Lalita Vimee

Romance

4.5  

Lalita Vimee

Romance

यादें

यादें

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आज तुम मुझे बहुत याद आ रहे हो, याद आ रहे हो या मैं तुम्हें याद कर रही हूँ,या फिर मैं तुम्हारे बारे में सोच रही हूँ, सबका अर्थ तो शायद एक ही है।

क्यों सोच रही हूँ मैं तुम्हारे बारे मैं,क्या रिश्ता बचा है हम दोनों के बीच, कुछ भी तो नहीं, फिर क्यों तुम मुझे याद आ रहे हो, शायद इस क्यों का ज़वाब मेरे पास है ही नहीं।

ऐसा नहीं कि जो रास्ते हमने साथ मिल कर तय किये थे, मैं उन पर कभी अकेली चली ही नहीं, चली तो तुम मुझे याद ही नहीं आये, आये बहुत याद आये ,पर कुछ अलग तरह की यादें थी वो,और आज, जब मैं तुम्हें याद कर रही हूँ, ये भी इक अलग तरह की याद है। क्या तुम भी मुझे कभी याद करते हो, जब तुम उन राहों से गुजरते हो,या फिर मैं तुम्हारे लिए एक गुजरा हुआ वक्त बन गई हूँ,ऐसा तो नहीं हो सकता ना।

 कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि तुम्हें मुझ से मोहब्बत नहीं थी , ये सिर्फ एक उम्र का आकर्षण था,क्या ऐसा था,नहीं नहीं ऐसा तो नहीं था, मुझे तो ऐसा किसी लम्हें में भी याद नहीं आता जब मैं बीते लम्हों का सफर तय करती हूँ,माना उस वक्त की अपनी उम्र में लगाव और आकर्षण का फर्क करने में सक्षम न होऊं,पर अब तो अब तो मैं वक्त के क ई पड़ाव जी चुकी हूँ, बहुत लम्बा सफर तय कर चुकी हूं मैं,चलते चलते बहुत जख्मी भी हो चुकी हूँ,कहीं मन सै तो कहीं तन से।

मुझे बहुत चलना पड़ रहा हे,चलना क्या भाग रही हूँ मैं तो, मैं रूकती क्यों नहीं, शायद रूक ही नहीं सकती, पता है मैं क्यों नहीं रूक सकती,तुम्हें कैसे पता होगा, मैं ही बताती हूँ,तुम और मै जीवन की गाड़ी को खीचने वाले दो पहिए थे,तुम तो रूक गए, क्यों रूक गए थे तुम?

 शायद तुम्हें पता ही नहीं, मुझे भी तो नहीं पता तुम क्यों रूक गए थे।मैं भी रूकना चाहती थी,वहीं कहीं तुम्हारे पास ही,पर रूकी हुई मैं ये जीवन रूपी गाड़ी कैसे खीच सकती थी, मुझे तो चलना पड़ा, तुम्हें याद होगा न मैने तुम्हें भु मिन्नतें की थी,संग चलने की, वास्ता भी दिया था,उस मोहब्बत का,जो हमारी थी,पर शायद रूके रूके तुम्हारी यादाशत को जंग लग गया था,तुम मिन्नतों और मोहब्बत के अर्थ ही भूल गए थे।

पहले तो तुम्हें सब याद रहता था, देखो,एक बार जब मुझे बहुत बुखार हो गया था, मैं चारपाई से उठ भी नहीं सकती थी,तब तुमने मुझे पीली दाल के साथ रोटी बना कर खिलाई थी, कच्चा प्याज खाने की मेरी आदत को तुम मेरी बिमारी में भी नहीं भूले थे, वो मोहब्बत ही थी न, जो भी था वो बहुत अच्छा था, बहुत स्नेहिल था, मैने उस मोहब्बत का भी वास्ता दिया था तुम्हें चलने को पर तुम चले ही नहीं, क्यों नहीं चले तुम।

हम बहुत ही तंगी में चल रहे थे, पर पता नहीं क्यों फिर भी तुम मेरे लिए एक सौ रूपए का कुर्ता खरीद कर लाए थे, वो

कुरता मेरे तब भी बहुत कीमती था और आज भी है, तुमनें कहा था कि तूने इसे पहन लिया इसलिए ये सुंदर हो गया, पर तुम ये भूल गए की एक कुरते से तमाम उम्र नहीं कटती, और भी बहुत से ऐसे कुरते जो मेरे पहनने के बाद ही सुंदर लगे,तुम्हें खरीद कर लाने थे, पर तुम्हें तो कुछ भी याद नहीं रहा, ऐसे क्यों हो गए थे तुम बताते क्यों नहीं।

वो सुंदर सा गाँव जो कि शहर के बिल्कुल करीब थाऔर पास ही वीराने में एक बड़ी सी प्यारी और शांत सी झील, वीराना हाँ तब मैं उस जगह को वीराना ही बोलती थी क्योंकि तब मुझे वीराने का अर्थ मालूम नही था, इसका सही अर्थ तो मुझे तब मालूम हूआ है, जब मैने इसे जिया है।

तुमनें उस दिन मुझे उस झील में पैडल वाली नाँव चलाना सिखाया था,मुझे साईकिल चलाना भी नहीं आता था इसलिए मुझे वो पैडल चलाने में दिक्कत आ रही थी,पर तुमनें बड़े प्यार से मुझे वो सब सिखाया था,काश, तुम हमेशां ही ऐसे रहते।

एक बार जब तुम कोई पुरानी गाड़ी खरीद कर लाए थे तुम चाहते थे कि मैं भी गाड़ी चलाऊं,तुमनें मुझे सिखाया भी था, पर मैं कितना डरती थी ना कि मै तो सीखना ही नहीं चाहती थी, तुम्हें याद है ना तुम कैसे बच्चे की तरह बहलाते थे मुझे वो सीखने के लिए।

पर अब, अब मैं गाड़ी भी चलाती हूँ, अच्छी बेखोफ़ गाङी चलाती हूँ, हाँ इस गाड़ी पे वो नाम नहीं है जो तुमने मेरा लिखवाया था न ही वो अहसास हैं।

तुम गर मेरे साथ वो सफ़र तय करते तो ये सफ़र थोड़ा आसान हो जाता शायद, पर तुम तो स्थिर हो गए, शायद तुम नहीं जानते थे कि रूकी हुई चीजों में जंग लग जाता है और गर उनमें साँसें चल रही हों तो सड़ांध मारने लगती है।

तुम नहीं चले, मुझे सरकना पड़ा, क्योंकि रूकना मुनासिब नहीं था, सरकते सरकते मेरी गति रास्तों के हिसाब से बढ़ने लगी,क्योंकि अब चाल ही नहीं रास्ते भी बदल चुके थे।सीधी सपाट, पथरीली सड़कों पर तेज चलने वालों का ही सफ़र कटता है, वरना ये रास्ते खत्म होने का नाम ही नहीं लेते और कूचले जाने का भी भय होता है।

मैं बहुत आगे आ गई थी, तुम कहाँ रह गए मुझे पता ही न चला।मुझे लगा था तुम उठोगे ,चलोगे, मेरे पीछे आकर मुझे पुकारोगे, फिर मै भी रूकूंगी और हम दोनों साथ चलेंगें।

पर किसी आहट या आवाज ने मुझे रोका ही नहीं। मैंने पीछे मुड़कर भी देखा था पर तुम कहीं नहीं थे।

और मैं भी चलती ही गई बिना रूके।।


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