कुछ लोगों की कब बदलेगी सोच?
कुछ लोगों की कब बदलेगी सोच?
"सुनो जी, रीना बहुत बीमार है। सुना है राघव भैय्या ने भी छुट्टी ले रखी है । आप चलोगे क्या ?शाम को मैंरे साथ, मैंरी बहुत अच्छी सहेली है आपको पता ही है। वैसे तो मुझे जाना है खाना देने उसे, पर आप चलोगे तो अच्छा लगेगा।"
रिति ने अपने पति रोहन से पूछा। "ठीक है शाम को तैयार हो जाना चलेंगे" रोहन ने रीति से कहा।
श्याम को दोनों रीना के घर पहुंचे।रीना के पति ने दरवाजा खोला।आइये आइये बैठिये ।
रोहन ने पूछा,"कैसी तबीयत है भाभी की?" "अब ठीक है कमजोरी बहुत आ गई है ।वायरल की वजह से पूरा शरीर उठ नहींं रहा ।" और चेयर आगे करते हुए उसने रीना के बेड के पास ही दोनो को बैठने को कहा और राघव अपने हाथ से जूस पिलाने लगा । रोहन ने पूछा अ"पने आप नहींं ले सकती क्या?", " नहींं ,अभी बहुत कमजोरी है। और रिति भाभी आपका बहुत शुक्रिया चार पाँच दिन से आप ही खाना भेज देती हैं।" राघव ने रीति को कहा।
"अरे !इसमैं क्या बहुत बड़ी बात है!कोई भी होता तो वो करता ऐसा ।वैसे भी टाइफाइड के कारण हास्पिटल मैं थी तो आपका भी कितना काम बढ़ गया था। बच्चो को ध्यान हास्पिटल भी जाना। फर्ज है मैंरा।", "जी शुक्रिया बस अब कुछ महीनो के लिए खाना बनाने वाली का इंतजाम भी कर दिया । कोई अच्छा कुक नहीं मिल रहा था। अब आप खाना नहीं भेजिएगा।", "अच्छा भैय्या कोई और परेशानी हो तो बेझिझक बताइयेगा" रिति ने कहा "जी जरूर।"
यह कहकर वह हाल-चाल पूछ कर, थोड़ी देर बैठ कर अपने घर आ गए । रोहन राघव की रिती से बुराई करने लगा "कैसे रीना भाभी को हाथ से जूस पिला रहा था हमारे सामने । ये नहीं, उन्हे खूद पीने दे,छोटी बच्ची थोड़े ही है।" रीति बोली "बहुत कमजोरी मैं हाथ काँपते हैं। अभी चल भी नहीं पाती ।"
" अरे बेकार की बातें हैं ,ये राघव तो रीना भाभी के पल्लू से बंधा रहता है शायद।" रीति और रोहन मैं बहुत बहस हुई पर रोहन तो समझने को तैयार नहीं था। उसे तो पति का अंहकार था की पत्नी के लिए ये सब क्यूँ करना ।
रीना ने सही होने के बाद शुक्रिया कहने के लिए घर बुलाया रिति के परिवार कोबीमारी मैं रिती ने बहुत ध्यान रखा था।राघव रसोई मैं रीना की मदमद करता रहा था कभी खाना खिलान
े मैं।घर आकर रीति ने कहा "देखो भैय्या ने कितनी मदद की जबकि अब रीना बीमार नहीं।"
रोहित गुस्से से बोला "हाँ पहली बार मैं ही लगा था जोरू का गुलाम।वो कह भी रहा था की हमैंशा मदद करता हूँ।रीना भाभी कह भी रही थी ये बीमारी मैं हर किसी का ध्यान रखते है मायके वाले हो तब भी।"रोहन ने तेजी से,चिढचिढाहट मैं बोलते हुए कहा , हर बात पर पत्नी की हाँ की ,और हर बात मैं अपने ससुराल की तारिफ। गुलामी ही करता रहता है।
"कैसी बात करते हो रोहन ?पहली बार उसे कितनी कमजोरी थी हास्पिटल से आई थी और अगर मदद की भी तो और कौन करेगा?अपने घर परिवार की भी तो तारिफ कर रहे थे! रीना के मायके की तो गलत लगी आपको। आप तो मैंरे मम्मी पापा के बीमार होने पर भी ध्यान नहीं रखते कि एक फोन कर लूँ!आपकी नजर मैं पत्नी की, पत्नी की परिवार का ध्यान रखना जोरू का गुलाम हो गया। और पत्नी जो पति और उसके परिवार वालो के लिए करती है वो फर्ज!"
"तो मै तारीफ ही करूंगी की वो कितने अच्छे है।" ," ज्यादा बाते ना बनाओ रिति ,कभी तुम मुझसे ये उम्मीद करती हो तो माफ करना। मै कभी जोरू का गुलाम नहीं बनने वाला।"
" तुमसे कभी उम्मीद भी नहीं है रोहन।जो पत्नी की परेशानियों को समझे।मैने अपनी बीमारी मैं भी कभी तुम्हे बच्चो को सम्भालते नहीं देखा । कभी मैंहमान आए तो रसोई मैं आते सहायता करते तो कभी भी नहीं तुम्हे कोई नहीं समझा सकता रोहन। तुम्हारी सोच अभी सीमित दायरे मैं है।"
"अच्छा मैंरी सोच इतनी बेकार नहींं कि पत्नी का काम खुद करूँ।औरत इसिलिए बनी है। लडके वाले कभी नहीं झुकते , लड़की के परिवार वाले ही झुकना पडता है ।हम क्यूँ फोन करे उन्हे? उन्हे ही करना होगा हमैं। "मै दामाद हूँ।"
रिती का गुस्सा अंदर ही अंदर उबल रहा था पर बात बढ़ेगी इसलिए लिऐ वहाँ से कमरे मैं चली आई पर आज उसे बहुत छोटी सोच लग रही थी रोहन की।
ये बहुत घरों की कहानी है जहाँ पति पत्नी की भावनाओं को नहीं समझते या मदद करना अपनी बेइज्जती समझते हैं ।एक कप चाय बनाने मैं लगता है की ये उनका नहीं उनकी पत्नी का काम है। पता नहीं कब बदेलेगी ये सोच?