ये कौन चित्रकार है

ये कौन चित्रकार है

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आज माँ और पिताजी दोनों हाथों में लड्डू का डिब्बा थामे आगंतुकों को बङ़े चाव से हँसते - हँसते मिठाई खिला रहे थे। दोनों बहुत खुश थे ।हो भी क्यों न....प्रभात की पेन्टिंग नेशनल बुक फेयर में प्रथम स्थान पर रही थी। आज तो पास- पङोस, नाते - रिश्तेदार, मिडिया वाले सब उसके घर मेहमान थे । प्रभात की फोटो नेशनल अखबारों की सुर्खियां बनी हुई थी ।

आज पहली बार उसे अपने आपसे रश्क हो रहा था वर्ना तो हमेशा खुद को आशा और निराशा के पालने में झुलता हुआ ही महसूस किया है।

कभी आशा उसे भविष्य के सुनहरे ख्वाबों के गलियारों में ले जाती तो पल भर में वर्तमान अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर उसे निराशा के भँवर में छोड़ देता। जो इंसान अपनी रोजमर्रा के कार्यों को अपने बलबूते पर पूरा न कर पाए उसे चमकीले सपने देखने की इजाजत न परिवार देता है न ही समाज....।

 कभी - कभी प्रभात सोचता अच्छा होता अगर उस दिन बिजली के झटके से मेरी जान चली जाती कम से कम अपाहिज बनकर इस जीवन का बोझ तो नहीं ढ़ोना पङ़ता।

वो लगभग बारह साल का था जब ये हादसा हुआ ।बिजली के तार छु लेने से उसके हाथ हमेशा के लिए साथ छोङ़ गये ।लगभग तीन चार साल वो डिप्रेशन में रहा ।माँ तो जैसे पागल ही हो गई थी आँखों से आँसू थमते ही नहीं थे ।ये तो भला हो चंदू का जो हर रोज अपनी प्राइवेट ड्रॉइंग क्लास में उसे अपने साथ बिठा लेता था। गुरूजी ने भी जब उसकी रूचि और लगन देखी तो उसे दिल से प्रोत्साहित करने लगे और इस तरह प्रभात बिना किसी शुल्क के ड्रॉइंग सीखने लगा ।शनैःशनैः वो पाँवों से इतनी शानदार पेन्टिंग बनाने लगा कि देखने वाले अपने दातों तले उंगलियां दबा लेते थे ।

कङ़ी मेहनत, लगन, गुरूजी से मिले प्रोत्साहन और चंदू के सहयोग का ही परिणाम है कि आज प्रभात कामयाबी की एक नई इबारत लिखने में कामयाब हुआ।

आज उसे लग रहा था भगवान कभी कुछ लेता तो फिर देते हुए छप्पर फाङ़कर देता भी है।

वो खुश था ।सोच रहा था अपने जैसे लोगों कि सहायता करने का वक्त आ गया है ।अब उसे अशक्तों के लिए पेन्टिंग क्लास खोलनी है और इस तरह गुरूजी को उनकी गुरू दक्षिणा देगा और चंदू के मित्र ऋण से स्वयं को उऋण बनाएगा।

तभी उसने देखा टीवी पर उसके चित्रों को दिखाया जा रहा था और बेकग्राउंड में म्यूजिक चल रहा था - ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है.....।

अपनी खुशी के आँसुओं को पोंछते हुए प्रभात माँ - पिताजी के पास आकर खड़ा हो गया ।

लम्बी रात के बाद सूरज निकला था जिसे वो अपनी आँखों में कैद करना चहाता था।


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