जीने की कला
जीने की कला
आकाश बरामदे में बैठे टिप- टिप गिरते बारिश की बूंदों को एक टक देख रहा था जिसकी हर बूंद मिट्टी को अपने में समेटे जा रही थी, और जिसकी सोंधेपन से सम्पूर्ण वातावरण मनमोहक हो रहा था ,लेकिन आकाश के मन को आनंद से सराबोर करने वाला यह दृश्य आज उसके जेहन में उमड़ रहे तूफान को पार नहीं कर पा रहा था।
पापा और मम्मी को कैसे बताऊँ, अपनी बहन को कैसे समझाऊँ, अजीत का सामना कैसे करूं यही विचार उसके मन में उथल-पुथल मचा रहे थे।
दरअसल आज उसके एन डी ए की परीक्षा के रिजल्ट आए थे और आकाश क्वालिफाइड नहीं हुआ था । इस सपने को पूरा करने के लिए के लिए उसके माता-पिता ने बहुत कुछ दांव पर लगाया था , उसके कोचिंग की फीस के लिए और शहर में कमरे के खर्च के लिए माँ ने अपनी पूरे दिन के घर के सारे जंजाल खत्म होते ही लोगों के कपड़े सिलने बैठ जाती,पापा दिन भर ईंट-गारे का काम करते और रात में सड़क पर खड़े होकर ट्रक की राह देखते ताकि उस पर लदी बोरियों को उतार कर कुछ पैसे पा सके।बड़ी बहन अपनी शादी के लिए रखे जेवर माँ से यह कह कर बेंच दिये कि भाई मेरा पुलिस बन जायेगा तो मुझे जेवर की कोई कमी नहीं रहेगी।छोटे भाई अजीत के लिए एक आधार बनाना चाहता था ताकि वह और आगे जाये, लेकिन सब पर पानी फिर गया, आकाश के आँखों के सामने अंधेरा छा रहा था अचानक उसके चेहरे की सिलवटें मिटने लगी जैसे वो किसी निर्णय पर पहुंच चुका हो।झट से आकाश बरामदे से उठकर अपने कमरे मे गया और माँ की पुरानी साड़ी जो उसके कपड़ों में ही पड़ी थी उठा कर मेंज पर चढ़ छत के हुँक मे बाँधने लगा तभी पैर फिसला और वो नीचे धड़ाम से गिरा , उसके आँखों के सामने वह मंजर याद आ गया जब पापा की साईकिल को चलाने की कोशिश कर रहा था और सीट पर बैठने के प्रयास मे नीचे गिरा और घुटने में चोट आ गई तभी माँ दौड़ कर उसे अपने गोंद में उठा लिया और चोट का दर्द उसके घुटने से ज्यादा उसकी आँखों मे दिख रहा था। माँ उसका सिर अपनी गोदी में रख बहुत प्यार से समझाया "कि गिरने का मतलब यह नहीं है कि तुम हार गए हार तो एक सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर तुम जीतोगे।"
और आकाश के ऑंखों मे इस पल कुछ अलग सी चमक थी। उसने झट से माँ की साड़ी हुक से उतारी और सीने से लगा चूम लिया। दौड़ कर कमरे से बाहर निकल कर सबको गले लगाया आज उसे जिन्दगी को जीने का एक हुनर मिला था।
"सर!आपका घर आ गया ," ड्राइवर के आवाज के साथ आकाश अपने ख्यालो से बाहर आया। उसने गाड़ी से बैग उठाया जिसमें उसने माँ के लिए साड़ी, चूड़ी ,पापा के लिए जूते ,कपड़े, बहन के लिए एक जोड़ी सोने के झुमके ,भाई के लिए घड़ी और किताबें।सबको तोहफें देते हुए आकाश के चेहरे की चमक विश्व विजेता के जैसी लग रही थी।