लघु कथा- "विश्वास"

लघु कथा- "विश्वास"

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राधिका अपने माता पिता की लाडली संतान थी। उसे परिवार में सब बहुत प्यार करते थे। उसकी माँ को राधिका पर बहुत विश्वास था कि वह कभी कोई गलत काम नहीं करेगी , जिससे कि उसके माता पिता का नाम खराब हो। राधिका पढ़ाई मे भी बहुत अच्छी थी। कक्षा मे राधिका की कोई ना कोई पोजीशन अवश्य ही आती थी। इस बार उसने काफी मेहनत की थी और उसके पापा ने उसे प्रथम स्थान पर आने पर, साइकिल देने का वादा किया था। इसी लालच मे वह और अधिक पढ़ रही थी। एक दिन उसकी बुआ घर पर मिलने आईं । उनकी बेटी पिछले वर्ष आठवी कक्षा मे पढ़ती थी। माँ ने राधिका की बुआ से पूछा कि "-अनवी कौन सी कक्षा मे आ गई है?"बुआ बोली-" वह आठवीं कक्षा ही मे है। माँ ने आश्चर्य से फिर पूछा-" पर वह तो पिछले वर्ष थी आठवी कक्षा में? .....बुआ उदास होकर बोली -" भाभी, क्या बताऊँ .....?" लंबी सांस लेकर बोली-"उसे परीक्षा मे नकल करते हुए मैडम ने देख लिया था। वहीं उसका साल खराब हो गया।" खैर आप बताओ ? राधिका कैसी है और हाँ उसे भी समझा देना कि परीक्षा मे नकल करने की कोशिश ना करे।" 

माँ बोली -" हमारी राधिका ऐसी बिल्कुल भी नहीं है। हमे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है।" राधिका अपने कमरे मे बैठी सब सुन रही थी।

तीन चार दिन बाद राधिका की वार्षिक परीक्षा थी। प्रथम पेपर विज्ञान विषय का था। उसे विज्ञान मे 'केमिस्ट्री इक्वेशन' ठीक से याद नहीं होते थे। अब राधिका विचलित हो गई कि क्या करे अगर विज्ञान मे अच्छे नंबर नहीं आए तो वह कक्षा मे पीछे रह जायेगी और प्रथम नहीं आ पायेगी। फिर उसे साइकिल भी नहीं मिलेगी। अभी वह विचार कर ही रही थी कि बुआ की बेटी का आइडिया उसके मस्तिष्क मे छलांग लगाने लगा। उसने विचार किया कि वह एक छोटी सी पर्ची पर इक्वेशन लिखकर ले जायेगी और अवसर मिलते ही नकल करने के बाद पर्ची को चुपके से डस्टबिन मे डाल देगी। उसने शीघ्रता से यह काम किया और सारा पेपर दोहराने के बाद सोने की तैयारी करने लगी। तभी उसकी माँ कमरे मे आई और राधिका को दूध का गिलास देते हुए बोली -" बेटी, मुझे और तुम्हारे पापा को तुम से बहुत उम्मीदें है। ध्यान रखना कि कहीं भी इधर -उधर मत देखना अपने पेपर पर ध्यान देना ।" राधिका दूध पीते पीते माँ की बातें सुनती जा रही थी। माँ कमरे से चली गई। राधिका ने सोचा अगर बुआ की बेटी को मैडम ने पकड़ लिया था तो यह आवश्यक तो नहीं कि मुझे भी मैडम पकड़ लें। वह निश्चित होकर सो गई। अगले दिन राधिका पेपर देने स्कूल चली गई। पेपर शुरू होने मे अभी थोड़ा समय शेष था। चैकिंग इंचार्ज कमरे मे आए और सब विधार्थियों से कहने लगे-" अगर किसी के पास नकल करने की कोई पर्ची हो तो कृप्या मुझे पकड़ा दे अन्यथा यदि बाद मे किसी के पास से निकली तो दंड के रुप मे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।" राधिका की टीचर भी साथ ही मे खड़ी थी। उन्होने कहा -" राधिका को छोड़कर सबकी चैंकिग कर लीजिए । मुझे कक्षा मे राधिका पर बहुत विश्वास है।" चैंकिग इंचार्ज सबकी चैंकिग करके चली गई। राधिका को अपने ऊपर बहुत शर्म आ रही थी कि उसने नकल करने के विषय मे सोचा भी कैसे? उसकी टीचर उस पर इतना विश्वास करती हैं अगर यह पर्ची उन्हें मिल गई तो उनका राधिका के प्रति विश्वास टूट जायेगा। माता पिता जिन्होंने राधिका के लिए सपने देखें हैं सब व्यर्थ चले जायेगे। राधिका कक्षा मे उपस्थित अपनी टीचर के पास जाकर रोने लगी। टीचर ने कारण पूछा तो राधिका ने सब सच - सच बता दिया। टीचर ने राधिका की पीठ बड़े प्यार से थपथपाई और उसकी सब विधार्थियों के समक्ष प्रशंसा की। अब राधिका ने अपने सभी पेपर साफ मन से और पूरी लगन के साथ दिए। कुछ समय पश्चात रिजल्ट आ गया। राधिका द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुई। उसे स्कूल से तो प्रशस्ति पत्र प्राप्त हो गया परन्तु उसे अफसोस भी था कि वह अपने पापा से किया वादा पूरा नहीं कर पाई। वह बस से उतर कर धीरे धीरे कदमों से घर में प्रवेश कर रही थी। तभी उसने देखा कोई बड़ी सी चीज़ लाल रंग के चमकीले कागज़ में लिपटी उसके कमरे मे रखी हुई है। वह आश्चर्य से उसे देखने लगी। पापा मम्मी आए और बोले -" बेटा , यह आपका गिफ्ट है।"......" पर पापा"

राधिका इसके आगे कुछ कहती मम्मी ने उसे गले लगा कर कहा कि उसकी टीचर ने सब कुछ बता दिया था।

"हमें गर्व है अपनी बेटी पर जिसने हमारे सम्मान पर कोई आँच नहीं आने दी।" राधिका साइकिल पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उसको इस बात की अधिक खुशी थी कि उसने किसी का विश्वास नहीं तोड़ा। आज राधिका और उसके परिवार के सभी सदस्य बहुत खुश थे। 


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