यादों के साये

यादों के साये

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डोर बेल बजी। थके कदमो से नलिनी ने उठ कर देखा। रोज की तरह दूध वाला आया था। आज देखा तो उसका पंद्रह साल का लड़का दूध देने आया था। एक चिंता की लकीर उस मासूम चहरे पर साफ झलक रही थी। नलिनी आखिर पूछ ही बैठी।"क्या बात है। आज तुम्हारे पिताजी नही आये। " वो। "मैडम कल रात अचानक पाप की तबियत खराब हो गई हैं। वह अस्पताल में भर्ती हैं। अब जब तक पापा ठीक नही हो जाते रोज में ही दूध देने आऊँगा। कहकर वह दूध देने लगा। नलिनी के शरीर मे एक अजीब सी उदासी की लहर दौड़ गई वह गहरी सांस भरकर अन्दर आ गई। अकेले पन का नाग रह-रहकर उन्हें डस रहा था। वह अपने पुराने दिनों याद कर अक्सर उदास रहती। नलिनी ने दूध गैस पर रख कर चाय बनाकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। खिडकी से आते ठंडे झरोखों को अंतर्मन में महसूस करते हुये अतीत के साये में कही खो सी गई थी। उन्हें वो दिन याद आने लगे जब अस्पताल के चक्कर लगाकर नरेन्द्र कभी थकते नही थे। नलिनी की हँसी से घर हमेशा खिलखिलाहट से भरा रहता जैसे कल ही कि बात हो नरेंद्र जैसे ही अस्पताल से घर आये। तो उनका उतरा चेहरा देखकर नलिनी घबरा गई। रिपोर्ट हाथ मे पकड़े नरेंद्र निस्तेज होकर सोफे पर बैठ गये। उनकी सांसो को बेग इतना तेज था। मानो वह अभी-अभी मीलों दौड़कर आ रहे हो। नलिनी ने पानी का गिलास देते हुए पूछा।"क्या बात है?। क्या लिखा है रिपोर्ट में। सब नॉर्मल ही होगा। तुम भी न ?

नही नलिनी कुछ भी नॉर्मल नही है। "क्या कहाँ डॉ ने। रिपोर्ट क्या कहती हैं। "कहो न प्लीज़ या यूही "थोड़ा दम तो लेने दो कहाँ भागा जा रहा हूं। निस्तेज सी सांस छोड़ते हुए नरेंद्र ने कहा। नलिनी क्या तुम्हारा दर्द बढ़ता जा रहा है ? "नलिनी चहकते हुए नही तो। आप यू इस कदर क्यो पूछ रहे है लिफाफे से रिपोर्ट निकाल कर टेबल पर पड़े चश्मे की धूल पोछते हुए नरेंद्र रिपोर्ट को ध्यान से देखकर उदास आँखों से नलिनी को देखकर कहते है। नलिनी तुम्हें ब्रेस्ट कैंसर है। ओर जल्दी ही इसे रिमूव करवाना होगा। अन्यथा पूरे शरीर में इसके बेक्टेरिया फैलने के चांस हैं। "क्या ?

नलिनी के चहरे पर आई चिंता की लकीरे साफ बयां कर रही थी। कि वह आपने लिए चिंतित नही है। उम्र का पड़ाव कुछ इस कदर उनकी परीक्षा ले रहा था। नरेंद्र को हार्ड प्रॉब्लम थी। पिछले साल ही ऑपरेशन करवाया था। उनको पेसमेकर लगवाया था। डॉ ने ज्यादा एक्जॉशन करने को मना किया था। ऊपर से खान-पान का परहेज भी चल रहा था। बड़े मुश्किलो से तो वह अपने आप को योगा वॉक के जरिये स्वस्थ रखना चाहती थी। ताकि नरेंद्र की देखभाल अच्छे से हो सके। विनय तो आज से सात साल पहले ही लंदन में सैट हो गया था। वाट्सएप और वीडियो कॉल के जरिये क्या यहां की समस्याएं हल हो सकती है। उम्र के ढलते दोनों के शरीर बीमार हो गये। यही सोचकर नलिनी वही कुर्सी पर जड़ हो गई। दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। कुछ देर के लिए यू ही मौन ने अपना आतंक जमा लिया था। कुछ पल में नरेंद्र ने ही मौन तोड़ा। "इस तरह घबराकर काम नही चलेगा नलिनी हमे अपने बचे हुए क्षणो को खुद ही सम्भालना होगा। में कल ही तुम्हारे ऑपरेशन करने की बात कर आया हूं। आज ही सारे काम निपटालो। मेने ग्रेजुयटी मे से पैसे भी निकाल लिए है। खर्चे का कुछ कहा नही जा सकता। हांफते-हांफते एक ही साँस में नरेंद्र और न जाने क्या-क्या कह गये नलिनी को कुछ सुनाई ही नही दिया। नलिनी रात होने का इंतजार करने लगी उसे विनय से बात करनी थी। नलिनी को उदास देखकर नरेंद्र ने वहाँ पड़ी एक कैसेट लगा दी। गीत बज रहा था। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन अचानक उन्हें लगा कि इस गीत को सुनकर नलिनी और परेशान हो जायेगी तभी वहां पड़ी एक नई फिल्म की कैसेट उसमे डाली तो गाना बज उठा। ओ मेरी छम्मक छल्लो गाना सुनते ही नलिनी के चहरे पर स्मित मुस्कान उभर आई। विनय को जब पता चला उसने कहां। "पापा के ईलाज के लिए अभी पिछले साल ही तो बीस लाख के आस-पास खर्चा हो चुका है। और अब माँ की बीमारी सुनकर वह कुछ ज्यादा न बोल सका।

"बोला माँ आप खर्चा बता दो,में भेज दूँगा। नरेंद्र पास बैठे उसकी बातें सुन रहे थे। रिश्तो से बढ़कर तो पैसा है। यदि पैसा नही होता हो शायद आज में जीवित ही ना होता। कुछ देर बात कर नलिनी ने राहत की सांस ली। नलिनी का ऑपरेशन सक्सेस हुआ। मगर नरेंद्र की इस उम्र में अकेले ही भागदौड़ ज्यादा हो चुकी थी। जब रुम में शिफ्ट किया तो नलिनी से ज्यादा नरेंद्र ही थके लग रहे थे। नर्स ने आकर कहां की बाबूजी अब घबराने की कोई बात नही। आपके साथ कोई है। क्या। कुछ दवाऐ मंगवानी है। ये दवाएं इमरजेंसी हैं। प्लीज जल्दी ले आइये। नरेंद्र की शारीरिक क्षमता भी अब दम तोड़ चुकी थी। गहरी सांस लेकर वह खाँसने लगे। तभी वहाँ का वार्ड बाय आया। उसे नरेंद्र के हालत पर तरसआया। बोला।"बाबूजी आप माता जी के पास बैठिये में आपको दवाई लाकर देता हूं। मगर यहाँ किसी को कहियेगा मत। हमे ड्यूटी पर दूसरे काम करने की अनुमति नही है। नरेंद्र संतोष की सांस लेकर नलिनी के पास बैठे रहे। नलिनी ठीक हो चुकी थी। उन्हें हर पंद्रह दिनों में कीमो के लिए जाना पड़ता था। उसके बाद उन्हें दो-चार दिनों की कमजोरी का सामना करना पड़ता था। नरेंद्र ने उनकी देखभाल में कोई कमी नही छोड़ी थी।

अचानक पंद्रह दिनों के बाद रात को नरेंद्र की तबियत बिगड़ गई। वह नलिनी का साथ छोड़ गये। नलिनी इस सदमे को सहन नही कर पा रही थी। धीरे-धीरे अकेलेपन से उसकी हालत गिर रही थी। विनय ने आकर अपना पुत्र धर्म निभा दिया था। कुछ महीनों के लिए माँ को साथ ले गया था। लेकिन नलिनी को वहाँ का हवा-पानी रास नही आ रहा था। एक कैदी की भ्रांति जीवन व्यतीत हो रहा था। वह वापस अपने घर आ गई। उस छोटे से घर मे नरेंद्र के साथ बीते दिनों की यादें उसे बहुत सुकून दे रही थी। उसे प्रतीत हो रहा था। जैसे वह अपनी पुरानी दुनियां में वापस आ गई हो। अकेलेपन ने नलिनी को जीना सीखा दिया था। बेटा अब परिदों की तरहां परदेश उड़ चुका था।

उसके वापस आने की उम्मीद के दिये का तेल अब धीरे-धीरे कम होता जा रहा था। उसने कभी सोचा नही था। कि जिंदगी कभी इस मोड़ पर लाकर अकेला छोड़ देगी। आज वह दूध वाले के बेटे को देख मन मे उपजे विचारों के नन्हे कपोलो को खिलते देख सोच रही थी।काश हमने भी अपने बच्चों को बड़े सपने ना दिखाए होते। लेकिन यह भी सच था। कि बच्चे जब बड़े होकर स्व निर्णय लेने लगते हैं। तो माँ बाप उस घर के किसी स्टोर रूम के दरवाजे की तरह हो जाते है। जो सारा समय बंद रहते है। जरूरत पड़ने पर ही खुलते है। चाय का कप लेकर नलिनी चाय पीने लगी। उसे याद ही नही रहा गैस पर रखा दूध उफन चुका था। उसने जल्दी से गैस बंद किया। अब उसके विचारों का सैलाब भी थम चुका था। कैसेट लगाई तो वही आखरी गीत बज उठा। ओ मेरी छम्मक छल्लो गीत सुन मुस्कुराती बालकनी से आती सुबह की हवा का आनंद लेने लगी। आखिर उसे जीना आ गया था।


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