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Nitu Arya

Abstract

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Nitu Arya

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यह उन दिनों की बात है

यह उन दिनों की बात है

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हम छोटे थे लेकिन बातें बड़ी थी 

 गिल्ली डंडा, आंख मिचौली, छुपन छुपाई में

दिन का पता ना चलता

 लेकिन रातें आसमां सी खड़ी थी


ना खाने की फिकर ना पीने की चिंता

बस दोस्तों के साथ खुशियों की झड़ी थी

खाने की हर चीज का मजा चुरा के खाने में आता

चाहे वह मटर की छीमी, कच्चे-पक्के अमरूद

 या ककड़ी कड़ी थी।

यह उन दिनों की बात है जब हम छोटे थे लेकिन बातें बड़ी थी ।


आहा !आम के टिकोरे का नमक मिर्ची से खाना

 पके आम लेकर भागे पट्टू मामा के पीछे दूर तक दौड़ जाना

रंग बिरंगी तितली के पंखों को छूकर उनका कुछ रंग चुराना

मेले में जलेबी और चाट का स्वाद मेरे मन में गड़ी थी ।


यह उन दिनों की बात है जब हम छोटे थे लेकिन बातें बड़ी थी

रात में बाबा बाबा के राजा रानी के किस्से

पापा की लाई मूंगफली कितना आया मेरे हिस्से


 पेड़ों पर झूले से कजरी का राग

नरकट की कलम और स्याही का दाग

होली में सुबह से ही रंगों की बौछार

दिवाली में दीयों से खेत खलियान ही नहीं मां

काली और डीह बाबा का स्थान भी होता उजियार


मन करता है कोई जादू की छड़ी घुमाऊँ

उन बीते लम्हों को फिर से वापस ले आऊँ

हर तरफ मस्ती और खुशहाली पड़ी थी 

सच में जिंदगी की सबसे खूबसूरत वह बचपन की घड़ी थी।

 यह उन दिनों की बात है जब हम छोटे लेकिन बातें बड़ी थी।


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