" इंसानियत"
" इंसानियत"
दादा जी प्रतिदिन सुबह सैर करने जाते थे। एक दिन रविवार की छुट्टी होने के कारण उनके पोते मोनू ने ज़िद की कि "दादू ,आज मैं भी आपके साथ चलूगाँ।" दादू ने पहले मना किया पर जब मोनू नहीं माना वह उसे अपने साथ ले गए। मार्ग में कुछ लोग लड़ रहे थे। एक कह रहा था कि तू मुसलमान है तू अच्छा नहीं है , दूसरा कह रहा था कि तू हिंदू है तेरी सोच घटिया है। सब लोग एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। तेरा धर्म गंदा , मेरा अच्छा है। दादाजी जब उस स्थान से थोड़ा आगे बढ़े तो मोनू ने पूछा-" दादा जी, यह धर्म क्या होता है?" अचानक से यह प्रश्न मोनू के मुँह से सुनकर दादा जी आश्चर्य में पड़ गए फिर कुछ सोचकर बोले:- " बेटा जीवन मे अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन करने को और जो कार्य दूसरो की भलाई के लिए किया जाए वह "धर्म" कहलाता है। " फिर बोले -" संसार मे दूसरों को सम्मान देना, सबको प्रेम करना, दीन दुखियों की सहायता करना, असत्य नहीं बोलना , हेरा- फेरी ,चोरी, डकैती, लूट पाट नहीं करना संसार का सबसे बड़ा धर्म होता है।" कहकर वह आगे एक बैंच पर बैठ गए। मोनू ने वहाँ लगे फूलों के पेड़ो और पौधों को देखा। "दादाजी क्या मैं यह फूल तोड़ सकता हूँ?" दादाजी ने इशारे से मना कर दिया और वहाँ लगे बाकी पेड़ पत्तियों को देखने लगे। मोनू ने फिर प्रश्न पूछा-" दादा जी जैसे मेरा नाम है वैसे ही सबसे बड़े धर्म का नाम क्या है?" दादा जी ने बड़े प्रेम भाव से मोनू के सिर पर हाथ फेरा । उसे अपनी गोद में बैठाकर उसके गालों पर प्यार से सहलाते हुए कहा-" हाँ बेटा, सबसे बड़ा धर्म है "इंसानियत" का धर्म।" मोनू दादा जी की गोद से झटपट नीचे उतर कर बोला-" जब मैं बड़ा हो जाऊगाँ तो मैं इसी धर्म को अपनाऊगाँ।" कहकर वह वहाँ लगे छोटे छोटे पौधों के साथ खेलने लगा। दादाजी ने मोनू के चेहरे पर कभी ना समाप्त होने वाली शांति और खुशी महसूस की, कि आज मोनू को उसके सवाल का सही जवाब मिल गया था। दादी जी खुश थे कि उन्होंने अपने पोते को धर्म के सही रुप की जानकारी दी. वे दोनों घर की ओर लौट गए.