Lalita Vimee

Others

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Lalita Vimee

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राजा

राजा

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दूध जैसा सफेद रंग, स्याह काली बड़ी बड़ी आँखें, आँखों में बहुत प्यारी मासूमियत, लम्बा ऊचा डीलडौल,उसकी आँखों की पुतलियां इस तरह घूमती हैं कि सामने का तो देख ही पाता है बराबर वाली जगहों पर भी उसकी नजरें घूम जाती हैं।सुबह पांच बजे बिना अलार्म के मुझे नींद से जगाने का श्रेय उसी को जाता है।

      ढां ढां की आवाज़, क ई बार तो मुझे लगता कि, नहीं  अभी और सोना चाहिए, ये तो फिर आ जायेगा,परन्तु अगले ही क्षण, मुझे मेरी ममता जगा ही देती, उठकर उसे गुड़ और रोटी देती हूं,उस के माथे को सहलाती हूं,मैं अन्दर आने को मुड़ती ही हूं कि ढां ढां की आवाज फिर से आती है, यानि मुझे साफ करो मां। अच्छा बाबा रुक, सुबह सुबह जैसे तूने बारात में जाना है,मन ही मन बुदबुदाती मैं एक ब्रश लेकर उसकी पीठ और सिर पर फिराती हूं ,अपने लम्बोतरे मुंह को मेरे दरवाजे के चबूतरे पर इस तरह टिका कर खड़ा हो जाता है जैसे वो कोई सांड नहीं , बल्कि बहुत आज्ञा कारी बेटा हो।

 चाय बनाने की सोच ही रही होती हूं कि फिर आवाज लगाता है, यानि अब भूख ज्यादा लगी है। दो गली आगे एक चारे की दुकान है जाते वक्त उस को बोलकर निकलती हूं यहीं खड़ा रहियो राजा मेरे पीछे मत आना, वरना उस गली का सांड लड़ाई कर देगा तेरे साथ, ठीक है ना, मैं जैसे उसका आशवासन चाहती हूँ।

 वो भी शायद मेरी भाषा समझता है मेरे आने तक वहीं खड़ा मिलता है,मुझे आता देखकर दूर से ही अपना सिर इस मुद्रा में हिलाता है जैसे कह रहा हो, मां जल्दी आओ मुझे बहुत भूख लगी है। मैं वहीं चबूतरे पर चारा डाल देती हूं और वो चप चप की आवाज़ से खाना शुरु कर देता है।

मैं अन्दर आकर खाने की तैयारी और अपने कामों में जुट जाती हूं, मुझे भी अपने काम पर जाना होता है,इसलिए सुबह सुबह बहुत जल्दी होती है।

कुछ देर बाद फिर ढां ढां की आवाज़ आती है, मतलब ,"मां मैं जा रहा हूँ"। रसोई से ही आवाज़ देती हूं, "ठीक है, राजा जाओ, खेलो अब।"


"हां हां राजा जाओ, स्टेडियम जाओ, वहां जाकर तैयारी करो फिर स्वर्ण पदक लाकर अपनी मां का नाम रोशन करो।" मेरी बेटी उसके पास जाकर उसे चिढ़ा रही है।


  आवाजें बन्द हो जाती हैं, नौं बज चुके हैं मैं अपना अन्तिम काम अपनी गाड़ी धोने लगती हूं,मेरा ध्यान गाड़ी की सफाई में है पीछे से एक लम्बी साँस की आवाज़ और एक स्पर्श जैसे अचानक से मुझे डरा ही देता है, राजा अपनें मुंह से मेरे कन्धे को स्पर्श कर रहा है, उसकी आँखे जैसे मुझ से पूछ रही हैं ,"तुम तो डर गई मां , मैं तो खेल रहा था तुम्हारे साथ"।

 "राजा अब जाओ मां को काम पर जाना है।"वो फिर ढां बोलता है शायद वो मेरी आवाज के भाव समझता है, शायद हमदोनों ही एक दूसरेके भाव और भाषा समझते हैं। इस भाषा का नाम मुझे नहीं मालूम।।

 एक दिन जैसे ही मैं काम से लोटी, पड़ोस की बच्ची रिया भागती हुई आई,  "आन्टी आपका राजा दूसरी गली के सांड के साथ झगड़ रहा था, वो जीत गया आन्टी, पर उस को बहुत चोट लगी है, बहुत खून आ रहा है सिर से। ये लड़का भी न, मेरा जीना हराम कर रखा है। 

" पर आन्टी वो तो बैल है।"


"हम्म ,चलो तुम ये ताला खोलो , मै उसे ढूंढ कर लाती हूं", मै मुड़ी ही थी कि ढां ढां की आवाज करते हुए जनाब प्रकट हो गये, लहु लुहान राजा  शायद दर्द से बहुत परेशान था।

" शर्म नहीं आती तुझे बदमाशी करते हुए ,बदतमीज उसके तो सींग सीधे है तेरे टेढे, तभी तो इतनी चोट खाकर आया है, समझता क्यों नहीं तूं मेरी बात", मैं शायद अधिक ही भावुक हो गई थी। 

"ममी पहले उसका खून तो रुकवाओ, डाटं बाद में लगा लेना, ये जरूर मानेगा आपकी ये हम थोड़े ही हैं जो सब आप से पूछ कर करते हैं, मना लो न अपने सांड बेटे को।"

   उसकी बातें सुनते सुनते मैंने गुथे आटे में दो दर्द निवारक गोलियां और थोड़ी शक्कर मिला कर ले आयी।

मेरी डांट खाकर राजा की विजेता वाली चिघांड़ विनम्रता वाली ढां में बदल गई थी। जैसे मुझसे माफी मांग रहा हो। 

उसको आटा खिलाने लगी तो दूसरे हाथ में तेल और हल्दी की कटोरी छिपाई हुई थी, राजा शायद मुझ से भी ज्यादा चालाक था, वो समझ गया था कि मां तेल लगायेगी, वो वापिस जाने को मुड़ने लगा, मैने उसे फिर पुचकार लिया,

आजा मेरा बच्चा गुड़ दूगीं तुझे दवाई नहीं लगाऊं गी। 

वो वापिस मुड़ आता है, मैं उसे सहलाती रही, पुचकारती रही, उसके जख्म की मक्खियां उड़ाती रही, उसका ध्यान हटते ही मैने उस पर हल्दी वाला तेल डाल दिया।


हल्दी की जलन से उसने मुझे घूर कर देखा, मां गलत बात धोखे से दवाई लगा दी।। वह मुड़ कर तेज तेज कदमों से चला गया।


"कोई बात नहीं बेटा कल तक बहुत फर्क हो जायेगा तुम्हारे जख्मों में मैं मन ही मन बुद बदा रही थी।" 


  दो दिन हो गये राजा नहीं आया था उसे तलाशने सुबह दूर तक टहल आती थी, बच्चे मजाक कर रहे थे हमारी तरह राजा कोे भी मोबाईल ले दो, फिर वो आपको ढां कर के अपनी लोकेशन बता देगा।


"अरे तुम तो समझदार हो वो बेचारा बैल बुद्धि।"


"अच्छा जी ,उस दिन तो आप कह रही थी, राजा बहुत समझदार है। बेटी हँस रही थी।

मैं मन ही मन राजा को लेकर बहुत परेशान थी,आखिर बच्चा है वो मेरा, तीसरे दिन इतवार की छुट्टी के कारण दोपहर में चन्द क्षण के लिए लेटी ही थी कि नींद आ गई।तभी बेटी ने जगाया, मंमी उठो, तुम्हारा चहेता बेटा आ गया है।"


कौन राजा मै एकदम खड़ी हो गई थी।


"अरे हां वही है तुम्हारा  प्रिय पुत्र ,और बाहर दरवाजे पर सिर झुकाए चुपचाप खड़ा है। चलो अब मिल लो उस से। आंगन में दरवाजे की जालियों के नीचे से दो बड़ी बड़ी आँखें किसी को तलाश रही हैं जैसे, मुझे पता है उन आँखों की जुस्तजू क्या है।" 


दो आँखें मेरी आवाज़ के साथ उपर उठी और फिर नीचे झुक गई।

"ममी अब मत डांटना बेचारा सॉरी बोल रहा है।"

वह मैरे पैरों पर अपने मुंह को रख देता है, मै उसको पुचकारती हूं, उसके माथे फर हाथ फेरती हूं। बेटी उसके लिए गुड़ और चावल ले आयी वो खा रहा है, आँखें इधर उधर निहार रहीं है।

उसे चना बहुत अच्छा लगता है, सप्ताह में एक दिन उसे चना देती हूं।

गली के लोग हमारे स्नेह को पिछले जन्म का रिश्ता बताते हैं, पर मेरा ये मानना है कि जो जन्म याद ही नहीं उसके बारे में बात क्या करनी,फिर आपसी स्नेह को समय के साथ बांध कर पारिभाषित करने की क्या जरुरत है. वर्तमान में जो रिश्ता है वो है। 

मुझे वो पल बहुत ही प्यारे लगते हैं, जब कहीं सड़क पर वो मुझे मिलता है तो मेरे पीछे पीछे घर ही आ जाता है। उसे मेरी गाड़ी के हार्न की भी पहचान है, वह जानता है कि उसका नाम राजा है, रुक कर देखता है कि बोलो,"क्या बात है मैं ही राजा हूँ।"

किसी भी त्यौहार पर वो सुबह और जल्दी आ जाता है, जैसे सबसे पहले शुभकामनाएं वही देगा। एक अजीब सा सुखद रिश्ता है उसके साथ, घर आने पर उसका न दिखना एक रिक्तता का अहसास कराता है। मैं उसको सहलाते हुए जब उससे बातें करती हूं तो मुझे लगता है वो मेरी बातें बड़े ध्यान

से सुन रहा है।  पलकें झपकाकर सिर हिला कर जैसै वो मुझे मौन स्वीकृति भी देता है, क ई बार जब वो मुझे सुनते हुए अपनी आँखें बन्द कर लेता है तो मुझे लगता है ये मेरी समस्या का समाधान सोच रहा है,या फिर मेरे लिए दुआ मांग रहा है।।



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