Shahana Parveen

Inspirational

2.8  

Shahana Parveen

Inspirational

यात्रा वृतांत/संस्मरण

यात्रा वृतांत/संस्मरण

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यह उन दिनों की बात है जब पहली बार मुझे अकेले अलीगढ़ जाना पड़ा। वैसे मैं वहाँ अक्सर अपने माता-पिता के साथ ही जाया करती थी परन्तु उस समय मुझे अपनी शिक्षा के विषय मे वहाँ अकेले ही जाने का कार्यक्रम बनाना पड़ा। वहाँ मेरी मौसी रहती हैं। मै सीधे वहीं जा रही थी कि एक दो दिन रूककर अपना कार्य निपटा कर वापिस आ जाऊंगी।


मै उत्तर प्रदेश के ज़िला मुजफ्फरनगर बस स्टैंड पहुचीं। क्योकिं वहाँ मेरा घर है।


कोई भी बस मुझे सीधे अलीगढ़ के लिए नहीं मिली। मै मेरठ की बस मे बैठ गई क्योंकि वहाँ से मुझे सरलता से अलीगढ़ की बस मिल जाती।


मुझे काफी डर लग रहा क्योंकि मैं पहली बार अकेले यात्रा कर रही थी।


जो भी मेरे पास बैठता मै उसी को यह कहने लग जाती कि आपको पता है मै पहली बार अकेले सफर कर रही हूँ।


ऐसे ही एक डेढ़ घंटे बाद... मेरठ भी आ गया।


वहाँ से मैने अलीगढ़ के लिए बस पकड़ी और उसमे बैठ गई।


मैं फिर यही बात दौहराने लगी कि मै अकेले सफर कर रही हूँ और वह भी पहली बार।


एक वृद्ध पुरूष मेरे पीछे की सीट पर बैठे थे। वह मुझे नोट कर रहे थे। जैसे ही मेरी सीट के बराबर से एक यात्री उठकर गया तो वह वृद्ध पुरूष मेरे पास आकर बैठ गए। मुझसे मेरा नाम पूछा और मुझे समझाने लगे कि, "बेटी, आप पहली बार अकेले सफर कर रही हो। यह बात दूसरो को क्यों बता रही हो।"


मै उनकी बात सुनकर हक्का बक्का रह गई और उनके इस प्रकार से बात करने का कारण पूछा।


वह वृद्ध बोले, "जब भी हम बाहर अकेले सफर करते हैं विशेषकर लड़की तो हमें किसी को भी यह जताना नहीं चाहिए कि हम अकेले हैं।"


दूसरी बात, "सामने वाले से उतनी ही बात करो जितनी आवश्यक हो।"

तीसरी बात, "सफर में किसी भी अंजान व्यक्ति चाहे पुरूष हो या महिला मित्रता मत करो।"


चौथी बात, "अपने बारे में कोई भी बात मत बताओ चाहे वह कितना भी पूछे।"


पाँचवी बात, "अपनी आँखों और कानों को खुला रखो। चारो तरफ निगाह रखो।"

छटी बात, "किसी अन्य व्यक्ति का सफर में कभी भी कुछ मत खाओ।"


सातवी बात सबसे महत्वपूर्ण, "कि आपको डरना नहीं है। हिम्मत दिखानी है। हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना है।"


आठवी बात, "कोशिश करो कि अगर आप अकेले हैं तो सफर दिन ही में करो।"


इसके अलावा अपने किराये के पैसे ऊपर रखो जिससे कि आपको सबके सामने पर्स या बैग खोलने की आवश्यकता ना पड़े।


मैं उनकी बातें ध्यान से सुने जा रही थी।


बीच में बुलंदशहर आते ही वह वृद्ध पुरूष उतर गए और मै बार-बार उनकी बातो को याद कर रही थी।


उनके जाने के बाद मैने किसी से भी कोई बात नहीं की और चुपचाप ध्यानपूर्वक सफर पूरा किया।


आज इस बात को लगभग बीस वर्ष हो चुके हैं पर मै आज भी उन अंकल की बताई बाते ध्यान में रखती हूँ और उन बातो के विषय में अपने परिवार को बताती हूँ।


कहने को बहुत आम सी बाते हैं ये, पर बड़े काम की हैं।


मेरे जीवन की सबसे यादगार यात्रा जिसने मेरा मार्गदर्शन किया।


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