Yogesh Mali

Comedy Horror Fantasy

4  

Yogesh Mali

Comedy Horror Fantasy

वो रात की हसीना या कुछ और....

वो रात की हसीना या कुछ और....

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यह एक एक काल्पनिक कहानी है। इसका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है।

अब आगे.......

आज मैं स्कूल से घर आया तो देखा मेरी चारों बहनें झगड़े के अलावा कुछ गंभीर बाते कर रही है। मैंने उत्साह के साथ पूछा । अरे ! मुझे भी तो बताओ। क्या बात चल रही है ? कुछ हुआ क्या?

मेरी बातें सुन उन्होंने कहा, क्या आपको नही पता, कल रात क्या हुआ? आप भी तो यहीं सो रहे थे।

मैंने कहा, मुझे कुछ नहीं पता मैं तो बिस्तर पर पड़ते ही सो गया था। बहनों ने कहा, ठीक है हम बताते है। पर हँसना नहीं। मैंने कहा, ठीक है, बताओ मुझे मैं नहीं हँसूँगा। छोटी बहन ने कहा, जब रात को हम सोने गए, तो हम आपस मे बातें कर रहे थे। उसी समय ऐसा लगा कि जैसे बाहर कोई खड़ा है। कभी वह दाएँ जा रहा था तो कभी बाएँ क्योंकि उसकी परछाईं दरवाजे से होकर अंदर की ओर आ रही थी। पहले तो हम घबराकर पीछे हो गए। हमें लगा कोई चोर है। पर जब हमने आवाज दी कौन है यहाँ ? तो जोरों से पायल की आवाज और दौड़ने का एहसास हुआ। ऐसा लगा कोई पायल पहने स्त्री यहाँ से दौड़कर गई।

मैं जोर से हँसा, और कहा मतलब वो चोर नहीं चोरनी थी।

जो पायल पहनकर सब को बताते हुए चोरी करती है।

मेरी बहनों ने मुझे गुस्से से देखा और कहा आप पागल हो गए हो क्या? कोई पायल पहनकर चोरी क्यों करेगा।

हमने तो सुना है कि रात को एक चुड़ैल पायल पहनकर घूमती है और कल रात वह यहाँ आई थी। मैंने हँसकर कहा, क्यों नही तुमसे मिलने आई होगी। बहनों ने कहा, हम सच कह रहे हैं। ये बात हमने मम्मी पापा को भी बताया तो उन्होंने कहा , की वो भाजी वाली पड़ोसन होगी। रात को आई होगी यहाँ।

मैंने कहा , हो सकता है। बहन ने कहा हम यह जाँच पड़ताल करने गए थे वहाँ पर, उसने कहा वो कल रात जल्दी सो गई थी। हमने जब पुछा की क्या तुम पायल पहनती हो, तो उसने अपने पैर आगे कर दिया। उसने कोई पायल नहीं पहना था। हमे यकीन हो गया है कि वो रात मे घूमने वाली चुड़ैल है।

मैंने कहा तुम डरो मत आज रात मैं जागूगाँ और देखूँगा की कौन सी चुड़ैल है। मिल गई तो अपने सारे काम उसी से करवाऊँगा। संध्या हो चुकी थी। रात का अँधेरा चारों ओर फैलने को बेताब दिखाई दे रहा था। हम भोजन करने गए। मेरे मन पसंद की सब्जी थी। मैंने खाना शुरू कर दिया। पर मेरी नजर, मेरी बहनों पर गयी। वह बहुत धीरे धीरे खा रही थी। मैं समझ गया कि ये सभी बेचैन हैं और डर रहें हैं ।

मैंने अपना भोजन समाप्त किया और रात होने का इंतजार करने लगा। रात अधिक हो चुकी थी। मैं उस चोरनी को पकड़ कर यह साबित करना चाहता था कि डायन जैसी कोई चीज नही होती। भोजन अधिक करने की वजह से मुझे झपकी आने लगी थी। रात के एक बज चुके थे। कुछ देर के लिए मेरी आंखें बंद हुई। उतने मे ही मेरी मम्मी की आवाज मेरे कान मे गुजंने लगी। वो मुझे नींद से उठाने की कोशिश कर रही थी। मैं उबता हुआ उठा। मम्मी मुझे कुछ डरी और सहमी हुई लगी। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। हाथ मे सलीया लिये बाहर आया पर मुझे ना कोई दिखाई दिया ना कुछ सुनाई दिया। मैंने चारों ओर देखा। मुझे कोई नही दिख रहा था। सिर्फ कुत्ते भौक रहे थे उसी की आवाज कहीं दूर से आ रही थीं। मैं घर के अंदर आया। मैंने हँसते हुए कहा, कुछ नहीं है। यहां कोई नही। तुम लोग खामखाह डर रहे हो। उसी समय सामने की इमारत के गेट के पीछे से हलकी सी पायल की आवाज आई। मैं चौंक गया अब मुझे एहसास हो गया था। कोई तो जरूर है पर मैंने नजर अंदाज किया क्योंकि मैं चाहता कि मेरा परिवार ना डरे। मैंने उन्हें बहका कर अंदर लाया। और उसी समय से मैं उस चोरनी को पकड़ने की योजना बनाने लगा। पर रह रह कर मेरे मन मे सवाल उठता। अगर मेरी बहनों का कहना सच हुआ तो। फिर मेरा मन केहता कि वह कोई औरत है, या फिर किसी की शरारत।

अगली रात मैं तैयार बैठा था। मैंने हाथ मैं एक लोहे की छड़ ले ली तथा दरवाजा थोड़ा सा बंद रखा पर किवाड़ नही लगाया। अब उसी का इंतजार था।

रात लगभग दो बजे पायल की हलकी हलकी आवाज आने लगी। धीरे धीरे आवाज बढ़ने लगी। रात का समय और गहरी अँधेरी रात। मेरा मन भय से भर गया परंतु थोड़ी हिम्मत के साथ मैं आगे बढ़ा। वो आवाज भी साफ सुनाई दे रही थी। जैसे की वह मेरे घर के बहुत करीब हो। मैंने दबे पांव झटके से दरवाजा खोला और यह क्या कोई नही। पर भागने की आवाज छम छम छम छम आने लगी मैं उसी दिशा मे दौड़ पड़ा । कुछ दूर पहुंचने पर वो आवाज अब रिंका पार्क के ओर से आने लगी और एक हल्की सी परछाई दिखाई दी। मैंने बिना कुछ सोचे समझे इमारत से लगे दीवार पर चढ़ गया। तुरंत ही दूसरी तरफ कूद गया। अब वह आवाज शांत थी और चारों ओर सन्नाटा। मैं डरते हुए अपने कदम बढ़ा रहा था। इमारत के पीछे दुकानदारों के लिए दो शौचालय बनाए गए थे। मैंने उन्हें खोल कर देखा। पर कोई ना था। फिर मैंने शौचालय के पीछे देखा पर कोई नही। पर मुझे वहाँ किसी के होने का आभास हो रहा था। अचानक मेरी नजर शौचालय के छत पर गई और मानो मेरा शरीर काँप सा गया। ठीक मेरे उपर छत पर एक सुंदर लिबास मे सुंदरी खड़ी थी। जिसका यौवन उफान मार रहा था। शरीर मानो साँचे मे डालकर बनाया गया हो। चेहरे का गोरा रंग इस प्रकार चमक रहा था जैसे चद्रंमा की रोशनी छन छन कर अपना प्रकाश उस पर बिखेर रहा हो। उसकी आँखों मे चमक और आकर्षण इतना था कि मानो मैं उसके चेहरे से नजर नही हटा पा रहा था। उसकी सुदंरता धीरे धीरे मेरे मन मे समा रही थी। मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि यह सुंदरी बिना सहारे छत पर कैसे चढ़ गई और मैं उस तक कैसे पहुँचूँ। उसी समय मेरे हाथ से लोहे की छड़ छूट गई और उसकी आवाज से मेरा ध्यान भंग हो गया। मैं छड़ उठाने नीचे झुका और उपर देखा तो वहाँ से सुंदरी नदारद हो गई थी। वहाँ रह गई थी सिर्फ धुंध।

उस धुंध मे चारों ओर नजर घुमा रहा हूँ पर वो कहीं दिख नही रही। कुछ समझ मे नही आ रहा कि वो इतने जल्दी कहा चली गई। अब उसे बेचैनी से खोज रहा हूँ। मुझे ऐसा लग रहा था। जैसे उसे एक बार और देख लूँ।

मेरे मन मे बार बार एक यह खयाल आया कि अगर वह सच मे चुड़ैल हुई तो। पर अभी तक तो मैंने यही सुना था कि चुड़ैल बहुत डरावनी होती है और खतरनाक भी।

पर इसे देख के तो ऐसा लग रहा था जैसे "एक बार देखा है, बार बार देखने की हवस है।"

अब रात बहुत हो चुकी थी मैं घर की ओर चल पड़ा । पर एक अजीब सा एहसास मन को हो रहा था जैसे अभी भी मुझ पर कोई नजर रखे हुए है। मन मे एक डर सा लग रहा था। थोड़ी दुर चलने के बाद मे जोरदार दौड़ लगाया और सीधे घर आकर रूका। मेरी साँसे तेज चल रही थी, मुझे देख मेरी मम्मी ने आगे बढ़कर एक झापड़ लगाया, और कहा पगला गया है रात मैं सलीया लिए दौड़ रहा है कोई चोर समझ के तेरी धुलाई कर देगा। और कौन थी वो? पता नही पर कोई लड़की थी मैंने देखा उसे। मेरी बहन तपाक से बोल पड़ी।

बोला था ना मैंने चुड़ैल है वो। बहुत डरावनी थी ना वो आपको डर नही लगा क्या? मैंने कहा अरे तुम लोग पागल हो। वो कोई चुड़ैल नही बल्कि एक लड़की है मुझे एसा लगता है।

मैं अपने घर वालों को पूरी बात नहीं बताना चाहता था। मुझे भय था कहीं वो डर ना जाए, उसी डर से मेरा रात को घर से बाहर निकलना बंद ना हो जाए। नहीं तो मैं उसे दुबारा नहीं देख पाउगाँ। पर रात भर मुझे नींद नही आई। उसी का चेहरा बार बार मेरी नजर के सामने छा जाता। उस सुंदरी का चेहरा मानो एक तेज खजंर की तरह मेरे हृदय मे समा गई थी।

एक हलका सा मीठा दर्द सीने मे उठता और मैं एक लंबी साँसें ले लेकर अपने दिल को शांत करता। बड़ी ही अजीब पर मन को लुभाने वाला ख्याल आ रहा था।

सुबह का अलार्म बजा और मैं रोज की तरह तैयार होने लगा।

मैं जल्दी ही कॉलेज पहुंच गया। पर आज पढ़ने मे मन नही लग रहा था। मैं आज बार बार घड़ी देख रहा था। पर मानो आज समय बहुत धीमी गती से बीत रहा था ।जैसे तैसे छुट्टी हुई और मैं घर आया। जल्दी से भोजन कर उठ गया। मानो भूख ही नही है। और तैयार होकर बाहर निकला। मम्मी ने पुछा कहाँ जा रहा है, मैंने कहा कुछ काम है अभी आता हूँ बोल कर निकल गया। मैं जल्दी जल्दी चल रहा था मानो पैरो मे पंख लगा हो। मैं तुरंत ही उस इमारत के गेट पर पहुंच गया। जहाँ कल रात मैंने उसे देखा था। चौकीदार मुझे पहचानता था इसलिए उसने मुझे सलाम किया। मैं उसके पास गया और उसका हालचाल लिया। मैंने चौकीदार से पुछा आप रात मे कहाँ थे। मैं कल रात यही टहल रहा था रोड पर भोजन के बाद। मैं उस चौकीदार से उस सुंदरी का भेद चाहता था। इसलिए यह सवाल उससे किया। चौकीदार ने कहा, नहीं मैं गेट पर नही रहता रात को। हमें सख्त चेतावनी दी गई है कि रात मे 11 के बाद कोई भी चौकीदार नीचे नहीं आएगा। हमें छत पर रूम दिया है हम उसी मे रहते हैं।

मुझे यह सुनकर बड़ी अचरज हुआ साथ ही मेरा मन उदास होने लगा, क्योंकि मुझे मेरी बहनों का कहना याद आने लगा।

फिर भी मेरा मन नही मान रहा था। मुझे लग रहा था वह एक लड़की है जो रात मे घुमती है। शायद उसे रात मे टहलना पसंद हो। पर डर मुझे भी लग रहा था। पर उसका हसीन चेहरा अभी भी मेरे दिमाग पर छाया हुआ था। मैंने चौकीदार से पूछा कि क्या रात मे नीचे कोई नही उतरता। उसने कहा नही कोई नहीं उतरता। मैंने कहा, तुम्हें क्या पता तुम तो ऊपर कमरे मे रहते हो। कोई नीचे आएगा भी तो तुम्हें पता नही चलेगा। चौकीदार हंसने लगा और कहने लगा। अरे भाई मैं रात को सभी विंग के गेट को ताला लगा देता हूँ। तो ना कोई बाहर आ सकता है , ना कोई अंदर जा सकता है। मेन गेट को भी ताला रहता है इसलिए कोई बाहर वाला भी अंदर नही आ सकता। इस बात पर मैं हँसने लगा, और कहा तुमने सही कहा कोई नही आ सकता। मैंने मन मे ही कहा, इसे क्या पता की कल रात मैं खुद यहाँ आया था और एक लड़की भी यहाँ थी। इस मुर्ख को क्या पता।

अब मैं अपनी घर की ओर चला, क्योंकि मुझे जो जानकारी चाहिए थी मील गई और अब कोई डर नही था कि अगर मैं रात को यहाँ आऊँगा तो मुझे कोई चोर समझ के पकड़ लेगा।

मैं खुश था और रात होने का इंतजार करने लगा।

रात के दस बज रहे थे। मैंने मम्मी से कहा मुझे भूख लगी है खाना जल्दी लगा दे। मम्मी ने भोजन दिया मैंने भी तुरंत भोजन कर उठ गया। क्योंकि मुझे तलप किसी और की थी। अब मैं सबके सोने का इंतजार करने लगा। रात के सवा बारह हो गए और मैंने देखा सब सो रहें है। मैं तैयार हुआ। आज सबसे पहले मैंने मुंह धोएँ फिर पावडर लगाकर बालों को भी सँवारा। आईने मे मैंने अपने आप को दख अपनी तारीफ भी की। और लोहे का सलीया हाथ मे लेकर दबे पांव घर से निकला। रात मे हमेशा मैं अपने साथ सलीया रखता हूँ अपनी सुरक्षा के लिए। मुझे पहले से इसकी आदत सी थी। मैंने सलीये को अपनी शर्ट मे छुपा लिया। इसके बाद दीवार फाँदकर इमारत के पीछे आ गया। अब चारों ओर नजर घुमाने लगा। मेरी नजर उसे ढूँढने लगी।

मैंने शौचालय के उपर, बगीचे मे, दीवार के आस पास देखा पर वो नहीं मिली। मैं वहीं दीवार के पास छुप कर बैठ गया। और उसका इंतजार करने लगा। चारों ओर घोर अंधकार था। सन्नाटा इतना कि सुई गीरे तो उसकी भी आवाज आए। मन डर से काँपने लगा। पर वह नही आई। रह रहकर मैं डर जाता और मेरा मन सिहर उठता कि बहनों की बात सच ना हो जाए। या उस सुंदरी के बजाय किसी असली डायन से मुलाकात ना हो जाएं। मन मे डर था क्योंकि किसी ना किसी कारणवश लोग और वो चौकीदार रात मे नीचे नही आते थे। अब मेरे सबर और इंतजार का बांध टूटने लगा था। काफी समय हो चुका था। लगभग रात के दो बजे होंगे।

मैं जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। दीवार की ओर अपने कदम बढ़ाये। मन उदास था। मैं दीवार फांदने के लिए तैयार हुआ ही था कि एक बडी प्यारी सी मीठी आवाज मैंने सुनी।

"इतने इंतजार का क्या लाभ, क्या मूझ से मिले बगैर चले जाओगे।"

यह सुनकर मेरा रोम रोम खिल उठा। मैं झट से पीछे मुड़ा। कुछ दूर पर ही एक धुंध और उसके बीच प्यारी सी मुस्कान देती हुई वो सुंदरी। चारों ओर धुंध ही धुंध और उसके बीच मे खड़ी वह सुंदरी मैं उसे देखता ही रह गया। उसकी मधुर आवाज ने मुझ पर जादू सा असर किया था। मैंने देखा उसने काले रंग का लंबा गाउन जैसा पहना था उसके दूध के समान रंग था। काला रंग बहुत खिल रहा था. उसके बाल लंबे व रेशम के समान थे जो खुले थे हवा के कारण उड रहे थे। उसके होट लाल व सुंदर थे। वो मुझे देख कर मुस्करा रही थी। उसकी मुस्कान इतनी प्यारी थी जो कि दिल को छु रही थी। पर यह धुंध कहा से आ रही थी कुछ समझ मे नही आ रहा था। मैं धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा पर ये क्या वो मुझसे डर कर पीछे हटने लगी। मैं यह देख के रूक गया।

मैंने कहा डरो मत , मैं कुछ नही करूंगा। वो यह सुन कर जोर से हंसने लगी, और कहा मुझे किसी से डर नही लगता बल्कि लोग मुझसे डरते है। मैंने कहा, क्यों तुम तो इतनी प्यारी हो तुमसे क्यों डर लगेगा। उसने कहा, तुम या तो बहुत ही सहासी और निडर हो या फिर बेवकूफ। क्या ,मैं और बेवकूफ क्या मुझे नही पता, तुम एक चोरनी हो। वो हँसने लगी और बोली तुम्हारा क्या चुराया है मैंने, जो मुझे चोरनी कहा। चलो छोड़ो ये बताओ तुम मुझे क्यो ढूंढ रहे हो? क्या काम है मुझसे? कुछ काम नही है तुम्हें कल देखा था तो तुम्हें फिर से देखने के लिए बैचेन था। तो आ गया। ओ हो तो क्या मैं इतनी सुंदर हूँ। मैंने हाँ कहा और थोड़ा उसके पास आया। इस बार वो पीछे नही हटी बल्कि शरमा गई। मैंने उसे कहा क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी। उसने कहा, क्या करोगे मुझसे दोस्ती करके। मैं एक अनजान लड़की हूँ। तुम मेरे बारे मे कुछ नहीं जानते। मैं कौन हूँ? कहाँ से आयी हूँ? मैं क्या करती हूँ? तुम्हें कुछ नही पता। दोस्ती के लिए एक दुसरे को जानना जरूरी है। मैं तपाक से बोल पड़ा । बहुत आसान है। मैं पहले अपने बारे मे बताता हूँ। मैं यहीं रेहता हूँ सामने वाले घर मे। मेरा नाम योगेश है और काम कुछ नही करता इस समय तुम्हारे पीछे पड़ा हूँ और दोस्ती करना चाहता हूँ।

मैं तुम्हें भी जान गया हूँ। तुम एक चोरनी हो जो बहुत खूबसूरत हो और दिल चुराती हो। इस इमारत मे रहती हो और इन्हीं लोगों को डराती हो और मुझसे दोस्ती करने मे डरती हो। वो हसने लगी और कहा सोच लो दोस्ती करने के बाद पीछे तो नही हटोगे। मुझपर विश्वास करोगे। मैंने तुरंत हाँ मे सर हिला दिया। उसने कहा ठीक है तो हो गई हमारी दोस्ती। पर मैं तुम्हे बताना चाहती हूँ की मैं यहाँ नही रहती और मैं कोई चोर नही। मेरा घर बहुत दुर है पर वहाँ जाने का रास्ता यहाँ से है। मैं यहाँ रात मे घूमने आती हूँ क्योंकि मैं दिन मे नही घूम सकती। अच्छा ऐसा है कि तुम अपने घर वालों से डरती हो। वै से भी तुम्हें रात मे नही घुमना चाहिए। क्योंकि आजकल का जमाना ठीक नही। उसने हँस कर कहा , इस जमाने से मुझे कोई डर नही, और नाही कोई रोक टोक है । बस मुझे रात को घुमना पसंद है।

फिर ये बताओ उस दिन तुम मेरे घर के पास क्या कर रही थी। मेरे आते ही तुम कहाँ चली गई। तुम इतने उपर छत पर कैसे पहुंच गई और पलक झपकते कहाँ चली गई।

उसने कहा दोस्ती कि है तो दोस्त पर शक नही करते, और इन सवालों का कोइ जवाब नहीं दूँगी। बस इतना कहूँगी मैं भी तुम्हें ही देखने आती हूँ। मैं तुम्हें एक दो दिन नहीं बल्कि कई दिनों से देख रही थी। मैं यह सुनकर हैरान हो गया। मुझे लगा मानो मैं सपना देख रहा हूँ। जिस सुंदरीके पीछे मे पागल हो रहा हूँ वो खुद मुझे देखने आती थी। मेरा मन खुशी से फुला ना समा रहा था। मैंने पुछा क्यों तुम मुझे क्यों देखती थी। वो शरमा गई और नीचे देखने लगी। मैंने उसे कहा आज से हम दोनो की दोस्ती आज से पक्की। अब से मैं तुम्हें रोज मिलने आऊंगा क्योंकि मुझे भी तुम्हें देखे बिना रहा नही जाएगा। उसने भी मुसकरा कर हाँ मे जवाब दिया। उसने कहा बहुत समय हो गया है तुम्हारी मम्मी के उठने का समय हो गया है और अब तुम्हें जाना चाहिए। मैं कुछ समझा नहीं तुम्हें कैसे पता। उसने कहा ये बाद मे पुछना पेहले घर जाओ। मुझे जाने का मन नही था। मैंने उससे पूछा कल आओगी ना। उसने हाँ कहते हुए सिर नीचे कर लिए । मैंने देखा उसकी आँखें बंद थी और आंसू बहे जा रहे थे। सायद वह भी मुझे नही जाने देना चाहती थी। मैंने उसे कहा, कल फिर आऊगाँ। तुम रोना नही। यह कहकर मैं घर की ओर मुड़ा। जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, वो भी मुझे नम आंखों से देख रही थी पर उसकी आँखों का रंग हरा था और चारो तरफ धुंध।

मैं अपने घर आ गया। कुछ देर बाद मम्मी मेरे कमरे मे मुझे उठाने आ गई। मैं तो सोया ही नही था बस दिखावे के लिए अगंडाई लेत हुए उठा। जल्दी ही नहाकर कोलेज के लिए तैयार हुआ। माँ के पैर छू कर कोलेज के लिए रवाना हुआ। पूरे रास्ते उस सुंदरी का खयाल मन मे आ रहा था। मन आज बहुत खुश था। पर रह रह कर याद आ जाता कि वो मेरे बिछडने पर रोने लगी पर साथ में ही याद आया कि उसकी आंखें हरी हो गई थी तो मन सीहीर जाता। मैंने सोचा शायद क्या पता आंखे गीली हो और कोई हरी रोशनी उसकी आंखों पर पड़ी और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ हो की उसकी आंखें ही हरी है। मैं अपने आप से बाते करते हुए कोलेज पहुंच गया। मैंने अपने मन को इन सवालो से मुक्त कर अपने आप को शांत किया। पर पढ़ाई मे मन नही लग रहा था। अचानक मेरी नजर नम्रता पर गई। वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। वो अधिक तर मेरी मदत करती है। नम्रता उसी इमारत मे रहती है जहाँ मैं उस सुंदरी से मिलने जाता हूँ। आज सुबह से ही मेरे अंदर एक अजीब सी शक्ति का संचार था। पूरी रात ना सोने पर भी मेरी आंखों मे ना कोई नींद थी ना ही कोई थकान। मेरा शरीर एनर्जी से भरा हुआ था। मुझे लगा मम्मी ने सुबह जो बादाम का दुध दिया, यह उसी का असर है।

कोलेज का रेसस हुआ। उसी समय नम्रता मेरे पास आई और बैठ गई। नम्रता ने मुस्कुराते हुए कहा। क्यो जनाब क्या हालचाल है। दो दिनों से कुछ बदले से दिखाई दे रहें हो। बहुत खुश नजर आ रहे हो। मैंने कहा ऐसा कुछ भी नही है। उसने कहा, तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो। मैंने कहा ऐसा कुछ भी नही है मैं भला तुमसे क्यों कुछ छीपाने लगा तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। तो कल रात मेरे घर के नीचे क्या कर रहे थे।

मैं यह सुनकर डर सा गया, और कहा, कुछ नही। बस टेहलने आया था। पर तुमने कब देखा।

नम्रता ने कहा, जब तुम दीवार फांद कर कुदे तो मुझे एक हल्की सी आवाज आई । मैंने खिड़की से नीचे देखा तो तुम थे। शायद किसी को ढूंढ रहे थे। मैंने देखा, कुछ देर तक तुम चुपचाप बैठ कर किसी का इंतजार कर रहे थे। पहले मुझे लगा कि तुम मुझसे मिलने आए हो, तब तुम्हें उठकर जाते देखा तो सोचा आवाज दूँ पर तुम रूक कर पीछे मुडे और झाडियों की ओर चले गए। ऐसा लग रहा था तुम किसी से बात कर रहे थे पर वहां दुसरा कोई ना था। और आज भी कोलेज आते देखा तुम अपने आप से बातें कर रहे थे।

मैं हंसने लगा और कहा ऐसा कुछ नही है। मैं तो बस यूं ही कुछ सोच रहा था और खुद से बाते कर रहा था। और कल रात मैंने अपने एक दोस्त को वहाँ मिलने बुलाया था। पर इतनी रात को दोस्त से मिलना बात कुछ हजम नही हुई।

नम्रता ने लंबी सांस भरते हुए कहा, देखो मैं तो तुम्हें बस इतना समझाना चाहती हूँ कि इतनी रात को हमारे यहाँ मत आया करो। वहाँ एक आत्मा या चुड़ैल घुमती है जिसे हमारे यहाँ के सभी लोगो ने महसूस किया है इसलिए रात को कोइ घर से बाहर नही निकलता।

मैंने कहा , क्या उसने किसी को नुकसान पहुंचाया हैं। नम्रता ने नहीं मे जवाब दिया। फिर मैंने कहा, एसा कुछ नही होता। कोइ आत्मा या चुड़ैल नही होती। तुम कुछ भी कहो पर मेरा काम समझाना था समझा दिया अब तुम्हारी मर्जी। ऐसा बोलते हुए नम्रता वहाँ से चली गई। मैं उसकी ओर देखता रहा। क्योंकि उसने जिस विश्वास के साथ बोला था मुझे डर लगने लगा। मैंने सोचा क्यों ना अपने नए दोस्त को भी आगाह कर दूँ। अब मुझे इंतजार था कि कब छुट्टी हो, कब रात हो और मैं उससे मिलने जाउँ।

मेरे मन मे एक चिंता सताए जा रही थी, कि आज मे अपने साथ कुछ ले जाउँ क्योंकि नए दोस्त से खाली हाथ मिलाने जाना ठीक नही। मैंने बहुत सोचा पर समझ मे नही आया कि क्या लेकर जाउँ। घर जाते समय मैंने देखा कि रास्ते मे एक व्यक्ति गुलाब के फूल बेच रहा था। मैंने तुरंत ले लिया क्योंकि गुलाब अच्छे थे इसलिए नही, क्योंकि मेरे पास उपहार लेने के लिए उतने पैसे नही थे। मुझे घर से उतने पैसे नही मिलते थे क्योंकि मेरे घर की हालत थोड़ी तंग थी। मैंने एक चौकलेट भी खरीद ली और बैग मे छुपा कर रख लिए। अब रात होने का इंतजार था। मैंने ठीक पहले दिन की तरह भोजन करके अपने कमरे मे सोने चला गया, और सभी के सोने का इंतजार करने लगा। ठीक बारह बजे सबके सोने के पश्चात घर से निकल पड़ा । मैंने आज दीवार फादंते समय सावधानी बरती। जिससे किसी को पता ना चल सके। मैं तुरंत ही गंतव्य स्थान पर पहुंच गया। मैंने चौकलेट और फुल अपने पीछे छुपा लिए थे। मैंने मुड कर नम्रता की खिडकी की ओर देखा। उसके घर मे भी अंधेरा छाया हुआ था। मैं अब निश्चिंत होकर उसका इंतजार करने लगा। उसी समय मैंने देखा कि बरगद के जुने पेड के पीछे से अचानक धुआं उठने लगा। और उस सुंदरी का आगमन हुआ। मैं खुश हो गया। वो भी मुझे देखकर खुश थी। उसका चेहरा देखकर प्रतीत हो रहा था। अब मैं उसके पास गया, वो मुस्कुराते हुए थोड़ा आगे आई पर मैं उसे कुछ ना बोलते हुए पेड के पीछे देखने लगा। पर वहाँ मुझे कुछ ना मिला जिसे धुआं निकलता हो। वो अचरज से देखने लगी और कहने लगी क्या ढुंढ रहे हो। मैंने कहा कुछ नही, बस देख रहा था तुम आती हो तो धुआं कहाँ से आता है। वो हँसने लगी और कहा वो छोडो और ये बताओ आज मे कैसी दिख रही हूं। मैंने उसे पैर से सिर तक निहारा। उसने आज सफेद रंग का लंबा गाउन पहना था जो दूध के समान सफेद था और उमसे एक अलौकिक चमक थी। उसने गले मे हिरे की माला पेहनी थी। जिसकी चमक ऐसी थी कि आसपास की जगह रोशन हो रही थी, और उसके बीच उसका सुंदर मुखड़ा चांद सा प्रतीत हो रहा था। आज वो एक परी के समान दिखाई दे रही थी जैसा की आज तक टीव्ही पे देखा था। मैं उसके करीब आया और कहा आज तुम इतनी सुदंर दिख रही हो कि तुम से सुंदर दुनिया मे कोई नही होगा।

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो बहुत अमीर हो। अब मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरा लाया हुआ उपहार बहुत ही तुच्छ है। मैंने उसे छिपाए रखा। पर उसने कहा तुमने मेरे लिए कुछ लाया है जो दे नही रहे अब और कितना इंतजार कराओगे। मैं यह सुनकर चौंक गया कि इसे कैसे पता चला। मैंने उसे वो गुलाब का फूल और चौकलेट दिया वो बहुत खुश हुई, और कहा मेरे लिए यह सबसे नायाब तोहफा है, जो कि मेरे दोस्त ने मुझे दिया। उसने कहा मैंने भी तुम्हारे लिए कुछ लाया है। उसने हाथ पीछे किया और एक सुनहरा सेब मेरी ओर बढ़ाया। मैं उसे देखने लगा, मुझे लगा यह सोने का है। मैंने उसे अपने हाथ मे लिया देखा तो वह सच मे फल था। मैंने कहा सुनहरा सेब, ऐसा सेब ना मैंने देखा है नहीं नेट पर पढ़ा है। उसने कहा ये नेट क्या चिज है। मैंने हैरानी से उसकी ओर

देखा। मैंने पूछा पेहले ये बताओ कि यह फल कहाँ से लाई हो। उसने कहा मेरे घर के पास ऐसे बहुत से पेड़ है तुम इसे खा कर देखो। मैं यह तुम्हारे लिए लाई हूँ। मुझे डर लग रहा था पर उसके इतना जोर देने पर मैंने थोड़ा सा खाया। सच मे वह फल बहुत स्वादिष्ट था। मैंने पहली बार ऐसा फल खाया था जिसके स्वाद के मुकाबले कोई फल नही। फल खाने के पश्चात हम टहलने लगे मैंने उसके बारे मे जानना चाहा और पुछा तुम कहाँ रहती हो, बोलो तो कल से मैं वहीं आ जाया करूँगा। उसने कहा, तुम चाहकर भी मेरे यहाँ नही पहुंच सकते। पर कल मैं तुम्हें अपने बारे मे बताउंगी और अपने घर भी ले चलूँगी। अब तुम घर जाओ मैं भी जाती हूँ। मैंने कहा आज पहले तुम जाओ। उसने कहा ठीक है और पेड के पीछे चली गई। मैं भी तुरंत उसके पीछे गया। पर ये क्या वहाँ कोई नहीं था, रह गई थी सिर्फ धुंध।

रात खत्म होने वाली थी मैं जल्दी से अपने घर आया और सोने की कोशिश कर रहा था पर मुझे नींद नही आ रही थी। जैसे तैसे करवटें बदलते सुबह हो गई थी। मुझे ताजुब हो रहा था कि दो दिनों से बराबर ना सोने पर भी आंखों मे बिलकुल नींद नही थी। मैंने सुबह उठकर व्यायाम किया पर आज अधिक व्यायाम करने पर भी थकान महसूस नही हो रही थी। मैं तुरंत तैयार हुआ और कोलेज के लिए निकल पड़ा । कोलेज पहुँचकर यह पता चला कि आज हमें फिल्ड विजीट पर जाना है। मैं खुश हो गया हम सभी बस मे बैठ गए। मैं ज्यादा खुश था कि आज कुछ पढ़ना नही था। मेरे पुछने पर मैडम ने बताया कि आज हम उत्तन बीच पर बने वृद्धा आश्रम मे जाएंगे और समय मिले तो समुद्र के किनारे भी जाएंगे। मेरा मन तो खुशी से नाचने को कर रहा था पर क्या करें, अपने नाचते मन को संभालते हुए नम्रता के पास बैठ गया।

नम्रता ने मेरी ओर देखा और मुंह फेर लिया। मैंने उससे पुछा, क्या हुआ। नाराज हो क्या? उसनें कहा, मैं क्यो तुम से नाराज रहने लगी। जो लोग दोस्तों से कुछ छुपाते है उनसे दूर रहना ठीक है। मुझे बुरा लगा पर मैंने उस बात को मन पर नही लिया, क्योंकि मैं उसे मना लुगां। इतना मुझे विश्वास था।

हम जल्दी ही वहाँ पहुंचे। हमनें वहाँ का जायजा लिया। उनके साथ उनका मनोरंजन किया और आश्रम से बाहर आए। सभी जल्दी जल्दी बस मे बैठने लगे। मुझे आने मे थोड़ा समय लगा इसलिए मैं अतं मे चढ़ा । मैंने देखा सभी सीट भर गई थी और खडे रहने की भी जगह नही थी। मैंने नम्रता की ओर देखा। वो मुझे देख कर हंस रही थी। मैं बस के दरवाजे के पास खड़ा हो गया। बस चालक ने, बस चालू करने का प्रयत्न कर रहा था। अधिक समय तक बस जगह पर खड़ी थी इसलिए ब्रेक मे हवा भर गई थी और गाडी रिवर्स मे डालते हीे पीछे की ओर दौड़ पड़ी और ब्रेक नही लग रहा था। सभी चिल्लाने लगे। सभी के आंखों को यमराज नजर आने लगे। गाड़ी हाईवे पे यहां वहां पीछे की तरफ दौड़ने लगी। मेरी जान गले तक आने लगी और मेरा हात छुट गया। बस का दरवाजा खुला था मैं बाहर की ओर गिरा । पर मानो शरीर मे एक अजीब सी शक्ति का संचार हुआ हो। चलती बस से गीरने के बावजुद ना मुझे चोट लगी ना दर्द हुआ। मैं तुरंत उठा और बस की ओर दौड़ा। रास्ते मे एक बडा सा पत्थर उठाया और बस की पीछे के पहीये के नीचे फेंका। मुझे देख, वहाँ खडे लोग भी मेरी तरह पत्थर उठा उठा कर डालने लगे। बस रूक गई। सब बस से बाहर निकले, सभी मेरी ओर दौडे और मुझे धन्यवाद देने लगे। मैडम भी नीचे उतरी और प्रथमोपचार की पेटी मंगवाई। मरे पास आकर कहा, बेटा तुम्हे कहाँ चोट लगी। उन्होंने मुझे अच्छी तरह निहारा। मेरे शरीर पर कोई जख्म नहीं था। ना ही कोई सुजन। उन्हे अचरज हुआ। उसी समय बस चालक ने आकर कहा, तुमनें अकेले इतना बडा पत्थर कैसे उठाया। यह कम से कम चार लोगों से भी नही उठेगा। मैंने भी पत्थर को देखा और ताज्जूब खाया कि एसा काम मैंने किया है। मैडम ने कहा, सब उपर वाले की माया है जो सही समय इस गधे को ताकत दी और हमें बचा लिया। मैंने भी उपर वाले को धन्यवाद दिया। पर मुझे शक होने लगा क्योंकि ऐसी शक्ति का आभास मुझे कल रात से हो रहा था जब मैंने वह फल खाया था। मुझे विश्वास हो गया कि वो एक चमत्कारी शक्ति फल था जो मैंने खाया था। अब मैं सीना तान कर चलने लगा। अब मुझे थोड़ा डर लगने लगा कि मैंने तो एक फल खाया जिससे इतनी शक्ति मिली वह सुंदरी तो रोज खाती होगी। उसके पास ना जाने कितनी शक्ति होगी। मैं यह सोच कर और डर गया कि उसके पिता और भाई के पास तो अपार शक्ति होगी। उन्हें यदि पता लगा कि, मैं रोज उससे मिलता हूँ, तो वो मेरा क्या हाल करेंगे। मैं यह सब सोचकर पागल सा हो रहा था। तभी वहाँ नम्रता आई और कहा, तुमने आज बहुत ही साहस का काम किया है। फिर तुम्हारे माथे पर यह चिंता क्यों है। मैंने कहा कुछ नही बस थोड़ा डर गया था इसलिए। उसने कहा ठीक है, तुम आराम करो मैे बाद मे मिलती हूँ। मैं भी अपने मन को शांत करने लगा। हम बीच पर खुब टहले और घर आ गए। आज घर आने मे देरी हो गई थी। सब थके हुए दिख रहे थे पर मुझ पर थकान का कोइ असर नही था। अब मैं जान गया था कि मेरे अंदर यह शक्ति कहाँ से आई है। मैंने घर पहुँचकर झट से भोजन किया और रात होने का इंतजार करने लगा। सबके सोने के बाद मैं तैयार हुआ। आज मुझे उसके घर जाना था इसलिए लाल शर्ट और काली पैंट पहनी। बालो को सवाँरा और सलिया बगल मे छुपाकर चल दिया। रात के एक बजे होंगे, मैं जब वहाँ पहुंचा, तो देखा वो सुंदरी पहले से ही वहाँ खड़ी थी। शायद बेसबरी से मेरा इंतजार कर रही थी। मैंने उसकी ओर देखा। संयोग वश उसने भी आज लाल रंग का लंबा लिबास पहना था और वह बहुत सुंदर दिख रही थी। मानो कोई राजकुमारी हो। पर मेरे मन मे आज कई सवाल उमड़ रहे थे। समझ नही आ रहा था कहाँ से शुरू करूँ।

मैं उसके पास गया और कहा क्या तुम मुझे एक और फल खिला सकती हो? उसने कहा हाँ, पर क्यों? मैंने कहा, थोड़ी हिम्मत चाहिए थी इसलिए। उसने हाथ पीछे किए, पलक झपकते ही फल मेरे सामने रख दिया। मैंने तुरंत उस फल को खा लिया, और कहा अब बताओ मुझे अपने बारे मे, तुम कौन हो? कहाँ से आई हो? मेरी बहने और मेरी दोस्त कहती है कि यहाँ एक चुड़ैल रहती है। कहीं वो तुम तो नही। वो हँसने लगी और कहा नही। मैं ना ही चुड़ैल हूँ, ना ही कोई डायन, मैं एक लड़की हूँ। मैं तपाक से बोला तब तुम कोई जादुगरनी या फिर दूसरे ग्रह की एलियन हो। वो जोर जोर से हंसने लगी, और कहा वो भी नही। मैंने हैरानी से पूछा, तो तुम कौन हो? जल्दी से बताओ क्योंकि अब मुझे तुमसे डर लगने लगा है मुझे ये पता है जो फल तुमने मुझे खिलाया वो जादू का था। उसने कहा डरो मत, मुझ पर विश्वास करो, और मेरे साथ चलो। मैं डर गया। उसने कहा, मैं तुम्हें चाहती हूँ इसलिए तुम्हारी रक्षा भी करूँगी। जैसे आज की थी। मुझे पता था कि आज तुमपर मुसीबत आएगी, इसलिए मैंने वह फल तुम्हें खिलाया था। यह सुनकर मुझे विश्वास नही हुआ कि इसे आने वाले कल का आभास भी होता है। अब मुझ मे थोड़ा सा साहस और सुकून आया कि यह मुझे कोई हानी नही पहुँचाएगी, क्योंकि यह मुझसे प्रेम करती है। मैं उसे पसंद करने लगा था। पर इस रहस्य ने मेरे दिमाग के तार अलग अलग कर दिए थे। मैंने उसपर भरोसा किया और कहा, ठीक है ले चलो मुझे अपने घर। और अपने बारे मे भी बताओ। और सबसे पहले यह बताओ कि तुम्हारे कितने भाई है। वो यह सुनकर हंसने लगी और कहा डरो मत मेरा कोई भाई नही है। मुझे भी थोड़ा सुकून हुआ। मैं उसके साथ चल दिया। वो मुझे पेड़ के पीछे ले गई और पेड़ पर हाथ रखा उसी समय पेड़ के नीचे एक दरवाजा खुला। उसके अंदर सीढ़ियां बनी हुई थी। हम उन सीढ़ियों से अंदर उतर गए। अंदर जाते ही दरवाजा बंद हो गया और था तो बस चारों ओर घना अंधेरा। कुछ दिखाई नही दे रहा था डर के मारे मेरी हालत खराब होने लगी थी। मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया। हाथ पकड़ते ही मेरे शरीर मे मानो बिजली की लहर दौड़ गई। मैंने उसका हात छोड़ दिया। वो यह देख हंसने लगी और कहा चिंता मत करो और एक ताली बजा दिया। ताली बजाते ही चारों ओर रोशनी हो गई। अब सब कुछ साफ साफ दिख रहा था। मैंने कहा, तुम्हें क्या सारी जादुई विद्या आती है। उसने कहा, हाँ हमारे यहाँ सभी को आती है। यह बोलकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम दोनों सुरंग के अंदर चलने लगे। मैंने कहा, तुमने मुझे बताया नही। यह रास्ता कहाँ जाता है, क्या रास्ता खत्म होते ही तुम्हारा घर है। उसने कहा नही अभी तुम्हें लंबा सफर तय करना है मेरे साथ। मैंने कहा ठीक है पर सुबह होने से पहले हम लौट तो आएंगे ना। उसने मुझसे कहा तुम क्या मुझ पर विश्वास करते हो। मैंने हाँ मे सिर हिलाया। क्या तुम मुझसे प्रेम करते हो? उसने मेरे दिल की बात पुछ ली। क्योंकि वह सुंदरी के उपर, मैं पहले दिन से ही मुग्ध था। मैंने उस का हाथ पकड़कर हाँ कहा। वह मुस्कराई। उसी समय सुरंग के अंदर समुद्र की लहरो की आवाज आने लगी। मैं समझ गया कि यह सुरंग समुद्र के किनारे खुलता है और ये समुंद्र के किनारे कहीं रहती है। हम जैसे ही सुरंग से बाहर निकले तो देखा, सामने विशालकाय समुद्र अपनी लहरों के साथ गर्जना कर हमारा स्वागत कर रहा हो। मैंने पुछा कहां है तुम्हारा घर मुझे दिखाई नही दे रहा। उसने समुद्र की ओर इशारा करते हुए कहा, यही मेरा घर है। मैंने ध्यान से देखा पर मुझे कोई नाव नही दिखाई दी। मुझे लगा शायद यह किसी बडे नाव पर घर बनाकर रहती होगी। क्योंकि मैंने "कहो ना प्यार है" फिल्म मे देखा था। उसमें उसका नायक एक बड़े से नाव मे घर बनाकर रहता है। मुझे वह याद आया और मैं उस तरह की नाव ढूंढने लगा पर कुछ दिखाई नही दिया।

मैंने उससे पुछा, कहाँ है तुम्हारा घर।

उसने कहा, इस समुद्र के अंदर। मैं यह सुनकर अपने माथे पर हाथ रख वहीं बैठ गया। उसने मेरा हाथ पकड़ कर उठाया और कहा, मैं आज जो तुम्हें बताने जा रही हूँ ध्यान से सुनो, और मुझपर विश्वास करो। मैंने कहा विश्वास है इसलिए तो यहाँ तक आया। पर ये तो बताओ तुम क्या हो? कौन हो? तुम सच बताओ। सच जानकर भी, मैं तुम्हारा साथ कभी नही छोडूंगा। अब कुछ मत छुपाओ। सब बता दो। उसने कहा ठीक है। तो सुनो, मैं भी पृथ्वी की निवासी हूँ पर फर्क यह है कि तुम धरती पर रहते हो और मैं समुद्र मे। इसलिए मैं यहाँ दिन मे नही आती क्योंकि सूर्य की सीधी रोशनी मुझे सहन नही होती। तुम्हारे धरती पर लोकतंत्र है पर हमारे यहाँ अभी भी राजतंत्र है। समुद्र मे भी कई बड़े बड़े राज्य हैं और मेरे पिता समुंद्र के सम्राट है। मैं उनकी इकलौती सतांन हूँ। अर्थात समुद्र की राजकुमारी हूँ। हमारे अंदर अलौकिक शक्ति है। जिसे तुम जादू कहते हो। मैं तुम्हें पहले से चाहती थी इसलिए तुम्हें देखने आती थी। यह सुनकर मैं हैरान हो गया। पर अब मन मे शांति थी। क्योंकि मेरी प्रेमिका कोई चुड़ैल या डायन नही बल्कि समुद्र की राजकुमारी थी। मैंने हँसते हुए कहा अब कोई चिंता नही, बोलो कहाँ चलना है यह बोलकर मैं आगे चल दिया। अचानक रूक गया और कहा, मुझे तो तैरने भी नही आता। और मैं पानी मे इतने देर रहूगाँ कैसे। मर जाऊंगा मैं तो। क्या तुम मुझे मारकर मेरी रूह तो नही ले जाओगी। उसने कहा, और भागो आगे। मैं निराश होकर खड़ा हो गया और मेरे सामने था एक विशालकाय समुंद्र और पीछे खड़ी थी वो सुंदरी।

सामने विशाल समुद्र दिन मे जितना सुदंर दिखाई देता है। रात मे उतना ही भयानक था। उसकी लहरो की आवाज चारों ओर गुजं रही थी। मैंने उस सुंदरी को देखा। वह भी मुझे ही देख रही थी। मैंने उससे कहा, तुमने मुझे अपने बारे मे सब बताया। मुझे तुम पर विश्वास है। पर मुझे डर लग रहा है। एक तो तुम राजकुमारी हो, वो भी पूरे समुद्र जगत की और मैं धरती पर रहनेवाला एक साधारण सा मनुष्य। तुम्हारे पास जादुई शक्ति है यहाँ तक की इस समुद्र के अंदर कितने रहस्य है ये भी मुझे पता नही। मुझे तो तैरने भी नही आता। मैं कैसे जाउंगा। उसने कहा, तुम इसकी चिंता मत करो। मैं तुम्हें ले चलूँगी। तुम यह कदा पहन लो। इससे तुम पानी मे भी सांस ले सकोगे। और मछलियों की तरह तेजी से तैरने लगोगे। मैंने झट से उस कडे को अपने हाथ मे पहन लिया। सुंदरी आगे बढ़ी और अपने हाथ मे समुद्र का थोड़ा सा जल लेकर कुछ मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते एक बड़ी सी सार्क मछली किनारे आ गई। मैं देखते ही भय भीत हो गया। उसने कहा डरो मत, मैंने ही इसे बुलाया है। हम इस पर बैठ कर ही जाएंगे। मैं डर कर पीछे हटने लगा। मैंने कहा मैं नही जाऊँगा। मुझे बुखार है। पानी कितना ठंडा है । मेरी तबीयत खराब हो जाएगी। मेरी मम्मी मुझे मारेगी। मैंने बहुत बहाने किए, पर वह नही मानी और वह हसने लगी । उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और जबरन घसीटते हुए मुझे उस मछली के पास ले गई। वह मछली इतनी विशाल थी मानो एक जहाज। वह मुझे लेकर उस पर चढ़ गई। मैं डरते हुऐ उसके पीछे बैठ गया। मछली आगे पानी मे बडी तेजी से तैरने लगी। अचानक पानी के अंदर चली गई। पर यह क्या? मुझे पानी का कोई असर नही हुआ मानो मैं धरती पर ही हूँ। ना ही मुझे सांस लेने मे तकलीफ़ थी ना ही पानी के हलकोरों का ही कोई असर था। हम बहुत जल्दी ही उस जगह पहुंच गए जहाँ उसका महल था। मैं नीचे उतरा। मैंने देखा कई लोग हमारे स्वागत के लिए आए हुए थे। वहाँ पर कई प्रकार के समुंद्री जीव और विशालकाय जीव थे। हम सभी के साथ महल तक पहुंचे। मैंने देखा उसका पूरा महल मोतीयों से बना हुआ था। दरवाजे पर बडे बडे हीरे लगे थे। मन मे आया कि एक भी हीरा मील जाए तो जीवन भर की गरीबी दूर हो जाएगी। दरवाजे के बाहर बहुत सी जलपरियां कतार मे खड़ी थी। वह सभी इतनी सुंदर थी मानो नजर ना हटे। पर राजकुमारी पर नजर जाते ही उनकी सुंदरता पानी लगने लगी। सुंदरी मेरा हाथ पकड़ेहुए थी। मुझे डर लग रहा था कि यदि सम्राट ने देखा तो क्रोधित हो जाएगा। मैंने देखा कि हमे देखने के लिए बहुत से लोग एकत्र हुए थे। वे सभी मुझे घुर घुर के देख रहे थे। उनके बच्चे मुझे देख ताली बजा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने पहली बार मनुष्य देखा हो। ऐसा लग रहा था कि प्राणी सग्रंहालय मे नया प्राणी आया हो। फिर वह मुझे लेकर भवन मे पहुंची। वहाँ सम्राट एक सिंहासन पर बैठ मुस्करा रहे थे। इस पर मुझे बडा अचरज हुआ और संदेह भी। क्योंकि उन्हे देख एसा लग रहा था मानो वह मेरा ही इंतजार कर रहें हैं। मैंने मुस्कुरा कर उनका वंदन किया। उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा। मैं उन्हें ध्यान से निहार रहा था। उनकी लंबी सी सफेद सी दाढी, राजशी पोशाक और सिर पर मुकूट था। मुकूट पूरे बड़े बड़े मोतियों से बना था। बीचोबीच एक बड़ा सा हीरा था।

उन्होंने राजकुमारी से कहा, क्या यही वह साहसी और ईमानदार बालक है जिसका तुम वर्णन करती हो। उसने कहा हाँ। यही है वह जिससे मुझे अत्यंत प्रेम है। सम्राट ने कुछ विचार करते हुए कहा, क्या यह बालक इस योग्य है। राजकुमारी ने हाँ कहकर सिर नीचे कर लिया। उन्होंने मुझे देखते हुए कहा। यदि तुम राजकुमारी को चाहते हो तो पहले तुम्हें एक परीक्षा देकर अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी। ।मैं कुछ कहता उससें पहले ही उन्होंने दरबार मे कहा कि कल ही सुबह इस धरती वासी की परीक्षा ली जाएगी। यह कर वह उठे और महल के भीतर चल दिए। मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था, कि मेरे साथ क्या हो रहा है और मुझे किस मुसीबत मे डालने की इनकी योजना है। मैं अंदर से भयभीत होने लगा। मन ही मन सोचने लगा क्या पता ये लोग मेरा क्या करेंगे। पर मन ही मन सोचने लगा राजकुमारी से प्रेम करने की सजा है ये। अब कभी घर जा पाऊँगा भी या नही। मुझे सारे भगवान याद आने लगे। भगवान से प्रार्थना की हे भगवान अगर मैं अपने घर वापस आ जाउंगा तो देशी घी के लड्डु चढ़ाऊँगा। पर मुझे इन मुसीबतों से बचा ले।

उसी समय सुंदरी ने मुझसे कहा। तुम चिंता मत करो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी। मुझे तुमपर विश्वास है। तुम इस परीक्षा मे जरूर सफल हो जाओगे, क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ। यह बोलकर वो मुझे एक कमरे मे ले गई। जहाँ सभी सुख के साधन उपलब्ध थे। मैं यह सब देखकर ताज्जुब खा रहा था कि सच मे यह एक अलौकिक दुनिया है जिसे देखने का सौभाग्य मुझे मिला और साथ मे मुसीबत भी।

मैंने भर पेट खाना खाया। कि सुबह हो गई थी। मुझे घर की याद आई कि मम्मी मुझे ढूंढ रही होगी। सब चिंता मे होंगे। तभी एक सेवक हवा मे लहराते हुए आया कि महाराज ने आपको बुलाया है। मैं तुरंत ही उसके साथ चल दिया। सम्राट ने मुझे देख कर कहा कि तुम्हारी परीक्षा का समय आ गया है। यह परीक्षा तुम्हारे साहस, बल व चतुरता का है। मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ तथा मेरी शक्ति भी कम होने लगी है। परंतु यदि तुम मेरे लिए चमत्कारी तालाब से सुनहरा जल ले आओ तो मैं फिर से जवान हो जाऊंगा। मेरी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ करूँगा। साथ ही तुम्हें धरती पर रहने के लिए अपार धन दूंगा जो कभी समाप्त नही होगा। मैं यह सुनकर झट से तैयार हो गया। मेरे आँखों के सामने मेरे अमीर होने व राजकुमारी के साथ विवाह की काल्पनिक तस्वीर आ गई। मैं खुश हो गया। पर मेरी खुशी को टोकते हुए सम्राट बोले, वहाँ का रास्ता बड़ा कठिन और मायावी है तथा जादुई खतरो से भरा पड़ा है। कुल सात दरवाजे हैं। उन्हें पार करने के लिए हम तुम्हें कोई औजार नही देंगे। क्योंकि वहाँ पहुंचते ही सभी हथियार गायब हो जाते है। तुम अपने साथ सिर्फ अपना छुपाकर लाया हुआ हथियार ले जा सकते हो क्योंकि वह तुम्हारा अपना है वह लोहे का सलीया जिससे तुम अधिक प्यार करते हो और हमेशा अपने साथ रखते हो। मैं सोचने लगा कि इन्हें कैसे पता जो कि मैंने उसे अपने पीछे शर्ट के अंदर छुपाया था।

मैं अब जाने के लिए तैयार था। सम्राट के कहने पर मुझे एक तख्ते पर खड़ा किया गया। इसके पश्चात सम्राट ने हाथों मे जल लेकर अभिमंत्रित किया। मुझपर जल छिड़कते ही तख्ता जोरदार गोल गोल घूमने लगा, मैंने अपनी आँखें डर से बंद कर ली और जब आंखें खुली तो मेरे सामने था एक बड़ा सा द्वीप और पीछे था विशाल समुद्र।

मैंने जब अपने आप को एक ऐसे द्वीप पर पाया जहाँ एक ओर दूर दूर तक फैला जंगल और दूसरी ओर अथाह समुद्र।

वहाँ आस पास किसी भी मानव के पदचिह्न भी नही थे। मैं भयभीत होने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि , मैं ऐसे मुशीबत को खुद ही मोल लिए बैठा हूँ। पर मुझे अचानक राजकुमारी का चेहरा याद आ गया और मैं अपनी सारी मुश्किलों को छोड़ उसकी यादों मे खो गया। अचानक एक भयानक सी आवाज मेरे कानों मे गुजं उठी। मैंने डर के यहाँ वहाँ देखा पर कुछ दिखाई न दिया। मेरी नजर उपर की ओर गई आसमान धूल से भरा हुआ था। मैं भाग कर जंगल की ओर दौडा। पर मुझे यह नही पता था कि मुझे आगे कहाँ जाना है। मुझे इतना पता था कि पहला दरवाजा मुझे इसे द्वीप पर मिलेगा। जहाँ से धूल उड़ रही थी मैं उसी ओर दौडा। पर फिर वही भयानक आवाज सुनकर मैं ठिठक सा गया। मैं तुरंत ही पास के पेड़ पर चढ़ने लगा। कुछ ऊंचाई पर पहुंचने पर मैंने देखा जानवरों का एक बड़ा सा दल उसी ओर दौड़ा चला आ रहा है। मैं पेड़ पर और उपर चढ़ने लगा। कुछ ही पलों मे, वह जानवरों का दल पेड़ के समीप आ गया, और देखते ही देखते पेड़ को चारों ओर से घेर लिया। मैं घबराकर काँपने लगा। मुझे समझ मे नही आ रहा था कि इन जानवरों ने मुझे क्यों घेर रखा है। नीचे सभी प्रकार के जानवर थे। घोड़ा, बैल, गधा, कुत्ता तथा कई जानवरों का जमवाड़ा लगा था। मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि यह जानवर एक दूसरे के कान मे फुसफुसा रहे है। यह आदतें तो मनुष्य की है। सभी जानवर बहुत सुंदर दिख रहे थे तथा सभ्य थे कोई एक दूसरे से लड़ाई नही कर रहा था बल्कि बिल्ली कुत्ते पर बैठकर मुझे देख रही थी। धीरे धीरे रात हो गई पर कोई जानवर वहाँ से नही हटा। मुझे भूख लग रही थी। सुबह से कुछ खाया नही था। मम्मी की याद आ गई। मैं उन्हें याद करने लगा। रोते रोते नींद आ गई। मैं सो गया। अचानक से हल्की सी आवाज मेरे कानों मे गूँज गई। जैसे मुझे कोई उठा रहा हो। मैंने आँख खोली तो डर से काँप गया। एक बडा सा अजगर मेरे सामने मुझे निहार रहा है। मैं डर के मारे काँपने लगा। उसने मुझे डरते हुए देखा तो पीछे हट गया। और कहा डरो मत, मैं तुम्हारा शुभचिंतक हूँ। मैं उसे देख हैरान होने लगा कि यह मनुष्य की बोली बोल रहा है। मैंने उससे पुछा, तुम हमारी बोली कैसे बोल लेते हो बल्कि तुम अजगर हो। उसने कहा हाँ, सही कहा। मैंने तुरंत ही पुछा क्या तुम मेरी बाते सुन भी सकते हो और समझते भी हो। उसने कहा हाँ। मैंने कहा, मैंने तो अभी तक यही सुना है कि सर्प के कान नहीं होते। पर तुम अब सुन सकते हो और समझते भी हो तो मेरे सवालो का जवाब दो और मेरी मदद करो। उसने हिलते व लहराते हुए मेरे पास आकर कहा, ये सभी जानवर और मैं तुम्हारी मदद के लिए ही आए है। ये सभी मनुष्य की बोली बोलते है। पर तुम इस द्वीप पर क्यों आ गए। तुम्हारे यहाँ आते ही तुम्हारी खुशबू हवा मैं फैल गई जिससे हमें तुम्हारे आने का संकेत मील गया, और हम तुम्हें बचाने व यहाँ से भगाने आ गए। मैंने अचरज मे पुछा, क्या मुझे भगाने। पर क्यों? उसने कहा, यह द्वीप बड़ा ही भयानक और जानलेवा है। यह पूरा द्वीप मायावी है यहाँ कदम कदम पर खतरा है। जितना जल्दी हो यहाँ से भाग जाओ। मैंने कहा, जब तक मेरा काम ना हो जाए मैं नहीं जाऊंगा। उस अजगर ने कड़क कर पुछा। कैसा काम? मैंने कहा, मैं सुनहरा पानी लेने के लिए निकला हूँ कृपया ये बताएँ वह कहाँ मिलेगा। उसने कहा यह पागलपन छोड़ कर भागो। एसी मूर्खता मत करो। हम सभी जानवर असल मे पहले से जानवर नहीं हैं। हम भी सुनहरे जल की खोज मे यहाँ आए थे पर हमारे भाग्य ने हमें धोका दे दिया। हम सभी जानवर बन गए। और कई लोग तो अनजाने मे यहाँ आ गए थे हमने इन्हें भी रोका पर यह नहीं माने और उस विशाल दरवाजे के पास चले गए और इन्हें भी जानवर बना दिया गया। मैंने पुछा कि वहाँ पर ऐसा क्या है जो कि जानवर बन जाते हैं। उसने कहा हम यह नही बता सकते क्योंकि अगर हमने यह राज किसी को बताई तो तुरंत ही हमारी मृत्यु हो जाएगी। अब यह सुनकर मेरा दिमाग काम करना बंद कर दिया। पर कोई रास्ता नजर नही आ रहा था मुझे आगे जाना ही था। मैंने पुछा, तुम सभी मनुष्य हो पर तुम यहाँ आए कैसे। और यह द्वीप धरती पर कहाँ है। उस अजगर ने कहा, मुझे जादुई किताबें पढ़ने का शौक था। मुझे एक पुस्तक मे इस जगह का नक्शा मिला व सुनहरे जल का उल्लेख भी मिला। सुनहरे जल को पीने वाला व्यक्ति हमेशा जवान रहता है तथा उसके पास असीम शक्ति आ जाती है जिससे वह अपनी कोई भी इच्छा पूरी कर सकता है। पुरी दुनिया को अपने काबू मे कर सकता है। पर उस जल को वही पा सकता है जिसके मन मे लोगों के प्रति प्रेम और दुनिया के कल्याण की भावना हो।

यह जगह हिंद महासागर और अरब सागर के मध्य मे है। मैं यहाँ नाव से आया था और अभी भी मेरी नाव सुरक्षित है। चाहे तो तुम उसे ले जा सकते हो। मैंने कहा जरूर पर सुनहरा जल साथ मे ले जाऊंगा। उसने कहा अगर तुम जिद्द कर रहे हो तो जाओ पर वहाँ जाने मे, मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता। अजगर यह बोलकर नीचे उतर गया। और सभी जानवरों को मेरे आने का मकसद और मेरे हट के बारे मे बताया।। मैंने देखा सभी जानवर निराश होकर उपर वाले से मेरे सलामती की दुआ मांगने लगे। मुझे जोरों की भूख लगी थी। मैं जंगल मे यहाँ वहाँ भटकने लगा। मुझे वहाँ एक गाय दिखी। सफेद रंग, लंबे और सुडोल सिंग, बहुत ही सुंदर गाय थी। मैं उसके पास गया और पुछा क्या तुम भी मानव थी या सचमुच मे गाय हो। उसने जोर से आवाज निकाला जो कि एक गाय की होती है। मैं समझ गया कि यह सच मे एक गाय है। मैं खुश हो गया मैंने उन्हे नमस्कार किए और कहा मुझे बहुत भूक लगी है क्या आप मुझे थोड़ादूध दे सकती हो। गाय ने हाँ मे सर हिलाया। मैं खुश हो गया। मैंने झट से पेड के पत्ते से दौना बनाया और दूध निकाल के पीने लगा। जब मेरा पेट भर गया तो मैं एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। थोड़ी देर बाद जब मैं उठा तो मेरे अंदर मानो एक अजीब सी ताकत का संचार हुआ था। मैंने गाय से पुछा, क्या तुमने कभी कोई बड़ा दरवाजा देखा है। उसने हाँ मे सर हिलाया। मैंने कहा, हे माता आप मेरा मार्गदर्शन करो। मुझे उस दरवाजे तक ले चलो। मैंने पुछा, कहाँ है ये दरवाजा। गाय ने उपर की ओर सिर उठाया और पहाड़ पर देखने लगी। वह पहाड़ बहुत ही उँचा था । कोई रास्ता भी दिखाई नही दे रहा था। उस पर चढ़ना मतलब मौत को न्यौता देना था।

उसी समय गाय पीछे की ओर घूम गई और अपनी पूंछ को हवा मे लहराते हुए मेरे हाथों मे रख दिया। मैंने उसका इशारा समझ लिया। मैंने जोर से उसकी पूंछ को पकड़ लिया। गाय मुझे लेकर हवा मे उडने लगी। पलक झपकते ही गाय ने मुझे उस पहाड़ की चोटी पर पहुंचा दिया। वह बडा सा दरवाजा मेरे सामने था। मैं डर रहा था क्योंकि अजगर ने मुझे पहले ही यह बता दिया था कि दरवाजे के पास कुछ ऐसा है जो कि तुम्हे जानवर बना देगा। मैं सचेत हो गया। फिर मुझे ध्यान आया माता का आशीर्वाद साथ हो तो मुझे कुछ नहीं होगा। मैं भाग कर फिर पीछे की ओर गया और गाय माता का आशीर्वाद लिया। अब मुझे कोई डर नही था। मैं आगे बढ़ा।

उसी समय अचानक जोरदार भूकंप जैसा आ गया और चारों ओर धुआं ही धुआं। धुएं के बीच एक विशाल दानव खड़ा था। उसका सिर बहुत बड़ा और आँखें छोटी छोटी थी। उसकी मूँछें इतनी बड़ी थी की वह जमीन को छू रही थी। उसने झुक कर मुझे देखा और कहा तुम तो एक छोटे से बालक हो। तुम्हें यहाँ किसने भेजा। तुम यहाँ क्यों आए हो? तुम अभी छोटे हो इसलिए तुम्हे जीवनदान देता हूँ। चले जाओ यहाँ से। मैंने कहा, मैं यहाँ से खाली हाथ नही जाऊंगा। पहले ये बताओ तुम कौन हो और मेरे मार्ग मे क्यों खड़े हो। उस दानव ने हँसते हुए कहा, बालक मैं इस दरवाजे का पहरेदार हूँ, और इसकी रखवाली करता हूँ। पर तुम यहाँ क्यों आए हो। मैंने कहा, सुनहरा जल लेने। दानव ने कहा, तुम यहाँ सुनहरा जल लेने अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए आए हो। मैंने कहा हाँ। मुझे जल लेकर सम्राट को देना है जिससे वो राजकुमारी का हाथ मेरे हात मे देगें। दानव मुझे देखा और बोला, बालक तुम दिखते तो छोटे हो पर तुम्हारा साहस बहुत बडा है कि तुम अपने प्रेम के खातीर मृत्यु के मुख मे चले आए। मैं तो कहूँगा अभी भी समय है। लौट जाओ। मैंने कहा नहीं, मैं नही जाऊंगा। दानव ने कहा ठीक है तुम्हें आगे जाने के लिए मेरे तीन सवालों का जवाब देना होगा साथ ही उसका स्पष्टीकरण कर भी देना होगा कि तुम सही क्यों हो। अगर तुमने एक भी सवाल गलत दिया तो जानवर बना दिए जाओगे। मैंने शर्त मान ली। और कहा सवाल पुछो। उसने पहला सवाल मुझसे किया।

1)बताओ सबसे बड़ा सुख क्या है?

मैंने कहा, सबसे बड़े चार सुख है जो मनुष्य को अलग अलग आयु मे प्राप्त होते है। पहला - खेल, दूसरा - कामवासना, तीसरा- भोजन और चौथा- हाजमा।

यह सुनकर वह अचरज से मेरी ओर देखने लगा और कहा सिद्ध करो। मैंने कहा बचपन मे प्रत्येक बालक को खेलने मे ही परम सुख मिलता है। जवानी मे उसे काम मे ही सुख मिलता है। तथा व्यस्क होने पर भोजन के स्वाद मे सुख मिलता है और बुढ़ापे मे भोजन हजम नही होता जिससे अपार तकलीफ़ होती है अर्थात हाजमा ही उनके लिए सबसे बड़ा सुख है। उस समय संसार की कोई दौलत उन्हें ऐसा सुख नही दे सकती।

यह सुनकर दानव बहुत खुश हुआ। और कहा अब दूसरा सवाल।

2) सबसे बड़ा दुख क्या है?

मैंने कहा सबसे बड़ा दुख है निर्धन होना। उसने कहा कैसे।

मैंने कहा यदि पास मे धन ना हो तो कोई भी हमारा अपना नही होता। क्योंकि आज के समय मे मदद भी स्वार्थ के लिए ही की जाती है। यहाँ तक की दान पुण्य भी अपने जीवन के कल्याण व पुण्य कमाने हेतू ही की जाती है। धन यदी पास ना हो तो हम दो वक्त के भोजन के लिए रात दिन मेहनत करना पड़ता है। और कुछ लोग निर्धन समझकर अत्याचार भी करते है। इसलिए निर्धन होना ही सबसे बड़ा दुख है।

दानव को मेरे जवाब से सुकून मिला। और उसने तीसरा सवाल पुछा।

3) तुम्हें इस धरती पर किस जीव से अधिक भय लगता है? और क्यों?

अगर तुमने सवाल का जवाब सही ना दिया तो मैं तुम्हें वही जीव बना दूँगा ।

मैंने जवाब दिया। मुझे सबसे अधिक भय मनुष्य नामक जीव से लगता है।

दानव ने हँसते हुआ कहा, तुम बहुत होशियार हो पर ये बताओ कि तुम्हें मनुष्य से क्यों भय लगता है जो कि तुम भी एक मनुष्य हो।

मैंने कहा , मनुष्य एक ऐसा जीव है जिसके पास मन और दिमाग दोनों है और दोनों बहुत गतिशील है। हम मनुष्य के मन को नहीं जान सकते। हर प्राणी हमले के पूर्व ऐसी हरकत करता है जिससे हम सावधान हो जाते है। पर मनुष्य कब हमे धोका देगा हमें यह पता नही चलता। उसका चेहरा कुछ अलग, तो उसका व्यवहार अलग तथा होठों की हँसी अलग होती है। वह हमे कभी भी धोका दे सकता है। इसलिए मुझे मनुष्य से सबसे अधिक भय लगता है।

दानव मेरे जवाब से बहुत खुश हुआ, और कहा तुम पहले व्यक्ति हो जिसके जवाब से मुझे संतुष्टि मिली। तुम एक नेक बालक हो इसलिए एक सलाह देता हूँ। जब तुम्हे सुनहरा जल मील जाए तो उसका प्रयोग पहले तुम करो। और उस सम्राट को वह जल मत देना क्योंकि वह भी तुम्हारे साथ धोका करेगा। जल का प्रयोग करने पर वह राजकुमारी तुम्हे खुद ही मील जाएगी। अब तुम आगे बढ़ो पर ध्यान रहे आगे और अधिक मुश्किलों का सामना करना होगा। यह बोलकर वह दानव अदृश्य हो गया। धीरे धीरे वह विशाल दरवाजा खुला और मैं अंदर चला गया। मेरे अंदर जाते ही वह दरवाजा बंद हो गया। अंदर एक भव्य महल था पर चारों ओर था घना अँधेरा। सिर्फ सामने एक विशाल महल दिखाई दिया। मैं उसी ओर बढ़ने लगा। अचानक मेरे पैर मे ठोकर लगी और मैं मुंह बगल गिर पड़ा । घुटने और हाथ मे चोट लगी। अच्छा हुआ कि मुंह पर नही लगा वरना चेहरे का नक्शा बदल जाता और नायक से खलनायक दिखने लगता। तब तो राजकुमारी क्या उसकी दासी भी नही मिलती। जैसे तैसे दर्द मे कहराता खड़ा ही हुआ था कि किसी लड़की की हँसने की आवाज सुनाई दी। मैं यहाँ वहाँ देखने लगा। पर कोई दिखाई ना दिया। मुझे लगा यह मेरा वहम है। मैं अपने घाव देखने लगा पर अंधेरे की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मेरे आंखों से आंसू आने लगे। मम्मी भी पास नही थी कि मेरे आंसू पोंछ मुझे गले से लगा ले। मम्मी की याद आते ही मैं जोर जोर से रोने लगा। अचानक रोशनी हो गई और एक आवाज आई। ठोकर लगते बहुत से लोगों को देखा पर इस तरह रोते पहली बार देखा है। मैंने यहाँ वहाँ देखा कोई नही था। मैं जोर से चिल्ला कर बोला, कौन है यहाँ। सामने क्यों नहीं आती। तुम गिरती तो पता चलता कि कैसा लगता है चोट लगने के बाद। तुम्हे भी तुम्हारी मम्मी याद आ जाती। इतना कहते ही वो मेरे सामने प्रकट हो गई। उसके अंदर मानो अजीब सा तेज था। उसने सफेद लिबास पहना था। उसके पीछे सफेद सफेद बड़े से पंख लगे थे और वह हवा मे लहरा रही थी। उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। मैं देखते ही समझ गया कि यह एक परी है। उसने कुछ ना बोलते हुए अपनी छड़ी घुमाई और मेरा दर्द तुरंत ही गायब हो गया। मेरे शरीर से सारे जख्म गायब हो गये थे। मैंने पहली बार परी देखी थी जैसा मम्मी मुझे अपनी कहानियों मे बताती थी। मैंने कहा तुम तो परी हो फिर भी इस मुसीबत मे फँस गई। उसने हँसते हुए कहा, बालक मैं फँसी हुई नहीं बल्की सभी को फँसाने के लिए यहाँ हूँ। मेरा काम है यहाँ आनेवालों के लिए मुसीबत खड़ा करना। पर तुम तो एक बालक हो और पहला दरवाजा भी पार कर लिया है। तुम बहुत साहसी हो। पर अभी छोटे बालक की तरह हो। जो कि चोट लगने पर रोते हो। मैंने कहा, सुना परीयाँ ने क दिल होती है और सबकी मदद करती है। क्या तुम मेरी मदद करोगी। परी ने कहा तुम बहुत ही होशियार हो। पर तुम्हारी बातें मुझे बहुत अच्छी लगी। इसलिए मैं तुम्हारी थोड़ी सी मदद करूंगी उससे ज्यादा नहीं। तो सुनो, इस दरवाजे को पार करने के लिए साहस के साथ साथ दिमाग का उपयोग करना है। और यहाँ जो भी दिखे उसका उल्टा समझना। आंखों पर विश्वास ना करना क्योंकि यहाँ आंखों का धोका है। यह बोलकर वह परी गायब हो गई। उसने जो कहा मेरे लिए किसी पहेली से कम ना थी। मैं सोचते हुए आगे बढ़ा उस हवेली की ओर।

मैं अचानक रूका क्योंकि हवेली और मेरे बीच सिर्फ एक किलोमीटर का अंतर था और बीच मे थी गहरी खाईं। मैं सोच मे पड़ गया कि अब इसे कैसे पार करूँ। कुछ समझ मे नही आ रहा था। मैं यहाँ वहाँ देखने लगा शायद कोई साधन हो इस गहरी खाई को पार करने के लिए। पर ऐसा कुछ दिखाई नही दिया। मैं वहीं उदास होकर जमीन पर बैठ गया। मैंने खाई मे देखा तो मन भय से भर गया। क्योंकि खाई बहुत गहरी और डरावनी थी। नीचे देख मेरा पैर जोरों से काँपने लगा। मैंने जमीन से एक छोटा सा पत्थर उठाकर खाई मे फेंका। पत्थर खाई मे जाने के बदले वहीं रूक गया और हवा मे तैरने लगा और कुछ देर एक ही जगह पर रूकने के बाद खाई मे चला गया। मुझे परी की कही बातें याद आ गई। मैंने तुरंत दुसरा पत्थर उठाया और ऐसा फेंका की पत्थर उछलते हुए जाए। मैंने देखा पत्थर इस तरह उछलते हुए जा रहा था मानो नीचे जमीन हो। मैं समझ गया कि इसे कैसे पार करना है । मुझे बिना कहीं रूके एक किलोमीटर का अतंर पार करना था वो भी दौड़ते हुए। ये तो उपर वाले की रहमत है कि मुझे रोज सुबह उठकर दौड़ने की आदत थी। मेरे अंदर इतनी क्षमता थी कि मैं एक किलोमीटर बिना रुके दौडू। मैंने भगवान को याद किया और दौड़ने लगा। बिना रूके दौड़ रहा था करीब 800 मीटर पहुंचने पर सांस फुलने लगी। फिर भी मैं दौड़ रहा था। मेरी गती धीमी पड़ गई थी इसलिए सतह हिलने धीरे धीरे हिलने लगी। मैं परी जान लगा कर दौडा जैसे एक हिरन के पीछे जब शेर दौड़ता है तो हिरन अपनी जान बचाने हेतू दौड़ने मे अपनी पूरी शक्ति लगा देती है। उसी प्रकार मैं भी दौडे जा रहा था। आखिर र मैंने उस खाई को पार कर लिया। और पहुंचते ही जमीन पर लेट गया। लंबी लंबी सांसे लेते हुए सुस्ताने लगा। थोड़ी देर बाद जब राहत मिली तो मैं उठ खड़ा हुआ। मैंने देखा सामने ही हवेली का दरवाजा था। पर दरवाजे तक जाने के दो रास्ते थे। एक रास्ते पर फूल बिछे हुए थे तो दूसरे रास्ते पर दहकते हुए अगांरे थे। मुझे कुछ समझ मे नही आया पर मे उतावला था इसलिए फूल बिछे रास्ते की ओर बढ़ा । पर अचानक परी की बात याद आ गई उसने कहा था कि आंखों पर विश्वास ना करना सब छलावा है। मैं रूक कर सोचने लगा कि कैसे पता करें की कौन सा रास्ता सही है। मैंने फूलों को ध्यान से देखा। फूल बडे ही ताजे और सुंदर थे पर फूलों मे कोई खुशबू नही थी। अब मैं अंगारों से भरे रास्ते के पास गया। ध्यान से देखा अगांरो से आग दहक रही थी। उसे देख मन भयभीत होने लगा। ऐसा लगा पैर रखते ही भस्म हो जाऊंगा। पर यह क्या उन अगांरो से फूलों की खुशबू आ रही थी। मुझे मम्मी कही बात याद आ गई। वो कहती थी फूलों को नष्ट करो या कुचल दो पर उसकी खुशबू नहीं छिपा सकते। अर्थात गुणों को छुपाया नहीं जा सकता वो सबके सामने आ ही जाते हैं। मैंने हाथ मे दो पत्थर लिए। पहला पत्थर मैंने फूलों वाले रास्ते पर फेंका। वह पत्थर फूलों पर जैसे ही पड़ा एक आग की बड़ी सी ज्वाला भभकते हुए उठी। मैं तुरंत पीछे हट गया। अब दूसरा पत्थर मैंने अंगारों पर फेंका पर वहाँ कोई हलचल नहीं हुई। मैं तुरंत ही भागते हुए अंगारों के रास्ते पर गया और भगवान का नाम लेते हुए रास्ता पार किया। रास्ता पार होने पर मैंने अपने आप को फिर अपने पैरों के तलवों को टटोला। मुझे कुछ नहीं हुआ था। मैं सुरक्षित था। मैंने दरवाजे की ओर कदम बढ़ाये पर उसी समय वह परी मुझे रोकते हुए मेरे सामने आ गई। और कहा, अभी तुम अंदर नही जा सकते। इस दरवाजे पर ताला है और उसकी चाभी उस लबें से खंबे पर लटकी हुई है। अगर वो चाभी तुम्हे मील जाती है तो तुम ताला खोलकर इस दरवाजे को पार कर जाओगे। मैं सोच मे पड़ गया। मैंने ध्यान से देखा खंबे को। खंबा लगभग सौ मीटर का होगा। और खंबा किसी धातुओं से बनी थी। उसपर तेल लगा हुआ था। मैं चाह कर भी उपर चढ़ नही सकता था। क्योंकि अगर मैं थोड़ा भी उपर चढ़ता तो फिसल कर निचे आ जाता। मैं कभी खंबे के उपर लटक रहे चाभी को देखता कभी उस परी को। अचानक मेरी नजर खंबे निचले हिस्से पर गई। वो खंबा एक नटबोल से कसा गया था। मैंने तुरंत अपने सलीये को निकाला और उस नटबोल को उखाड़ दिया। देखते ही देखते खंबा नीचे गीरा। मैं तुरंत जमीन पर लेटकर खंबे को पकड़ कर झुटमूट ही उपर की ओर चढ़ने लगा। फिर खुद ही पीछे खिसकता फिर आगे चढ़ता । इस प्रकार मैं चाभी लेकर जमीन उठ खड़ा हुआ। यह देखकर परी जोर जोर से ठहाका मार कर हँसने लगी। उसने कहा, चाभी पाने तरीका गलत है तुम्हारा। मैंने कहा, आपने कहा था खंबे पर चढ़ कर चाभी लेना है ये तो नही कहा था कि खंबा खड़ा ही रहना चाहिए। इसलिए मैंने खंबे को लिटा कर उसपर चढ़ा और चाभी ले ली। परी ने मुसकुराते हुए कहा हाँ तुम सफल हो। क्योंकि तुम बहुत ही चतुर व बहुत ही बड़े मसखरे भी हो। तुम अपने मासूमियत से किसी का भी दिल जीत सकते हो। तुम्हें आगे चलकर जरूर कामयाबी मिलेगी। अब आगे बढ़ो । मैंने झट से चाभी से ताला खोला और दरवाजे को खोलकर अंदर पहुंचा तो देखा कि मेरे सामने एक सुंदर सा बगीचा था पर वह हवे मे तैर रहा था। पीछे देखा तो दरवाजा बंद हो चुका था। मैंने ध्यान से देखा तो डर गया क्योंकि उपर था बगीचा, और नीचे थी एक गहरी खाईं। दूसरे दरवाजे को पार करते ही मेरी आंखों पर मुझे विश्वास नही हो रहा था। क्या कभी ऐसा हो सकता है कि कोई जमीन का टुकड़ा हवा मे गुब्बारे की तरह तैर रहा हो। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने थोड़ा पास जाकर देखा। मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए। हवा मे जमीन का टुकड़ा और नीचे गहरी खाई। आगे बढने का दूसरा कोई रास्ता भी ना था। मैंने नीचे से ही देखा तैरते हुए जमीन पर सुंदर सा बगीचा था। रंग बिरंगे फूल, फलों से लदे पेड़, पड़ो पर इतना फल था कि डाली झुकी हुई थी। इतने रसीले फल देखकर मुह पानी से भर गया। कैसी मुश्किल घड़ी है मैं यहाँ भूखा प्यासा खड़ा हूँ। मुझे अंदर से भूक सताए जा रही थी। पर ऊपर बगीचे मे जाऊं कैसे। कुछ समझ मे नही आ रहा था। मैं नीचे बैठ के सोचने लगा। मेरे दिमाग मे आया कि ये सारी चुनौती दिमाग की उपज है और दिमाग लगाकर ही इसे पूरा किया जा सकता है। मैं खड़ा हो गया और ऊपर जाने के लिए हल ढूंढने लगा। मैं बडी गौर से बगीचे के पेडो और बगीचे के निचे देखने लगा। मैंने एक पत्थर उठाया और खाई मे डाला पर ये क्या पत्थर भी जमीन की भांति हवा मे तैरने लगा। मैं समझ गया की ऊपर के बगीचे मे गुरूत्व बल है जिसकी वजह से पृथ्वी का गुरूत्व बल जमीन के गुरूत्व बल को विपरीत दिशा मे ढकेल रहा है। और जमीन के चारों ओर गुरूत्व बल का आवरण है। अगर मैं खाई मे कुद भी जाऊं तो खाई मे नीचे गिरने की बजाय बगीचे के चारो ओर घूमने लगूंगा। जैसे चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घुमती है। मैं अब सोचने लगा हवा मे तो पहुंच जाऊंगा, पर बगीचे के अंदर कैसे जाऊँगा। अंदर जाने के लिए एक अवरोधक की जरूरत थी अर्थात हवे मे एक ऐसे बल की जरूरत थी जिसके सहारे मे बगीचे मे कूद सकूँ। मैं बगीचे मे देखने लगा। अचानक मेरी नजर पेड़ पर बैठे एक बंदर पर गई। मैं खुशी से उछल पड़ा ।

मैंने तुरंत ही अपने जेब मे कुछ पत्थर रख लिए। और आगे बढ़कर खाई मे कूद गया। कूदते ही मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। पर ये क्या? मैं खाई मे नीचे की ओर जाने लगा। अब तो मुझे यमराज साक्षात नजर आने लगे। मैं भगवान को याद करने लगा। मैंने धीर नही खोया। मैंने महसूस किया कि मैं एक शून्य रेखा पर हूँ इसलिए नीचे की ओर जा रहा हूँ बल्कि मेरे चारों ओर के पत्थर, लकड़ी, व मिट्टी उपर की ओर जा रहे हैं। मैं हवा मे अपनी जगह नही बदल सकता इसलिए मैंने तुरंत अपना सलीया निकाल कर अपने हातो मे लेकर गुरूत्व बल की ओर बढ़ाया। सलीया उस गुरूत्व परिवेश के अंदर जैसे ही आया मैं वहीं रूक गया और मैं तेजी से ऊपर की ओर जाने लगा। अब मैं बगीचे की चारों ओर एक उपग्रह के भांति चक्कर लगाने लगा। मैंने तुरंत अपने जेब से एक पत्थर निकाला और बंदर की ओर फेंका। वो खिसियाने लगा। बंदर नकलची होते है इसलिए उसने मुझ पर फल तोड़कर फेंका। मैंने फल को पकड़ लिया और खाने लगा। मुझमें एक अलग सी शक्ति और आनंद का एहसास होने लगा। मैंने अपने हाथ के सलिए को बंदर की ओर बढ़ाया। बंदर ने सलिया छिनने की लालच मे उसे पकड़ लिया। मैंने भी जोर से सलिया को पकड़ लिया। अब बंदर भी मेरे साथ हवा मे तैरने ही वाला था कि उसने अपनी पूंछ को एक डाली मे फंसा लिया। अब मेरा चक्कर लगाना बंद हो गया पर मैं हवा मे ही तैर रहा था। बंदर की पूंछ मे बड़ी शक्ति थी इसलिए वह धीरे धीरे मुझे अपनी ओर खिंचने लगा मैंने झट से पेड़ की एक डाल पकड़ी और जमीन पर उतर गया। मैंने देखा बगीचा बहुत सुदंर था। मैं जैसे ही आगे बढा़। बंदर मेरे पीछे पीछे चलने लगा। मुझे ऐसा लगा बंदर अच्छा है इसने मेरी सहायता की है। इससे मुझे कोई खतरा नही मैं आगे आगे चलने लगा। पर अचानक मेरे पीछे एक अजीब सी आहट हुई। मुझे लगा मेरे पीछे बहुत से लोग चल रहें हैं। मैंने डरते हुए पीछे मुडा, तो ये क्या। मेरे पीछे बंदरों का झुंड चल रहा था। कब मैं डरने लगा। मगर मेरे रुकते ही सब रूक गए। मैंने कुछ कदम बढ़ाये तो वह भी आगे बढ़ने लगे। मैं समझ गया कि यह सभी मेरी नकल कर रहे है। तभी उनमें से एक बंदर ने आकर मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे साथ चलने लगा। यह संकेत था उनका कि हम तुम्हारे साथ है। कुछ दूर पहुँचने पर मैंने देखा कि ऊपर हवा मे एअ चक्र जैसा है जो कि प्रकाशमान हो रहा है यह वही दरवाजा था जिसे मैं ढूंढ रहा था। पर हवा मे कैसे जाऊँ। तभी मैंने देखा सभी बंदर एक जूट होकर दही हंडी की तरह पिरामिड बनाने लगे। पिरामिड बन जाने पर एक बंदर ने मेरा हाथ पकड़ा। यह वही बंदर था जिसने मुझे हवा से नीचे उतारा था। उसके आंखों मे मेरे लिए हमदर्दी वह प्रेम साफ झलक रहा था। मैंने उसका हाथ पकड़ा और पिरामिड पर संभलकर चढ़ने लगा। ऊपर पहुंचने पर मैंने बंदर से हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर वह नही छोड़ रहा था। मैं समझ गया कि यह मेरे साथ जाना चाहता है। मैंने उसे अपने साथ ले जाना ठीक समझा। मैंने भी उसका हाथ पकड़ कर उस चक्र मे घुस गया। चक्र मे घुसते ही अजीब सी ठंड का एहसास होने लगा। चक्र के दूसरी ओर जब आए तो देखा चारों ओर बर्फीले पहाड़, मैदान व चारों ओर बर्फ ही बर्फ। मैंने तीन दरवाजों को पार कर लिया । पर यह चुनौती और भी खतरनाक थी। क्योंकि यहाँ कड़ाके की ठंड थी। जैसे मेरा रक्त तक जम जाएगा। मेरे साथ वह बंदर भी था। उसने तो कपड़े भी नही पहने थे। वह तो ठंड के मारे काँपने लगा।

उसने मुझे जोर से पकड़ लिया। मुझे उसकी चिंता होने लगी। मैंने तुरंत उसे गोद मे उठा लिया। क्योंकि जमीन पर बर्फ थी मेरे पैरों मे तो जूते थे पर उसके पैरों को ठंड लग रही थी इसलिए वह कूदने लगा था। मैंने उसे अपने गोद मे लेकर कसकर चिपका लिया। अब बंदर शांत हो गया था। पर मुझे ठंडी लग रही थी। मैंने अपनी नजर यहाँ वहाँ घुमाई। मुझे एक झोपड़ी दिखाई दी। मैं ने उस ओर कदम बढ़ाये । पर अचानक रूक गया क्योंकि ऐसे जगह पर कोई झोपड़ी क्यों बनाएगा। शायद कोई जाल बिछाया हो। मैंने आगे जाकर खिडकी से झाँका। अंदर कोई नही था। पर अंदर खाने पीने व आराम की सभी सुविधा थी। भूक जोरो से लगी थी। मैंने तुरंत ही दरवाजा खोलने लगा। पर दरवाजा जाम था। मैंने पूरा जोर लगा कर धकेला तो दरवाजा खुल गया। मैं झट से अंदर घुसा। मेरे अंदर जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया। मैंने झट से एक कंबल लिया और बंदर को उसमे लपेट लिया। मैंने देखा कुछ सुखी लकड़ियाँ है पर जलाने के लिए कुछ नही। मैंने यहाँ वहाँ देखा पर आग जलाने का कोई उपाय नहीं मिला। अचानक मुझे याद आया कि सुखी लकड़ियों को आपस मे घिसने पर आग उत्पन्न होती है ऐसा मैंने स्कूल मे पढ़ा था। जब जंगल मे सूखे पेड़ के तने हवा से आपस मे रगड़ते तो आग लग जाती थी उसे दावानल कहते है। मैंने झट से लकड़ियाँ इकट्ठा किया और दो लकड़ियों को आपस मे घिसने लगा। बड़ी देर तक रगड़ने पर आग उत्पन्न हुई। मैंने झट से बंदर को उठाकर आग के पास बिठा दिया। और मैं भी आग के पास बैठ गया। जब गर्मी से थोड़ी सी फुर्ती आई तो मैंने खाने के लिए फल उठाया। सभी केले मैंने बंदर को खिलाए वह बहुत खुश हुआ क्योंकि केला उसके पसंद का फल था। उसकी खुशी देख मैं भी बहुत खुश हुआ। मैंने भी पेट भर कर फल खाए। हम दोनों ने थोड़ा आराम किया और आगे बढ़ने के लिए के लिए सोचने लगे। पर किस दिशा मे जाएं कुछ समझ नही आ रहा था। मेरी नजर दीवार पर गई। उस पर हलकी हलकी काली स्याही से कुछ रेखाएं खिंची हुई थी मैंने पास जाकर देखा तो वह एक नक्शा था। जो कि उत्तर दिशा मे रखें एक घड़े की ओर इशारा कर रहा था। मैंने तय कर लिया कि जरूर इसका संबंध चौथे दरवाजे से है। मैंने तुरंत बंदर को उठाया और झोपडे का दरवाजा खोलने लगा। पर ये क्या दरवाजा जाम था। और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह बाहर से बंद हो। मैं समझ गया यह हमें फसाने का जाल है। अब क्या करें। बदंर ने मेरी गोद से छलांग लगाई र जमीन को अपने हाथों से खोदने लगा। सतह बर्फ की थी। मैं समझ गया बंदर क्या करना चाहता है। मैं भी उसके साथ खोदने लगा। मैंने अपना सलिया निकाला और फटा फट खुदाई कर दरवाजे के इस पार से उस पार तक नीचे से रास्ता बना लिया। अब हम दोनों झोपडी के बाहर निकल गए। हम दोनों बहुत खुश थे। अब हम उत्तर दिशा की ओर नक्शे के अनुसार चलने लगे। कुछ ही देर मे वह मटका दिखाई दिया। हम दोनों उस मटके की ओर बढ़ने लगे कि जोरदार आवाज आई। हम भय से काँपने लगे। हमने यहाँ वहाँ देखा पर कोई ना था। हम फिर डरते हुए एक कदम बढ़ाये कि फिर जोरदार आवाज आई , ठहरो! हमने फिर देखा कोई भी नही था। अब आवाज आई अगर तुम्हें आगे बढ़ना है और चौथा दरवाजा पार करना है तो तुम्हें इस बंदर की पूंछ काटकर इस मटके मे डालनी होगी। इसलिए यह बंदर तुम्हारे साथ आया था। इसे यह बात पता थी। पर पूंछ तुम अपने हाथों से काटोगे। यह सुनकर मेरे आंखों से आंसू आ गए। क्योंकि बंदर को उनकी पूंछ बहुत प्रिय होती है। उसके बिना वह कमजोर और उदास हो जाएगा। और इतने समय से वह मेरे साथ था। मुझे उससे लगाव हो गया था। और उसे भी मुझसे लगाव हो गया था। अब हम दोनों मित्र थे। मैं अपने लाभ के लिए उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता था। मेरा मन इसके लिए राजी नही था। मैंने जोर से कहा, क्या इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं? आवाज आई, नहीं ऐसा कोई रास्ता नही। अब मैं उदास होकर वहीं बैठ गया। बंदर मेरे पास आया और अपनी पूंछ को मेरे आगे कर दिया। उसकी आंखों मे आंसू थे। मैंने झट से उसे गले लगा लिया। और कहा, नही दोस्त मैं ऐसा गलत काम नहीं कर सकता। मैं बड़ी देर तक वहीं बैठा रहा। कुछ देर मैं खड़ा हुआ और बंदर से कहा, चलो दोस्त हम कोई और रास्ता ढूंढ लेंगे। आवाज फिर से आई, नहीं और कोई रास्ता नहीं है। तुम्हें इसकी पूंछ काटकर घड़े मे डालना ही होगा। पर मैं भी जिद्द मे आ गया कि मैं ऐसा नहीं करूंगा। मैंने कहा, चाहो तो तुम मेरे से लड़ सकते हो और मैं जित गया तो दरवाजा खोल दो। यह बोलते ही वह मेरे सामने प्रकट हो गया। वह लंबा सा पतला सा बूढ़ा व्यक्ति था। उसने कहा, क्या तुम मेरे साथ लड़ोगे। मुझे लगा यह गलत है क्योंकि यह अत्यंत बूढा है और लडते हुए कहीं इसे चोट लग गई तो। मैंने उदास होकर सिर नीचे कर लिया।

वह बूढ़ा यह देख हँसने लगा। और कहा, तुम इस परीक्षा मे उत्तीर्ण हो गए। मुझे मन की आवाज सुनाई देती है। मैंने इस चुनौती की रचना की थी। इस चुनौती से यह देखना था कि तुम्हारे अंदर मानवता है या नही। तुम किसी के दुख मे क्या कर सकते हो और मानवता के कर्तव्य को निभाते हो या नहीं। पर तुम अत्यंत उदार और साहसी हो। जब तुम एक प्राणी से इतना मोह कर सकते हो तो जग के लिए एक अच्छा जरूर अच्छा कार्य करोगे। शायद उपर वाले ने तुम्हे ही चुना है। उस सुनहरे जल के लिए। यह बोलकर उस बूढ़े ने कुछ मंत्र पढे और दरवाजा खुल गया। मैंने पूछा क्या मैं इस बंदर को अपने साथ ले जा सकता हूँ। उसने कहा हाँ। अब इस पर तुम्हारा ही अधिकार है। इसे ले जाओ। मैंने बंदर का हाथ पकड़ा, और दरवाजे के भीतर चला गया। दरवाजा बंद हो गया और मेरे सामने था एक विशाल मरूस्थल। चौथा दरवाजा पार कर चूका था पर पांचवें दरवाजे की तलाश मे आगे बढ़ा। चौथे दरवाजे के बाहर खड़े होकर देख रहा था। मेरे सामने का नजारा बड़ा ही अजीब था। मेरे सामने एक विशाल मरूस्थल था। साथ मे मेरा नया मित्र बंदर था। मेरे पास नाहीं कोई नक्शा था नाही कोई दिशा सूचक यंत्र। गरमी व धूप से रेत तप रही थी। रेत की गरमी इतनी थी की हवा भी गर्म गर्म चल रही थी। साथ मे पानी भी नही था। अगर पहले पता होता कि आगे मरूस्थल है तो साथ मे बर्फ ही ले आया होता। पीछे मुड़ कर देखा तो दरवाजा बंद हो चूका था। मैं वहीं बैठ गया। आगे बढ़ने की हिम्मत नही हो रही थी। मैंने सूर्य को देखा। वह पश्चिम की ओर बढ़ा रहा था। मैंने सोचा अगर सूर्य का रास्ता अगर पूर्व से पश्चिम है तो मुझे उत्तर या दक्षिण की ओर जाना चाहिए। मैं द क्षिण की ओर चल दिया। अब मैं सिर्फ उपर वाले के हाथ मे अपने नसीब को सौंप कर आगे बढ़ता चला जा रहा था। रेत मे पैर फंसने की वजह से गति धीमी पड़ गई थी और थकान ज्यादा। प्यास से गला सूखने लगा। मेरे साथी बंदर की हालत तो और खराब हो गई। वहाँ न कुछ खाने को न कुछ पीने को। दूर दूर तक सिर्फ रेत ही रेत दिख रहा था। अचानक मेरी नजर धुंधली सी आकृति पर गई। ऐसा लग रहा था मानो सूखा पेड हो। मैं भगवान को याद करते हुए अपने कदम उसी दिशा मे बढ़ाने लगा। जब पास पहुंचा तो देखा कि पेड़ पूरी तरह नहीं सूखा है सिर्फ पत्ते झड गए है। मैं खुश हुआ। मैंने पेड को निहारा और अपने सलिए से पेड़ की मोटी टहनी के गाँठ पर आघात किया। उसमे छेद करते ही पानी की बूंद बूंद करके बाहर निकलने लगी। मैंने पहले कुछ बूंद को अपने गले से उतारकर गला गीला किया थोड़ी राहत मिली इसी प्रकार बंदर ने भी अपनी थोड़ी सी प्यास बूझा ली। हम वहीं थोड़ी देर बैठ कर सुस्ताने लगे। कुछ देर बाद हम उठे। मुझे इतना तो समझ मे आ ही गया था कि मैं सही रास्ते पर हूँ। यदि यहाँ पेड़ मिला है तो आगे जरूर कुछ ना कुछ मिलेगा। हम दोनों आगे बढ़े। हमें एक छोटा सा गाँव दिखाई दिया। मैं बहुत खुश हुआ। चलो कहीं तो मुझे मनुष्य मिलेंगे। हमे बहुत भूख और प्यास लगी थी। मैंने एक घर के दरवाजे को खटखटाया। पर कोई नही आया। मैंने फिर खटखटाया। फिर भी कोई नही आया। शाम हो चुकी थी। अब ठंड भी बढ़ने लगी थी। क्योंकि मरूस्थल की यही खासियत है कि दिन मे अत्यंत गरमी और रात मे अत्यंत ठंड रहती है । वो इसलिए कि रेत जल्दी गरम हो जाती है और जल्दी ही ठंडी भी हो जाती है। बहुत समय हो गया पर दरवाजा किसी ने नही खोला। मुझे लगा शायद यहाँ के लोग बाहर गये है या फिर जल्दी ही सो गए होगें। मैंने दूसरे घर का दरवाजा खटखटाया पर किसी ने नही खोला। मैंने एक एक करके पूरे गांव के घर के दरवाजे खटखटाए। पर किसी ने नही खोला। मैं समझ गया कि पूरे गांव मे कोई नही हैं। पूरा गाँव खाली है। हमने यहाँ वहाँ नजर घुमाई। पर कुछ दिखाई नही दिया। प्यास से मेरा गला सुखा जा रहा था। बदंर ने मेरा हाथ पकड़ कर एक ओर इशारा किया। मैंने देखा, उस ओर एक कुआँ था। हम दोनों उस ओर बढ़े। हमने कुएँ मे झाककर देखा। कुआँ पानी से लबालब भरा हुआ था। हमने कुएँ पर बँधी रस्सी और बाल्टी पानी निकालने के लिए कुएँ मे डाली। बाल्टी भर पानी खिंचकर हमने बाहर निकाला। पर एक ही बाल्टी मे करीब बीस से तीस मछलियां। मैं सोच मे पड़ गया कि क्या यह कुआँ सिर्फ मछलियों से भरा हुआ है। पर मुझे तो सिर्फ अपनी प्यास बुझानी थी। इसलिए मछलियों को उठाकर पानी मे डालने लगा। मछलीयाँ बड़ी ही सुंदर , चमकदार और रंगबिरंगी थी। मैंने करीब सभी मछलियों को पानी मे डाल दिया पर अभी भी एक मछली बाल्टी मे तैर रही थी। मैं जैसे ही उसे उठाने गया वो बोल पडी। रूको, सावधान हो जाओ। यह पानी मत पीना। हमें आश्चर्य हुआ कि यह मछली मानव की बोली बोल रही है। मैंने पूछा क्यों न पीयें। हमें प्यास लगी है। उस मछली ने कहा, यह पानी शापीत है। जो इस पानी को पियेगा वह हमारी तरह मछली बन जाएगा। इस कुएँ कि सभी मछलीयाँ इस गाँव के रहनेवाले लोग है। मैंने आश्चर्य से पूछा, पर ऐसा कैसे हो गया कि आप सभी मछली बन गए। उस मछली ने कहा यह हमारी मूर्खता के कारण हुआ है। हमारा गाँव मरूस्थल मे होने के बावजूद भी बडा ही खुशहाल था क्योंकि यहाँ पर पानी और जमीन दोनों ही उपलब्ध थी। यह सब उपर वाले की दया थी। पर कहते हैं ना खुशियाँ ज्यादा दिनों के लिए नहीं होती। एक दिन हमारे उपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा । हमारे गांव मे एक दिन एक जादूगरनी आई। हमने उसे मुसाफिर समझ कर पनाह दी। उसने हमसे कहा , वह एक यात्री है पर हमारा गांव उसे अच्छा लगा। इसलिए वह हमारे गांव मे ही कुछ दिन तक रहना चाहती थी। हमने उसे कुछ दिनों तक गांव मे रहने की अनुमति दे दी। वह हमारे मुखिया के घर ठहरी। हमारे मुखिया बड़े ही नेक दिल इनसान थे। वह लोगों की हमेशा मदद करते थे तथा गाँव मे आनेवाले यात्रियों की बड़ी अच्छी खातिरदारी करते थे। उनका बेटा बड़ा ही सुशील और जवान था। जादुगरनी उस लडके पर मोहित हो गई। और मुखिया का बेटा भी उसपर लट्टू हो गया। क्योंकि वह जादुगरनी बड़ी ही सुंदर थी। जादूगरनी मुखिया के बेटे से अपनी सारी इच्छा पूरी करवाती। उसने मुखिया के बेटे से कहा, मुझे मछली खाना है। हमारे गांव मे कोई भी व्यक्ति मांसाहारी नहीं था। व कोई भी मछली नही खाता था। मुखिया का बेटा प्रतिदिन कुएँ से मछली निकाल कर ले जाता और उसे खिलाता। कुएँ से मछली खत्म होने लगी जिससे कुएँ का पानी दूषित होने लगा क्योंकि मछलियां पानी के कचरे को खाकर पानी की गंदगी दूर करती है। परंतु अब पानी दूषित होने लगा था। हम सभी गांव वालों ने मुखिया के बेटे को रोका कि वह मछली ना मारे व इस बात कि शिकायत मुखिया से की। मुखिया ने कुएँ से मछली मारने पर रोक लगा दी। अब जादुगरनी को बहुत क्रोध आया पर उसने कुछ नही कहा। पर मछली ना खाने से वह कमजोर होने लगी क्योंकि मछली खाने से उसे शक्ति मिलती थी। एक दिन उसने मुखिया के बेटे से कहा, अगर वह उसे मछली लाकर नहीं देता तो वह गाँव छोड़ कर चली जाएगी। मुखिया के बेटे ने मोह मे पड़कर रात मे मछली लाने का वादा जादुगरनी से किया। रात होते ही मुखिया का बेटा कुएँ के पास आया। और पानी मे बाल्टी डाली। पानी की आवाज से कुएँ के पास वाले घर के लोग जाग गए। उन्होंने समझा गाँव मे चोर आया है। उन्होंने जोर से हाहाकार मचाया कि पूरा गाँव लाठी लेकर दौड़ पड़ा । मुखिया का बेटा डर के मारे छिपने के लिए कुएँ मे कूद पड़ा । कुएँ मे चट्टान से टकराकर उसके प्राण पखेरु हो गए। जब यह खबर जब जादूगरनी तक पहुंची तो वह क्रोध से आगबबूला हो गई। वह दौड़ते और चिखते हुए वहाँ पहुंची। जादूगरनी भी उसे अत्यधिक प्रेम करने लगी थी। उसने हमारे हाथों मे लाठी देखकर यह अनुमान लगाया कि हमने ही मुखिया के बेटे को मारा है। उसने क्रोध मे आकर पूरे गाँव वालों को मछली बनाकर इस कुएँ मे डाल दिया। और उसने श्राप दे दिया कि जो इस कुएँ का पानी पिएगा वो भी मछली बन जाएगा। वह रोज यहाँ आती है और एक मछली निकाल कर ले जाती है और उसे खा जाती है। अब तक तो वो कई लोगों को निगल चूकी है। हम अपने आंखों के सामने अपने परिवार वालों और गाँव वालों को उसका शिकार होते देखते हैं। पर कुछ नहीं कर सकते। मैंने कहा, कोई तो उपाय होगा इस मुसीबत से बाहर निकलने का। उस मछली ने कहा, हाँ उपाय है। यदि कोई पुरुष अपने हाथों से उस जादुगरनी के सीने पर लोहा रख दे तो उसके श्राप से हम मुक्त हो जाएंगे। मछली ने कहा तुम हमारी मदद नही कर पाओगे। उसके आने के पहले तुम भाग जाओ। अपनी जान बचाओ। मैं तुरंत उस मछली को पानी मे डालकर वहाँ से भाग कर एक कमरे मे घूस गया और छुपकर बैठ गया। बैठ कर सोचने लगा कि कैसे इन गाँव वालो को उस जादुगरनी से कैसे मुक्त करूँ। उसी समय पायल की छम छम आवाज सुनाई दी। मैं समझ गया कि वह जादूगरनी आ गई। मैं झट से सजग हो गया। मैंने दरवाजे के ओट से देखा। वह बहुत सुंदर थी। अब मैं उसे रिझाने की तरकीब सोचने लगा। मैंने अपने मित्र बदंर को उसे डराने के लिए भेजा और अपना लोहे का सलिया शर्ट मे अपने छाती के पास रख दिया। मेरा बंदर उसे डराने के लिए उसके पास गया। पर ये क्या वो डरने के बजाय उसे देख देख कर ताली बजाने लगी व जोर जोर से हँसने लगी। वो कहने लगी वाह! बड़े दिनो बाद बंदर देखा है। जादूगरनी कहने लगी , आज तुझे पकडकर तेरा दिल निकालूँगी। और उससें अपना मंत्र सिद्ध करूंगी। ये मौका मैं जाने नहीं जाने दूगीं। उसी समय मैं बाहर निकला और जादुगरनी को सलाम किया करके कहा, हे सुंदरी तुम इतना कष्ट मत करो। यह मेरा बदंर है। यह मैं तुम्हे सौंपता हूँ। जादूगरनी भी मुझे निहारने लगी और कहा, तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो। मैंने कहा, मैं एक मुसाफिर हूँ। रात हो गई इसलिए ठहर गया। पर इस गांव मे कोई नही इसलिए इस घर मे ठहर गया। जादुगरनी भी मुझे देख मुस्कुराने लगी और कहा, मैं भी यहाँ मुसाफिर हूँ बस रात काटने आई हूँ। पर मैं उस जादुगरनी की असलियत अच्छी तरह जानता था। पर जान के अनजान बनने लगा। मेरी चाल मेरा बंदर समझ गया था। वो भी उछल कूद करके उसका मनोरंजन करने लगा। मैंने देखा वो मेरी तरफ देख रही है मैं समझ गया कि वह मुझ पर मोहित है। मैं भी उसी की ओर देखने लगा। नजरों से जब नजर लड़ने लगी तो उसने शरमाकर पलकें झुका ली। मैं उसकी ओर बढ़ा। उसके पास जाते ही मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वह मुझे नजरे उठा कर मेरी आंखों मे देख रही थी। मैंने उसे गले से लगा लिया। गले से लगाते ही वो जोरदार चीख पड़ी और लेट कर मछली की भांति तड़ ने लगी। कुएँ से लोगों की आवाज सुनाई देने लगी। मैं समझ गया कि गाँव वाले इसके जादू से मुक्त हो गए। मैंने अपनी लोहे की छड़ अपने सीने से निकालकर अपने पीठ के पीछे छुपा लिया। गाँव वाले भी खुशी खुशी कुएँ से बाहर निकलने लगे। सभी ने मुझ से शुक्रिया कहा। अब जादूगरनी जो जमीन पर तड़प रही थी उसने पूरी तरह से मछली का रूप धारण कर लिया था। वह बिन पानी के तड़प रही थी। लोगों ने कहा इसे मार दो। पर मैंने सभी को रोक दिया और कहा यह भी एक इन्सान है इसे मारने का हमें कोई हक नही इसे सजा उपर वाला देगा। तभी एक तूफान आया और आवाज आई, बालक तुमने पांचवें दरवाजे को पार कर लिया है यह चुनौती थी मदद और नेक ईमान की। तुमने इन गाँव वालों की मदद की और इन्हें मुसीबत से बाहर निकाला। और इस जादूगरनी को प्राण दान दिलाकर तुमने नेक काम किया है। यह कुआँ ही पांचवां दरवाजा है इसमे कूदो तुम अगली चुनौती पर पहुंच जाओगे। मैं तैयार हो गया। पर मेरी नजर उस मछली रूप मे तड़पती जादूगरनी पर गई। मैंने एक बोतल भर पानी लेकर उस मछली को उसमे डाल दिया। मछली बोतल मे जाते ही और छोटी हो गई और बोतल के अनुसार अपने आप को ढाल लिया और आसानी से उसमें तैरने लगी। मैंने बोतल का मुंह बंद करके उसमें छेद किया जिससे हवा जा सके। फिर मैंने बोतल पर धागा बांधकर बंदर के गले मे डाल दिया। और बंदर का हाथ पकड़ कर कुएँ मे कूद गया। कुएँ मे कूदते ही कुएँ का पानी गोल गोल घूमने लगा। और हम उसके केंद्र मे समाने लगे। हमने आंखें बंद कर लिए पलक झपकते ही पानी की आवाज बंद हो गई थी। अब कानों मे सिर्फ पक्षियों के चहचहाहट सुनाई दे रही थी। मैंने जब आंखें खुली तो पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। मैं झट से उठ खड़ा हुआ। मेरे सामने प्रकृति का अद्भुत नजारा था। जहाँ मैं खड़ा था वहां से सुंदर वन तथा पहाड़, जलाशय, व उनके बीच मे बसे गांव बड़े ही सुंदर दिखा दे रहे थे। मैं भाग कर पर उस ओर बढ़ा। मेरे साथ मेरा बंदर था। जो कि खुशी से उछल पड़ा। जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे नजारा और भी सुंदर होते जा रहा था। मानो सपना देख रहा हूँ। चारों ओर खेत ही खेत थे। हम खेतो से होकर गुजरने लगे। खेतों मे कई प्रकार की फसल लहलहा रहें थे। हमने जैसे ही गांव मे प्रवेश किया तो देखा बच्चे खेल रहे हैं। बड़े बुजूर्ग घर के बाहर बैठे बाते कर रहें हैं। युवक अपने खेतों की ओर जा रहें हैं। बैलों की कतार थी। उनके गले की घंटी की आवाज मनोहर संगीत छेड़ रही है। वहाँ किसान अपने खुशी मन के साथ गीत गाते जा रहें हैं। सभी युवती अपने अपने काम मे व्यस्त हैं। अपार सुख से समृद्ध ये गांव देख ऐसा लगा मानो इसी गांव मे रहूँ। अचानक कुछ लोगों की नजर हम पर पड़ी। वो हमें घूर घूर कर देखने लगे। उन्होंने अपने बच्चों को अपने पास खिंच लिया। युवतियों ने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। बूढ़े बुजुर्ग भी संभलते हुए एक ओर हो गए। सभी युवक अपना काम छोड़कर हाथ मे लाठी लिए हुए हमारी ओर दौड़ते हुए दिखाई दिए। ऐसा नजारा देख डर गया। मेरे पैर कांपने लगे। सभी युवकों ने हमें चारों ओर से घेर लिया। मेरा बंदर डरकर कर मेरे सिर पर बैठ गया। मैंने होश से काम लिया। मैंने झुक कर सभी को प्रणाम किया। प्रणाम करने व मेरे नम्र स्वभाव के कारण उन्होंने अपने लट्ठ नीचे कर लिए। उनमें से एक व्यक्ति आगे आया और कहा, तुम कौन हो? और कहाँ से आए हो? मैंने कहा, मैं एक यात्री हूँ। यहां से गुजर रहा था और इतने सुंदर गांव को देखकर रूक गया। अगर आप लोगों को कोई समस्या है तो मैं चला जाता हूँ। उनमें से एक बुजुर्ग आगे आया और कहा, बेटा रूको। हमारे गांव से कोई भी ऐसे ही नही जाता। पहले कुछ खा लो आराम करो। उसके बाद चले जाना। मैं खुश तो बहुत हुआ क्योंकि आज बहुत दिनों बाद खाना खाने के लिए मिलने वाला था। मैं झट से तैयार हो गया। मैंने अपने हाथ और पैर धोए। भोजन का समय हो गया था इसलिए सभी भोजन करने के लिए बैठ गए। मैंने देखा सभी अपने अपने परिवार के साथ भोजन करने बैठे हैं । पर मैं किसके साथ बैठूं। तभी एक बूढ़े व्यक्ति ने मुझे हात पकड़ के अपने साथ बिठाया। मेरे सामने भोजन लाया गया। थाली मे रोटी और सब्जी दी उन्होंने। रोटियों को देखा तो हैरान रह गया वह घास से बनी हुई थी और सब्जी की जगह उबले हुए आलू नमक के साथ दिए गए थे। मैंने सभी की थालियों मे नजर दौड़ाया पर सभी के थाली मे मेरे थाली जैसे भोजन थे। मैं हैरान था कि इस गांव मे इतनी खेती है फिर भी यह हाल क्यों है इनका।

मैंने उस बुजुर्ग से पूछा कि आप लोग अनाज का क्या करते हो? आप लोग इतनी कडी मेहनत करके खेती करते हो और खाने के लिए घास की रोटी। सारी फसल कहाँ जाती है। उन्होंने पहले मुझे देखा, और कहने लगे बेटा हमें यही मीलता है खाने के लिए। हमारा काम है यह करना। क्योंकि हम गुलाम है। हमारे यहाँ सभी वर्ग के लोग अलग अलग गांव मे रहते हैं। मैंने कहा यहाँ कितने गांव है और आप लोग किसके गुलाम हो? उन्होंने कहा, हमारे यहाँ दो गांव है। यह गांव मजदूरों का है। तथा कुछ ही दूरी पर एक दूसरा गांव है जिसमें की बड़े बड़े मकान व महल है। हम राजा के गुलाम है। और हमे मेहनत के रूप मे थोड़ा सा अनाज दिया जाता है पर व मुश्किल से दस दिन चलते है और बाकी के बीस दिन हम इसी तरह का भोजन करते है। मैंने कहा, आप सभी आवाज क्यों नहीं उठाते। आप लोगों को राजा से बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा, हम ऐसा नही कर सकते। हमारा राजा ही अन्यायी है। हम उससे कुछ नहीं कह सकते क्योंकि वह एक बहुत बड़ा जादूगर है। वह हमें जानवर मे तबदील कर देगा। यह सभी बैल पहले इन्सान थे। इन्हें जादू से बैल बनाकर काम लिया जा रहा है। अगर हमने आवाज उठाई तो जानवर बन जाएंगे। यह सुनकर मैं समझ गया कि यहाँ का हाल भी हमारे यहाँ के लोगों जैसा ही है। यहाँ पर भी लोगो को डरा धमका कर उनका शोषण किया जाता है। मैं अब सोचने लगा कि इनके जीवन को कैसे सुधारा जाए। इसके लिए मुझे बड़े गांव जाना होगा और राजा से मुलाकात करनी होगी। मैंने भोजन कर विश्राम किया। कुछ देर बाद मैं और मेरा बंदर आगे बढ़ने के लिए तैयार हुए । हमने गांव वालों से अनुमति ली और निकल पड़े। कुछ दूर निकल जाने पर ही दूर से वो बड़ा गांव दिखाई देने लगा। मैंने पास जाकर देखा गांव का प्रवेश द्वार बहुत ही बड़ा था। और अंदर के सभी मकान बड़े ही भव्य व सुंदर थे। मैं अंदर गया और घूम घूमकर गांव घूमने लगा। घूमते हुए मे बाजार पहुंचा। बड़ा ही सुंदर बाजार था। पर यह क्या वहाँ जो भी लोग थे सभी मोटे थे। सभी व्यापारी, वहाँ के लोग, सिपाही सभी मोटे थे। मैंने राह चलते एक व्यक्ति से पूछा, भाई यहाँ सभी इतने मोटे क्यों है। यहाँ कोई बीमारी है क्या कि सभी मोटे है। उस व्यक्ति ने कहा नही यहाँ कोई भी बीमारी नहीं है। हमारे का गाँव का नियम है कि सभी को यहाँ मोटा ही रहना है अगर पतले हुए तो गांव से बाहर मजदूरों के गांव भेज देंगे। यहाँ जो जितना मोटा होगा उसे उतनी ही बड़ी पदवी मिलेगी। मैंने हैरानी से पूछा, तो यहाँ पदवी योग्यता के बदले नही मोटापे को देखकर दिया जाता है। फिर मैंने पूछा तब तो यहाँ के राजा भी मोटे होंगे। उसने कहा, मूर्ख मेरे राजा के मुकाबले मे कोई नही है। वो तो इतने मोटे है कि उनको सिंहासन पर बिठाने के लिए दस लोग लगते हैं। मैं समझ गया कि मुझे क्या करना है। मेरा काम और आसान हो गया क्योंकि मोटे लोगों की बुद्धि भी मोटी होती है। मैं खुशी से आगे बढ़ा कि अचानक मेरे सामने एक बुढ़िया मेरे सामने आ गई। वह भी बहुत मोटी थी। पर उसने मेरा हाथ पकड़ कर बोला। बेटा कहाँ जा रहे हो। मैंने कहा महल कि ओर। उस बुढ़िया ने कहा, बेटा थके हुए लगते हो। बैठ के थोड़ा सुस्ता लो फिर आगे जाओ। मैंने कहा ठीक है उसने मुझे अपने दुकान पर बिठाया। मैंने देखा उसके दुकान पर बहुत सारे तंत्र मंत्र के सामान बिक रहे थे। मैं ध्यान से देखने लगा तो उस बुढ़िया ने कहा बेटा यह सब जादूगरी का सामान है। और मैं भी जादूगर हूँ। तुम्हारे पास जो बंदर है उसे भी इस राजा ने जादू से बंदर बनाया है जो कि यहाँ के मंत्री का बेटा है। इसने लोगों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी और मेरी बेटी से प्रेम भी करता था। यह सुनकर मेरी आंखें खुली की खुली रह गई मैंने पूछा आपकी बेटी कहाँ है। तो उसने आंखों से आंसू बहाते हुए कहा कि वो भी यहीं है इस बदंर के गले मे जो बोतल है उसमें। मैंने हैरानी से कहा, क्या? यह तो एक जादुगरनी है जिसने कि पूरे गांव पर जादू किया था। और इसे मछली रूप मे बदलने मे मेरे बंदर ने सहायता की है। उस समय तो ना मेरे बंदर ने कुछ कहा, ना ही इस जादूगरनी ने।

बुढ़िया ने कहा, बेटा ये दोनों ही जादू के वश मे थे इसलिए एक दूसरे को पहचान नही पाए। मैं भी एक जादूगरनी हूँ इसलिए इन्हें पहचान लिया। मैंने पूछा, क्या आप इन्हें फिर से इन्सान बना सकती हो। उन्होंने कहा, अभी सही समय नही आया है। पहले तुम्हें बंदर की सहायता से राजा से लड़ना है और उस अत्याचारी राजा, और उसके शासन से लोगों को मुक्त करना है। मैंने पुछा, यह कैसे हो सकता है। वह एक जादूगर है और मैं एक सामान्य व्यक्ति। बुढ़िया ने कहा नही तुम सामान्य नहीं हो। तुम्हें उपर वाले ने शायद इसीलिए चुना है। मैं तुम्हारे बारे मे सब जानती हूँ। इस चुनौती को पूरा करने के लिए तुम्हे राजा से लड़ना ही होगा। उस राजा के मुकुट को पाते ही सातवां दरवाजा खुल जाएगा। मैं भी वहीं रहूंगी। मैंने कहा, उसने मुझे भी जादू से जानवर बना दिया तो। बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हें यह अभिमंत्रित जल देती हूँ इसे तुम राजा पर डाल देना। जिससे तुम जिस जानवर का नाम लोगे, राजा वही जानवर बन जाएगा। पर यह तुम कैसे करोगे यह मुझे नही पता। अब मेरे सामने एक बड़ा खतरा था। मैं डरने लगा पर भगवान का स्मरण ही मुझे साहस दे सकता है। मैंने उपर वाले को याद किया। मैंने अपने मित्र बंदर का हाथ पकड़ा और महल की ओर चल दिया। महल बड़ा ही आलीशान था। पहरेदार ने हमें वहीं दरवाजे पर रोक लिया। मैंने पहरेदार से कहा हमें अंदर जाने दो हम मसखरे हैं, राजा का मनोरंजन करने आए हैं। यह बंदर नाच दिखाता है। हमें बहुत ही इनाम मिलेगा। पहरेदार ने कहा मुझे क्या मिलेगा। मैं समझ गया। मैंने कहा मुझे जो भी इनाम मिलेगा सब तुम्हारा। मुझे तो सिर्फ राजा का दर्शन चाहिए। पहरेदार ने हमें अंदर जाने दिया। हम हल अंदर से भी बहुत सुंदर था। राजा का सिंहासन सामने नीचे ही था क्योंकि उपर होता तो वह चढ़ नही पाता। क्योंकि वह अत्यधिक जाड़ा था। मैंने झुककर उसे प्रणाम किया, और तमाशा दिखाने की अनुमति मांगी। उसने हाथ उठाकर अनुमति दे दी। मैंने आज के फिल्मी गाने गाना शुरू किया। मेरा बंदर भी उसी तरह के धुन पर नाचने लगा। राजा व सभी मंत्री व सिपाही पेट दबा कर हँसने लगे। मैंने बंदर को इशारा किया। बंदर उछल कर गया और राजा के सर से उसका ताज निकालकर अपने सिर पर रख लिया और नाचने लगा। राजा इसे तमाशा ही समझ रहा था और हँसता जा रहा था मैंने झट से बोतल से पानी निकाल राजा पर छिड़क दिया। और कहा बैल बन जाए। राजा बैल बन गया। सभी सिपाही दौड़ते हुए मेरी ओर बढ़े। मैंने झट से बंदर के हाथ से ताज लेकर अपने सर पर रख लिया। सिंहासन पर बैठ कर बोतल का पानी अपने हाथों मे लेकर कहा जो मेरे पास आएगा मैं उसे जानवर बना दूंगा। सभी अपनी जगह रूक गए। तब मैंने बुढ़िया को इशारा किया। बुढ़िया ने आगे आकर बंदर को जादू से मुक्त करके मानव बना दिया। मैं देखता ही रह गया। मेरा बंदर एक सुंदर नौजवान मे बदल गया था। फिर बुढ़िया ने उस मछली को भी अपने मानव रूप मे लाया। जादूगरनी ने जब अपने सामने अपनी माँ को देखा तो लिपट कर रोने लगी। फिर जब उसने अपने प्रेमी को देखा तो खुशी से उछल पड़ी। मैंने जादूगरनी से कहा, क्या तुम अभी भी इससे प्रेम करती हो या उस मुखिया के बेटे से जो मर गया। उसने कहा, मुखिया का बेटा सिर्फ मेरे लिए एक साधन था मछली पकड़ने के लिए। ताकि मुझे भोजन मिलता रहे। मेरा वहाँ जाने का मकसद इन्हें ढूंढना था। पर किसी माया ने मुझे सब कुछ भूला दिया। मैंने तुरंत ही दोनो का विवाह कराया। सिंहासन पर अपने मित्र जो पहले बंदर था उसे बिठाया। उस गांव के सभी मोटे व्यक्तियों को खेती करने व मजदूरी करने का काम सौंपा। जिससे वह पतले व स्वस्थ हो सके। राजा जो बैल बन चूका था मैंने उसे खेत मे हल जोतने के लिए भेज दिया। और उन मेहनती मजदूर गांव वालो को उनके योग्यता के अनुसार पद दिया गया। मैंने अपने मित्र को गले से लगाया और ताज से हिरा निकालकर अपने हाथ मे लिया। हिरा हाथ मे लेते ही सिंहासन के पीछे रोशनी हुई। मैं झट से सिंहासन के पीछे गया और रोशनी मे प्रवेश कर गया। पलक झपकते ही मेरे सामने था एक घने अंधकार से भरा एक विशाल जंगल..

अब मेरे सामने एक घना जंगल था और चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा। यहाँ तक की रास्ता भी नजर नही आ रहा था। फिर भी मेरे मन मे एक अलग खुशी थी। मुझे मेरी मंजिल बहुत पास नजर आ रही थी। अब यह सातवां और आखिरी चुनौती थी। मेरे आंखों के सामने मेरी प्रेमिका का चेहरा बार बार नजर आने लगा था। मुझे ऐसा लगा मानो वो उसी लाल रंग के लंबे गाऊन मे मेरे सामने खड़ी है। हाय वो मेरी राजकुमारी। कब मैं उसके पास पहुंचूंगा यह सोचकर मेरा मन आतुर होने लगा। उसी समय मुझे मेरी मम्मी का चेहरा और फिर बहनों का उसके बाद मेरी मित्र नम्रता का चेहरा मेरे सामने घूमने लगा। मेरा मन पुरी तरह से विचलीत होने लगा। मैंने अपने अचेतन मन पर काबू किया और सोचने लगा कि इतने दिन बीत गए पर मैं कभी इस तरह विचलीत नही हुआ। जरुर यह जगह ऐसी है जो लोगों मे भ्रम पैदा करती है और मन विचलीत कर आत्मविश्वास को तोड़ती है। मैं अब आगे बढ़ने के लिए के लिए तैयार हुआ। और निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं भ्रमित नही होना है। चारों तरफ अंधेरा था इसलिए मेरे पैर मे ठोकर लगी। मैं मुंह के बल गिरा और मेरे जेब मे रखा हुआ राजा के ताज का हीरा जमीन पर गीर पड़ा । हीरे का प्रकाश इतना था कि चारों ओर उसकी रोशनी फैल गई। मैंने उस हीरे को उठाया और उसकी रोशनी मे चलने लगा। रात के कीड़े के किर किर की आवाज ईतनी थी कि मन भयभीत होने लगा। रह रहकर उल्लू की आवाज रोंगटे खड़ी कर देती थी। जंगल इतना भयानक था कि पैर काँपने लगे थे। एक तो जंगल मे साँप, बिच्छू और कई प्रकार के जंगली जानवर होते है यह सोचकर तो मैं भगवान को याद करने लगा। थोड़ी दूर पहुंचा तो ऐसा लगा कि अब कहाँ जाऊँ। मुझे दिशा भ्रम हो रहा था। वैसे भी किस ओर जाना है पता नहीं। अचानक मुझे कुछ आहट सुनाई दी। मैंने तुरंत पीछे मुड़ के देखा पर कोई नहीं था। फिर जैसे ही आगे कदम बढ़ाये वैसे ही फिर से आहट महसूस हुई। मुझे डर से पसीने छुटने लगे। पर कपनी हिम्मत को बनाए रख मैंने पीछे नही मुड़ने मे ही भलाई समझी। कुछ दूर जाने पर मुझे पीछे से एक प्यारी सी आवाज आई। पर कुछ समझ मे नही आया। मैं आगे बढ़ा तो फिर वही आवाज। पर इस बार आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी। यह किसी लड़की की आवाज थी जो मेरा नाम लेकर पुकार रही थी। मैं फिर आगे बढ़ा तो आवाज आई योगेश। मैं रूक गया। आवाज फिर से आई, योगेश कहाँ जा रहे हो? वो भी अकेले। मुझे साथ ले लो। तुम्हारे काम आऊँगी। तुम थक गए होगे। कहो तो तुम्हारे पैर दबा दूँ। तुम्हे भूक लगी होगी। मेरे साथ चलो तुम्हे अपने हातों से भरपेट गरम गरम रोटी खिलाऊँगी। भूख तो सच मे लगी थी। और रोटी का नाम सुनकर मूह मे पानी आ गया। फिर आवाज आई , अरे एक बार देखो तो सही। तुम्हारी राजकुमारी से भी अधिक सुंदर हूँ। मैं समझ गया अब यहाँ रूकना ठीक नहीं। वैसे भी इस सूने घने जंगल मे मुसीबत के अलावा कुछ नहीं मील सकता। यह भी कोई बड़ी आफत है इससे जितना हो सके उतने जल्दी पीछा छुड़ाना है। मैंने उसे अनसुना कर जोरदार दौड़ा। मैं पूरी शक्ति लगाकर अंधाधुंध दौड़े जा रहा था। जब थक गया तो रूका। मैं बहुत दूर निकल गया अब थोड़ा राहत हुआ। मैंने उपर कि ओर देखा ऐसा लगा मानो झाड और पत्तों ने ऐसा घेरा बनाया है कि आकाश दिखाई नहीं दे रहा। मुझे समझ नही आ रहा था कि कब तक इस जंगल मे यहाँ वहाँ घूमता रहूँगा। अगर मेरा दोस्त बदंर होता तो मन भी बहल जाता। बंदर को याद करते ही एक उपाय सुझा। मैं तुरंत एक पेड़ पर चढ़ने लगा। ऊपर चढ़ कर घने पत्तों के जाल को हटाया तो देखा कि चारों ओर उजाला है। उपर नीला गगन और सूर्य अपनी जगह पर है। मानो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे प्रकृति ने मेरे साथ मजाक किया हो और सूर्य मुझे देखकर हँस रहें हों। मैं अब ऊपर ही ऊपर पेडों पर चलने लगा अपने को संभालते हुए। ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ को फांद रहा हो। कुछ ही दूर पर मुझे खुला मैदान दिखाई दे रहा था। मैं फटाफट उस ओर बढ़ने लगा। जंगल को पार कर मैं पेड़ से नीचे उतरा। और मैदान मे आकर थोड़ा सुकून मिला। मैदान की एक ओर घना जंगल और दूसरी ओर पहाड़ दिखाई दे रहा था। मैं पहाड़ कि ओर बढ़ने लगा। जैसे ही पहाड़ के पास पहुँचा पहाड़ से जोर दार आवाज आई। मैंने देखा, पहाड़ से एक बड़ा सा पत्थर लुढ़कते हुए मेरी ओर आ रहा है। मैं जिस ओर जाता पत्थर उसी दिशा मे बढ़ने लगा। ऐसा लग रहा था मानो पत्थर की आंखें हो। मैं समझ गया यह जादुई पत्थर है या फिर किसी जादुई शक्ति से मेरी ओर बढ़ रहा है। मैंने थोड़ा साहस जुटाया और एक ही जगह खड़ा हो गया। पत्थर जैसे ही मेरे पास आया मैंने जोरदार दूसरी ओर छलांग लगाया। पत्थर वहाँ से गुजर गया। मैंने राहत की साँस ली। उसी समय एक गूँजती हुई जोरदार आवाज आई। ऐ साहसी बालक क्यों आया है यहाँ? लौट जा वरना यहीं मारा जाएगा। मैंने यहाँ वहाँ देखा पर कोई नजर नहीं आया। मैनै कहा, जो भी हो सामने आओ। आवाज आई, मैं तुम्हारे सामने ही खड़ा हूँ। मैंने हँस कर कहाँ हो तुम? मुझे तो नहीं दिख रहे। फिर से खिजयाती हुई आवाज आई, अरे! तेरी आँख खराब हो गई है। क्या तुझे इतना बड़ा पहाड़ दिखाई नहीं दे रहा? मुझे आश्चर्य हुआ कि यह पहाड़ बोलता भी है। मैंने तुरंत झुक कर उन्हें नमस्कार किया। और कहा, हे तपस्वी मुझे आशीर्वाद दो कि मैं अपने कार्य पूरा कर सकूं। उसी समय आवाज आई, हे बालक मैं तुम्हारे इस व्यवहार से खुश हुआ। तुम्हारी सभी मनोकामना पूरी होगी। बोलो यहाँ क्यों आए हो। मैंने कहा, मैं यहाँ उस सातवें दरवाजे की तलाश मे आया हूँ। जो मुझे सुनहरे जल तक ले जाएगा। पहाड़ ने कहा, बालक इतना आसान नहीं है वहाँ तक पहुंचना। सातवां दरवाजा मेरी चोटी पर बने गुफा के अंदर है। पर मुझ पर चढ़ना इतना आसान भी नहीं है। तुम जैसा बालक तो कभी नही चढ़ सकता। अच्छे अच्छे पर्वतारोही भी मुझ पर चढ़ने से कतराते हैं। तुम्हारे पास तो कोई साधन भी नही चढ़ने के लिए। मैंने कहा, मुझे चढ़ने के लिए किसी साधन की जरूरत नहीं। मेरे लिए तो मेरी हिम्मत और भगवान की दया ही बहुत है। मैं जैसे चढ़ने के लिए आगे बढ़ा वैसे ही पहाड़ ने बोला, रूको तुम आगे नही जा सकते। आगे बढ़ने के लिए तुम्हें मेरे एक सवाल का जवाब देना होगा। अगर तुम्हारे जवाब से मैं संतुष्ट हुआ तो तुम उपर चढ़ सकते हो वरना मेरे चारों ओर बड़ी सी खाई बन जाएगी और तुम आगे नहीं बढ़ पाओगे। मैं ठहर गया। मैंने कहा पूछो। पहाड़ ले सवाल पूछा।

बताओ यह सामने जो चिंटी है उसका साहस बड़ा है या मेरी ऊँचाई?

जवाब- मैंने कहा, आपकी ऊंचाई ज्यादा है पर चिंटी का साहस उससे भी अधिक है।

पहाड़ अपनी तारीफ सुनना चाहता था इसलिए यह जवाब सुनकर बौखला गया और कहा अपने दिए हुए जवाब को सिद्ध करो। मैंने कहा, आपकी ऊंचाई निश्चित है पर चिंटी का साहस निश्चत नहीं। वो यदि दिन रात प्रयास करे तो वह आप पर चढ़ सकती है। पहाड़ ने कहा, अगर मेरी ऊँचाई भी बढ़ने लगे तो। मैंने कहा ऐसा हो ही नही सकता। मेरे कहते ही ऐक जोरदार आवाज हुई और पहाड़ बढ़ने लगा। और वह इतना ऊँचा हुआ कि उसकी चोटी भी दिखाई नहीं दे रही थी। मैं समझ गया यह जादुई पहाड़ है। यह मुझे आसानी से चढ़ने नही देगा। इसके लिए मुझे होशियारी से काम लेना होगा। मैं जोर जोर से ताली बजाकर हँसने लगा। जब यह पहाड़ ने देखा तो कहा क्या हुआ क्यों हँस रहे हो। मैंने कहा, वाह! क्या बात है मैंने पहली बार देखा ऐसा पहाड़। तब तो तुम आकाश जितने भी बड़े हो सकते हो। पहाड़ ने जब अपनी तारीफ सुनी तो खुश हो गया। पहाड़ ने कहा, हाँ मैं जितना चाहूँ उतना बड़ा हो सकता हूँ। जितना चाहूँ उतना छोटा हो सकता हूँ। मेरे सामने एक बड़ा सा पत्थर था। मैंने कहा क्या तुम इस पत्थर जितना छोटे हो सकते हो। पहाड ने कहा, हाँ हो सकता हूँ पर मुझे छोटा होना पसंद नहीं। मैंने कहा, इसका अर्थ है तुम नहीं हो सकते। पहाड़ ने गुस्से से कहा। मुझे चुनौती देते हो तो देखो। एक जोरदार आवाज हुई और पहाड़ की ऊंचाई कम होने लगी। पहाड़ की चोटी जैसे ही मेरे सामने आया मैंने छलांग लगा दी। और उसकी चोटी पर बने गुफा के दरवाजे को जोर से पकड़ लिया। पहाड़ को भी अपनी मूर्खता पर गुस्सा आया और तेज गति से बड़ा होने लगा। पर पहाड़ अब छोटा और बड़ा होने के अलावा कुछ नही कर सकता था। जब पहाड़ का बड़ा होना बदं हुआ तो मेरे मन को शांति मिली। मैंने तुरंत दरवाजा खोलने की कोशिश की। पर मेरे पीछे से मेरी मम्मी की आवाज सुनाई दी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मेरी मम्मी मेरे सामने खड़ी थी। मैं तो खुशी से नाच उठा। मैं भाग कर मम्मी के पास गया। मम्मी के आंखों मे आंसू थे। मैं हैरान था कि मेरी मम्मी यहाँ कैसे पहुंच गई। मम्मी ने कहा बेटा अब आगे मत जा। आगे बहुत खतरा है। तु मेरा एक ही बेटा है अगर तुझे कुछ जाएगा तो मैं कहाँ जाऊंगी। बेटा चल मेरे साथ , घर चल । कहाँ तु उस राजकुमारी के जाल मे फँस गया। मम्मी के ऐसे बोलते ही राजकुमारी की आवाज आई। राजकुमारी ने कहा, मत जाओ आगे। पिताजी भी मान गए है। उन्होंने कहा है मुझे कोई सुनहरा जल नहीं चाहिए। उन्होंने कहा मेरी खुशी ही उनके लिए सब कुछ है। अब लौट चलो। मैं भी खुश हो गया कि जान छूटी इस मुसीबत से। ' जान बची अब लाखों पाए, क्यों मुशीबत घर को लाए।' मैं जैसे मम्मी की ओर बढ़ा मेरी नजर मम्मी के मुस्कान पर गई। उस हँसी मे कुछ अलग ही बात थी। मैं रूक गया और मम्मी व राजकुमारी दोनो की ओर देखा और सोचने लगा कि मम्मी को तो पता ही नहीं था कि मैं छुप छुप कर राजकुमारी से मिलता था और यह भी नही पता था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। और यह राजकुमारी नहीं हो सकती क्योंकि उसी ने कहा था कि मैं तुम्हारे सार नहीं आ सकती। मैं समझ गया कि यह एक छलावा है जो कि मुझे मेरे मार्ग से भ्रमीत करना चाहते हैं। मैं तुरंत पीछे मुड़ा और गुफा के दरवाजे को जोर से धक्का मारा। दरवाजा खुलते ही मम्मी और वह राजकुमारी अदृश्य हो गई। मैं गुफा के अंदर चला गया। अंदर जाते ही गुफा का दरवाजा बंद हो गया। अब मेरे सामने था गुफा के अंदर एक जगमगाता रास्ता.........

गुफा के अंदर जाते ही मेरी आंखें चौंधिया गई। चारों ओर उजाला ही उजाला था। मेरे सामने एक पतला सा संकरा रास्ता था। मैं उसी ओर आगे बढा़। कुछ दूर आगे जाने पर एक बड़ा सा आंगन था। उसमे तरह तरह के फल, मेवे रखे थे। भूख तो बहुत लगी थी पर मेरी आंखें उस सुनहरे जल को ढूंढ रही थी। मैं आगे बढा़ तो एक और आंगन था। उसमें कई प्रकार के जूते, चप्पल, सनग्लासेस, और कपड़े रखे थे। मैं हैरान हुआ कि यह सभी चीजें आज के जमाने के है और यह सभी मेरे मनपसंद थे। मैं सभी चीजों को ध्यान से देखने लगा। मन मे आया जितना हो सके ले लूं। पर मन नही माना मैं सब वहीं छोड़कर आगे बढ़ा। आगे एक और आंगन था जिसमें कई प्रकार के मोटर साईकिल थी जिन्होंने मेरा मन मोह लिया। मैं सभी मोटरसाईकिल को देखते हुए तारीफ की। मन तो बहुत खुश हुआ। पर उन्हें छोड़कर मैं आगे निकल गया। आगे एक और आंगन था पर वह आंगन खाली था उसमें कुछ भी नहीं था। मैंने पीछे मुड़कर देखा। जहाँ से मैं आया था सभी दरवाजे बंद हो चूके थे अब मैं एक ऐसी जगह खड़ा था जहाँ चारों ओर से दीवार और बीच मे मैं खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी जेल मे बंद हो गया हूँ। मैंने यहाँ वहाँ दीवार को टटोला पर बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। मेरा मन रोने का कर रहा था। मैंने फिर से यहाँ वहाँ देखा पर कोई उम्मीद दिखाई ना दी। इतनी मुसीबतों को पार करने के बाद अंतिम मे फंस गया। यह सोचकर मैं जोर जोर से रोने लगा। मेरे आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। मेरे मन मे मेरी मम्मी की तस्वीर आ गई। इसके बाद मेरी बहनों की याद आ गई। मेरे बगैर उनका क्या होगा उन्हें कौन संभालेगा। मेरी प्रेमिका जो मुझे बेहद प्रेम करती है। वह मेरे बगैर कैसे रह पाएगी। रह सोच सोचकर मेरे रोते ही जा रहा था। मेरे आंखों से आंसू निकलते ही जा रहे थे। पर यह क्या मेरे आंसूं जैसे ही जमीन पर गीरे वह चमकने लगे और वहीं से एक पानी का फव्वारा उछल कर बाहर आया। पर यह हुआ कैसे। एक आवाज आई बालक तुम्हारे आंसुओं से से तुम्हारे भीतर छुपे प्रेम और निस्वार्थता का पता चलता है। इसलिए यह सुनहरा जल प्रकट हुआ। मैं डरकर पीछे हट गया। मैंने देखा उस फव्वारे का जल सोने की तरह चमक रहा था। मैं समझ गया कि यही सुनहरा जल है। मैं खुशी से नाचने लगा। पर मेरे पास कोई भी जल पात्र नहीं था जिसमें उस जल को भर सकूँ। मैं एक जगह पर खड़ा था। कुछ समझ मे नही आ रहा था क्या करूँ। कैसे उस जल को ले जाऊंगा सम्राट के लिए। तभी एक आवाज आई। बालक क्या सोच रहे हो। आगे बढ़ो और जल को पीकर अपनी प्यास बुझा लो। मैंने कहा, नहीं मैं इसे नहीं पी सकता क्योंकि मैं यह सुनहरा जल सम्राट के लिए लेने आया था। इस जल को लाना मेरे लिए सिर्फ एक परीक्षा थी। सम्राट ने मेरी योग्यता परखने के लिए मुझे यहाँ भेजा था। यह सुनहरा जल अगर मैं ले जाकर सम्राट को दूंगा तो ही वो मेरा विवाह राजकुमारी से करेंगे। मेरे ऐसे कहते ही मेरे सामने एक परी प्रकट हुई। जो कि हवा मे लहरा रही थी। वह अत्यंत सुंदर और तेजस्वी थी। उसके सिर पर ताज था। उस परी ने हँसते हुए कहा, बालक तुम अभी नादान हो। तुम साहसी और ईमानदार बालक हो। तुम्हारे अंदर कोई छल कपट नहीं है। यह सम्राट को भी पता है। सम्राट को यह भी पता है कि कि यह चुनौती वही पूरा कर सकता है जो ईमानदार और साहसी हो। पर उसे यह नहीं पता था कि इन चुनौतियों को पूर्ण करने वाला ही जल को पी सकता है। सम्राट पहले से ही योजना बना रखी थी मैंने आश्चर्य होकर पूछा, क्या राजकुमारी भी मेरे साथ छल कर रही थी। परी ने कहा, नहीं उसे यह नहीं पता था परंतु तुम्हारे यहां आने के पश्चात जब उसे यह पता चला कि सम्राट ने तुम्हें अपने स्वार्थ के लिए यहाँ भेजा और तुम्हारे साथ छल करेगा तो उसने सम्राट का विरोध किया। इसलिए सम्राट ने राजकुमारी को एक कारागार मे बंद कर दिया। राजकुमारी लगातार तुम्हारे सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। भगवान ने भी तुम्हे इस योग्य समझा इसलिए तुम यहाँ तक पहुंचे हो। तुम इस जल को पीकर सर्व शक्तिमान बन जाओगे। तुम्हारे असीम जादुई शक्ति होगी। तुम हमेशा जवान रहोगे। तुम जो चाहोगे वह तुम्हारे पास होगी। पर तुम्हारी आयु जब तक रहेगी तभी तक। क्योंकि यह जल किसी को अमर नहीं बनाता बल्कि सदैव जग की सहायता करने योग्य बनाता है। जिस दिन तुम जग की भलाई छोड़कर अपने स्वार्थ के लिए सोचोगे उसी समय से तुम्हारी शक्ति कम होने लगेगी। अब अधिक देर मत करो। जल ग्रहण करो और अपना उद्देश्य पूर्ण करो। मैंने आगे बढ़ कर जल ग्रहण किया। जल ग्रहण करते ही मेरे शरीर मे एक अजीब सी शक्ति का संचार हुआ और मैं उस शक्ति को झेल ना सका। तुरंत ही बेहोश हो गया। अचानक जब होश आया तो मैंने अपने आप को उसी समुद्र मे पाया जहाँ राजकुमारी का महल था। मैंने देखा मेरे चारों ओर सम्राट के सैनिक मुझे घेरे हुए हैं। मैं उठ कर खड़ा हुआ। तभी सैनिकों ने मुझे पकड़ कर मेरे हाथ पीछे से बांध दिये। मुझे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि मैं यहाँ कैसे पहुँच गया। जो कि मैं बेहोश हुआ था उस गुफा मे और होश आया तो इस महल के सामने। और यह सभी सैनिक मुझे पहचानते है फिर भी मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहें है। तभी मुझे परी की सारी बातें याद आ गई जो उसने मुझे गुफा मे कही थी। मैं अपने अंदर इतनी शक्ति महसूस कर रहा था कि सभी सैनिकों को पल भर मे परास्त कर देता। पर मुझे जानना था सम्राट के मन का हाल। मुझे पता करना था कि क्या सच मे सम्राट ने मेरे साथ छल किया है और मेरी प्यारी राजकुमारी को कारागार मे बंद किया है। यह जानने के लिए मैं साधारण रूप से खड़ा था। सिपाही मुझे बांध कर महल मे ले चले। मैं भी उनके साथ एक बंधी बनकर चल रहा था। महल के अंदर सम्राट अपने सिंहासन पर बैठे हुए थे। उन्होंने मुझे देखते ही कहा, ले आए वो सुनहरा जल। मैंने कहा, हाँ ले आया हूँ वो सुनहरा जल। पर मेरी राजकुमारी कहाँ है। सम्राट ने कहा, पहले तुम वह सुनहरा जल मुझे दो तभी मैं राजकुमारी के दर्शन तुम्हें कराऊंगा। मैंने कहा, आपने कहा था यदि मैं चुनौती को पूर्ण कर अपनी योग्यता सिद्ध कर दूँ तो आप मेरा विवाह राजकुमारी से करा देंगे। इसलिए राजकुमारी को मेरे सामने लाओ। मेरा ऐसा कहते ही सम्राट ने मेरी तलाशी का आदेश दिया। सिपाहियों ने मेरी तलाशी ली पर उन्हें मेरे पास से जल नहीं मिला । सम्राट ने कहा , कहाँ है वो जल ? मैंने कहा, यूं ही वो जल तुम्हें नहीं दूँगा मेरी शर्त तुम्हें पता है पहले उसे पूरा करो। सम्राट ने मुझे कारागार मे डालने का आदेश दिया। मैं भी यही चाहता था। क्योंकि मुझे पता था कि राजकुमारी कारागार मे है अगर मे वहाँ पहुंच जाऊँगा तो उसे छुड़ा लूँगा। क्योंकि सम्राट भी मायावी और सभी जादुई कलाओं से परिपूर्ण है। इसे पराजित करने के लिए शक्ति नही बल्कि अक्ल से काम लेना होगा। मैंने सुनहरा जल नहीं लाया और खुद ही ग्रहण कर लिया है जब यह बात सम्राट को पता चलेगी तो वह आग बबूला हो जाएगा। और वह राजकुमारी को नुकसान ना पहुंचाए। यही डर सताने लगी थी। इसलिए मैंने कारागार जाना उचित समझा। कारागार जाकर मैं वहाँ से निकलने का प्रयत्न करने लगा। मैंने देखा कि सामने सिपाही का पहरा है निकलूं तो कैसे। मेरे मन मे विचार आया कि अगर मैं यहाँ से गायब होकर सीधे राजकुमारी के पास पहुंच जाता तो कितना अच्छा होता। इतना सोचते ही मैं सच मे गायब होकर सीधे राजकुमारी के पास जा पहुंचा। राजकुमारी दीवार के सहारे बैठे हुई थी। उसकी आंखें बंद थी। मैं राजकुमारी के पास गया। उसे इतने दिनो बाद देखकर मन प्रसन्न हुआ। मैंने उसके हाथों को पकड़ कर उसे प्यार से पुकारा। उसने अपनी पलकों को उठाकर देखा और मुझे गले लगा लिया और जोर जोर से रोने लगी। उसे रोता देख मेरी आंखों मे भी पानी आ गया। उसने मुझसे कहा, कारागार का दरवाजा बंद होने पर भी तुम अंदर कैसे आ गए। मैंने कहा, मैंने वह सुनहरा जल स्वयं पी लिया। राजकुमारी ने कहा, हमें यहाँ से जाना होगा। भले ही तुम्हारे पास संसार की सबसे बड़ी शक्ति है पर मैं नहीं चाहती कि मेरे पिता कभी किसी से पराजित हो। बेहतर यही है कि तुम मुझे यहाँ से कहीं दूर ले चलो। राजकुमारी ने कहा, कि उसके पिता सम्राट हैं और मैं नहीं चाहती कि उन्हें तुम पराजित करो। इसलिए हो सके तो हम यहाँ से कहीं दूर चलते हैं। मैंने राजकुमारी का हाथ पकड़ा और वहाँ से गायब हो गया और सीधे अपने घर के बेडरूम मे प्रकट हुआ। उस समय मेरे कमरे मे कोई नहीं था। मैंने राजकुमारी से पूछा, क्या तुमने अपने पिता से यह बताया था कि हम कहाँ मिले थे। राजकुमारी ने कहा, नहीं। मैंने अपने पिता को सिर्फ इतना ही बताया था कि मैं जिससे प्रेम करती हूँ वह धरती का वासी है। पर कहाँ का है रह नही बताया था। पर तुम्हारे आचरण और व्यवहार से वह समझ गए थे कि तुम भारतीय हो। मैं थोड़ा चिंता मुक्त हुआ। और राजकुमारी से कहा, अब तुम मेरे साथ यहीं रहोगी। और बिलकुल आवाज मत करना वरना घर वालों को पता चल जाएगा। मैं मौका देखकर मम्मी को सब सच बता दूंगा और हमारा विवाह भी हो जाएगा। बस जब तक मैं ना कहूँ तुम्हें छुप कर रहना होगा। तुम्हें भी सभी जादू आते हैं। बस कोई आए तो पहले की तरह अदृश्य हो जाना जैसे पहले हो जाती थी। वो मुसकराने लगी। मैंने उसे प्रेम से गले लगाया। प्यार से उसे अलविदा कहकर गायब हो गया और तुरंत ही अपने घर के दरवाजे पर प्रकट हुआ। मैंने थोड़ी हिम्मत जुटाई और डरते हुए दरवाजा खटखटाया। मेरी छोटी बहन ने दरवाजा खोला। देखते ही वो जोर से चिल्लाई, मम्मी भाई आया। उसके बोलते ही मम्मी आई और गले लगाने के बजाय दरवाजे से चप्पल उठाकर मारना चालू किया। बहनों ने छुड़ाया । पर मम्मी की गालियां बंद ना हुई। घर के अंदर आते ही मम्मी ने रोते हुए गले लगाया मैं भी रो रहा लगा। वैसे भी मार जोरदार पड़ी थी। इसलिए और भी रो रहा था। बहनों ने पूछा कहाँ गया था। क्या हुआ था तुझे। मैंने कुछ ना कहा। मम्मी ने कहा, बाद मे बताना जा पहले नहा ले और भोजन कर । मैं खुश हो गया। बहुत दिनों बाद मम्मी के हाथों का भोजन मिलेगा। मैं नहाने के लिए गया। उसके बाद अपने कमरे मे गया। राजकुमारी बैठी हुई थी। मैं उसके पास गया। मैंने कहा तुम भी नहा लो। भोजन लगने वाला है वो भी नहा कर तैयार हो गई। मैंने उसे सुंदर सा लाल रंग का गाऊन पहनने के लिए दिया। राजकुमारी बहुत सुंदर दिख रही थी। मैं उसका हाथ पकड़कर मम्मी के पास ले गया। मम्मी ने उसे देखा और देखते ही रह गई। बहने भी भाग कर आई और कहने लगी कौन है ये? यह बहुत सुंदर है। कहाँ से आई। तु इसे कहाँ से लाया है? इसका नाम क्या है? इसके मम्मी पापा कौन है? भगा कर लाया है तो चल पुलिस स्टेशन। मैंने कहा, नहीं मम्मी तू चिंता मत कर इसके माता पिता यहाँ नहीं रहते और कोई परेशानी नहीं होगी। इसका नाम चंद्रलेखा है। मम्मी ने उसे देखते हुआ कहा, बेटा यह भी किसी चांद से कम नहीं। बहनों ने भी बहुत तारीफ की। मम्मी के चेहरे पर खुशी थी। मम्मी उसका हाथ पकड़ कर रसोई मे ले गई। मैं बहनों की तरफ मुड़ा और कहा, अच्छी है ना वो रात की चुड़ैल।

मैं जोर जोर से हँस रहा था और मेरी बहनें मुझे घूर कर देख रही थी।



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