माचिस की व्यथा
माचिस की व्यथा


दीपक, बाती, और माचिस तीनों पास-पास बैठे थे। माचिस कुछ उदास लग रही थी। बात-बात में दीपक और बाती ने माचिस से उसकी उदासी कि कारण पूछा।
माचिस ने कहा " देखो ना, आपको जलाने के लिए सबसे पहले मैं जलती हूं। खुद अपना वजूद खोकर आपको प्रकाश फैलाने के लिए तैयार करती हूं। पर दुनिया में नाम,यश, शोहरत सब आपके हिस्से में आती है, कवि आपके कविताएं लिखता है, गीतकार गीत, यहां तक की पेंटर की पेंटिंग में भी दीपक और बाती ही शोभायमान होते हैं।पूजा की थाली में भी दीपक को जगह मिलती है। सब मुझे भूल जाते हैं, मेरे भाग्य में बस जलना ही लिखा है कहते हुए माचिस उदास हो गई।
"तुम बेकार मायूस हो रही हो बहन, ये तो दुनिया का दस्तूर है कि जब जिसकी जरूरत हो उसे याद किया जाता है और जरूरत खत्म होने पर भूला दिया जाता है। मुझे भी तभी तक याद रखा जाता है जब तक सूरज नहीं निकलता" दीपक ने अपनी बात रखी।
"जहां तक तुम्हारा सवाल है तुम तो नींव हो फिर चाहे दीप जलाना हो या चुल्हा....तुम अपना काम करती हो और पलक झपकते ही लौट जाती हो... अब तुम्हीं बताओ कभी किसी नींव को तस्वीरों में देखा है,सलाम तो हमेशा भवन की ध्वजा के हिस्से में ही आता है, नींव के पत्थर का बलिदान भला किसको याद रहता है। इसलिए ज्यादा मत सोचो....अपना काम अपने सामर्थ्य के अनुसार समर्पण के साथ करो यही हमारा धर्म है" कहते हुए बाती मुस्कुराई।
"मुझे देखो, जलती तो हमेशा मैं ही हूं दीपक तो बस हमेशा मुझे आधार प्रदान करता है पर ये भी सत्य है कि उस आधार के बिना मेरा वजूद भी खतरे में पड़ जाएगा.... बिना उसके सहयोग के मेरा का भी कोई मोल नहीं....हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं....जब तक हम एक-दूसरे का सहयोग करेंगे हमें किसी से कोई खतरा नहीं और बिना सहयोग के हमारा कोई अस्तित्व नहीं...."बाती ने अपनी बात पूरी की।
तभी तीनों ने देखा, कोई ग्राहक दुकानदार से दीपक बाती और माचिस के लेने के लिए मोलभाव कर रहा था।
"हो सकता है हम अभी बिछङ़ जाए...पर अमावस्या की रात को फिर मिलेंगे और मिलकर संसार को रौशन कर देंगे। दुनिया किसको देखती है किसको नहीं.... इस बात से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता" कहते हुए चुलबुली माचिस ने अपनी आंख दबाई तो दीपक और बाती दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।