मर्यादा एक प्रेम
मर्यादा एक प्रेम
"सानवी बेटा, नाश्ता तो कर ले! अच्छा एक पराठा हाथ मे ले खाते हुए चली जा।"
शारदा पराठे पर चटनी लगाकर रोल बनाकर सानवी की तरफ बढ़ाते हुए चिल्लाए जा रही हैं। नहीं मेरी क्लास मिस हो जाएगी ,लेकिन तब तक मां ने पराठा मुंह में डाल दिया। सानवी मुस्कुराकर रोल हाथ में ले लेते हुए मां, आपका का यह रोज का किस्सा है।
सानवी मां शारदा और पिता राजीव की इकलौती बेटी, जिसे दोनों ने बड़े लाड प्यार से पाला है । सानवी की इंटरमीडिएट के बोर्ड एग्जाम नजदीक है और वह क्लास की सबसे मेधावी छात्रा थी ।वह एक भी क्लास नहीं मिस करती ताकि उसके बोर्ड एग्जाम में वह अपना बेस्ट दे सके ।धीरे-धीरे बोर्ड एग्जाम आ गए, सानवी के कठिन परिश्रम ने रंग लाया वह पूरे कॉलेज में टॉप की, और उसे जिलाधिकारी महोदय द्वारा सम्मानित किया गया ।
शारदा और राजीव को उसके आगे की पढ़ाई की चिंता खाए जा रही थी। वह अपने बेटी को सबसे बढ़िया मेडिकल कॉलेज में एडमिशन चाहते थे। माता- पिता ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर सानवी को मेडिकल की तैयारी के लिए बाहर भेजने का फैसला किया ।
सानवी भी कभी मां-बाप से दूर नहीं रही थी, लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए वह बुझे मन से तैयार हो गयी।
धीरे-धीरे समय ने रफ्तार पकड़ी सानवी की तैयारी बढ़िया चलने लगी।पापा ने सानवी को स्मार्टफोन दिया था ताकि वह अपनी बिटिया के करीब रह सके और जब जी चाहे उसे वीडियो कॉल कर देख सके बात कर सके।
सानवी जिस जगह क्लास करती थी वहीं पर अविनाश नाम का एक लड़का भी पढ़ता था। देखने में किसी अच्छे घर का मालूम पड़ता, गोरा गठीला शरीर ,घुंघराले बाल जिसकी कुछ लटकते हमेशा उसके माथे को घेरे रहती और उसे और आकर्षक बनाती ।
वह ज्यादा क्लास में घुलता- मिलता नहीं था। बस पूरे टाइम क्लास में ध्यान से टीचर्स की बात सुनता ।
सानवी उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होने लगी उसने अपने मन को बार-बार मोड़ा कि अविनाश की तरफ नहीं झुकना है ,लेकिन वह तब कमजोर पड़ जाती जब अविनाश भी पूरी क्लास कुछ उससे बात करता और उसके पास आकर बैठ जाता। धीरे-धीरे दोनों क्लास के बाद, बाहर भी मिलने लगे ।
अक्सर अविनाश बोलता एक कप चाय पीते हैं और फिर चले जाना ।और ऐसे ही दोनों धीरे-धीहरे एक दूसरे के करीब आते गये।एक दिन अचानक उसके पापा मिलने आए। तो उन्हें अपने बेटी न मिली।
पूछने पर पता लगा कि वह अपने साथी अविनाश के साथ बाहर गई है।राजी वहीं रुक कर उसका इंतजार करने लगे और मन ही मन में चिंता के सागर में डूबते जा रहे थे कि मेरी बिटिया के कदमों को मैं कैसे संभालूं ? कभी उनके चेहरे पर गुस्सा और कभी चिंता के भाव आ रहे थे।
अपने जज्बातों के तूफान को काबू कर उन्होंने अपने बच्चे के भविष्य के लिए एक निर्णय लिया। कि मुझे अपनी बच्ची को एक सुंदर भविष्य देना है, उसके लिए दुनिया से कुछ अलग करना है, तब तक सानवी भी आ गयी। अविनाश बाइक पर बैठाकर हॉस्टल के सामने छोड़कर गया।
तकरीबन शाम के 6:00 बजे होंगे अंदर आते ही साध्वी की जान जैसे हलक में आकर रुक गई हो। पापा आप! डर और विस्मय से सानवी कांप का रही थी।
पापा ने बिना किसी भावना से घिरे अपने बेटी को गले से लगाया और फिर एक नॉर्मल बात करने लगे, जैसे उन्हें कुछ पता ही ना हो।
" सानवी कैसी हो बेटा ?तुम्हारी तैयारी कैसी चल रही है?न तुम कमजोर दिख रही हो ? "":कुछ ठीक खाती -पीती नहीं ,अपना ध्यान रखो बेटा" ऐसे ही बिना रुके पापा बोलें और लिखें जा रहे थे,और सानवी हां में सिर हिलाये जा रही थी। कहीं उसके दिमाग में उलझन की एक जंग छिड़ी थी शिकायत क्यों नहीं कर रहे हैं?
उसके मन में ग्लानि और पछतावा दोनों विचार कर रहे है,कि तभी पापा ने अपनी बेटी को हाथ पकड़ के बहुत प्यार से अपने पास बिठाया।
" बेटा मुझे गलत मत समझना कि मैं भी हर मां -बाप की तरह तुम्हें पढ़ा-लिखा कर अच्छी पोस्ट पर देखना चाहता हूँ, तुम्हें अपनी जिंदगी में कामयाब होते देखना चाहता हूं, और जब तुम किसी मुकाम पर पहुंच जाओ तो तुम्हारे लिए एक अच्छा लड़का ,अच्छा परिवार ,देखकर तुम्हारी शादी कर सकूं। लेकिन अगर मेरी अच्छी बिटिया कहीं अपने रास्ते पर डगमगा जाती हैं तो, मैं उसका सहारा बनूंगा । तुम कभी मत सोचना कि कुछ धर्म ,जाति, मान- मर्यादा ,समाज के नाम पर अपने कलेजे के टुकड़े को मैं कभी कोई क्षति पहुंचाऊंगा ।"
सानवी बहुत ध्यान से पापा के हर शब्द के अर्थ को अपने मन में उतार रही थी।बेटा तुम्हें अविनाश बहुत पसंद है? तुम उसके बारे में या अपने मन की हर दुविधा को अपने पिता के साथ बांट सकती हो ।अब तुम बड़ी हो गई हो । मुझे अपना दोस्त और पिता दोनों समझ सकती हो।हर बाप चाहता है कि वह अपने बच्चे को दुनिया का बेस्ट से बेस्ट चीजें दे ,फिर यह तुम्हारे जीवनसाथी की बात रहेगी। बेटा आप दोनों अभी अच्छे से मन लगाकर अपने कैरियर पर फोकस करो ,मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं जिस दिन तुम कामयाब हुए मैं खुशी-खुशी तुम दोनों का विवाह कर दूंगा इस दौरान में अविनाश के घरवालों से मिलकर उनको जानकर उन्हें भी समझा लूंगा।
सानवी की आंखों में आंसू छलक पड़े वह खुशी से पापा के सीने से लग गई। थैंक यू पापा ,मुझे समझने के लिए, आप जैसा कहेंगे वैसे ही हम करेंगे ।
आज 5 साल बाद हम और अविनाश एक साथ अपने घर से हॉस्पिटल जाते हैं ।अविनाश ,सानवी !आज फादर्स डे है रास्ते से पापा के लिए साल लेकर पापा से आशीर्वाद लेने चलेंगे ।सानवी अविनाश के साथ पापा के घर पहुंची।
पापा को अपने बच्चों का इतना खुश ,कामयाब देख अपने पर गर्व हो रहा था कि मैं अगर उस समय अपने बच्चों को ना समझता, और उन्हें सही रास्ता ना दिखाता तो आज इस खुशी से वंचित रह जाता। आंखों में खुशी के आंसू लिए राजीव और शारदा ने दोनों बच्चों को गले से लगा लिया।