो। इस उजाड़ हो रहे शहर में रात तक बचने वाला ही कौन है, जो हम पर हमला और आप पर दुष्कर्म का प्रयास करेगा।
बोहुस्लावा ने पूछा - बॉरिस्को क्या सच में अपनी मातृभूमि छोड़कर सब चले जाएंगे?
मैंने कहा - चलो मेरे साथ बाहर निकल कर आप स्वयं देख लो।
बोहुस्लावा ने कहा - बच्चों को अकेले छोड़कर, बहुत दूर जाना ठीक नहीं होगा।
यह कहने के साथ बोहुस्लावा ने बेग खोला था, उसमें से बच्चों के लिए चॉकलेट निकालीं थीं। उन्हें बताया था, खेल चुकने के बाद आप दोनों यह खा लेना। पापा और मैं थोड़ी देर में नगर का निरीक्षण एवं हालचाल ले, कर आते हैं। बच्चे यह सुनकर डरे हुए से लगे थे। फिर भी उन्होंने हामी भरी थी।
बेसमेंट से बाहर आते हुए बोहुस्लावा ने बताया - बॉरिस्को, हमारे पास खाने को भी अब अधिक नहीं बचा है। कल हमें फिर कहीं से कुछ खाने की सामग्रियों का प्रबंध करना होगा।
मैं चिंता में पड़ गया था कि अकेले मुझसे यह कर पाना तो कठिन होगा। फिर भी मैंने यह भाव छुपाते हुए प्रकट में कहा - आप चिंता न करो, कल मैं यह कर लूँगा। बल्कि कल या आज में ही, हमें इस बेसमेंट की जगह कोई अन्य सुरक्षित स्थान भी देखना होगा।
हम दोनों ऊपर आए थे। कुछ दूर तक हमने वहाँ घूमा था। अब सड़कों पर इक्के दुक्के परिवार ही दिखाई पड़ रहे थे। वे भी नगर छोड़ कर जाते दिख रहे थे। कोई कार में जा रहा था। जिनकी कारों में फ्यूल नहीं बचा था, वे पैदल ही किसी वाहन यथा, बस आदि की तलाश में थे जो सीमा की तरफ जा रहा हो।
बोहुस्लावा ने एक पैदल जाते हुई युवती से पूछा - जहाँ जाने के लिए आप निकली हो, क्या वह जगह यहाँ से अधिक सुरक्षित होगी?
युवती ने कहा - पता नहीं मगर जिस शेल्टर में अब तक मैंने शरण ले रखी थी, वहाँ सिर्फ कुछ गर्भवती महिलाएं जिनका प्रसव (Delivery) पास है, वे और थोड़े से लाचार रोगी (लोग) ही बच रह गए हैं। लाचारी में ही मैं भी जा रही हूँ। वैसे तो अपनी मातृभूमि को यूँ उजाड़ वीरान छोड़कर कौन जाना चाहता है।
बोहुस्लावा ने कहा - हम कोई लाचार रोगियों में से नहीं हैं, फिर भी नहीं जा रहे हैं। अगर खतरे यहाँ जो हैं, वहाँ भी इससे कुछ कम अधिक हैं, तो कहीं जाने से हम यहीं रहना पसंद करेंगे।
युवती, बोहुस्लावा की बात से प्रभावित हुई थी उसने कहा - मेरा नाम रुसलाना है। तीन माह पहले, मेरे पति से मेरा विवाह विच्छेद हो गया है। मैं अकेली हूँ। मैं आपकी बात से प्रभावित हुई हूँ। अब मैं मातृभूमि छोड़ने का विचार त्याग रही हूँ। क्या आप मुझे अपने साथ रखेंगी?
अब तक मैं चुप था। रुसलाना का प्रश्न सुनकर, मैं चुप नहीं रहा था। मैंने बोहुस्लावा कुछ कहे इसके पहले ही कहा -
हाँ हाँ क्यों नहीं, हमारे दो बच्चे भी साथ हैं। आपका साथ होना हमें भी मानसिक संबल देगा।
हमारी सहमति से रुसलाना प्रसन्न दिखी थी। फिर बोहुस्लावा, उसे साथ लेकर बेसमेंट के लिए लौटी थी। जबकि मैंने नगर में कुछ देर और भ्रमण किया था। मुझे कहीं कहीं दुश्मन के कुछ सैनिक दिखाई दिए थे। वे हमारी सेना का प्रतिरोध नहीं रह जाने से अब शाँत रह कर चौकसी कर रहे थे एवं निहत्थे नागरिकों पर कोई हमला नहीं कर रहे थे।
चहुँओर की स्थिति की जाँच-पड़ताल करते हुए, मुझे समझ आ गया था कि अब हमारे उजाड़ हुए नगर में, देश में अन्य जगह चल रहे युद्ध के कारण, अब अधिक क्षति की कोई संभावना नहीं रही थी। दुश्मन ने अपना वर्चस्व, हमारे नगर पर स्थापित कर लेने के बाद अपना मोर्चा अन्य शहरों में लगा लिया था।
जब बेसमेंट लौटा तो मैंने पाया कि हमारे बच्चे रुसलाना को अपने साथ पाकर बहुत खुश होकर उससे हिलमिल गए थे। यह अच्छी बात थी मगर मेरा ध्यान इस ओर गया था कि मुझ पर अब एक नहीं, दो औरतों के मान-सम्मान एवं सुरक्षा का दायित्व आ गया है।
मुझे यह बात चिंतित कर रही थी कि नगर में अब नागरिक कम और दुश्मन सैनिक अधिक हैं। उनमें से किसी ने अगर रात में इन पर दुष्कर्म की नीयत से हमला किया तो क्या मैं इनकी रक्षा कर पाऊँगा?
मन में उत्पन्न इस प्रश्न से मेरा ध्यान मशीनगन पर गया था। मैंने उसे हाथ में लेकर अपने में साहस का संचार किया था। मैं अपनी इस चिंता को छुपाना चाहता था मगर बोहुस्लावा, सही मायने में मेरी सच्ची अर्द्धांगिनी थी। उससे मेरे मन की कोई बात छुप नहीं पाती थी। मुझे पता नहीं था कि जब बच्चे रुसलाना के साथ बातें कर रहे थे तब उसका ध्यान मेरे अकेले में गुमसुम होने पर था।
मुझे मशीनगन उठाते देखकर उसने हँसकर पूछा -
बॉरिस्को सामने कोई दुश्मन नहीं है। इस मशीनगन को उठाकर, आपका मुझे मारने का विचार तो नहीं है?
मैं समझ गया था बोहुस्लावा के इस मजाक का आशय, मुझे चिंता से उबारने का था। फिर भी इस मजाक से मेरी कल्पना में, बोहुस्लावा का न रहने का दृश्य उत्पन्न हुआ, इससे मैं सिहर गया था।
मैंने मजाक में नहीं गंभीर होकर कहा - बोहुस्लावा, आपके नहीं रह जाने पर ‘दुनिया में मेरा क्या बचता है’, आप जानती नहीं!
बोहुस्लावा मेरे पास आई, उसने मुझे अपने आलिंगन में लेते हुए होंठों पर चूम लिया और कहा - आप चिंता न करो हम दोनों को अभी कुछ नहीं हो रहा है।
यह देखकर रुसलाना ने कहा - काश! मेरे पति आप जैसे होते, बॉरिस्को।
रात हमने खाना खाया था। कुछ देर में बातें करते हुए जब मेरे अतिरक्त सब सो गए थे तब अपने हाथों में टार्च और कंधे पर मशीनगन लिए हुए मैं सजग बैठा था।
मच्छरों से परेशान रहते कोई दो घंटे बीते होंगे, तब मुझे बेसमेंट की सीढ़ी पर किसी के आने के पदचाप सुनाई दिए थे। मेरे मन में तुरंत विचार कौंधा था -
लगता है कोई दुश्मन सैनिक आया है। तुरंत ही मैंने मशीनगन हाथों में लेकर, उसे सीढ़ी की दिशा में तान लिया था।
