सीधी बात
सीधी बात
"मेरे जीवन की प्रेरक घटना"
आज अपने जीवन का एक ऐसा उदाहरण आपके सामने रख रही हूं जिसमें मुझसे अधिक मेरे बेटे हिमांशु का योगदान रहा। मेरा बेटा पाँच साल का था मैं उसे लेकर जन्मदिन की खरीदारी के लिए अपने घर के नजदीक ही मॉल में गई, स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करते ही कुछ बच्चों ने और दो महिलाओं ने बोला बहन जी कुछ खाने को दे दो दिन से कुछ नहीं खाया मेरा बच्चा बहुत भूखा है। हिमांशु से यह देखा नहीं गया उस औरत के पैर से खून निकल रहा था और उसने एक पैर को बोरी से बांध रखा था उससे चला नहीं जा रहा था, बच्चे दोनों तरफ खड़े थे और भूखी निगाहों से मुझे और हिमांशु को देख रहे थे मैंने गाड़ी लॉक की और मुड़कर गई हिमांशु पास आकर धीमे से बोला, मां हमने जन्मदिन पर जिनको खाने के लिए बुलाया है उनमें से आज कोई भी भूखा नहीं होगा मगर यह भूखे हैं! मां मुझे कुछ नहीं चाहिए आप इनको कुछ खाने को दिला दीजिए यह भूखे हैं।
हिमांशु की बात सुनकर मुझे भी यही सही लगा और तुरंत ही हम मां बेटे मॉल के अंदर गए और बिस्किट नमकीन टॉफियां ब्रेड के पैकेट लेकर बाहर आए और हिमांशु ने सभी खाने की चीजें उन बच्चों को दें दी। हिमांशु के चेहरे पर जो खुशी थी उसे देखकर मेरी आंखें भर आई।
तब से लेकर आज तक मैं और मेरा पूरा परिवार अपना जन्मदिन इसी तरह से मनाते हैं हम किसी को भी दावत नहीं देते बस भगवान की पूजा करते हैं और जरूरतमंद लोगों को जरूरी सामान पहुंचा देते हैं।
इस घटना मेरे जीवन में एक आशीर्वाद की तरह आई।
मेरी कुछ सहेलियां और रिश्तेदार भी अब इसी पर अमल करते हैं यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है।
व्यक्ति भाव ,अभाव और प्रभाव के द्वारा ही इस जग में अपनी पहचान बनाता है।