"मैं और मेरी तन्हाई"
"मैं और मेरी तन्हाई"
" सुषमा जल्दी कर ,अभी मेहमान आने ही वाले हैं,
अरे !अभी तो तू नहाई भी नही, तेरे बाल भी बिखरे हुए हैं ,कपड़े तो देखो !"
सुषमा अपनी किताब के पन्नों के साथ यूं उलझी थी कि उसे मां की झुंझलाहट सुनाई नहीं दे रही थी। मां दौड़कर आ सुषमा के हाथ से किताब छीनते हुए उसे कुर्सी से उठाया, अब बस कर! उठ भी जा !
"जा बेटा जल्दी से नहा ले।" सुषमा मुंह बनाते हुए पैर पटकते हुए नहाने चले गई । नहाकर तौलिया से गीले बाल पोंछती हुई बाहर आ गई।
मां "यह कैसे कपड़े पहन रखे हैं, कोई ढंग का कपड़ा पहन ले ।चल मैं देती हूं ";यह कहती हुई मां सुषमा को लेकर अंदर आ गई । नई सूट पहनाकर बिटिया के बाल खुद सँवारने लगी। उसके माथे पर कुमकुम की छोटी सी बिंदी लगाकर हाय ! कितनी सुंदर लग रही मेरी बिटिया किसी की नजर ना लगे।
तभी बाहर से आवाज आती है ,सुषी की मां ! मेहमान आ गए। सुषमा कुछ समझ पाती कि आनन-फानन में खबर मिली कि हमारी सुषमा उनको बहुत पसंद आई।
वो लोग शादी का दिन अगले महीने की 28 तारीख को रखे हैं । चलो सुषी की मां बहुत सारी तैयारियां करनी है, रिश्तेदारों को निमंत्रण भेजना है।
सुषमा कमरे में पहुंच बुत सी बनी कुर्सी पर बैठ गई। और अपनी किताबों को ध्यान से देखने लगी। उसकी आंखों से झर- झर आंसू बहने लगे।
आज उसे लग रहा है कि जैसे कोई किताबों की दुनिया से उसे दूर ले जा रहा हो।
माता-पिता को खुश देख अपने अरमानों को शब्द बन जुबा तक ना आने दिया ।धीरे-धीरे शादी का दिन आ गया। मां पापा ने लड़के वालों की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन विवाह संस्कार संपन्न होने तक लेनदेन को लेकर दोनों परिवार में खींचातानी होने लगा । पर सुषमा के पिता ने जैसे-तैसे बेटी की खुशी के लिए उनकी हर मांग को स्वीकार कर लिया।
मां -पापा की लाडली सुषमा अब विदा होकर अपने पति के घर आ गई। नई बहू का स्वागत पूरे विधि -विधान से हुआ ।सभी मिलकर मंगल गीत गा रहे थे ।शाम होते-होते ज्यादा रिश्तेदार और गांव के लोगों की भीड़ खा -पीकर जा चुकी थी ।
सुषमा एक कमरे में खामोश बैठे अपनी तन्हाई से बातें कर रही थी ,तभी बाहर से जोर-जोर की आवाज ने उसकी तन्हा वार्ता को भंग कर दिया।
"मैंने तो पहले ही कहा था, ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की नहीं जो ज्यादा लक्ष्मी घर लाए ऐसी दुल्हन ला ना लेकिन मेरी सुनता कौन है ।"सासूजी चिल्लाए जा रही थी। सुषमा की आँखों यह सब सुनकर आंसुओं की धारा बह निकली ,और मां पापा को याद कर फूट-फूट कर रोने लगी।
तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, "मैं अंदर आ जाऊं?" सुषमा झट अपने आंचल से आंसू पूछते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ी। सामने दिवाकर खड़े थे सुषमा के पति ।
अगले दिन सुबह सास की आवाज सुनाई दी पूरा दिन सोते रहना है क्या ?उठकर रसोई संभाल ले बहू ।
सुषमा हड़बड़ा कर उठी और बाथरूम चली गई । दिवाकर 9:00 बजते -बजते अपने काम पर निकलने को तैयार हो गया । फैक्ट्री में काम करता था दिवाकर।
पीछे से सुषमा ने आवाज दी सुनिए ! "कुछ किताबे ले आइएगा मुझे आगे पढ़ाई करना है।"
यह सुनकर दिवाकर के चेहरे का भाव बदल गया, "जितना पढ़ना था पढ़ चुकी अब घर संभालो "
और झिटककर अपने काम पर चल दिया। सुषमा को यह सुनकर बहुत झटका लगा वह अपने कमरे में आ बहुत रोयी।
देखते-देखते 2 साल बीत गए और सुषमा की गोदी में सोनू की किलकारियां गूंजने लगी।सुषमा की जिंदगी बेरंग हो गई थी बस थोड़ा खुश थी वह अपने बच्चे के साथ ।आज काफी दिन बाद सुषमा के पिता उससे मिलने आए । सुषमा की खामोशी और तन्हाई को पापा पहले ही भाँप चुके थे । सुषमा से विदा लेते वक्त पापा ने मोबाइल फोन सुषमा की हथेली पर रखकर कहा ,"सुषमा यह लो अपने पंख और आसमान में उड़ने की कोशिश करो।"
आज वह बहुत खुश थी पूरे 2 साल 4 माह बाद इतनी खुश थी ।सारे काम झटपट खत्म कर अपने कमरे में आ गई । आज वो तन्हा नहीं उसका हमजोली मिल गया था। सुषमा खूब मन से फोन पर पढ़ाई करने लगी। आज उसकी तन्हाई उसके पंखों को हवा दे रहे थे।
पूरे 3 साल तक वह ऐसे ही छुप -छुप के तैयारी करती रही। फिर एक दिन पापा से बात कर यूपीएससी का फॉर्म भरा दिया ।और अब वह पेपर देने के लिए तैयार थी।
लेकिन कैसे घरवाले तो ले नहीं जाएंगे ।पापा से फोन पर बात कर सुषमा ने रास्ता निकालने का प्रयास किया। अगली सुबह पापा घर आ गए चल बेटी मां की तबीयत ठीक नहीं है ।बड़ी मुश्किल से सास ने इजाजत दी। सुषमा सोनू को ले मां के घर आ गई। बेटे को मां के पास छोड़ अगले दिन सुषमा पेपर देने चली गई। पेपर दे फिर वापस अपने ससुराल आ गई।
सुषमा की खुशी का ठिकाना उस पल ना था जब मां- पापा ने सुषमा को प्री पास होने की खुशखबरी दी ।और अब तो वह दुगने हौसले से ,और मेहनत से अपनी तैयारी में लग गई ।
ऐसे ही छुप के बहाने से मेंस और इंटरव्यू भी दिया ।आज रिजल्ट का दिन था सुषमा ने बिल्कुल उम्मीद ना की थी वह हुआ ।अच्छी रैंक के साथ यूपीएससी पास की और कलेक्टर की पोस्ट पर चयन हो गया।
सुषमा के घर वालों की आंखें खुली की खुली रह गई?
दिवाकर ने कहा यह सब कैसे हुआ ? सुषमा ने जवाब दिया," मैं और मेरी तन्हाई की बदौलत।"
दिवाकर के चेहरे पर पश्चाताप और खुशी के भाव एक साथ उभर रहे थे। फिर उसने आँखों मे आँसू भरे दौड़कर सुषमा और बच्चे को गले से लगा लिया।