प्रेम सिखाता है जीना
प्रेम सिखाता है जीना
"बापू.... आज क्या दोगे मुझे बेचने के लिए" अपनी गोल-गोल भूरी - भूरी आंखों को घुमाते हुए सुमन ने पूछा।
"आज ये गुलाब के फूल ले जा बेटी, देख मैंने गुलाब के लाल फूलों को गुलाबी कागज में खूबसूरत तरीके से बांध दिया है। सुना है आज के दिन प्रेम करने वाले लोग एक दूसरे को गुलाब भेंट करते हैं" ।
"अच्छा बापू.... " सुमन ने अपने हाथों में फूलों के गुच्छे पकड़ते हुए मुस्कुरा कर कहा।
"जा....अब जल्दी जा...." अपनी टूटी हुई टांगों को घसीटते हुए संतराम आगे खिसकता हुआ बोला।
"अच्छा बापू....मैं एक फूल वो कचरे का काम करने वाले श्याम को दे दूं" सुमन धीरे से पूछा।
"क्यों.... " संतराम की आंखों में हैरत थी।
"वो मेरा दोस्त है ना... इसलिए। आपने ही तो कहा आज सब प्रेम करने वाले एक दूसरे को.... ।"
सुमन....चीख निकल गई थी संतराम की।
"खबरदार जो श्याम के बारे में कुछ भी उलटा सीधा सोचा....टांगे तोड़ कर हाथ में दे दूंगा।"
"हां... हां.... दे देना....पर पहले अपनी टांगों के बारे में भी सोच लेना। "
"बापू, कल तुमने ही कहा था प्रेम दुनिया का सबसे खूबसूरत तोहफा है और आज.....मेरा प्रेम कमजोर नहीं है बापू, आप कहते हो तो नहीं दूंगी श्याम को गुलाब, पर उससे पहले ये भी बता दीजिए मेरे लिए कौन सा राजकुमार ढूंढ लेंगे आप, जो मेरे साथ आपकी भी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हो...." कहते हुए उसकी आंखें भीग गई।
"ना बेटी ना....तुम्हारा प्रेम कमजोर नहीं पर मेरे प्रेम का क्या करूं जो किसी भंगार का काम करने वाले के हाथ में अपनी बेटी का हाथ देने से डर रहा है।"
"प्रेम डरना नहीं जीना सिखाता है बापू..." कहते हुए सुमन खोली से बाहर निकलने लगी।
"सुन बेटा....आज एक गुलाब दे ही आना श्याम को और हां, कहना मैंने उसे मिलने के लिए बुलाया है" संतराम ने जाती हुई सुमन को पुकारते हुए कहा।
"जी बापू...." कहते हुए भाग गई सुमन।
आज उसकी टोकरी के गुलाबों के साथ चेहरे का गुलाब भी खिला हुआ था।