दिलों की दूरी
दिलों की दूरी
यह लाकडाउन के दिनो ही की बात है। कोरोना काल चल रहा था। सब एक दूसरे से मिलना तो दूर बात तक करना पसंद नहीं कर रहे थे। लोग अपना अधिकतर समय घरों मे ही व्यतीत करते थे। थाली बजाने और दियें जलाने के लिए ही निकले होगें ...शायद बाहर।।
एक दिन मैने देखा कि दोपहर के समय मुँह पर कपड़ा बांधे और हाथो मे रबर के दस्ताने पहने एक महिला घर घर जाकर कुछ कह रही थी। पर लोग उसकी बात नहीं सुन रहे थे।अचानक एक वृद्ध व्यक्ति सड़क पर आए और उस महिला से बात की। महिला रोने लगी और नीचे बैठ गई ।
सब अपनी बालकनी और खिड़कियों से देख रहे थे। पूछे जाने पर महिला ने बताया कि लाकडाउन के कारण उनका काम बंद हो गया है और खाने को एक वक्त का भोजन भी नहीं है। घर मे तीन छोटे बच्चे हैं पति की मृत्यु हो चुकी है। वह पास ही की बस्ती मे रहती है। सच्चाई का पता लगाया गया सब सत्य निकला।
फिर धीरे धीरे लोग एकत्र हुए और उस महिला को भोजन, राशन, कुछ पैसे देकर विदा किया।जाते जाते वह महिला ऐसे शब्द बोलकर गई जिससे सब के मन द्रवित हो उठे।
महिला ने कहा,-" साब, लाकडाउन केवल बीमारी से बचने के लिए हुआ है। आपस मे एक दूसरे का ख्याल रखने से बचने के लिए नहीं।इस समय हम सबको एक दूसरे का सहारा बनना चाहिए ना कि एक दूसरे से बचकर रहना चाहिए। माना आपस मे नही मिलना पर एक दूसरे के बारे मे खबर अवश्य रखो।"
सबकी आँखे खुल गई और जिसने भी यह सब देखा उसने आपस मे सबको बताया।सच है लाकडाउन मे शारीरिक दूरी बनाने के लिए कहा गया है दिलों की दूरी नहीं बनानी है।
