युद्ध - ‘औरतों पर जुल्म की कुप्रवृत्ति’ …
युद्ध - ‘औरतों पर जुल्म की कुप्रवृत्ति’ …
मैं अपने साथियों के साथ, घायल को सहारा देते हुए तथा बच्चों के प्रिय खाने की समाग्रियां एवं दवाएं बैंडेज आदि लेकर बेसमेंट में पहुँचा था। सबने एवं घायल साथी के परिवार ने, जब उसको घायलावस्था में देखा था, तो उसके बच्चों एवं पत्नी ने रोते हुए चिंताग्रस्त होकर पहले तो उसके घाव को देखा था। उससे बात करके, उसकी हालत समझी थी।
इसके बाद उसकी पत्नी आक्रोशित होते हुए, हम पुरुषों की ओर मुखातिब (Face to face) हुई थी। उसने शिकायती तीखी आवाज में हमसे कहा -
मुझे पता था कि अनट्रेंड आप लोग लड़ने जाएंगे तो क्या कर सकते हैं। जब हमारे सैनिक ही शक्तिशाली दुश्मन के सामने ठहर नहीं रहे हैं तो उनसे लोहा लेकर (Hard Fighting) आप सब अपनी जान ही गँवाओगे। कोई हमें बताएगा कि यह मशीनगन उठाने का विचार (Idea) आपमें से किसके मन में आया था?
मैं इस पर सोचने लगा कि अगर उस घायल की जगह मैं होता तो कदाचित ऐसा ही कुछ बोहुस्लावा कह और पूछ रही होती। मैंने उसकी आहत भावनाओं को समझा था। फिर जब हममें से कोई, इसका उत्तर नहीं दे रहा था तब मिमियाते से स्वर में मैंने कहा -
जी, यह हमारी सरकार की हम नागरिकों से अपील थी। हमने मशीनगन उठाने का निर्णय उसी के बाद किया था।
उसने कुद्ध होकर फिर पूछा - "क्या सरकार को यह दिखाई नहीं देता कि आम नागरिक जिन्हें गन चलाने और कैसे युद्ध लड़ना है, इसका ज्ञान ही नहीं, वे शत्रु सैनिकों के सामने जाएंगे तो उनका क्या हश्र हो सकता है?"
मैंने फिर विनम्र स्वर में कहा - "यह सरकार की लाचारी है, हमारा दुश्मन अत्यंत शक्तिशाली है। हमारी सैन्य क्षमता उसकी अपेक्षा क्षमता कम है। नागरिकों को आगे कर, लड़ाना सरकार की रणनीति है। ताकि दुश्मन सैनिक, नागरिकों पर क्रूरता से बचें एवं आगे न बढ़ पाएं।
अब तक हमारे साथ कल आया, आंद्रेई जो सो रहा था, वह हमारे किए जा रहे कोलाहल में उठ गया था। उसने हमारे घायल साथी को देखा तो उसके घाव पर बाँध रखी, मेरी शर्ट को निकाल दिया था। फिर इशारे से बीटाडीन की माँग की थी। हमने अपने साथ लाए दवाओं/बैंडेज आदि में से निकालकर उसे बीटाडीन दी थी। उसने घाव को साफ किया था। फिर बाद में स्वयं आवश्यक मलहम लगा कर पूर्ण दक्षता से बैंडेज किया था।
दवाओं में से देखकर, सही दर्द निवारक और एंटीबायटिक गोलियाँ, उसे पानी के साथ निगलने के लिए दीं थीं।
हम सब आसपास खड़े रहकर, आंद्रेई का ऐसा किया जाना देख रहे थे। सभी उसकी दक्षता को प्रशंसनीय दृष्टि से देख रहे थे। जबकि बोहुस्लावा और मैं जानते थे कि आंद्रेई, दुश्मन सैनिकों में एक है, जिन्हें घायल हुए साथियों के प्राथमिक उपचार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
घायल की यह सब ड्रेसिंग एवं दवाएं हो चुकी तो उसकी पत्नी का रोष कुछ कम हुआ था। फिर उसने निष्कर्ष जैसे स्वर में कहा था -
हमारी सैन्य क्षमता एवं शक्ति कम है तो सरकार का युद्ध की परिस्थिति बनने से रोकने की कोई और रणनीति अपनानी चाहिए थी।
मैंने कहा - हमारी सरकार को कई देशों का समर्थन और सैन्य मदद का आश्वासन मिला था। हम अपने पड़ोसी दुश्मन के मंसूबे विफल करना चाहते थे।
उसने फिर कहा - क्या आम नागरिकों जैसे अपने प्राणों पर खतरे, हमारे किसी ब्यूरोक्रेट्स/मिनिस्टर ने लिए हैं? दूसरों को उकसावे पर अपनी दमखम भूलना ना तो हमारी सरकार की और ना ही हम नागरिकों की बुद्धिमत्ता है। इससे क्या हो रहा है आप देख रहे हैं। आम नागरिक और सैनिक बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं। हमारे घर, नगर और देश का सिस्टम, सब नष्ट हो रहे हैं। परिवार के पुरुष मारे जा रहे हैं, परिवार की महिलाएं बच्चे जिनमें कुछ विधवा और अनाथ हुए हैं। देश छोड़कर अन्य देशों की शरण में जाने को मजबूर हो रहे हैं।
अब सब चुप हुए थे। सबको उसकी बात भी सही लग रही थी और सरकार का नागरिकों को भी लड़ने का आह्वान भी सही प्रतीत हो रहा था।
अंत में उसने ही निर्णय सुना दिया था - आगे अब आप जाना चाहें तो जाकर लड़ना, मेरे पति आपके साथ नहीं जाएंगे।
इस सबके बाद सभी असमंजस में थे। रात ड्रिंक्स/खाने के दौरान सब खामोश ही रहे थे।
अगली सुबह बेसमेंट में एक नया दृश्य उत्पन्न हुआ था। हममें से एक पुरुष ने अपनी मशीनगन, आंद्रेई पर तान दी थी। आंद्रेई घबराया हुआ दोनों हाथ ऊपर कर खड़ा हो गया था। मैंने पूछा - यह आप क्या कर रहे हो?
उसने कहा - बॉरिस्को, आपने एवं बोहुस्लावा ने हमसे झूठ कहा है। यह दुश्मन का सैनिक है। यह गूँगा भी नहीं है।
मैं सोचने लगा कि इसे यह सच पता कैसे हुआ है। कहीं आंद्रेई भूलवश कुछ बोल तो नहीं पड़ा है। मुझे विचार में पड़ा देख उसने ही बताया -
आपकी बेटी ने यह बात मेरे बेटे से कही है। अब बताओ, बोहुस्लावा सही कह रही है या आपकी बेटी?
बोहुस्लावा और मैं सोच में पड़ गए थे कि हमसे, छोटी बेटी की समझ के बारे में चूक हुई थी। इतनी छोटी बच्ची का जानते हुए चुप रहना कम ही संभव होता है।
अब तक कल का घायल साथी, धीमी चाल से वहाँ आ गया था। वह मशीनगन और सैनिक के बीच में खड़ा हो गया था। उसने कहा -
आप मशीनगन नीची करो, अगर कल रात यह मेरे रक्षक की तरह व्यवहार कर रहा था तो मैं इसका मारा जाना सहन नहीं कर पाऊँगा।
तब बात आई गई हुई थी। हमें पुनः सच या झूठ कहने की जरूरत नहीं पड़ी थी। फिर भी उसके बारे में संदेह हो जाने से, बोहुस्लावा ने समझ लिया था कि अभी तो आंद्रेई बच गया है मगर संभव है उसे मार दिया जाए। यदि ऐसा हुआ तो बोहुस्लावा का, आंद्रेई की माँ को दिया भरोसा टूट जाएगा।
उसी दोपहर मशीनगन तानने वाला साथी, पिछले दिन में हमारे नहाए जाने की बात से प्रेरित होकर, अपने परिवार सहित नहाने, कपड़े बदलने की दृष्टि से गया हुआ था। तब बोहुस्लावा ने आंद्रेई को चुपचाप सब बता दिया और अपनी जान बचाकर बेसमेंट से दूर निकल जाने को कहा था। आंद्रेई, बोहुस्लावा एवं मेरा आभार मानता हुआ चला गया था।
उस रात जब लोगों ने आंद्रेई का वहाँ नहीं होना देखा तो उनमें से एक ने कहा - वह शायद सही में दुश्मन सैनिक था। अपनी जान बचाकर भाग निकला लगता है।
मैंने झूठ कहा - नहीं, ऐसा नहीं है। आंद्रेई, वास्तव में हमारा गूँगा हो गया रिलेटिव है। अपने को मशीनगन की नोक पर देखकर घबरा गया था, इसलिए चला गया है।
मैं बोहुस्लावा को झूठा कहा जाना पसंद नहीं कर रहा था। मैं सोच रहा था करुणा भाव में कहा गया झूठ, झूठ नहीं होता है।
रात में शत्रु देश के आक्रमण की तीव्रता बहुत बढ़ गई थी। रात भर युद्ध का घनघोर शोर सुनाई पड़ता रहा था।
सुबह बोहुस्लावा और मैं बेसमेंट से जिज्ञासावश बाहर निकले तो हमें वहाँ से गुजरते महिलाओं एवं बच्चों के जत्थे दिखाई दिए। कुछ बच्चे अपनी डॉल लिए चल रहे थे।
उनसे पता चला कि पिछली रात, दुश्मन ने हमारे परमाणु संयंत्र (Nuclear Plant) को बम से उड़ा दिया है। जिससे अब यहाँ रेडियोएक्टिव किरणों का खतरा हो गया है। इसलिए लोग ट्रेन, बस आदि में बैठकर देश की सीमाओं पर जाने के लिए निकले हैं।
बोहुस्लावा ने उनमें से एक औरत से पूछा - आपके पति, भाई आदि साथ नहीं हैं?
उसने कहा - वे यहाँ रहकर दुश्मन से लड़ेंगें और हम बच्चों सहित अन्य देश की शरण लेने का प्रयास करेंगें।
बोहुस्लावा ने अब चिंता से मेरी ओर देखा था। फिर पूछा - क्या अब हमें भी यूँ जुदा होना होगा।
मैंने निर्णयात्मक स्वर में कहा - नहीं! चाहे सब यह करें, हम ऐसा नहीं करेंगें। मैं लड़ने में सेना का साथ दूँगा। तुम यहाँ रह गए नागरिकों की अन्य तरह से सेवा करना। अब हमें बच्चों को बच्चे नहीं रहने देना होगा। ये विकट संकट की परिस्थितियाँ हैं, इसमें हमें, उन्हें समय के पूर्व बड़ा बनाना होगा।
बोहुस्लावा चिंतित दिखी थी। यह स्वाभाविक भी था। इस समय में, कौन सा ऐसा नागरिक नहीं था जो चिंता न कर रहा हो।
बोहुस्लावा ने करूण स्वर में कहा - बॉरिस्को यह तो अच्छा है कि यहाँ रुकने पर बच्चे और मैं, आपसे दूर रहने की वेदना से बच सकेंगे मगर आप मुझे बताओ कि रेडियोएक्टिव किरणों से बच्चों और हम भर बुरा प्रभाव का खतरा भी तो होगा। क्यों ना, आप लड़ने की बात भूलकर, हमारे साथ पड़ोसी मित्र देश में शरण के लिए चलो।
मैंने कहा - यह मेरी कायरता होगी। यह भी संभावना है कि पड़ोसी देश बच्चों एवं महिलाओं को तो शरण दें मगर मुझ जैसे समर्थ और युवा को शरण देने के लिए मना करें।
बोहुस्लावा ने कहा - अगर इस की थोड़ी भी संभावना है तो आपके बिना बच्चों के साथ मैं कहीं नहीं जाऊँगी। मैंने इतिहास पढ़ रखा है। दूसरे देशों के शरणार्थी शिविरों (Refugees camp) में रहने वाले, छोटे बच्चों को, कई बार दुष्ट बुरे लोग गायब करवा कर बेच देते हैं। बच्चे खरीदने वाले लोग या तो उनके अंग भंग करके उनसे भीख मँगवाते हैं या फिर उनसे खदानों आदि में श्रमिक जैसे काम करवाते हैं।
मैंने कहा - बोहुस्लावा आप शायद एक बात और नहीं जानतीं हैं। शरणार्थी सुंदर एवं युवा महिलाओं पर, अनेक बार बलात्कार होता है। इससे भी अधिक दुर्भाग्यशाली शरणार्थी महिलाएं वे होतीं हैं, जिन्हें वेश्यावृत्ति के लिए बाध्य किया जाता है।
अब बोहुस्लावा ने आह सी भरते हुए कहा -
बॉरिस्को, मैं क्या कहूँ! बलात्कार तो हम पर यहीं, इसी देश के लोगों ने भी कर लिया है। अनेक पुरुषों में विचित्र कुप्रवृत्ति होती है। हर असामान्य उथल पुथल के समय में, लड़कियों / महिलाओं की मानसिक वेदनाओं एवं कष्ट को अनदेखा करते हुए पुरुषों पर कामवासना हावी होती है। वे अपनी औरतों को तो बचाना चाहते हैं मगर दूसरों को वासना का शिकार बनाते हैं।
यह सुन मैं पुरुष होने के कारण शर्मिंदा (Ashamed) हो रहा था। मैं वैसा पुरुष नहीं था मगर जानता था, यौन अत्याचार के मामले में सदा से ही पुरुष, औरतों से हजारों गुणा आगे रहते हैं।
मुझे चुप रह जाते देख बोहुस्लावा ने ही आगे कहा - आप मेरी ऊँगली (Raised finger) अपने पर नहीं देखो। मैं जानती हूँ आप उन भले पुरुषों में से एक हो जो औरतों के सम्मान और सुरक्षा के लिए कुछ भी त्याग करने के लिए तत्पर होते हैं। फिर भी यह कटु सच्चाई है कि -
युद्ध के हालात में ‘औरतों पर जुल्म की कुप्रवृत्ति’,
पुरुषों में प्राचीन समय से पाई जाती है।
बावजूद आज के सभ्य युग में, अब भी कायर पुरुष दूसरे कौम और देशों की औरतों को अपना लक्ष्य बनाते हैं।
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