Shahana Parveen

Inspirational

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Shahana Parveen

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कोरोना और लॉकडाऊन

कोरोना और लॉकडाऊन

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यह किस्सा लॉकडाउन के दिनों का है। कोरोना काल चल रहा था। सब एक दूसरे से मिलना तो दूर, बात तक करना पसंद नहीं कर रहे थे। लोग अपना अधिकतर समय घरों में ही व्यतीत करते थे। थाली बजाने और दीये जलाने के लिए ही निकले होंगे ...शायद बाहर।

एक दिन मैनें देखा कि दोपहर के समय मुँह पर कपड़ा बांधे और हाथों में रबर के दस्ताने पहने एक महिला घर -घर जाकर कुछ कहना चाह रही है। पर लोग उसकी बात नहीं सुन रहे।

सब उसे दूर से ही दुत्कार रहे थे। सबको डर था कि कहीं कोरोना ना हो जाए।

अचानक एक वृद्ध व्यक्ति सड़क पर आए और उस महिला से बात की। महिला रोने लगी और नीचे बैठ गई ।

सब अपनी बालकनी और खिड़कियों से देख रहे थे। पूछे जाने पर महिला ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनका काम बंद हो गया है और खाने को एक वक्त का भी भोजन नहीं है। घर में तीन छोटे बच्चे हैं। पति की मृत्यु हो चुकी है। वह पास ही की बस्ती में रहती है। उन वृद्ध व्यक्ति के कहने पर बस्ती में जाकर सच्चाई का पता लगाया गया सब सत्य निकला।

फिर धीरे धीरे लोग एकत्र हुए और उस महिला को भोजन, राशन, कुछ पैसे देकर विदा किया।

जाते जाते वह महिला ऐसे शब्द बोलकर गई जिससे सब के मन द्रवित हो उठे।

महिला ने कहा,-" साब, लॉकडाउन केवल बीमारी से बचने के लिए हुआ है। आपस में एक दूसरे का ख्याल रखने से बचने के लिए नहीं।" 

"इस समय हम सबको एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए.... ना कि एक दूसरे से बचकर रहना चाहिए। माना आपस में नहीं मिलना पर एक दूसरे के बारे में खबर तो रख ही सकते हैं।"

सबकी आँखें खुल गई और जिसने भी यह सब देखा उसने दूसरों को भी बताया।

सच है लाकडाउन में शारीरिक दूरी बनाने के लिए कहा गया था ना कि दिलों की दूरी बनाने को।

मन को करो ना कठोर मानव,

करो मदद जो अपने से हो पाए।

ईश्वर की लीला न्यारी- न्यारी,

क्षण भर में क्या से क्या हो जाए।।



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