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Gita Parihar

Classics

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Gita Parihar

Classics

वर्ष 2019

वर्ष 2019

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निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि भारत के लिए वर्ष 2019 राजनीतिक दृष्टि से बेहद उथल-पुथल भरा रहा। दोबारा प्रचंड बहुमत से मोदी सरकार की वापसी हुई। नागरिकता संशोधन कानून बना, एनआरसी को लेकर दिल्ली समेत देश के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। कहीं-कहीं हिंसक अराजक भी हो गए। जिसका खामियाजा अंततः देशवासियों को ही भुगतना पड़ा।


लोकसभा चुनाव में अधिकतर पूर्वानुमान-एग्जिट पोल को झूठलाते हुए भाजपा की अगुवाई में राजग को भारी बहुमत मिला। केंद्र सरकार बनने और गृहमंत्री के रूप में अमित शाह द्वारा कार्यभार संभालने के बाद महज 3 महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला भी ऐतिहासिक रहा।


वहीं सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खास पहल पर लंबी व सतत सुनवाई के बाद अयोध्या में विराजमान रामलला के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए मंदिर बनाने की अनुमति का फैसला भी इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। सर्वोच्च न्यायालय से मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से छुटकारा दिलाना भी उल्लेखनीय घटना रही।


गरीब सवर्णों को आरक्षण सामाजिक समता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम रहा, एसपीजी सुरक्षा का प्रावधान केवल प्रधानमंत्री को ही मिलेगा, यह भी एक स्वागत योग्य कदम रहा।


यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन मेंडमेंट एक्ट) में संशोधन; जिसमें संगठन ही नहीं व्यक्ति भी आतंकी घोषित होगा, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की असफलता और राहुल गांधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफा फिर प्रियंका गांधी-वाड्रा का कांग्रेस का महासचिव बनकर राजनीति में सक्रिय होना, किंतु खास प्रतिफल सामने नहीं आना भी वर्ष की रोचक गतिविधियां रहीं।


प्रबुद्ध एवं लोकप्रिय राजनीतिक हस्तियों सुषमा स्वराज और अरुण जेटली का देहावसान, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार जिसमें हरियाणा में मनोहर खट्टर की अगुवाई में सरकार तो बन गई लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना से तनातनी और नाटकीय घटनाक्रम और सत्ता से भाजपा का बाहर होना, यह दिखा गया कि प्रांतीय स्तर पर भाजपा की पकड़ ढीली हो रही है।


पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के लिए बालाकोट में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद प्रतिक्रिया में पाक द्वारा एफ 16 विमानों के जरिए भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश और वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का उसे नाकाम कर देना। अभिनंदन वर्धमान का पाक से रिहा होना, भारत की बढ़ती ताकत का पर्याय रहा।


अर्थशास्त्र के लिए अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिलना। क्रिकेट के मैदान में पूरे वर्ष कीर्तिमान बनाए रखते हुए विराट कोहली का देशवासियों को जीत के तोहफे देना। तेजस, पहली प्राइवेट ट्रेन का चलना, चंद्रयान-2 का महत्वाकांक्षी अभियान, पहली बार सीडीएस पद और जनरल रावत पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने, यह सुझाव बीस वर्ष पूर्व दिया गया था, जिसे मोदी सरकार ने पूरा किया।


अमिताभ बच्चन को दादा साहब फालके अवार्ड प्रदान होना, इन घटनाओं ने वर्ष 2019 को भारत के लिए यादगार वर्ष बना दिया।


अब विश्व परिदृश्य में देखें तो वर्ष 2019 में इसराइल में दोबारा चुनाव हुए किंतु फिर भी किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। बेंजामिन नेतन्याहू एक कामचलाऊ प्रधानमंत्री के बतौर सरकार चला रहे हैं। कभी भी उनकी कुर्सी जा सकती है।


जर्मनी की एंजेला मर्केल ने राजनीति से निवृत्ति की घोषणा कर दी है। यूरोप की इस लौह महिला का युग अगले वर्ष समाप्त होगा। 

अमेरिका में इस वर्ष की सबसे बड़ी घटना रही, राष्ट्रपति ट्रंप पर महाभियोग। यद्यपि इस अभियोग से वे साफ निकल जाएंगे किंतु अमेरिका ने 4 महीने इस बेतुके राजनीतिक ड्रामे में बर्बाद कर दिए।


अन्य घटनाओं में अमेरिका और चीन के बीच का व्यापार युद्ध प्रमुख रहा।

मार्च में आतंकवादी संगठन ईसिस का लगभग सफाया हो गया। सीरिया और इराक में जो क्षेत्र उसने अपने नियंत्रण में ले लिए थे, वे अब आज़ाद करवा लिए गए हैं।


उधर मलेशिया और तुर्की का झुकाव इस्लामिक अतिवाद की ओर बढ़ा है। 

दूसरी ओर सऊदी अरब ने आधुनिकता की ओर कुछ और कदम बढ़ाए। फ्रांस में सामाजिक परिस्थितियों से उपजे असंतोष से होने वाले दंगों का बोलबाला रहा।


हांगकांग में चीन के एक कानून के विरोध में उग्र प्रदर्शन हुए। वहां की जनता प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए अपना बलिदान दे रही है।

ईरान में इस्लामिक कट्टरपंथी सरकार के विरुद्ध खूनी विद्रोह हुआ किंतु कुचल दिया गया। सैकड़ों लोगों की जानें गईं।


उधर 10 लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को चीन ने बंदी बना रखा है और उन्हें कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। अमेरिका ने चीन पर आपत्ति भी उठाई किंतु अभी तक किसी इस्लामिक राष्ट्र की ओर से चीन को कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई है।


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