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Nitu Arya

Romance Tragedy

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Nitu Arya

Romance Tragedy

अनकहा प्यार

अनकहा प्यार

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आज रश्मि न जाने किन ख्यालों में खोई है कि जनवरी की सुबह की सर्द हवाएं और गुनगुनी सी धूप भी उसके मन को गर्म आंच का एहसास दे रहा है, उसके हल्की गुलाबी होठों पर एक मधुर मुस्कान अठखेलियां कर रही हैं। रश्मि घर के सभी लोगो को नाश्ता कराके ,रसोई के सारे काम निबटाई ,नहाने के बाद गीले बालों को तौलिया से धीरे-धीरे पोंछती हुई छत पर आ गयी। 

सुबह के तकरीबन 10 बजने को होंगे, गाँव के बच्चे कुछ पैदल और कुछ साइकिल से, कुछ अपने दोस्तों के साथ साइकिल के आगे-पीछे लदे स्कूल जल्दी पहुँचने के जद्दोजहद में लगे हैं। सबको स्कूल ड्रेस मे ऐसे देख रश्मि अपने स्कूल के दिनों के ख्यालों में खो गयी।

8वीं के बाद पापा ने उसके लिए सेकेण्ड हैण्ड साइकिल ला दी ताकि वह रेग्युलर स्कूल जा सके।दरअसल उसके गाँव से स्कूल जाने वाले बच्चों की दो से तीन की संख्या थी।

जो कभी जाते कभी नहीं जाते लेकिन रश्मि के पढाई मे रुचि देख पापा ने जैसे-तैसे साइकिल का इन्तजाम कर दिया था । रश्मि भी पापा के अरमानो को पूरा करने के लिए जी -जान से मेहनत कर रही थी। सभी के जीवन में आने वाला प्यार का मौसम रश्मि के जीवन में भी आया।

साइन्स की क्लास में उसे बार- बार महसूस होता कि 

कोई उसे देख रहा है लेकिन वह कभी उस नजर की चोरी नहीं पकड़ पाईं। उसकी साइकिल की बास्केट मे अधखिला गुलाब पूरा मुस्करा रहा होता।ये सब उसके मन को विचलित कर रहा था। कभी- कभी लगता कोई 

उसके पीछे चल रहा है। ये सिलसिला यूं ही चलने लगा। देखते-देखते तीन साल बीत गए, इंटर मीडियट के फाइनल बोर्ड एग्जाम मार्च मे होने वाले थे। रश्मि के मन के कोरे पन्ने पर अरमानो के रंग भरे चित्र उभरने लगे। अगले ही क्षण मम्मी- पापा का ख्याल आते ही अपने मन पर काबू पाने की कोशिश में लग जाती,लेकिन मन रूपी

पंछी को कोई रोक पाया है भला। फरवरी के पहले सप्ताह मे पूरे कालेज में गुलाब, कार्ड सुन्दर तोहफों का आदान-प्रदान हो रहा था। रश्मि भी अपने अरमानो की उस तस्वीर को जी भर के देखना चाहती थी, सालों से छुपा के रखी गुलाब की पंखुड़ियां उसके कदमों में बिछाना चाहतीं थी। इसी उधेड़ -बुन में रश्मि अपनी साइकिल के पास खड़ी थी,कि तभी एक आवाज सुनाई दी, रश्मि ! ये प्रेम से सराबोर आवाज उसके कानों से हो कर उसकी अंतरात्मा को अभिभूत कर रहा था। 

रश्मि ने पलट कर देखा; रमेश! आप ।

रमेश, साँवले से चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखें, सिल्की बाल जो कि दाहिनी आँख को छूकर जा रहा था, लम्बाई लगभग 5,8" ,होठों पर हल्की सी मुस्कान ,सच में कोई भी दीवाना बन जाये। 

 रश्मि बहुत कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन मेरे हालात कुछ ऐसे है कि मैं बिना कुछ कहे जा रहा हूँ। हमारी मंजिल कभी एक नहीं होगी इसलिए "मैं पूरी जिन्दगी हमारे अनकहे प्यार के इकरार के इन्तजार मे बिताना चाहता हूँ।" रश्मि बस बुत सी बनी सुने जा रही थी। वह उसे जी भर के बात करना चाहती थी, उसे गले लगा कर उसके माथे को चूम कर उस बाँध को तोड़ कर अपने प्यार का इज़हार करना चाहती थी जो तीन साल से उसने अपने आप पर लगा रखे थे।लेकिन मन की बात मन में ही रह गई वह कुछ कह पाती तब तक अपनी बात कह रमेश वहाँ से चला गया। 

घर आकर रश्मि सोच कर परेशान हो रही थी कि रमेश ने ऐसा क्यों कहा; कि हमारी मंजिल एक नहीं, इतना प्यार होते हुए हम जिन्दगी साथ क्यों नहीं बिता सकते?

अगले दिन उसने अपनी एक सहेली जो कि रमेश के गाँव की थी, से पूछने पर पता लगा कि, रमेश के बड़े भइया फौज मे थे। उनकी शादी नवम्बर महीने में हुई है। वो बार्डर पर आतंकवादी हमलें में शहीद हो गए। हाथ से मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा था नई बहू के। 

इसलिए घरवालों ने फैसला किया कि बहू की शादी रमेश से कर दिया जाए ।और रमेश ने अपने शहीद भाई का कर्ज चुकाने के लिए अपने प्यार का गला घोंट दिया ।


 सच आज हम दोनों एक दूसरे से बहुत दूर अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहें हैं, लेकिन हमारे दिल में आज भी हमारा "अनकहा प्यार "अरमानो के पंख लगाये उड़ा जा रहा है। 



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