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Arunima Thakur

Abstract Classics Inspirational

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Arunima Thakur

Abstract Classics Inspirational

वक़्त और दोस्ती

वक़्त और दोस्ती

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लगभग चालीस बयालीस वर्ष पहले का दृश्य, कुछ बच्चे कपड़े का बना हुआ थैला काँधे पर टांगे हुए नाचते गाते स्कूल चले जा रहे हैं। सबसे पहले राधा अपने घर से निकली। घर के पिछले बड़े दरवाजे से होते हुए, राधा संजू के घर गई। संजू को लेकर उन दोनों ने गुड्डी और पुत्तन को लिया। थोड़ा आगे चलने पर मालिन टोला से भोला को लिया। बनियाने (बनिया टोला) से निकलते हुए सरला और नत्थू को साथ लिया। थोड़ा आगे चलने पर ग्वालटोली से आता हुआ बिरजू मिल गया। वह सब हंसते खेलते खेतों के बीच से होते हुए, रास्ते पर मिल गई भेड़ बकरियों को हाँकते दौड़ाते हुए, गाय भैंसों की सवारी करते हुए, स्कूल पहुँच गए। आज याद नहीं पड़ता कि वह स्कूल समय से पहुँचते थे कि उनके पहुँचने के बाद स्कूल शुरू होता था।

खैर जो भी हो स्कूल छूटने के बाद भी बहुत सारे काम थे। जैसे स्कूल के पीछे लगे बबूल के पेड़ों से कच्चा गोंद निकालकर खाना। वही उगी झाड़ियों में से कौवा तोड़ कर एक दूसरे के कपड़ों पर लगाना और हंसते खेलते घर आ जाना। अरे बीच में एक काम तो भूल ही गए बनियाने से आते वक्त वह जो चूरन वाली दादी थी ना उनको चिढ़ाते हुए आना। पर सच में उनका मीठा चूरन और खट्टा चूरन वह सब घरवालों से डॉंट खाने के बावजूद खाते थे। घर में डॉंट पड़ती, उसमें एसिड होता है, तुम्हारी आँते कट जाएंगी। पर वह पाँच पैसे की छोटी शीशी उन्हें अपनी ओर बुला ही लेती थी। पैसे होते तो चूरन खरीदते नहीं तो दादी को चिढ़ाते। दादी कभी गाली देती, कभी डंडा लेकर दौड़ाती। भागते भागते वह कभी कठपुतली वालों के टोले में चले जाते, कभी नट नटिन का खेल देखते। शाम से लेकर रात को सोने तक वह सब बाहर दुवारे पर खेलते रहते। पाँचवी तक यह सिलसिला चलता रहा।

छठी में राधा का दाखिला शहर के स्कूल में करवा दिया गया। एक बार शहर गए तो लौटकर दसवीं की परीक्षा देने के बाद ही आ पायी। कितनी खुश थी राधा कि मैं जा करके सब दोस्तों से मिलूँगी।संजू से, पुत्तन से, गुड्डी से सरला से, भोला, बिरजू, नत्थू सबसे I हम सब खूब घूमेंगे, दादी की दुकान से चूरन लेकर आएंगे। राधा ने गाँव पहुँच कर देखा तो इन पाँच सालों में गाँव बहुत बदल चुका था। अब दादी का चूरन कोई नहीं खाता था। घर से बाहर निकलते ही ताई जी ने राधा को टोका, "कहाँ जा रही हो" ?

 राधा ने कहा, "गुड्डी और पुत्तन के घर (वो राधा के पटीदार थे)"। 

ताई जी बोली, "नहीं उनसे हमारी बातचीत बंद है। उनके घर मत जाना"। 

"अच्छा तो संजू के घर जाऊँ" ? 

"क्या करोगी संजू घर जाकर" ?

राधा मायूस सी अंदर आ गई। बातों बातों में नाऊन दीदी से पता चला संजू की शादी हो गयी हैं। गुड्डी और सरला की भी शादी हो गयी है। उनका गौना दो बरस बाद जायेगा। सरला अपने मामा के घर गयी है। भोला कल सुबह फूल लेकर आएँगा और बिरजू अभी दूध निकालने आएंगा, तब मिल लेना। 

राधा सोचने लगी, यह सब इतने बड़े हो गये ! मैं ही छोटी रह गयी।   

शाम को जब सब बाहर दादाजी के पास बैठे थे तो देखा दूर से पंडित जी चलते हुए आ रहे थे।

 राधा ने पूछा, "यह तो शुकुल पंडित जी नहीं लगते हैं"। 

भैया ने बताया, "हाँ यह उनके लड़के हैं"।

"शुकुल पंडित जी के लड़के मतलब संजू ना", राधा खुशी से चहकते हुए बोली।

 भैया बोले, "हाँ !हाँ !वही संजूवा"। 

राधा तो खुश हो गई कि वह इतने सालों बाद संजू को मिलेगी। राधा भाग कर गई और बोली, "संजू मैं राधा" ! 

वह तो उसे देखती रह गई। यह तो दूर-दूर तक उसका वह दोस्त नहीं लग रहा था। कितना बड़ा हो गया था। मूछें आ गई थी। उसने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर अभिवादन किया और आप कहते हुए राधा का हाल चाल पूछा। राधा के अंदर कुछ चटक सा गया। 

शाम को गाय भैसों का दूध दुहने के लिए बिरजू भी आया था। वह आँगन में दूध रखकर जाने लगा तो राधा ने पूछा, "बिरजू कैसे हो" ? 

वह बोला, "ठीक हूँ बिटिया"। 

"बिटिया . . ? वह राधा से बिटिया कब हो गई . . ? क्या इन्हीं दोस्तों से मिलने के लिए वह इतनी लालायित थी"।

सालों बीत गये। वापस कभी राधा का गाँव जाना नहीं हो पाया। आई गई भी तो बस सुबह आकर शाम को निकल गयी। आज चालीस साल बाद राधा वापस गाँव में बैठी है। आज वह एक ननद नहीं है। बुआ भी नहीं है , बुआ दादी है। हाँ बड़े भाई के बेटे की बेटी के शादी समारोह में शामिल होने के लिए सब आएँ थे। सब मतलब बहनें जो बची है, आ पायी हैं, एक राधा की बची हुई बुआ ,जो अब परदादी बुआ है।

बाहर दुवारे पर ताई जी, ताऊ जी, बुआ, राधा, भैया सब बैठे हुए हैं। थोड़ी दूरी पर संजू पूजा का सामान लिखवा रहा है। नत्थू भी बैठा है, शायद राशन और बर्तन के सामान के लिए बड़े भैया ने उसे बुलाया है। कुछ दूरी पर भोला ताऊ जी से बातें कर रहा है। कल फूल का सारा इंतजाम उसे करना है। छोटे वाले भैया बिरजू से बात कर रहे हैं। दो-तीन दिन शादी के समय में दूध के बारे में।

वक़्त के साथ सब कुछ कितना बदल जाता है। कितनी अजीब बात है न, बचपन के कुछ दोस्त जो सुबह सो कर उठने के बाद से रात सोने तक साथ रहते थे। आज आमने सामने बैठे हुए हैं और इनको देखकर नहीं लगता है कि यह एक दूसरे को पहचानते भी हैं। 


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