Lalita Vimee

Inspirational Others

4  

Lalita Vimee

Inspirational Others

"माँ हूँ ना"

"माँ हूँ ना"

9 mins
608


गेट के पास दो फ़ीट चौड़ी और छह फ़ीट लम्बी कच्ची जगह के एक कोने में लगी एक  फूलों वाली बेल ने जैसे घर की रौनक ही बढ़ा दी है। बहुत प्यारे प्यारे छोटे छोटे फूल और धीमी धीमी महक। सबसे बड़ी बात गर्मियों में आंगन में एक सुखदाई छाया का आभास रहता है‌। इससे एक फ़ीट की दूरी पर एक गमले में तुलसी का पौधा है, और उससे दो फीट की दूरी पर एक मीठे नीम का पेड़, जिसे कड़ी पत्ता भी कहते हैं। मीठे नीम से लगभग दो फीट की दूरी पर एक पबरी का पौधा है, जो बहुत जल्दी फैलता है। इसकी सुगंध भी बहुत अच्छी है। बड़े बुजुर्ग बताया करते कि बहुत से औषधीय गुण समेटे है ये अपने अंदर।   मुफ्त की आक्सीजन देती है ये छोटी सी बगिया हमें। इस छोटी सी वाटिका की सफाई करना, पानी देना, फूल-पत्तियों को सहलाना मुझे बहुत ही आत्मीय सुकून देता है।

           आज रविवार है, छुट्टी है, फिर भी व्यस्तता है, इसी व्यस्तता से चंद लम्हें फुर्सत के चुराकर मैं पानी की पाइप और डिब्बा लेकर मैं मेरी इस वाटिका में काम कर रही थी। तभी एक आवाज ने मेरा ध्यान खींचा था,

           मैडम जी राम राम, कैसन हो।

           

 मैं बिल्कुल ठीक हूं अनीता, तुम बताओ कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखी ‌।

ये कामवाली बाई अनीता मेरे पड़ोस में कुछ साल पहले काम किया करती थी। कभी कभार मेरी बाईं छुट्टी पर होती, मैं इसे कहती तो ये सहर्ष काम कर दिया करती। बस यही थी इसके और मेरे आत्मीय रिश्ते की कहानी ‌।

आओ अनीता अंदर आओ, चाय पीकर जाना, ठंड भी काफी है।

अरे नहीं मैडम जी निकलूंगी अभी, देर हो जायेगी।

अरे आओ आओ, बिना चाय पीए नहीं जाना।

वो मेरे साथ साथ अंदर आ गई थी।

तबीयत कैसी रहती है अनीता?

ठीक हूं, मैडम जी पर बीच बीच में वो सांस वाली दिक्कत तो हो ही जाती है।

दवा नहीं खाती हो क्या?

खाती तो हूं मैडम जी, पर अब ये बीमारी भी मेरे अंदर रच बस गई है

ध्यान रखा करो अनीता। क ई बार कुछेक परहेज भी इलाज से ज्यादा कारगर होते हैं‌। अरे हां अनीता, अम्मा कैसी है? बहुत दिन हो गए दिखी ही नहीं।

आपको नहीं पता मैडम जी!

क्या हुआ अम्मा को, मेरे हाथ का कप जैसे हाथ में ही स्थिर हो गया था ‌

अरे मैडम जी हमारे ही किसी जात भाई ने बाबा के ऊपर बलात्कार का मुकदमा बनवा दिया, आपसी छोटी मोटी लड़ाई में। बाबा जेल में हैं, पिछले दो साल से।

बाबा के ऊपर ऐसा मुकदमा? कितना गिर जाते हैं लोग।

पूछो ना मैडम जी दो साल से बेचारा बहुत बीमार और जेल में बंद, इधर अम्मा कभी अंडे की रेहड़ी, कभी मेरे तेरे बालक रख लिए रोटी के चलते। अब घुटनों से तो काम होता नहीं, फिर भी लगी रहती है बेचारी कुछ न कुछ। सांस की मरीज़ तो है ही मेरे जैसी।

ओह, अनीता अम्मा को बोलना मुझसे जरूर मिले आकर।

जी मैडम जी जरूर बोल दूंगी।

चाय पीकर अनीता तो चली गई थी, और मेरे सामने खड़े थे, देवकी अम्मा और उनके बुजुर्ग पति जिन्हें हम बाबा और अम्मा बुढ़वा बोलती थी। बहुत ही बुजुर्ग और क्षीणकाय सा आदमी। कभी कभी अम्मा को पूछने आता था कि इधर है या किसी दूसरी कोठी गई है।

अम्मा बिहार की रहनेवाली थी। इधर तीन चार कोठियों में झाड़ू पौछे का काम करती थी। बाबा तो बहुत ही बजुर्ग थे। अम्मा ने एक रेहड़ी ले रखी थी छोटी सी, जिस पर अंडे रख कर वो बाबा के दे देती थी। बाबा बस्ती के बाहर ही रेहड़ी लगाता था, कभी तो अम्मा ही रेहड़ी छोड़ कर और लेकर आती थी। उनका ये काम भी चल ही जाता था क्योंकि उस बस्ती में फैक्ट्री में काम करने वाले लड़के या फिर उनका परिवार ही रहता था। दोनों मियां बीवी का गुजारा बहुत अच्छे से हो रहा था। स्वाभिमानी अम्मा बचत भी करती थी, उनकी डाकखाने की बचत योजना की कापी मैंने ही खुलवा कर दी थी।।

  यूं तो अम्मा के दो बेटे और एक बेटी भी थी। बेटी शादी शुदा थी, इसी शहर में उसका पति दिहाड़ी मजदूरी करता था,और वो भी झाड़ू पोंछे का काम करती थी। एक बेटा यूपी में किसी फैक्ट्री में काम करता था ‌अपने परिवार जनों के साथ वहीं रहता था, ना कभी आता था और ना ही कभी अम्मा वगैरह को बुलाता था। एकाध बार अम्मा गई तो तीसरे ही दिन वापिस आ गई।

  

  ठीक है, सब का अपना अपना परिवार है मैडम जी, मुझे पता है मैंने कैसे मजूरी करके इन तीनों को बड़ा किया, पढ़ाया पांच पांच जमात, और अब इन को मैं और बुढ़ऊ अच्छे नहीं लगते हैं।

  मत लगने दो, कोई बात नहीं कमा रहे हैं, खा रहे हैं। यूं ही एक दिन चले जायेंगे, कौन सब दिन थोड़े ही ना बैठना है यहां।प र क्या करूं मन ही नहीं मानता बेटे को देखें बिना।माँ हूँ ना।

  

   अम्मा का छोटा और दूसरा बेटा पंजाब में एक बड़े जमींदार के यहां काम कर रहा था। उसकी शादी नहीं हुई थी। वो जब भी आता अम्मा से कुछ न कुछ पैसे लेकर ही जाता। कभी कुछ देता नहीं था ।

   अम्मा क ई बार जिक्र करती तो मैं कह देती, तुम क्यों देती हो पैसे उसको जवान लड़का है कमा रहा है खा रहा है। अब इस उम्र में तुम उसके अनाप-शनाप खर्च निभाओगी या अपना बुढ़ापा भी संभालोगी।

   क्या करूं मैडम जी ," माँ हूँ ना" अम्मा की बड़ी बड़ी स्नेहिल आंखें उमड़े वात्सल्य के कारण और भी सुंदर हो जाती।

   थी तो वो मेरी कामवाली बाई ही,प र उनके साथ मेरा बड़ा ही आत्मीय रिश्ता था। साफ सुथरे कपड़े पहने अम्मा हर काम बड़ी सफाई से करती थी। वो अपनी सारी बातें मुझसे बांटती थी।

   वक्त की रफ़्तार बाबा और अम्मा की उम्र पर भी अपने निशान छोड़ रही थी। ढलती उम्र में बीमारियां भी बिन बुलाए मेहमान की तरह आ रही थी। अम्मा बीच में बहुत छुट्टियां करने लगी थी। एक दिन पूरे सप्ताह की छुट्टी के बाद अम्मा आई तो लाल और हरे ऱग की जयपुरी साड़ी पहने थी‌ बीच की मांग में मुट्ठी भर सिंदूर, ‌जैसा की वो हर त्यौहार के मौके पर करती थी।

   

   मैडम जी नमस्ते।

   अम्मा कहां चली गई थी तुम, तुम्हें पता है ना बिना बताए छुट्टी से मुझे बहुत दिक्कत होती है‌ मुझे भी तो ड्यूटी जाना होता है‌।

   अरे मैडम जी अब छुट्टी नहीं लेंगे ना कभी भी।

    क्यों अब ऐसा क्या हुआ है?

   छोटा लड़का की शादी जो कर आई हूं ‌ दोनों बहू बेटा यहां मेरे पास ही रहेंगे। बेटा कहीं भी काम कर लेगा और बहू मेरे साथ सब कोठी संभालेंगी।

   देखो ना बहू आज भी आई है हमारे साथ।

    मैंने रसोई से झांक कर देखा, मध्यम कद , गेहूंए रंग की एक प्यारी सी लड़की ने हाथ जोड़ दिए थे।

    मैं भी उसे खुश रहने की दुआ देकर काम में व्यस्त हो गई थी।

    वो सास बहू तीन दिन ही आ ई, और फिर वही छुट्टियाँ ।

    किसी ने बताया कि उसकी बहू रूठ कर मायके चली गई है, इस लिए अम्मा और उसका बेटा उसे मनाने की खातिर पंजाब ग ए हैं।

    मैंने अपनी सहूलियत के हिसाब से कामवाली बाई बदल ली थी। अम्मा की बेटी एक बार रास्ते में मिली तो मेरे अम्मा के बारे में पूछने पर उसने बताया कि वो बीमार है।

   मैंने अम्मा के काम के पैसे उसे देकर कहा कि ठीक होने पर ज़रूर मिलने आये, बोल देना।

   जी दीदी।

   

   सरकते लम्हों में अम्मा की यादें तो मेरे ज़हन से नहीं सरकी थी, पर व्यस्तता के चलते थोड़ी धूमिल सी जरूर होने लगी थी।

   लगभग दो साल बाद अम्मा मिली थी,उनकी गोद में डेढ़ पौने दो साल का की छोटी सुंदर सी बच्ची थी।

    मैडम जी नमस्ते।

   अम्मा नमस्ते ‌

   ये कौन है अम्मा?

   ये मेरे छोटे बेटे की लड़की है मैडम जी। दो जुड़वा बच्चे हुए

   एक तो कुछ दिन बाद मर गया, इसको मैं ले आई, पाल पोस कर बड़ा कर लूंगी।

   इसकी माँ कहां है?

   वो तो भाग ग ई वापिस पंजाब।

   और तुम्हारा बेटा अम्मा?

   दूसरी शादी कर ली है उसने, अपने बिहार में ही गाड़ी चलाता है।

   बेटी को फेंक दिया सड़क पर, बोला जहां भी कहीं मरे मुझे कोई मतलब नहीं।

   पर अम्मा तुम इस उम्र में, कैसे करोगी?

   अरे मैडम जी अब तो ये तन्दरूस्त हो गई है, इत्ती सी को उठाकर लाई थी , अम्मा ने जैसे अपने हाथ को सिकोड़ कर बहुत छोटा कर लिया था।

   बाबा कैसे हैं अम्मा?

   

बाबा बहुत बीमार हैं मैडम जी, अब तो रेहड़ी पर भी कम ही जाता है, मुझे ही देखना पड़ता है। छोरी को लेकर बैठी रहती हूं।

अम्मा तुम इसे इस के बाप क एक सुपुर्द करो। कल को ये बड़ी भी होगी, तुम अपना हालत देखी हो। इसके मां बाप दोनों जिंदा है, तो तुम्हें क्या जरूरत है बेकार में परेशान होने की।

कोई ना ले तो इस का क्या कसूर है मैडम जी ये तो बेचारा बच्चा है। फिर ,"मैं तो माँ हूं ना"।

देखना आप देखना ये मुझे ही माँ कहती हैं।

उन्होंने बच्ची से पूछा, "माँ कहां है"?

बच्ची ने उनके सीने को छूकर इशारा कर दिया कि ये है।

मेरी भी आंखें भर आईं थीं, बच्ची को प्यार करके मैं घर आ ग ई थी। लम्हे दिन साल बीतते जा रहे थे, कभी कभी अम्मा सड़क पर दिख जाती थी। वो छोटी बच्ची भी बड़ी हो रही थी।अक्सर अम्मा के साथ ही दिख जाती थी। अम्मा ने बताया था कि मैडम जी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा रही हूं छोरी को‌।

मैं अम्मा की शारीरिक और मानसिक स्थिति से बहुत अच्छे से परिचित थी।

अनीता की कही बात ने मुझे बारह साल पीछे पहुंचा दिया था।

क ई दिन बीत गए थे, अम्मा तो नहीं आई थी, पर अम्मा बाबा के साथ हुआ हादसा मेरे दिलो-दिमाग पर प्रश्न बना हुआ था।

क्या हो गया है हमारे कानून के रखवालों को , इतनी पट्टियां बंधी हैं आंखो पर की मुजरिम करार देते वक्त सच्चाई की एक परत भी नहीं उठाते। बाबा जिसे चलते वक्त सांस चढ़ते थे। बोल वो ढंग से पाता नहीं था, और वो बलात्कारी है‌। उफ्फ़।

इस बात को भी दो महीने बीत चुके थे। आज बेटी की फरमाइश थी कि शाम को आती दफ़ह बीकानेरी से पनीर की जलेबी जरूर लाना।

ऑफिस से निकलते निकलते ही साढ़े पांच हो ग ए थे।घर की तरफ़ मुड़ने ही वाली थी कि बेटी की फरमाइश याद आई। स्कूटी जैसे खुद बखुद ही बीकानेरी की तरफ मुड़ गई थी।

सर्द शाम, ऐसा लग रहा था जैसे चारों और धुंध की बारिश हो रही है‌। मैंने जाकेट के उपर गर्म स्कार्फ को कस कर लपेट लिया था। उपर अपनी शाल भी ओढ़ ली थी।

जलेबी लेकर बाहर निकली तो एक क्षण रूक कर बचे पैसे पर्स के हवाले ही कर रही थी कि एक भिखारिन की अस्थमा मरीज की तरह दबती आवाज ने मेरा ध्यान खींच लिया।

बाबूजी कुछ दे दो ,साहब कुछ दे दो, मैडम जी भला होगा।

मेरे कदम जैसे जड़ हो ग ए थे, उस आवाज़ को पहचान कर। मैं पैर घसीटती सी उधर पहुंची थी।

मटमैली सी पतली सी चद्दर, अस्थमा के कारण तेज सांसों की दहलाने वाली ही आवाज़। बहुत कृशकाय और जर्जर शरीर।

अम्मा अम्मा।

मैडम जी उस के हाथ जुड़ गए थे।

अम्मा तुम यहां, ये सब?

मैडम जी काम तो कर नहीं पाती, बुढ़ऊ जेल में हैं, सब खत्म हो गया है। तैरह साल की छोरी है, उसे पढ़ाना लिखाना भी है‌‌, तो क्या करती मैडम जी? " माँ हूँ ना" ।

अम्मा की कीचड़ फसी आंखों में पानी भर आया था। सांस की आवाज़ तेज हो गई थी, उससे बोला नहीं जा रहा था।

 रोज पचास साठ रूपए मिल जाते हैं मैडम जी। छोरी पढ़ने में बहुत होशियार है‌। खाना भी बना लेती है। मैं मशीन भी सीखवा रही हूं उसको।

 मैं निरूतर हो गई थी। जलेबियों का लिफाफा और बचे पचास रुपए मैंने अम्मा को दे दिए थे।

 अम्मा घर आना बेटी को लेकर और जल्दी ही आना।

 

अम्मा के हाथ जुड़ गए थे। मैं नम आंखों से वापिस बीकानेरी की तरफ मुड़ गई थी।

   


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational