यह वक़्त भी गुजर जायेगा!!!
यह वक़्त भी गुजर जायेगा!!!
"हाँ माँ ,सब ठीक है। थोड़ा सा संक्रमण है ,जल्द ही ठीक हो जायेगा। मैं भी बिल्कुल ठीक हूँ। ",आखिरी पंक्ति कहते -कहते श्रेया का गला भर्रा गया था।
"माँ ,आपकी आवाज़ ठीक से नहीं आ रही है। ",श्रेया ने फ़ोन रख दिया था। हॉस्पिटल में वार्ड के बाहर बैठी ,श्रेया की रुलाई फूट पड़ी थी। अभी तक अपने आँसुओं को अपने भीतर ही जज़्ब करके बैठी हुई श्रेया ,अब फूट पड़ी थी। श्रेया शारीरिक और मानसिक दोनों ही मोर्चों पर बहुत कमजोर हो गयी थी।
श्रेया और उसके पति सौरभ यहाँ घरवालों से दूर अकेले रह रहे थे। पिछले सप्ताह ही दोनों कोविड पॉजिटिव हो गए थे। दोनों घर पर ही थे। कमजोर और बीमार होते हुए भी श्रेया दोनों के लिए खाना बना रही थी। जैसे -तैसे अपने शरीर को धकेल -धकेल कर काम कर रही थी। हम औरतों के नसीब में आराम होता ही कहाँ है ?
सौरभ का ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा ,इस कारण सौरभ को हॉसिपटल में भर्ती करवाना पड़ा। श्रेया और सौरभ की किस्मत अच्छी थी ;जो हॉस्पिटल में बेड मिल गया था। श्रेया स्वयं संक्रमित थी ;उसे बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही थी। लेकिन आराम करने का वक़्त कहाँ था। सौरभ को हॉस्पिटल में खाना नहीं मिल रहा था और न ही कोई देखभाल करने वाला था। श्रेया सुबह सौरभ को नित्य क्रम से निवृत्त करवाकर घर जाती थी। घर से दोनों के लिए नाश्ता और खाना बनाकर लाती थी। फिर दिन भर सौरभ को फल खिलाना ,जूस बनाना आदि चलता रहता था। शाम को दोबारा घर जाती थी और रात के लिए खाना बनाकर लाती थी। वह स्वयं भी कमजोर थी और दिन भर की भागादौड़ी उसे बहुत थका देती थी। हॉस्पिटल में अटेंडेंट के लिए कोई बेहतर बिस्तर आदि भी नहीं थे ;तो रात की भी नींद पूरी नहीं हो पाती थी।
श्रेया अपने घरवालों को भी बता नहीं सकती थी ;एक तो वो लोग आ नहीं सकते थे और दूसरा चिंता करते। वह बार-बार सबको यही कहती कि ,"हम दोनों ठीक ही हैं। "लेकिन वह ठीक नहीं थी। अब उसे एक कंधे की सख्त जरूरत थी ;जिस पर सिर रखकर वह रो सके ;वह कह सके ,"मैं ठीक नहीं हूँ। "
श्रेया के आँसू बदस्तूर उसकी आँखों से बहे जा रहे थे। तब ही श्रेया को अपने कन्धों पर एक कोमल स्पर्श महसूस हुआ। उसने अपनासिर घुमाकर देखा तो वहाँ एक बुजुर्ग महिला थी। महिला ने अपने हाथों से श्रेया की आँखों के आँसू पोंछे। श्रेया उनके गले लगकर रोने लग गयी थी ;डूबते के लिए तिनके का सहारा भी काफी होता है। श्रेया के लिए यह प्यार भरा स्पर्श भी बहुत बड़ी मदद थी।
भव्य व्यक्तित्व की धनी वह बुजुर्ग महिला, अपने हाथों से श्रेया का माथा सहला रही थी और कह रही थी कि ,"बेटी ,यह वक़्त भी गुजर जायेगा। हिम्मत रखो ,सब ठीक होगा। "
महिला की सांत्वना पाकर श्रेया थोड़ा शांत हुई। वह अब अपने आपको काफी हल्का महसूस कर रही थी। वृद्ध महिला ने श्रेया की पूरी समस्या सुनी और कहा कि ,"बेटी ,शाम का खाना तुम्हारे लिए मैं बनाकर ले आऊँगी। "
श्रेया के लिए इतनी मदद भी कम नहीं थी ,वह बोली ,"शुक्रिया आंटी ;सब्जी आदि मैं आपको खरीदकर ला दूँगी। "
"ठीक है ,बेटा। ",फिर वह बुजुर्ग महिला वहाँ से चल दी थी। तब ही पीछे से आती हुई नर्स ने बोला ,"कितनी हिम्मती आंटी हैं। अभी ४ दिन पहले ही अपने पति को इस अस्पताल में खोया है। "
तब ही दूसरी नर्स बोली ,"इनके पति भी तो हिम्मती थे।खुद वेंटीलेटर पर थे ;लेकिन जब एक युवा को वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी तो उन्होंने यह कहते हुए उसे दे दिया कि मैंने तो अपनी ज़िन्दगी जी ली है। इसे अभी बहुत जिम्मेदारियाँ निभानी हैं। "
दोनों नर्सेज की बातें सुनकर श्रेया उन बुजुर्ग महिला के सामने नतमस्तक थी। उसने अपने आप से कहा कि ,"अच्छा हो या बुरा हो ;वक़्त की एक विशेषता है ,वह गुजर ही जाता है। जब अच्छा वक़्त नहीं रहा तो बुरा वक़्त भी नहीं रहेगा। "
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