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Priyanka Gupta

Drama Romance Tragedy

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Priyanka Gupta

Drama Romance Tragedy

यह गुलाबी रंग आप पर खूब जँचता है

यह गुलाबी रंग आप पर खूब जँचता है

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दरवाज़े की घंटी बजी। पिया ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर कोई नहीं था, पिया ने इधर -उधर नज़र दौड़ाई, लेकिन कोई नज़र नहीं आया। पिया मुड़कर, दरवाज़ा बंद करने को ही थी कि उसकी नज़र एक पैकेट पर पड़ी। उसने पैकेट उलट -पुलट करके देखा, भेजने वाले का नाम नदारद था, पाने वाले की जगह पिया का नाम लिखा हुआ था।  

वह पैकेट लेकर अंदर आ गयी थी। उसने पैकेट टी वी के सामने रख दिया था, अभी सुबह -सुबह उसे पैकेट खोलकर देखने की फुर्सत नहीं थी। ऋषि को ऑफिस जाना था और बेटी आशिमा को स्कूल। दोनों को भेजकर फुर्सत से पैकेट खोलेगी। 

घर के काम करते -करते पिया का ध्यान बार -बार पैकेट की तरफ ही जा रहा था। "क्या होगा पैकेट में ? किसने भेजा होगा ?" बार -बार यही सोच रही थी। अपनी सोच के कारण, कई बार वह ऋषि की बातों पर प्रतिक्रिया भी नहीं दे पायी थी। 

ऋषि ने पूछा भी था कि, "पिया, तबीयत तो ठीक है न ? मैं ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ। "

"नहीं, तुम आराम से जाओ। मैं तुम्हारी बात सुन नहीं पायी थी।" पिया ने मुस्कुराकर परांठे का कौर ऋषि के मुँह में डालते हुए कहा। 

"बहुत बढ़िया परांठे बनाये हैं। जी चाहता है, तुम्हारे हाथ चूम लूँ।" ऋषि ने कहा। 

"ज़नाब, ऑफिस के लिए देर हो जायेगी, बॉस से डाँट खानी है क्या ?" पिया ने ऋषि से कहा। 

"हाँ यार, किसका नाम ले लिया ? सारे रोमांटिक मूड की बैंड बजा दी।" ऋषि अपना बैग लेकर ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया था। 

"चलो बाय, शाम को मिलता हूँ।" पिया के माथे पर एक चुम्बन अंकित करते हुए ऋषि ने कहा। 

पिया दरवाज़े पर खड़ी, प्यार भरी हुई नज़रों से उसे जाते हुए देख रही थी। ऋषि जब उसकी नज़रों से ओझल हो गया, तब उसने दरवाज़ा बंद किया और अंदर आ गयी।

अंदर आकर, उसने टेबल पर पड़े हुए नाश्ते के बर्तन उठाकर सिंक में रखे और अपने लिए चाय बनाने लगी। 


"चाय पीते हुए वह पैकेट खोलकर देखूँगी।" पिया ने अपने आप से कहा। 

चाय की प्याली लिए पिया किचन से बाहर आ गयी थी। उसने पैकेट उठाया और पैकेट तथा चाय की प्याली लेकर वह सोफे पर आकर, आराम से पैर ऊपर उठाकर बैठ गयी थी। 

पैकेट खोला तो उसमें एक शादी का कार्ड था और एक खूबसूरत कोसा सिल्क की साड़ी थी। साथ ही एक पत्र भी था। शादी के कार्ड पर लिखा हुआ था पीयूष वेड्स सयाली। पत्र खोलने से पहले पिया की नज़र कार्ड के अंदर रखी एक फोटो पर पड़ी। फोटो शायद सयाली और पीयूष की थी। 

"कितनी अच्छी जोड़ी है। नज़र न लगे।" पिया ने कहा। शादी की डेट देखकर उसने कहा, "ओह शादी तो कल ही हो गयी।"

फिर पिया ने पत्र खोला, पत्र पीयूष ने लिखा था, "मैडम, आपकी बात का मान रखते हुए मैंने शादी कर ली है। आपके लिए कोसा सिल्क की साड़ी भेज रहा हूँ, इसे जरूर पहनियेगा। वैसे भी यह गुलाबी रंग आप पर बहुत जँचता है। मेरी गलतियों के लिए मुझे क्षमा कर दीजियेगा। पीयूष। "

पत्र हाथ में लिए पिया को पीयूष से अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गयी थी। आशिमा के होने के बाद पिया और ऋषि के रिश्ते में एक ठंडापन आ गया था। आशिमा के स्कूल जाने के बाद पिया बहुत ही अकेलापन महसूस करने लगी थी। फैमिली प्लानिंग के लिए पिया ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी। वह एक साथी की कमी शिद्दत से महसूस करने लगी थी। ऋषि के लिए जैसे पिया का अस्तित्व ही नहीं था। ऋषि के लिए केवल बिस्तर ही पति -पत्नी के रिश्ते की खानापूर्ति करने का एक माध्यम मात्र रह गया था।

पिया ऋषि से बात करना चाहती थी, लेकिन ऋषि को अपने मोबाइल और टी वी से फुर्सत ही नहीं मिलती थी। अगर पिया ऋषि के साथ बैठकर कभी टी वी देखती और टी वी पर चल रही किसी न्यूज़ पर अपनी कोई ओपिनियन देती या ऋषि के साथ डिस्कस करने की कोशिश करती तो ऋषि कहता कि, "सारा दिन तो घर पर बैठी रहती हो। तुम्हें क्या समझ है ? जो अपनी एक्सपर्ट राय देने लग जाती हो। तुम तो अपना सास -बहू टाइप सीरियल ही देखा करो।"

पिया अगर विरोध करती तो ऋषि गुस्से में टी वी बंद करके अपने मोबाइल पर यह कहते हुए लग जाता कि, "इस घर में तो इंसान टी वी भी नहीं देख सकता।" पिया अपमान और उपेक्षा क कड़वे घूँट पीकर रह जाती थी। ऋषि यह तक भूल गया था कि पिया एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर रह चुकी है और अपने परिवार के लिए उसने नौकरी छोड़ी थी। 


पिया की ज़िन्दगी कट रही थी तो ऐसे ही एक दिन पिया आशिमा के स्कूल जाने के बाद शहर में नए खुले मॉल की ओपनिंग में चली गयी थी। वहाँ पिया ने एक लकी ड्रा में हिस्सा लिया, मॉल की ओपनिंग इवेंट का होस्ट कोई और नहीं बल्कि पीयूष ही था। पिया ने वहीं उस दिन स्टेज पर पहली बार पीयूष को देखा था।

पिया लकी ड्रा जीत गयी थी और उसने इनाम में मिली सम्पूर्ण राशि वहीं पर मौजूद एक अनाथालय के बच्चों को दे दी थी। पिया ने सुन रखा था कि किसी की मदद करने से आपको स्वयं को ख़ुशी मिलती है। लेकिन पता नहीं अपनी ज़िन्दगी अपने परिवार के नाम लिख देने पर भी हम महिलाओं को वह ख़ुशी क्यों नहीं मिलती, जिसकी वे हकदार होती हैं। पिया ने अपनी इनामी राशि बच्चों के लिए दे दी थी, तब पीयूष ने कहा था कि, "पिया मैडम जितनी खुद खूबसूरत हैं, उससे भी अधिक ख़ूबसूरत उनका मन है। "

पिया ने उस दिन गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी और उसने अपने बाल खुले छोड़ रखे थे। वह ऋषि के सामने कई बार यह वाली गुलाबी रंग की साड़ी पहन चुकी थी, लेकिन ऋषि तो जैसे अब उसकी तारीफ करना ही भूल गया था। जबकि हर औरत अपनी तारीफ चाहती है, रिश्तों में कभी -कभी फ्लर्टिंग बहुत जरूरी हो जाती है। पिया और ऋषि के रिश्ते में से गर्माहट, रूमानियत, मसाला सब कहीं खो गया था।

पिया कितनी बार ही कोशिश करती थी कि वह और ऋषि पहले जैसे रोमांस करे, बातें करें। कभी वह कैंडल लाइट डिनर प्लान करती, अच्छे से खुद को सजाती और सँवारती, लेकिन ऋषि कभी नोटिस ही नहीं करता था। कई बार पुरुष अपनी पत्नी को एक ग्रांट के रूप में लेने लग जाते हैं, उन्हें लगता है कि मैं कमा तो रहा ही हूँ, घर अच्छे से चल ही रहा है, इसके अलावा और क्या चाहिए ?


इवेंट के अंत होते ही, पिया पार्किंग में अपनी कार के पास आयी और कार का दरवाज़ा अनलॉक कर कार में बैठ गयी। लेकिन जैसे ही कार स्टार्ट करने की कोशिश की, कार स्टार्ट ही नहीं हो रही थी। पिया कार के साथ जूझ रही थी कि तब ही किसी ने उसकी कार के शीशे पर ठक -ठक किया। देखा तो वही इवेंट होस्ट करने वाला लड़का था। 

"पिया मैडम, आपको कोई हेल्प चाहिए ?मेरा नाम पीयूष है। " उसने बड़े ही सलीके से कहा। 


"हाँ, पीयूष। ओह सॉरी पीयूष जी मेरी कार स्टार्ट ही नहीं हो रही। " पिया ने कहा। 

"आप नीचे उतरिये और मुझे ज़रा चेक करने दीजिये। " पीयूष ने कहा। 

पिया नीचे उतर गयी थी और पीयूष अब उसकी कार से जूझने लगा था और थोड़ी देर में ही कार स्टार्ट हो गयी थी। 

"थैंक यू पीयूष जी। " पिया ने कहा। 

"पिया मैडम, सिर्फ थैंक यू से काम नहीं चलेगा। आप को मुझे कॉफी पिलानी पड़ेगी। अब एक मेकैनिक को इतना मेहनताना तो मिल ही सकता है। " पीयूष ने कहा। 

"क्यों नहीं ? चलो। " ऐसा कहकर पिया कार से उतर गयी थी। 

पिया ने कैफ़े पहुंचकर दोनों के लिए कॉफ़ी आर्डर कर दी थी। पीयूष मॉडलिंग और होस्टिंग दोनों ही करता था। पीयूष ने बातों -बातों में पूछा, "पिया मैडम, आपका बॉय फ्रेंड है ?"

"हेलो, मेरा पति है और साथ ही ३ साल की बच्ची भी है।" पिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा। 

"आप झूठ क्यों बोल रहे हो ?आपको देखकर बिलकुल नहीं लगता कि आप एक बच्ची की माँ हो।" पीयूष ने कहा। 

"मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता।" पिया ने मुस्कुराते हुए कहा। 

"अरे मैडम, मज़ाक नहीं कर रहा। आप अगर मॉडलिंग में आ जाओ तो अच्छी -अच्छी मॉडल्स आपके सामने पानी भरेगी।" पीयूष ने कहा। 

"अरे तुम भी। प्लीज मुझे बार -बार मैडम कहना बंद करो।" पिया ने हँसते हुए कहा। 

"पिया, आप कहाँ नौकरी करती हो ?" पीयूष ने पूछा।  

"मैं और नौकरी ? भई ख़ालिश हाउसवाइफ हूँ।" पिया ने कहा।  

"हाउसवाइफ नहीं होम मेकर। अगर आप लोग न हों तो हम जैसे बेटे, भाई, पति कहाँ कुछ हासिल कर सकें ? लेकिन तुम्हारे बात करने के अंदाज से लगता है कि तुम नौकरी करती हो। पॉलिशड हो और इतने आत्मविश्वास से बात करती हो।" पीयूष अब पिया के साथ अनौपचारिक होकर बात करने लगा था।  

"कुछ भी नहीं आता तुम्हें।  एक काम ठीक से नहीं होता। तुम ऑफिस की पार्टी में ले जाने लायक ही नहीं हो। " ऋषि की ऑफिस की पार्टी में गलती से पिया के हाथ से ड्रिंक का गिलास गिर गया था और ड्रिंक ऋषि के बॉस पर गिर गयी थी, तब ऋषि ने घर पर पिया पर कितना गुस्सा किया था। याद करते हुए पिया कहीं खो सी गयी थी।

"क्या हुआ ?" पीयूष ने पूछा।

"कुछ नहीं। सोच रही थी कि तुम कहीं कोई ज्योतिषी तो नहीं। नौकरी करती थी, फिर जब बेटी आशिमा होने वाली थी, तब मैंने नौकरी छोड़ दी।" पिया ने बताया।

"देखा, मैंने एकदम ठीक कहा था न। " पीयूष ने चहकते हुए कहा।   

एक घंटा कब निकल गया, पता ही नहीं चला था। दोनों ने फ़ोन नंबर आदान -प्रदान किये।" अब मुझे जाना होगा, मेरी बेटी आशिमा के स्कूल से आने का समय हो रहा है।" पिया ने चेयर से उठते हुए कहा। 

"ओके पिया। हैव ए नाइस डे। " पीयूष ने पिया को कार तक छोड़ते हुए कहा। 

आज इतने दिनों बाद पिया इतनी खुश थी। घर पहुँचकर न जाने कितनी ही बार वह अपने आपको आईने में निहार चुकी थी। पिया और पीयूष की फ़ोन पर बातें होने लगी थी। पिया आजकल फटाफट अपने घर के कामकाज निपटा लेती थी। उसकी झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन सब ख़त्म होता जा रहा था। 

पिया की सारी बकबक पीयूष सुनता था। एक बार पिया ने उस बताया था कि उस भारत क विभिन्न राज्यों की हैंडलूम साड़ियों का कलेक्शन करने क शौक है। उसके पास मेखला चादर, कांजीवरम, इक्कट, बनारसी, चिकन आदि सभी साड़ियाँ हैं।  

"तुम्हारे पास कोसा सिल्क है क्या ?" पीयूष ने पूछा।  

"नहीं है। " पिया न बताया।

"अच्छा तो हम कभी छत्तीसगढ़ चलेंगे और वहाँ से वह साड़ी खरीदेंगे। " पीयूष ने कहा।

"ऋषि तो कभी भी छत्तीसगढ़ चलने के लिए नहीं मानेगा। " पिया ने पीयूष की बात सुनी -अनसुनी करते हुए कहा।

"मैं तुम्हारे लिए कोसा सिल्क की साड़ी लाकर दूँगा।" पीयूष ने कहा।

"वाह -वाह तुम्हारे जैसे दोस्त हों तो मेरा साड़ियों का कलेक्शन दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढ़ेगा।

आजकल पिया नोटिस कर रही थी कि पीयूष उसे इन्क्लूड करते हुए कई प्लान बनाता था। जैसे अभी कुछ दिन पहले वह और पीयूष फिल्मों की बातें कर रहे थे। तब पीयूष ने पूछा था कि, "तुम मलयालम फिल्में देखती हो ?"

"मुझे मलयालम नहीं आती। " पिया ने कहा।  

"अरे सबटाइटल के साथ देख सकते हैं और एक्टिंग इतनी अच्छी होती है न कि तुम्हें उनके चेहरे के एक्सप्रेशन से सब समझ आ जाएगा। एक मलयालम फिल्म है ओरे कादल, जिसका अर्थ है अंदर एक समंदर। ममूटी की फिल्म है, अवार्ड विनिंग है और काफी अच्छी है, कभी हम दोनों साथ में बैठकर देखेंगे। " पीयूष ने कहा।  

दोनों फिल्मों, किताबों, कुजीन आदि पर घंटों बातें करते थे। पिया, पीयूष की उस में बढ़ती रुचि समझ रही थी, लेकिन उसे उससे बात कारण बहुत अच्छा लगता था। उससे की गयी घंटे भर की बात उस पूरा दिन तरोताज़ा बनाये रखती थी।  

पिया न गूगल पर ओरे कादल फिल्म के बारे में सर्च भी किया था, यह फिल्म नायिका के विवाहेतर संबंधों पर आधारित थी और इसमें नायिका अंत में पागल हो जाती है।

"मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा। पीयूष मेरा सिर्फ एक दोस्त है, उससे ज्यादा कुछ नहीं। उससे बात करके मुझे ख़ुशी मिलती है तो बात क्यों न करूँ। मैंने अपनी कोई मर्यादा नहीं तोड़ी है।" पिया अपने आपको समझाती थी।  

फिर एक दिन वही हुआ, जिससे वह डर रह थी और जिस सच को वह स्वीकार नहीं करना चाहती थी। अभी तक घुमा -फिराकर मैं और तुम से हम होने की बात कर रहे, पीयूष ने कहा, "पिया मुझे तुमसे प्यार हो गया है। पता नहीं कैसे हो गया ? मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"

पिया के पैरों तले जमीन खिसक गयी थी। वह ऋषि को छोड़ नहीं सकती थी। आशिमा से उसके पापा का प्यार वह छीन नहीं सकती थी। वह अपने घर को नष्ट नहीं कर सकती थी। 

"देखो, पीयूष तुम बहुत अच्छे लड़के हो। तुम्हारा साथ पाकर मुझे जीने की नयी प्रेरणा मिली। जिन्दगी के प्रति मेरा नज़रिया बदल गया, लेकिन हम कभी एक नहीं हो सकते। आज के बाद हम फ़ोन पर बात भी नहीं करेंगे। अगर तुमने सही में मुझसे प्यार किया है तो कोई अच्छी सी लड़की देखकर शादी कर लेना।" पिया ने ऐसा कहकर फ़ोन रख दिया था। 

फ़ोन रखते ही, पिया की आँखों से आँसू बहने लगे थे। पिया ने कितने ही दिन रोते हुए और कितनी ही रातें जागकर बिताई थी। पीयूष ने उसे दोबारा कभी कॉल नहीं किया। पिया की कभी -कभी इच्छा होती कि वह पीयूष को फ़ोन करे, लेकिन वह अपने हाथों को रोक लेती थी। पिया लगातार पीयूष का स्टेटस भी चेक करती रहती थी, लेकिन पीयूष एकदम शांत था, उसन कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।

 

पिया के मन पर बोझ बढ़ता ही जा रहा था, वह रोज़ अपने आप से लड़ रही थी। वह अपने आपको दोषी मान रही थी, उसे लग रहा था कि उसने ऋषि और पीयूष दोनों को ही धोखा दिया है। उसे लगता था कि कहीं वह भी ओरे कादल फिल्म की नायिका जैसे पागल न हो जाए। वह कितनी ही बार आशिमा को गले से लगाकर रोती थी।

रोज़ -रोज़ मरने से अच्छा एक दिन पूरी तरह से मर ही जाओ, यह सोचकर उसने एक दिन ऋषि को पीयूष के बारे में सब बता दिया था। 

"ऋषि, मैं एकदम अकेली हो गयी थी। तुम मुझे भूल ही गए थे। मुझे माफ़ कर दो। तुम जो सजा दोगे, वह मंजूर है। लेकिन अब मुझसे और सहा नहीं जाता। " पिया ने रोते -रोते कहा। 

"मुझे भी माफ़ कर दो। मैंने तुम्हें अकेले कैसे होने दिया। आज से हम एक नयी शुरुआत करेंगे। " ऋषि ने पिया को गले लगाते हुए कहा। 

आज पीयूष की शादी का कार्ड देखकर पिया खुश भी थी कि वह अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ गया और दुःखी भी थी कि अब उसके लौटने की उम्मीद भी ख़त्म हो गयी। उसने ऋषि को पीयूष की शादी का कार्ड दिखाया था। 

"चलो अच्छा है, अब वह भी आगे बढ़ गया। तुम तो पहले ही उसे भुला चुकी हो। " ऋषि ने कहा। 

"हाँ। " पिया ने धीमे से कहा, क्यूंकि पीयूष अभी भी उसके दिल में कहीं रह तो गया ही था। 


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