दीपावली का सामाजिक महत्व
दीपावली का सामाजिक महत्व
जिंदगी में जब तक संघर्ष नहीं आता तब तक असल आनंद नहीं आता, ऐसा कोई भी नहीं जिसका जीवन बिना संघर्ष के प्रारंभ या पूर्ण हुआ हो। यही संघर्ष हमें सबल और सक्षम बना देते हैं मुश्किलों से बाहर निकलने में हमें सबसे ज्यादा मदद गुरुजनों और अपने विवेक से ही मिलता है।
वर्तमान समय में हम सभी कोरोना महामारी के संकट से गुजर रहे हैं यह ऐसी बीमारी जिसने आदमी को आदमी से दूर कर दिया ना मिलने को मजबूर कर दिया।
कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा लॉक डाउन कर दिया गया और हम सभी अपने अपने घरों में कैद हो गए उस दौरान उस मुश्किल समय ने हम सभी को कम से कम सीमित वस्तुओं में गुजारा करना सिखा दिया और हम सभी एक दूसरे का संबल बन सके गरीब दुखिया रो की मदद कर सकें आत्मनिर्भर होकर समाज के लिए कुछ कर सके यह हौसला भी दिया है।
संघर्ष के इस दौर ने हमें सफाई और स्वास्थ्य के प्रति सचेत कर दिया है हम सभी अपनी पुरातन संस्कृति से जुड़ रहे हैं योग आयुर्वेद के द्वारा नए-नए आयामों से भी जुड़ रहे हैं।
कोरोना के दौरान आ रहे त्योहारों में हम सभी सादगी पूर्ण ढंग से अपने त्योहारों का आनंद उठा रहे हैं इसी श्रृंखला में दीपावली का भी पावन पर्व आने वाला है।
दीपावली का पावन पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है प्रथम दिवस धनतेरस से प्रारंभ होता है इस दिन धन्वंतरी देवता की पूजा कर आरोग्य का आशीष लिया जाता है, नए बर्तन और जेवर खरीदने का भी विधान है।
द्वितीय दिवस रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। तृतीय दिवस दीपावली के रूप में मनाया जाता है और मां लक्ष्मी जी की गणेश जी के साथ पूजा अर्चना की जाती है ऐसी मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के समय छीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी और भगवान को अपना पति स्वीकार किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन श्री राम जी लंका से अयोध्या वापस आए और अमावस्या के दिन ही उनका राजतिलक किया गया था। इसी खुशी में यह उत्सव मनाया जाता है। लंका की आदिवासी जातियों द्वारा दीपावली को शोक दिवस के रूप में मनाए जाने की प्राचीन परंपरा है।
दिवाली के त्योहार के चतुर्थ दिवस में गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का विधान है, और पांचवें दिन हम सभी भाई दूज या यम दुतिया के रूप में मनाते हैं इस दिन भाई की दीर्घायु की कामना के लिए यमुना में स्नान करना श्रेष्ठ कर्म माना जाता हैं।
ऐसी मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन बहन के घर भोजन करने से और बहन के साथ यमुना स्नान करने से बहन से तिलक करवाने से यम के द्वारा अकाल मृत्यु का भय नहीं होता है।
आत्मनिर्भरता की ओर सजग सफल प्रयास करते हुए हम सभी को स्वदेशी उत्पादों के द्वारा ही त्योहार को सुंदर रूप प्रदान करना चाहिए।
हसरतों की जुबान नहीं होती इसीलिए यह बयां नहीं होती।
कभी ख्वाब बनकर आंखों में सजती हैं
कभी अश्क बनकर आंखों से बहती हैं।
दिखावे की शाम को त्याग दीजिए
सादगी से त्योहारों का आनंद लीजिए।