लालच
लालच
आज काम पर नहीं जाना था,तो देर तक सोती रही, सुबह घूमने भी नहीं गई।माईग्रेन हो रखा है कल रात से दवा खा कर सो गई थी। आठ बजे सो कर उठी हूँ,बाकी सब भी सो रहे हैं अभी।मैने ब्रश करके अपने लिए चाय बना ली थी,नीचे से ऊपर जाने वाली पहली चोड़ी सी सीढ़ी पर अकेले बैठ करचाय पीना मुझे बहुत अच्छा लगता है पर काम की अधिकता के कारण वक्त ही नहीं मिल पाता। मैं उस सीढी़ पर बैठी ही थी,कि घटीं की आवाज सुनाई दी।
आज भी कौन हो सकता है आज तो जनता कफ्र्यू है इतना बड़ा खतरा जो मडंराया हुआ है समस्त संसार के गिर्द, कोरोना के नाम से।दरवाजे के झिरी में से झांक कर देखा तो कामवाली बाई संगीता थी।
मैने थोड़ा सा दरवाजा खोला, "मैने तो तुम्हें आज कहीं भी काम पर जाने को मना किया था और तुम मेरे ही यहाँ चली आई।"
"मैडम तुमनें तो मना किया था पर वो बड़ी कोठी वाली है न वो बोली की आज सबकी छुट्टी है तो थोड़ा झाड़ पोछ करवा दे, दो सौ रूपए हाथ के हाथ दे देगी।"
"पर संगीता आज की छुट्टी कर के तुम खुद और दूसरे लोगों पर एक अहसान कर सकती हो,इस बीमारी के वायरस को पनपने के लिए मानव शरीर नहीं मिलेगा तो वह कुछ समय बाद खत्म हो जायेगा,और गर हम सभी आज के दिन अपने घरों के अदंर रहेगें, गाड़ियां नहीं चलेंगी तो हमारे शहर का वातावरण में यानि की हवा में अच्छे वाली साँसों का जन्म होगा, और अगले दिन हम सब वो अच्छे वाली साँस ले सकेंगे, और हम साफ सुथरी और स्वच्छ सासँ लेगें तो कोई भी बिमारी हमसे बहुत दूर रहेगी।
"ये जो बिना इलाज की बिमारी है ये भी नहीं लगेगी।"
"हाँ ये भी नहीं लगेगी पर तुम को वो सब करना होगा जो तुम को बता रखा है।"
"जी मैडम वो तो मैं करती ही हूँ, हर कोठी में काम करके दवाई वाले साबून से हाथ धोती हूँ,और इस सफेद पतली सूती चुन्नी से नाक तक ढक कर रखती हूँ।घर जाते ही पहले इस चुन्नी को साबुन से धोती हूँ।"
"ठीक है न संगीता तुम ने मेरी सारी बातें मानी हैं तो आज छुट्टी भी तो रखती।"
"माफ कर दो मैडम कुछ रूपयों के लालच में ये सब भूल गई थी। आई हूँ तो पौछा लगा दूं नहीं तो फिर आपकी कमर में दर्द हो जाएगा।"
"कुछ नहीं होगा मुझे,तुम ये चाय पी लो और अपने घर जाऔ और अपने घर पर सफाई करो।"
"आपने तो बात बात में चाय भी बना ली मैडम जी।"
"तेरी बातों ने मेरी भी तो चाय ठंडी कर दी थी।मुझे भी तो पीनी ही थी।"
उसनें चाय पीकर दोनो कप साफ कर दिए थे।
"घर जा रही हूं मैडम जी दरवाजा बंद कर लें आप।"
दरवाजा बंद करते हुए मैं ये सोच रही थी सिर्फ इस गरीब संगीता ने ही तो पैसों के लालच में सुरक्षा नियम को ताक पर नहीं रखा,इस गलती में तो कहीं न कहीं हम पढे लिखे और सर्मथ लोग भी दोषी हैं।
