Sadhna Mishra

Crime Inspirational

4.5  

Sadhna Mishra

Crime Inspirational

सासू मां और घूंघट में बहता नीर

सासू मां और घूंघट में बहता नीर

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फागुनी बहार से चारों ओर प्रकृति का रंग बिखरा पड़ा था, पीली सरसों से धरती ने सुंदर चुनर ओढ़ रखी थी खेतों की पगडंडी पर चलते हुए रोली के पैर अचानक ही मिट्टी में धंस गए रोली ने बड़ी ही मेहनत से अपने पैरों को खेत की मिट्टी से खींच कर मेड़ पर रखा और धीरे धीरे पास बनी झोपड़ी के पास तक आ गई झोपड़ी के पास पहुंचते ही आवाज लगाने लगी कोई है घर में मुझे थोड़ा पानी दे दो !

दो तीन बार इन शब्दों को दोहराने के बाद रोली ने झोपड़ी पर लगा बांस का गेट खोल कर अंदर नजरें दौड़ाई कमरे में कोई जमीन पर फूस के बिछौने पर कराह रहा था।

रोली से रहा न गया उसने अपने मिट्टी भरे पैरों से झोपड़ी के भीतर प्रवेश किया और पास जाकर बोली क्या हुआ है तुम्हें कहते हुए उसने लंबी तनी पैबंद से भरीहुई चादर को नीचे किया तब उसने देखा कि एक वृद्ध महिला अधमरी अवस्था में लेटी हुई है।

रोली ने पूछा क्या हुआ दादी मां आप बहुत बीमार लग रही हैं, वृद्धा ने कोई भी उत्तर नहीं दिया वह पूर्व की भांति ही कराते हुए हे! राम हे! राम का उच्चारण कराती रही वृद्धा के पास ही एक घड़े में पानी रखा था और पास ही एक मिट्टी का पात्र , तो रोली ने उस वृद्धा से पुनः पूछा दादी क्या मैं थोड़ा पानी ले सकती हूं वृद्धा ने अबकी बार हे राम! कहते हुए रोली की तरफ देखा और अपने दोनों हाथों को जोड़ लिया रोली समझ नहीं पाई थी फिर भी उसने अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्तर हां में समझा और अपना पैर पानी से धोकर वृद्धा के सर पर स्नेह से हाथ फेरा।

 वृद्धा को थोड़ा पानी पिलाया उनका सर अपनी गोद में रखकर रोली सर को सहलाते हुए बोली दादी आप बहुत दुखी लग रही हैं? क्या आप भूखी हैं? वृद्धा ने न में सर हिलाया और पुनः हे !राम हे! राम का उच्चारण करने लगी तभी झोपड़ी में किसी के आने की आहट होती है और एक महिला खाने की थाली लेकर प्रवेश करती है रोली को वहां देख कर वह प्रश्न करती है तुम यहां क्या कर रही हो तुम कौन हो?

रोली उस महिला का अभिवादन करते हुए कहती है मैं यही पास ही बने मकान में रहती हूं, वैसे तो मैं शहर में नर्स हूं यहां पिताजी के पास उनकी सेवा के लिए आई हूं माता जी के देहांत के बाद से वह अकेले हो गए हैं।

महिला रोली से उसका नाम पूछती है उसके पश्चात कहती है बिटिया यह हमारी सासु मां है इन्हें कैंसर हो गया है घर के लोगों ने इनके रहने की व्यवस्था यहां कर दी है परिवार के लोग इसे छूत की बीमारी कहते हैं, और घर में छोटे बच्चे हैं इसलिए हम इन्हें घर से दूर यहां झोपड़ी में रखते हैं। वैसे तो रोज हमारे घर का नौकर इनके लिए खाना लेकर आता है परंतु आज मैं सब की चोरी से माजी के लिए खाना लाई हूं मुझे माजी की बहुत चिंता हो रही थी, अच्छा हुआ जो तुम मां जी के पास आकर बैठ गई अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो एक बात कहूं रोली बोली हां हां कहिए।

महिला ने कहा बिटिया अगर तुम नर्स हो तो तुम मां जी को रोज आकर दवाई और इंजेक्शन दे दिया करो। उससे मां जी को ज्यादा तकलीफ नहीं होगी मां जी को बहुत तकलीफ होती है वह कुछ भी खा नहीं पाती हैं अगर तुम कहो तो मैं कल ही से इंजेक्शन मंगवा कर यहां रख दूं और तुम इंजेक्शन मां जी को लगा दिया करो जिससे उन्हें कुछ आराम मिल जाए ससुर जी मां जी का इलाज कराना नहीं चाहते। वह कहते हैं की कैंसर जैसी बीमारी का कोई भी इलाज नहीं है इस इलाज में पैसा बर्बाद करने से अच्छा है कि हम वे पैसे आश्रम में दान कर दें बिटिया तुम मेरा इतना काम कर दो मैं जीवन भर तुम्हारा उपकार नहीं भूलूंगी।

रोली ने हा में सर हिला दिया ठीक है आप जैसा कह रही हैं वैसा ही होगा ।आप इंजेक्शन मंगा कर यही दादी के कमरे में रख दीजिएगा मैं प्रतिदिन आकर लगा दिया करूंगी ।

महिला कहती है, बिटिया !अब मैं शायद तुमसे जल्दी नहीं मिल पाऊंगी ,मैं इंजेक्शन यहां लाकर रख दूंगी, अब मैं चलती हूं नहीं तो घर पर बहुत डांट पड़ेगी मैं तो अपना खेत देखने के बहाने से घर से निकल आई थी बिटिया अच्छा होगा जो तुम कुछ समय मां जी के पास बैठो इन्हें किसी के साथ की बहुत जरूरत है मैं तो विवश हूं ससुर जी बहुत गुस्सा करते हैं। 

मां जी के पास आने से मना करते हैं बिटिया तुम किसी को कुछ मत बताना मैं जीवन पर्यंत तुम्हारी आभारी रहूंगी।

थोड़ी देर में हमारा नौकर यहां पर आएगा उसके आने से पहले ही तुम यहां से चली जाना वरना ससुर जी कल पंचायत में हल्ला मचा देंगे।

रोली ने हां में सर हिला दिया और दोनों की नजरें मिलते ही बरस पड़ी रोली जिसकी अवस्था अभी मात्र 26 वर्ष की थी नर्सिंग की ट्रेनिंग के बाद अभी मात्र 1 वर्ष ही अस्पताल में काम करते हुए था। मां जी का स्वर्गवास होते ही उसे अपने पिताजी की सेवा के लिए अपने गांव आना पड़ा था।

रोली जो कि अपनी मां को खो चुकी थी उसे उस महिला के रूप में अपनी मां ही दिखाई दे रही थी और महिला के कहे गए शब्द उसे अपनी मां की आज्ञा लग रहे थे।  

वहां से घर पहुंच कर रोली ने पिताजी से पूछा पिताजी अपने खेत के पास झोपड़ी में कौन रहता है पिताजी ने बताया बिटिया वहां सरपंच की माताजी रहती हैं जिन्हें कैंसर हो गया है ना तो सरपंच जी उनका इलाज कराना चाहते हैं और ना ही कोई डॉक्टर उनका इलाज करना चाहता है जो भी डॉक्टर उनके इलाज के लिए आता है सरपंच जी उसे बहुत ही बुरा भला कहते हैं। सरपंच जी को लगता है कि सभी डॉक्टर और नर्स केवल पैसा कमाने के लिए ही सुई और दवाई देते रहते हैं।

जीवन और मृत्यु ईश्वर की देन है कोई भी दवाई से कोई लाभ नहीं हो सकता है कैंसर जैसी बीमारी जितनी जल्दी शरीर को मुक्त कर दे उतना अच्छा यही सोचकर उन्होंने अपनी मां को अपनी हवेली से निकाल कर खेत के पास झोपड़ी में मरने के लिए छोड़ दिया है जो कभी इस हवेली की मालकिन हुआ करती थी आज कैंसर से पीड़ित होकर इस घास फूस की झोपड़ी में पड़ी हुई है।

"समरथ को नहिं दोष गुसाईं" बिटिया समर्थ लोगों को कोई भी दोष नहीं देता है।

रोली ने बहुत ही लंबी सांस भरते हुए पिताजी से खाना खाकर सोने के लिए कहा दोनों रात भर उन्हीं के बारे में बातें करते रहे पिताजी रोली को बताते रहे कि बिटिया जब तक सरपंच की माताजी स्वस्थ थी उनकी तूती पूरी हवेली में गूंजती थी माता जी के आज्ञा के बिना हवेली का तिनका भी नहीं हिलता था ,अब तो सरपंच जी ने हद ही कर दी है सरपंच जी का उनकी माता जी के प्रति यह व्यवहार उन्हें समाज में हंसी का पात्र बना रहा है।

 वृद्धावस्था में माता जी की बड़ी दुर्दशा हो रही है ईश्वर उन्हें अब मुक्त कर दे मेरी भी यही कामना है कहते हुए सभी रात के आगोश में चले गए प्रातः काल नित्य क्रिया से मुक्त होकर दैनिक कार्यों को पूर्ण करने के पश्चात दोपहर के समय में रोली अपने वादे के अनुसार झोपड़ी की तरफ जाती है बांस के दरवाजे को खोल कर अंदर प्रवेश करती है घड़े के ऊपर कागज रखा है रोली कागज को धीमे से उठाती है और दादी मां को आवाज देते हुए उनके पास बैठ जाती है।

 दादी मां हे! राम हे! राम कहकर पूर्व की भांति ही कराह रही थी रोली की आवाज सुनकर रोली की तरफ देखकर अपने हाथों को जोड़ लेती है, और आंखों से आंसू की एक लंबी धार निकल जाती है रोली कागज को किनारे रख सर पर हाथ फेरते हुए पूछती है दादी आपने कुछ खाया ?

बूढ़ी आंखें मुस्कुरा देती हैं रोली आंखों को पोंछते हुए कागज को दोबारा से उठाकर देखती है उसमें दवाई का पर्चा इंजेक्शन और कुछ खाने की दवाई रखी थी साथ ही एक छोटी पर्ची थी जिस पर लिखा था रोली बिटिया यह इंजेक्शन माता जी को लगा देना और दवाई भी खिला देना दोपहर 2:00 बजे तक हमारा नौकर माताजी को खाना खिला देता है उसके बाद ही तुम इंजेक्शन और दवाइयां माता जी को दे देना और जिस फूस के बिस्तर पर माताजी लेती है उसी के सिरहाने की तरफ तुम्हारे लिए कुछ है वह तुम ले लेना इंकार मत करना।

रोली अपने हाथ पर लगी घड़ी की ओर देखती है 3:00 बज चुके थे रोली समझ चुकी थी कि दादी मां खाना खा चुकी है रोली ने तुरंत ही पर्चे के अनुसार दादी मां को दवाई खिलाई और इंजेक्शन लगाया थोड़ी देर वहां बैठने के पश्चात रोली को याद आया की पर्ची पर सिरहाने की तरफ कुछ रखने की बात लिखी थी,

 रोली ने दादी मां के सिरहाने की तरफ हाथ रखा तो वहां कुछ रुपए रखे थे रोली उन्हें लेना नहीं चाहती थी परंतु मां समान महिला ने पहले ही कह दिया था कि इंकार मत करना रोली ने मां की आज्ञा मानकर उन पैसों को ले लिया और अपने घर की ओर चल दी अब तो यह रोज का नियम हो गया था।

 रोज ही घड़े पर इसी तरह पर्ची मिलती और कसम देकर रोली को पैसे लेने के लिए विवश कर देती।

यह क्रम लगातार 4 महीनों तक चलता रहा ।

कभी-कभी तो दादी मां रोली का हाथ पकड़ कर अपने पास घंटों बैठाए रहती उनके द्वारा कहे गए हे !राम हे! राम के शब्द मानो दिन-रात रोली के कानों में गूंजने लगी थी।

रोली के पिता जी रोली को बताते हैं कि तुम्हारे अस्पताल से फोन आ रहा है तुम कब जाओगी रोली कहती है! पिताजी न जाने क्यों गांव से जाने का मन नहीं हो रहा पिताजी हंस कर कहते हैं बिटिया तुम तो 12 साल की उम्र से शहर में ही रही हो अपनी बुआ के साथ आज तुम्हें क्या हो गया ।

पिताजी जब मैं बुआ जी के पास रहती थी तब आपके पास माताजी रहती थी अब तो माताजी भी नहीं है आपको अकेले छोड़कर जाने में इच्छा नहीं हो रही पिताजी आप भी मेरे साथ शहर चलिए पिताजी हंसते हैं और कहते हैं!

 नहीं बिटिया हम शहर जाकर क्या करेंगे तुम जाओ खूब नाम कमाओं, बिटिया मेरी एक बात हमेशा याद रखना जीवन में कभी भी अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ना जो व्यक्ति अपने कर्तव्य को ही अपने जीवन का आधार बनाते हैं ईश्वर उन्हें हर मुश्किल से बाहर निकाल लेते हैं।

 तुम भी अपने कर्तव्य को ही अपने जीवन का आधार बनाना।

कहते हुए पिता बिटिया के सर पर हाथ रखकर आंसू पूछते हुए घर से बाहर आ जाते हैं घर के बाहर आते ही उन्हें आवाजें सुनाई देती हैं और सरपंच जी की माता जी की झोपड़ी के पास भीड़ दिखाई देती है जहां हमेशा सन्नाटा छाया रहता था।

 घर के अंदर जाकर रोली के पिताजी अपना कुर्ता उठाते हैं चप्पलों में पांव डालते हुए रोली से कहते हैं बिटिया !हमारा गमछा उठा दो लगता है सरपंच जी की माता जी नहीं रहीं।

रोली भी तुरंत उठकर पिताजी के साथ ही बाहर आ जाती है आज मातम तो छाया था परंतु जिन माता जी की तूती हवेली में गूंजती रहती थी ,वहां से मात्र बहू के सिसक कर रोने की आवाजें आ रही थी मां मुझे माफ कर देना मैं तुम्हें अंतिम बार देख भी नहीं पाई मां हो सके तो मुझे माफ कर देना!!

रोली आंख भर कर उस महिला की तरफ देख रही थी वह महिला आज घुंघट में थी रोली उस आवाज को पहचानती थी जो कि अपनी सासू मां की सेवा के लिए प्रतिदिन कसम देकर इंजेक्शन और दवाइयों की गुहार करती थीं। 

झोपड़ी के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी परंतु सभी दूर-दूर ही थे वृद्ध महिला को स्पर्श करने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा था।

 गांव के बुजुर्ग ने कहा कि कोई इनको स्नान करा दे और उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी करें, किसी को भी आगे आता ना देखकर रोली ने पिताजी की तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखा पिताजी ने भी भारी मन से हां में सर हिला दिया। रोली झट से झोपड़ी के अंदर गई ,घड़े पर कागज में दवाई और इंजेक्शन रखे थे और साथ में एक पर्ची भी थी , रोली ने सोचा मैं क्या करूं भगवान कैसी विडंबना है अगर यह दोनों चीजें यहां से नहीं हटाती तो सरपंच हल्ला मचा देंगे और मदद के लिए उठे हाथ गुनहगार हो जाएंगे ।

यह सोचकर रोली ने चुपचाप सिरहाने से हजार रुपए और दवाइयों का पैकेट लेकर अपने कपड़ों में छुपाकर अपने घर में घुसकर रोली ने मां की साड़ी और सारा सामान इकट्ठा किया वृद्ध महिला की अंतिम निशानी के रूप में रोली ने दवाइयां और पैसे तुरंत ही अपनी अलमारी में सुरक्षित रख दिए और बाहर आ गई रोली ने बहुत ही सुंदर तरीके से वृद्ध महिला की अंतिम यात्रा की तैयारी की ।

यह देखकर सभी चकित थे क्योंकि रोली शहर में रहती थी इसलिए ज्यादातर लोग रोली को पहचानते नहीं थे अंतिम यात्रा की तैयारी होते ही 4 नौकरों ने कंधे पर उठाकर वृद्ध महिला को अंतिम विदाई दी ।यह देख कर पूरे गांव का सर नीचे झुक गया और रोली के कानों में हे !राम हे! राम की धुन लगातार गूंजने लगी।

आंखों से अश्रु की बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी।

रोली अपने घर की दहलीज पर बैठकर आज मन ही मन सोच रहे थी।

"समरथ को नहिं दोष गुसाईं"!

आप सभी के लिए एक प्रश्न ?

सासू मां की अंतिम यात्रा में भी बहू अंतिम दर्शन के लिए आगे नहीं आई इसमें दोष किसका है ?

उत्तर की प्रतीक्षा में......


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