टूटी छत
टूटी छत
"पता नहीं ,वो छत से टपकता पानी कब बंद होगा। कितनी बार सही कराया पर सही नहीं होता हर साल मानसून में टपकने लगता है" सुखिया की तरफ देखते हुए उसकी पत्नी रामवती ने कहा। सुखिया बस हमम ..कहकर चुप था। क्या कहे! इतने रूपये तो थे नहीं की पक्का सही करा ले। उधार भी बहुत हो गया था । टपटप की आवाज मन में बस गयी है बिना बरसात भी गूंजती है कानो में, रामवती बडबडाती रही पर सुखिया को कुछ पता नहीं ,उसे तो आगे की चिंता खाए जा रही थी।बेटे को शहर पढाई के रूपये देने का समय आ रहा था ।
सुखिया बाहर जाने लगा । "कहाँ चले ?"
" मुन्ना के फीस के पैसे का इंतजाम कर आऊँ।"
"अरे ! रोटी तो खाके जाओ। कब तक तुम्हारी राह देखूंगी ? मै भी खा लूंगी।"
"अच्छा ला जल्दी दे। तू भी खा ले।" सुखिया खाना खा कर तुरंत निकल गया सरपंच जी के पास ,उनके कहने पर ही मुन्ना को शहर भेजा था।
" कैसे आना हुआ सुखिया ?सब खैरियत !"
" जी सरपंच जी बस मुन्ना की फीस का बखत आ गया ।समझ नहीं आ रहा कैसे कहुँ ?"
"रूपये चाहिए?" सरपंच जी मन के भावो को पढ़ गये।
" हाँ जी दुगना समय खेतो में काम करके चुका दूंगा । बस मुन्ना की पढाई नहीं रूके।"
"हाँ, हाँ, ये ले आखिरी साल है इंजीनियरिंग का। कमा कर दे देगा। तेरा भविष्य सुधर जाएगा । बुढापा आराम से गुजरेगा ,सारी जिंदगी मेंहनत की है तूने।"
"जमा पूंजी बच्चे ही होते हैं "सरपंच जी आपने बताया था ।नहीं तो मै खेतो में ही लगा रहा था मजदूरी के लिए।"
"हाँ वो पढ़ना चाहता था इसिलिए तो !" सरपंच जी बोले। "फोन आया था मुन्ना का तेरे खुश हो जा । हफ्ते भर के लिऐ आ रहा है।"
"अच्छा क्या कहा ?" सुखिया खुशी से हाथ जोड़ता बोला।
"यही की उसे नौकरी भी मिल गयी है । आधा दिन कालेज ,आधा दिन काम करेगा सब मेरा कर्जा उतारेगा "
" नहीं नहीं सरपंच जी उसे कहिये की केवल पढ़ाई करे । कुछ साल और सही। हमें कोई परेशानी ना है।"
"अरे सुखिया! कोई बात नहीं। उसे जिम्मेदारी उठाने दे । अगले महीने से तुझसे पैसे लेगा नहीं ,देगा तुझे।" सुखिया की आँखो में आँसु थे। सरपंच जी "आपका अहसान नहीं चुका सकता रूपये लेते हुए सुखिया बोला।"
" देख सुखिया मेरे दोनो बच्चे शहर गये कमाने इंजीनियरिंग करके अपने ही खेतों को देख रहे हैं। चौगुनी फसल हुई नयी टैक्नोलॉजी से। पढ़ाई से बहुत फर्क पड़ता है । मै चाहता हूँ सबके बच्चे पढ़कर गाँव का नाम रोशन करें,अपने माता पिता को गरीबी से बाहर निकालें।"
" बस ये आप ही सोच सकते हो सरपंच जी बडा.दिल है आपका।" सुखिया हाथ जोड़ता हुआ घर की तरफ चल दिया।रामवती बेटे के आने की खुशी मेंं फूली नहीं समा रहा था।
अगले दिन मुन्ना (भरत)आ गया ।
"मुन्ना मेरे बेटे आ गया साल हो गया तुझे देखे।" रामवती गले से लगाकर बोली मुन्ना को।
"हाँ अम्मा छुट्टियां थीं चार दिन की ।"
" सुखिया बोला अब गले से हटाकर चाय भी पिला दे। सीमा की शादी के लड्डु भी दे दे।"
" अच्छा रामदास चाचा की बेटी सीमा। शादी हो गयी उसकी"
" हाँ परसो थी।सुखिया बोला।"
" बाबा अब माँ के कानो का इलाज करा दूँगा।" मुन्ना हँसता हुआ बोला "ये टपटप की आवाज आपके कानोमें जो आती रहती है।"
सब हँसने लगे।
"शैतान मजाक बनाता है रामवती कान पकड़ती बोली।"
" नहीं बाबा मैने सोच लिया था सबसे पहली तनख्वाह से टूटी छत सही करानी है।"
बेटे के सिर पर आर्शीवाद का हाथ रखता आँसु पोछता सुखिया बाहर निकल गया। टूटी छत ना जाने कितने सालों से टपक रही थी ।पर आज मुन्ना ने दिल की मरम्मत कर दी ,जो हमेशा टूटा रहता गरीबी सोचकर ,चिंता से दिलमें दरारे होने लगी थीं , टूट रहा था दिल रोजाना ।खेतों का मजदूर बनाने वाला था मुन्ना को ।आज दिल का मजदूर बनकर दिल पक्का कर दिया मुन्ना ने सुखिया सोच रहा था। दो सुकून भरे शब्द बोल कर कि " बाबा आपको अब कोई चिंता नहीं करनी आपका मुन्ना बड़ा हो गया है ,घर की जिम्मेदारी निभाने वाला ।" ये शब्द कानो में गूंज रहे थे ,ख़ुशी से पैर भी तेज कदम से बढ़ रहे थे ।लग रहा था दुनिया भर को बताँऊ मुन्ना के शब्द। और क्या चाहिए एक पिता को । ऐसे बच्चे समझदार बनें तो सारी जिंदगी टूटी छत के नीचे रह लेगा सुखिया। सोच रहा था अब टूटी छत मरम्मत होने वाली है, टपटप की आवाज नहीं होगी आराम से सोयेगा।