वृद्धा
वृद्धा


मैं प्राइवेट अस्पताल की एक कर्मचारी के साथ कोरोनावायरस की जांच के लिए अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ रही थी मेरे ऑफिस के कुछ कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे।
इस वजह से सभी को जांच कराना अनिवार्य हो गया था।
मुझे कमरे के बाहर रुकने का कहकर नर्स कमरे के अंदर चली गई वही बेंच पर एक वृद्ध पुरुष बैठकर कुछ रुपए गिन रहे थे।
वे वृद्ध पुरुष गड्डी से नोट गिनते कुछ ही देर में गिनती भूल जाते और पुनः एक से गिनती शुरु कर देते।
मैंने अपने मास्क को व्यवस्थित किया और वृद्ध पुरुष से पूछा क्या आपको मदद की आवश्यकता है वृद्ध पुरुष ने हां में सिर हिला दिया और बोले बेटी
1000 प्रतिदिन के हिसाब से 8 दिन का ₹8000 अस्पताल को देना है वह इसमें से अलग कर दो यह कहकर रुपए की गड्डी मेरे हाथों में देकर वे स्वयं भावुक होकर रोने लगे।
पूछने पर बोले बेटी अस्पताल ने जो सांसे मशीन के द्वारा मुझे दी हैं उनकी कीमत तो मैं रुपयों से चुका सकता हूं परंतु ईश्वर के द्वारा जो सांसे मुझे मुफ्त में दी गई हैं उनका मूल्य मैं क्या कोई भी भला कैसे चुका सकता है?
यदि ईश्वर अपनी दी गई प्रत्येक वस्तु का मूल्य लेने लगे तो सृष्टि पर जीवन ही नष्ट हो जाएगा।
प्रकृति का सम्मान करके ही हम प्रकृति का मूल्य चुका सकते हैं और स्वयं को लाभान्वित कर सकते हैं।