वक़्त
वक़्त


चाय की प्याली लेकर गिरिराज जी बैठे ही थे कि उन्हें याद आया एक वक़्त वो भी हुआ करता था जब मोबाईल नहीं थे, उस वक़्त सारे दोस्त मिलकर नुक्कड़ में बैठा करते बुजुर्ग चबूतरे में। लेकिन आज की पीढ़ी दिन रात मोबाईल में लगी रहती है।
गिरिराज जी अपने पोते को देखते उसकी कॉलेज की पढ़ाई से लेकर ऑनलाइन चैट सब कुछ वह मोबाईल पर ही करता था। खाने में कुछ नया बने तो अब पहले फ़ोटो खिंची जाती ताकि उसे सोशल मीडिया पर डाल सके। उसके पास वक़्त ही नहीं होता दो पल सुकून के बैठकर बात करने का।
गिरिराज जी इस परिवर्तन के खिलाफ नहीं थे, क्योंकि उन्हें पता था कि कुछ बातें इसमें अच्छी भी है जैसे घर बैठे ऑनलाइन भुगतान वगेरह। लेकिन उन्हें ये जरूर महसूस होता कि जैसे वे लोग घर के बुजुर्गों के पास कुछ समय बैठकर बिताते थे वैसा आज की पीढ़ी के प
ास वक़्त नहीं है।
वे जानते थे और समझते भी थे कि खुद के कामों लिये भी आज की पीढ़ी को समय चाहिए होता है, लेकिन फिर भी कुछ सुकून के पल तो साथ बिताए जा सकते हैं। बस उन्हें यही बात खलती थी।
उन्होंने अपने पोते से कहा बेटा तू दिन भर मोबाईल में लगा रहता है तुझे मुझसे बात करने का वक़्त ही नहीं है। एक काम कर मुझे भी एक मोबाईल लाकर दे दे ताकि मुझे भी जब बात करनी हो तो मैं भी तुझे बाकी लोगों की तरह वाट्सअप कर सकूं।
सुनकर उसे अहसास हुआ कि दादा जी कितना अकेला फील करते हैं, उस वक़्त उसने फैसला लिया कि कॉलेज से आने के बाद रोज कुछ वक़्त मोबाईल छोड़कर दादा जी के साथ बिताऊंगा।
तभी उनका पोता अपनी कॉफी लेकर आया दादा पोते बातों में मशगूल हो गए ये उनका अपना बातों का वक़्त जो था।