यादों में बसी हो मम्मी जी

यादों में बसी हो मम्मी जी

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याद है मुझको वह दिन, जब मैं शादी करके ससुराल आई। सबकुछ अनजान सा था, मेहमान चले गए। मैं ससुराल में ही रह रही थी। इनको (आपके बेटे को) गुड़गांव जाना था और वो अपनी नौकरी के लिए चले गए। सब कुछ अंजाना सा और मैं सारे दिन रोती रहती थी, मुझे घर की बहुत याद आती थी। मैं खाना बनाती पर बहुत बार में खाना नहीं खाती थी, आँसू रुकने का नाम नहीं लेते थे तो आप मुझे ऐसे सीने से लगा लेती थी। क्यूँ उदास है ? हम है, आप ने मम्मी की कमी महसूस नहीं होने दी थी और मैंने भी आपको और पापा जी को दिल से अपनाया। धीरे-धीरे हम एक दूसरे को समझने लगे और छोटी-छोटी बातों पर हंसने लगते। समय कैसे बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था। 

कुछ दिनों के लिए, नंद और भाभी भी आती और हम मिलजुल कर काम करते, बाजार जाते हैं और एक साथ सीरियल देखते। कितना अच्छा समय बीत रहा था।ससुराल, ससुराल नहीं लगने लगी थी अपना घर लगने लगा था। मैं और आप ऐसे ही जब पूजा करने साथ बैठे और एक शब्द भी इधर-उधर आरती में हो जाता तो बहुत हँसी आती और फिर हम उसी आरती को दोबारा पढ़ा करते थे।

आप और पापा जी हमेशा मेरे खाना बनाने की तारीफ करा करते। मैं कुछ भी करती है आपको सब अच्छा लगता था। सारे रिश्तेदार मेरी तारीफ करते तो आप फूली न समाती। वह प्यार मिला और आपने भी बहू को बेटी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब दादी सास का ऑपरेशन हुआ और मैंने उनका ध्यान रखा तो आप ढेरों आशीर्वाद दे डालती और दादी सास, सब अम्मा जी कहते थे, कितनी खुश हो जाती थी वो मेरी छोटी छोटी बातों पर। वो मुझे अपने पास बैठा कर, मेरे हाथों की चूड़ियां इधर-उधर करती रहती और कहती कि तेरे हाथों में चूड़ियां बहुत सुंदर लगती हैं।

और हम उनसे पुरानी बातें सुना करते थे। मेरे दो बेटे हो गये, समय पता ही नहीं चला ‌वो दोनों आपको और पापा जी को कितना प्यार करा करते थे और पापा जी हमेशा मजाक करते, पूजा पाठ में लगी रहेगी या घर में बच्चों की बातें भी सुनेगी और आप जल्दी-जल्दी पूजा करती है। पापा जी आप से हँसी मजाक करते। 

खूब ध्यान रखते थे। ऐसा ही घर का माहौल मेरे मायके में भी था तो और अच्छा लगता। हँसी खुशी से सुबह से रात हो जाती पता ही नहीं चलता था। सात आठ महीने बाद मैं गुड़गांव चली गई और आप दो-तीन दिन पहले से ही रोने लग जाती थी आप जैसे कोई मां अपनी बेटी की विदा होने पर रोती है। आपके आंसू रुकते ही नहीं थे। अम्मा जी भी कितना रोई थीं याद है मुझको।

और जब हम दो-तीन महीने में किसी त्योहार पर घर आया करते तो आप मेरी पसंद की हर चीज बना कर रखती और जब मैं कहती है आपने इतना कुछ क्यों बना दिया ? मैं खुद कर लेती, तो आप कहती, कल से तुम मुझे कहां रसोई में जाने देगी इसलिए पर शायद भगवान को यह हँसी खुशी मंजूर नहीं थी।

खुशी का माहौल में ना जाने किसकी नजर लग गई और आपकी तबीयत खराब हुई, शुगर की वजह से, आप बेहद कमजोर हो गई और एक दिन जब डॉक्टर से चेकअप कराया तो कैंसर ने जकड़ लिया था। आपको आंतों का कैंसर था ।हमने सब कुछ जी जान से आपके ना जाने कितने ऑपरेशन करा दिया। सही हो जाये किसी तरह। पेट में एक के बाद दो और दो के बाद तीन बैग लग गए थे। जब मैं हॉस्पिटल में रहती है तभी आपको मैं चुप अच्छी नहीं लगती थी। आप कहती, "हमेशा बोलती है तू चुप क्यों है अच्छी नहीं लग रही। कुछ बात कर और आप कहती चली गई। मुझे मेरे बच्चों के लिए जीना है। बस बचने की आस करते करते, आप हमें छोड़ कर चली गई।अब पापा जी हम सबके साथ रहते हैं । पर उन्हे उदास देख कर आँखें भर आती है। सब कुछ है पर आप नहीं हो। ना ससुराल जाने पर कोई इंतजार करता है, अब वो बस मकान है जो पहले घर था। आपकी यादें हैं तो साल में एक दो बार जाना होता है। किसी ने सही कहा है किसी के जाने से जिंदगी नहीं रूकती पर वो जगह भी कभी नहीं भरती, आप यादों में बसी हो मम्मी जी।


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