साधना और 40 रोटियां
साधना और 40 रोटियां
भूखा राम एक मंदिर में सेवक का काम करता था। जन्म से ही उसके माता-पिता का कुछ भी पता नहीं था। गांव के लोग अक्सर उसे भूखा देखते थे, और कुछ खाने को दे दिया करते थे इसीलिए पूरे गांव में भूखा नाम से वह विख्यात हो गया था। भूखा मंदिर में ही एक आसन बिछाकर रहता था मौसम चाहे कोई भी हो भूखा का स्थान परिवर्तन नहीं होता था भूखा हमेशा ही शिव जी के पश्चिमी दरवाजे की सीध में चटाई बिछाकर विश्राम किया करता था।
कुछ काम के पश्चात गांव में अकाल पड़ गया और सभी लोग भूख प्यास से व्याकुल रहने लगे। भूखा भी बहुत ही ज्यादा परेशान रहने लगा।
शिव पूजा के समय नित्य ही भगवान से कहता भगवान कृपा करो! अब अपने भूखे को कितना भूखा रखोगे !!
भूखा की निरंतर चल रही शिव साधना से प्रसन्न होकर शिव भूखा को स्वप्न देते हैं कि भूखा मांगो तुम्हें क्या चाहिए, भूखा तो वास्तव में भूखा था उसने कहा महादेव मुझे इतना भोजन दो कि मैं भूखा ना रहूं शिव जी ने कहा तुम्हारे कर्म के अनुसार तुम्हारे भाग्य में मात्र 40 रोटियां हैं तुम चाहो तो 40 दिवस तक एक एक रोटी का आहार ले सकते हो !
भूखा ने कहा नहीं महादेव मुझे मेरे भाग्य की 40 रोटियां आज ही दे दीजिए, महादेव जी ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा !! भूखा की निद्रा टूटी तो भूखा ने देखा की मंदिर के दरवाजे पर पोटली में रोटियां रखी हैं, भूखा चकित था, उसे साधना का कोई भी मंत्र नहीं आता था। वह प्रत्येक दिन जिस भी दुखी आत्मा को देख लेता था उसी की भलाई के लिए महादेव जी से प्रार्थना करता रहता था, यही उसकी साधना थी।
भूखा चार रोटियां खाता है, भूखा की भूख मिट जाती है। भूखा बची हुई रोटियों को लेकर गांव की तरफ बढ़ जाता है और रास्ते में जो कोई भी मिलता है उसे एक-एक रोटी प्रसाद के रूप में देकर वापस मंदिर की तरफ आने लगता है।
तभी एक बच्ची भूखा का हाथ पकड़ लेती है और पोटली की तरफ इशारा करते हुए अपना हाथ भूखा की तरफ बढ़ा देती है भूखा पोटली में देखता है पोटली खाली थी। भूखा को बड़ा अफसोस होता है वह बिना कुछ बोले अपने रास्ते पर आगे चल देता है, बच्ची भूखा के पीछे पीछे मंदिर तक पहुंच जाती है,
भूखा अपने विश्राम वाले स्थान पर पहुंचता है और भगवान की ओर देखते हुए कहता है!!
महादेव !! मेरी साधना को स्थान दे,
महादेव!! इस भूखी बच्ची का कोई तो निदान दे!!
जिन गांव वालों को भूखा रोटी बांट कर आया था वह सभी दूसरे दिन वहीं आकर मंदिर के बाहर बैठ जाते हैं और भूखा के मंदिर से बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगते हैं भूखा जब पूजा से निवृत्त होकर मंदिर के बाहर आता है तब उसे लोगों की लंबी कतार दिखाई देती है जो कि भूखे थे।
भूखा हाथ जोड़कर सभी से विनम्र अनुरोध करते हुए कहता है भैया आज तो भूखा के पास स्वयं की भी भूख मिटाने के लिए कुछ नहीं है!! क्या कहूं? जैसी महादेव की इच्छा...
कहकर जैसे ही भूखा अपने विश्राम के स्थान की तरफ देखता है वह बच्ची उसी विश्राम के स्थान पर दिखाई देती है, भूखा को यह देखकर आश्चर्य होता है और भूखा बच्ची के पास जाकर पूछता है तुम यहां कब से बैठी हो बच्ची बताती है कि यहां कुछ खाने का सामान गांव के लोग देकर गए थे बाहर भारी भीड़ देखकर मैं यह सामग्री मंदिर के अंदर ले आई हूं, यह सब किसने दिया है बच्ची भूखा को बताती है कि दूसरे गांव के लोग मंदिर के दरवाजे पर यह खाने की सामग्री छोड़ गए थे मुझे लगा कि वह सब आपके लिए लाए हैं इसलिए मैंने यहां लाकर व्यवस्थित कर रही हूं।
फिर तो यह प्रतिदिन का नियम बन गया था दूसरे गांव के लोग आकर मंदिर के बाहर भोज्य सामग्री रख जाते और अपनी साधना समाप्त होने के पश्चात भूखा प्रसाद के रूप में वह सामग्री समस्त ग्राम वासियों में बांट देता था।
एक दिन ऐसा भी आया कि नहर निर्माण के कार्य के चलते दूसरे गांव के लोग भूखा के गांव में प्रवेश नहीं कर पाए यह देख कर भूखा के गांव के लोगों ने सोचा भूखा रोज ही हमें प्रसाद का वितरण करता है क्यों ना आज हम अपने भोजन में से कुछ प्रसाद के रूप में भूखा के लिए लेकर जाएं'...
यह सोचकर समस्त गांव वालों ने अपने घर से कुछ भोज्य सामग्री मंदिर में पहुंचा दी कुछ देर से ही सही परंतु मंदिर के बाहर भूखे लोगों की लंबी कतार को थोड़ा-थोड़ा भोजन दे कर भूखा ने अपनी साधना को पूर्ण किया और विश्राम करते समय महादेव से कहा महादेव यदि सबके हृदय में सेवा की सच्ची साधना का बीजारोपण हो जाए तो संसार का समस्त दुख दूर हो जाए।
आपके लिए एक प्रश्न?
क्या साधन के बिना भी साधना संभव है??
उत्तर की प्रतीक्षा में__