रहस्यमयी सच्चाई

रहस्यमयी सच्चाई

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चारो तरफ इमारत ही Fमारत। हल्की - हल्की बूंद सड़क को भीगो रही थी। वहीं सड़क के किनारे मैं अपने नन्ही नन्ही अधखुली आँखों से भीगे हुए सड़क को देख रहा था। अभी कुछ ही दिन हुए थे मेंरा जन्म हुए। मैंने कुछ छः बच्चे मेंरी ओर आ रहे थे। सभी मुझे बड़े प्यार और खुशी से देख रहे थे। उनमेंं से एक बच्चे ने थोड़ा सा पानी मुझपर डाला और बाकी बच्चों ने मेंरे चारों ओर लकड़ी का बना हुआ जाल मेंरे चारो तरफ से लगा दिया।

तभी वहाँ से आ रहे एक व्यक्ति ने कहा, क्या कर रहे हो। बच्चों ने कहा, हम इसे पानी देकर बड़ा कर रहे हैं। उस व्यक्ति ने हँसते हुए कहा, बरसात में पौधे को पानी देते हुए पहली बार देख रहा हूँ। यह क्या है ? बच्चों ने कहा, हमने जानवरों से बचाने के लिए यह जाल बनाया है। उस व्यक्ति ने कहा, शाब्बाश बच्चों। तुम्हें पता है कि यह कौन सा पौधा है? सभी बच्चों ने नहीं में सिर हिलाया र मैंने भी। तभी उस व्यक्ति ने कहा, यह एक बरगद का पौधा है। यदि इसकी देख रेख अच्छी तरह की जाए तो यह बड़ा होकर एक विशाल वृक्ष बनेगा। सभी बच्चे खुश थे कि यह बरगद का पौधा है।

मैं भी अपना नाम सुनकर बहुत खुश हुआ कि मेंरा नाम बरगद है। तभी उस व्यक्ति ने उन बच्चों से उनका नाम पुछा। सभी ने एक एक करके अपना नाम बताना शुरू किया। उसमेंं से सबसे बड़े लड़के ने अपना नाम बताया। मेंरा नाम योगेश है और यह मेंरा भाई निलेश। इनका नाम ज्योती, नेहा, मनोरमा और शशी है। मैंने उनके नाम सुनें और बहुत खुश हुआ। वह व्यक्ति इनकी पीठ थपथपा कर चला गया। वह बच्चे भी हँसते खेलते चले गए।

अब मैं वहीं सड़क के किनारे अकेले था। लोग आते और जाते पर कोई रूककर मुझसे बातें नहीं करता। हवा चलती तो थोड़ा झुम लेता। सुबह से शाम हो गई थी। मैं लोगों और गाड़ियों को देख देखकर थक चुका था। गाड़ियों की आवाज सुन सुनकर तो मेंरा नाजुक ह्रदय काँप सा जाता था। तभी मेंरी नजर योगेश पर पड़ी। वह अकेले मेंरी ओर दौड़ता चला आ रहा था। उसे देखकर मानो मैं झुम उठा। वह मेंरे पास आया। उसनें अपने हाथों से मेंरे पत्तों को सहलाया। मुझे जी भरकर निहारा। उसका मेंरे प्रति यह प्रेम देखकर मेंरा ह्रदय गदगद हो गया। प्रकाश सिमटने लगा और अँधेरा फैलने लगा। योगेश ने मुझे अलविदा कहा और अपने घर की ओर जाने लगा। जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया तब मैं उसे देखता ही रहा। चारों तरफ अँधेरा पसर गया। रात भयावह लग रही थी। मैं भी सिमट कर सो गया। सुबह की पहली किरण ने अँधेरे को दूर करने की कोशिश की और चिड़ियों की चहचहाहट से मेंरी निंद खुल गई। धीरे धीरे चारों ओर प्रकाश फैल गया। तभी सामने की ईमारत से सभी बच्चे स्कूल जाते दिखाई दिए। उसमेंं मेंरे सभी मित्र थे। पर मेंरी निगाह योगेश को ढूंढ रही थी। तभी मेंरी नजर योगेश पर पड़ी।

वह प्यारी सी मुस्कान लिए दौड़ता हुआ गेट से बाहर आया। उसनें सड़क पार की। उसके पास पानी से भरी एक बोतल थी। उसनें उसमेंं से थोड़ा सा पानी मुझे दिया। उसके दिए हुए पानी से मेंरी प्यास ही नहीं बल्कि मेंरी आत्मा भी तृप्त हो रही थी। सभी दोस्तों ने उसे आवाज दी और वह चला गया। मैं फिर से वहीं अकेले खड़ा था। मन तो करता कि मैं दौड़ पडूँ उसके साथ। पर जमीन से धँसा पड़ा था। मेंरा शरीर जितना जमीन के बाहर था उससे कहीं अधिक जमीन के अँदर था। मैं वहाँ से आने जाने वाले लोगों को देखने लगा। दोपहर हुआ कि योगेश फिर से आया। इसी प्रकार दिन बितने लगे। सभी बच्चे समय के साथ मुझे भूल गए पर योगेश मुझे नहीं भूला। वो रोज आता मुझे पानी देता, मुझे प्यार से पुचकारता और चला जाता। उसनें मेंरी देखभाल में कोई कसर नहीं छोडी़ थी।

हम दोनों ही धीरे धीरे बड़े हो रहे थे। मेंरे बढ़ने की गती योगेश से कहीं अधिक थी। शायद इसका कारण उसका प्यार था। मुझे ऐसा एक भी दिन बितता की वह मुझसे मीलने नहीं आता। मैं अब एक नौजवान वृक्ष की भाँती लहरा रहा था और योगेश भी लगभग 20 या 22 वर्ष का हो चुका था। पर उसका कद मुझसे काफी छोटा था। मेंरी छाया में अब बहुत से लोग आराम करते थे। अब मेंरे डाल पर बहुत से पक्षी बैठते। बहुत से पक्षीयों ने तो अपना घोसला भी बना लिया था। योगेश अब जब भी मेंरे पास आता मेंरी छाया में बैठता। मुझसे बातें करता। यहाँ तक की कभी कभी पढ़ाई भी करता था। मैं बहुत खुश था कि मेंरे पास इतना प्यारा दोस्त है। मेंरे आस पास के वृक्ष मुझसे ईष्या करते। वह कहतें कि मानव बहुत बेरहम होतें है। वह अपने स्वार्थ के लिए हमेंं नुकसान पहुंचाते हैं।

जिस दिन तुम लोगों के लिए बाधा बनोगे यही मानव तुम्हें काट देगें। मैं कहता, जब तक मेंरा दोस्त मेंरे पास है तब तक मुझे कुछ नहीं होगा। तभी मैंने देखा कि मनोरमा और योगेश एक दूसरे का हाथ पकड़े मेंरी ओर चले आ रहें है। योगेश मनोरमा के साथ मेंरी ओट में बैठ गया। योगेश मनोरमा से कह रह था। मनोरमा मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। मैं तुम्हारे बगैर जिवीत नहीं रह सकता। तुम मेंरा साथ कभी ना छोड़ना। मनोरमा ने योगेश के सिर को अपनी गोद में रख लिया और कहा, मैं पूरा जीवन तुम्हारे साथ रहुँगी। मुझे उन दोनों की प्रेम भरी बातों को सुनने में आंनद आ रहा था।

योगेश ने कहा, हमारे सच्चे प्रेम का गवाह यह वृक्ष है। मैं जब भी यहाँ आता हूँ एक सुकून सा मिलता है। अब हम दोनों रोजाना यहीं मिलेंगे। मनोरमा एक दूसरे का साथ पाकर खुश थे। तभी अचानक लोगों के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। मेंरा ध्यान भंग हुआ। मैंने देखा कि चार व्यक्ति मीलकर एक व्यक्ति को पीट रहे हैं। मैंने ध्यान से देखा तो वह कोई और नहीं बल्कि योगेश का छोटा भाई निलेश था। मेंरी इच्छा हुई की अभी जाकर उसे बचा लूँ और इन लोगों को सबक सिखाऊँ। पर मैं जगह से टस से मस नही हो सका। मैंने गुस्से में जोर लगाया तो मेंरे कुछ कमजोर पत्ते जमीन पर गीर पड़े। मैं चाहकर भी उसकी कुछ मदत नहीं कर पा रहा था। मैंने देखा कि वहाँ बहुत से लोग खड़े होकर तमाशा देख रहें हैं। पर कोई भी व्यक्ति निलेश की मदत नहीं कर रहा था। तभी मैंने देखा कि योगेश आगबबूला होकर उनकी ओर दौड़ा चला जा रहा है। उसके हाथ में एक सलिया था। योगेश ने उस सलिया से उनकी धुलाई शुरू कर दी। वह सभी भाग खड़े हुए।

मैंने योगश को इतने गुस्से में पहली बार देखा था। मैंने देखा कि योगेश ने अपने साहस से और शक्ति से उन चारों को मार भगाया। निलेश जख्मी हो चुका था। योगेश ने उसे सहारा देकर उठाया और घर ले गया। योगेश बहुत दुखी था। उसे देखकर मेंरा मन भी दुखी हो गया। पर एक साधारण सा बालक और इतना साहस। यह देखकर मैं भी चकित हो गया था। आज शाम योगेश मुझसे मिलने नहीं आया। मैं बहुत ही व्याकुल था। लोग आ जा रहें थे। मैं उन्हें देख ही रहा था। शाम का समय था। रास्ते पर लोग आ जा रहे थे। मेंरी ओट में एक मोटर सायकिल खड़ी थी जिसपर दो सवार बैठे हुए थे।

उनकी नजर आनेजाने वाले लोगों पर टिकी हुई थी। अचानक उसमेंं से एक ने एक महिला की ओर ईशारा किया। मोटरसाइकिल सवार ने मोटरसाइकिल शुरू की। दोनो उसके पास से गुजरे। पीछे बैठे व्यक्ति ने उस महिला के गले से उसका आभूषण खिंच लिया। महिला जमीन पर गीर गई। मोटरसाइकिल सवार तेज गती से निकल गए। वह महीला जमीन पर पड़ी हुई थी। गीरने की वजह से सिर पर चोट लग गई थी। रक्त बह रहा था। सभी लोग घेरा बनाकर खड़े थे। कुछ लोग उसकी तस्वीरे निकालने में लगे थे। कुछ लोग अफसोस जता रहे थे। पर कोई भी आगे बढ़कर उसे उठा नहीं रहा था।

मैं चाहकर भी कोई मदत नहीं कर पा रहा था। नाहीं उन लोगों को कुछ बोल पा रहा था। तभी भीड़ को चिरते हुए मनोरमा, ज्योती, और शशी आए। उसे उठाकर मेंरी छाया में लाया गया। मनोरमा ने अपना फोन निकाला और फोन किया। कुछ ही समय में एक सफेद सा वाहन आया जिसपर निली बत्ती लगी थी। उसमेंं से कुछ लोग बाहर आए। उस महिला को संभालकर ले गए। मैंने उनके मुख से सुना कि अब उस महिला का ईलाज होगा। वह ठीक हो जाएगी। यह सुनकर मेंरी चिंता थोड़ी कम हो गई। मेंरे सामने ऐसे गलत काम रोजाना होने लगे। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता।

रोचाना चोरी, मारपीट, छीनाझपटी, यहाँ तक की लड़कियों को परेशान करनेवाले लड़को को भी देखा। पर मैं इतना तो जान गया था कि निली बत्ती वादी सफेद वाहन लोगों का ईलाज करती है और लाल बत्ती वाली निली वाहन लोगों की रक्षा और जाँचपडताल करती है। यह दोनों गाड़ीयाँ फोन लगाने के बाद आती है। जब कहीं गलत घटना हो उसके बाद तुंरत आती है। मेंरे मन में सवाल यह उठा कि यदि लाल बत्ती वाली वाहन पहले से ही यहाँ रहे तो निली बत्ती के वाहन को बुलाने की जरूरत नहीं। समय अपने क्रम से बीत रहा था। अब इन घटनाओं को देखने की आदत हो गई थी। जैसे मानवों को हो जाती हैं। मेंरे पास हाथ पैर नहीं थे इसलिए मैं कुछ कर नहीं सकता था। पर इंसान के पास तो हाथ पैर दोनों थे। पर इनका उपयोग गलत काम करने के लिए कर रहें थे। यह मानव वहीं उपस्थित होकर भी मदत नहीं कर रहे थे। ऐसा लगता था मानों यह भी हमारे तरह ही वृक्ष हैं। जो अन्याय देख सकतें हैं, सह सकते हैं, पर कुछ कर नहीं सकते। आज करीब दो सप्ताह हो चुके थे। योगेश मुझसे मीलने नहीं आया था। मनोरमा भी कहीं दिखाई नहीं देती। मेंरा मन व्याकुल था। दिन बीत चुका था और रात बढ़ने लगी थी। सड़क भी सुनसान हो चला था।

मेंरी आँखें भी झपकी ले रही थी। सभी पक्षी अपने घोसले में सो रहे थे। मैंने आँखें बँद कर ली थी कि अचानक पक्षियों ने आवाज करना शुरू किया। मुझे लगा ईतना जल्दी सबेरा हो गया क्या? मैंने आँखें खोली तो देखा की योगेश मेंरे पास खड़ा है। उसके हाथों में रस्सी है। चेहरा उदास और आँखों में आँसू थे। मैं कुछ पूछ भी नहीं पा रहा था कि उसे क्या हुआ है। उसनें रस्सी मेंरे एक डाल पर डाली और फँदा बनाने लगा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या कर रहा है। उसनें रस्सी का फंदा बनाया। और मेंरे पास मेंरी गोद में सिर रखकर रोने लगा। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पास में खड़े नीम के वृक्ष ने कहा, अरे बरगद आज तेरा मित्र तुझसे दूर होने जा रहा है। देख कितना दुखी है। शायद दुख का पहाड़ टूट पड़ा है। अब यह इसी रस्सी को अपने गले में डालकर अपनी जान दे देगा। मैंने कहा, नहीं यह गलत है। मेंरा मित्र बहुत साहसी है। वह खुद अपनी जान नहीं दे सकता। नीम ने कहा, साहस चाहे कितना भी हो पर दुख उसे तोड़ देता है।

इस समय यदि इसे कोई समझाए तो वह अपनी जान नहीं दे पाएगा। अब मैं बहुत डर गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करू? मेंरे पास तो मानवों की तरह फोन भी नहीं की लाल बत्ती की गाड़ी बूला लूँ। या चिल्लाकर लोगों को बूला लूँ। मेंरा मन रोने लगा। मैं ऊपर वाले से प्राथना करने लगा। योगेश गले में रस्सी डाल ही रहा था कि सामने से मनोरमा दौड़ते हुए आई। उसने योगेश का हाथ पकड़कर कहा, मुशीबतों से लड़ना सीखो। जीतना दिन तुम्हारे पास है उसे तो अच्छे से जीयो। तुमनें अगर अपनी जान दे दी तो तुम्हारे माता पिता का क्या होगा? वह भी तो दुखी है। योगेश ने कहा, मैं नहीं चाहता कि मैं अपने माता पिताजी के सामने दुख और तकलीफ के साथ मरूँ। इसलिए सीधे अपनी जान दे जा रहा हूँ। मेंरे मरने पर सभी को सिर्फ एक बार तकलीफ होगी। पर मैं अगर जिवीत रहुंगा तो सभी को रोज तकलीफ होगी। मनोरमा ने कहा, जिद्द छोड़ो। हार ना मानों। उपर वाला चाहेगा तो सब तकलीफ दुर हो जाएगी। मैं तुम्हारे पास रहुंगी। चिंता मत करो। मनोरमा ने योगेश के आँसू पोछे और योगेश ने मनोरमा के। दोनों पूरी रात मेंरी गोद में बैठकर बिताया। भोर में दोनों अपने अपने घर चले गए। मैंने भगवान को सुक्रिया कहा, प्राथना की मेंरे मित्र को हर मुशीबत से बचाना और हो सके तो मेंरी आयु भी उसे दे देना।.........

दिन शुरू हो चुका था। मन में एक शांतिपूर्ण स्थिति में बहुत से प्रश्न गोता लगा रहे थे। योगेश ने आखिर आत्महत्या की कोशिश क्यों की? ऐसी क्या वजह है कि उसे उसकी दर्दनाक मौत का डर खाए जा रही थी। योगेश तो अभी जवान और रिष्ठपुष्ठ है। मैं यह कैसे पूँछू। उसे तो मेंरी आवाज भी सुनाई नहीं देती। दिन बीत गया पर योगेश मीलने नहीं आया। ऐसे ही कुछ पांच छः दिन बीत गए पर योगेश नजर नहीं आया। हाँ इस बीच उसके सभी मित्र मुझे दिखाई दिए। पर सभी के चेहरे उतरे हुए थे। मैं ईमारत की गेट पर ही देख रहा था कि मुझे मनोरमा दिखाई दी। उसके आँखों से आँसुओं की धारा बहे जा रही थी। वह वहाँ खड़े होकर किसी का इंतजार कर रही थी। तभी मुझे सफेद वाहन दिखाई दी। जिसपर की निली बत्ती लगी हुई थी। वह वाहन सीधे गेट के अंदर गई और मनोरमा वाहन के पीछे दौड़ते हुए गई। यह नजारा देखकर मेंरा ह्रदय सहम सा गया। वह वाहन तेजी से आवाज करते हुए बाहर निकली। वाहन का दरवाजा बंद था इसलिए कुछ दिखाई न पड़ा कि अंदर कौन है। पीछे से बाईक लेकर योगेश का भाई निकला जिसके पीछे मनोरमा बैठी थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। ईमारत के सामने काफी भीड़ थी। मेंरा मन बड़ा व्याकुल था। कैसी कैसी कल्पनाओं से मेंरा दिमाग घीरा हुआ था। जैसे तैसे दिन बीत गया। पूरी रात आँखों में नींद नहीं थी। सुबह के पांच बजे होगें। तभी मुझे उसी सफेद वाहन की आवाज सुनाई दी। वाहन तेजी से ईमारत के अंदर गई। पंद्रह मीनट के अंदर ही वहाँ बहुत भीड़ हो गई। जोर जोर से रोने और चिल्लाने की आवाज से वातावरण गुँजने लगा। मैंने देखा मनोरमा और उसके घरवाले भी रो रहें हैं। योगेश के सभी दोस्त रोते हुए दिख रहें हैं। योगेश का भाई और उसके मात पिता भी रोए जा रहें है। सिर्फ योगेश ही कहीं दिखाई नहीं दे रहा।

तभी मैंने देखा कि योगेश गेट के पास खड़ा सभी को निहार रहा है। वह भी रोए जा रहा है पर किसी से कुछ बोल नहीं रहा। यह देखकर ईतना तो मुझे समझ में आ गया था कि यहाँ किसी की मौत हो गई है। जो कि इन सभी के बहुत करीब था। मैं कुछ देर तक वह नजारा देखता रहा। लोंगो की भीड़ और मरने वाले के सगे संबंधी आने लगे थे। योगेश वहीं खड़ा था। सभी के पास जा रहा था परंतु सभी रोने और दुखः जाहिर करने में मशगुल थे। पार्थिव शरीर को शमशान ले जाने का समय आ गया था। मैंने देखा कि योगेश का छोठा भाई मटका लेकर अर्थी के आगे आगे चल रहा था। उसी के साथ योगेश मुह लटकाए चल रहा था। पीछे पीछे चल रही अर्थी पर जब मेंरी नजर गई तो उसे देखकर मेंरे आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया। मेंरा हृदय चीख मारकर रो पड़ा। वह पार्थिव शरीर किसी और का नहीं बल्कि योगेश का ही था। पर ऐसा कैसे हो सकता है। योगेश तो अभी मेंरे सामने से गुजरा अपने भाई के साथ। वो जा रहा है। यह कैसा नजारा है कि मुझे मेंरी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

मैंने देखा वहीं ईमारत के पास योगेश की माँ को मनोरमा दिलाशा दे रही है। अर्थी चली गई। जो लोग ईमारत के सामने खड़े थे वह भी अपने घर चले गए। पूरा सड़क सुनसान सा दिखाई दे रहा था। योगेश तो चला गया था। हर किसी को संभालने के लिए और दिलाशा देने के लिए कोई न कोई था। परंतु मैं वहाँ अकेला खड़ा था। मेंरा तो अपना एक ही था। वह भी मुझे छोड़कर चला गया। ना जाने यह कैसी अनहोनी थी। मेंरे मन में कई प्रश्न थे। तभी मैंने देखा कि सभी लोग वापस आ रहें हैं । संध्या का समय था। सभी बातें करते हुए जा रहें थे। मेंरी नजर उस भीड़ में योगेश को तलाश कर रही थी। योगेश कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। सभी अपने अपने घर चले गए। अँधेरा चारों ओर पसरने लगा था। सड़क सुनसान थी। हवा हलकी हलकी चल रही थी। मेंरी नजर वहीं टकटकी बाँधे थी जिस ओर योगेश गया था। मेंरे लिए अभी भी एक पहेली थी। मेंरे सामने योगेश चलता हुआ भी दिखा था और मृत भी था। तभी सुनसान सड़क पर योगेश अकेला धीरे धीरे आता दिखाई दिया। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। उसे देखकर मेंरे जान में जान आई। योगेश हमेंशा की तरह ईमारत के गेट के अंदर जाने के पूर्व मेंरे पास आया। मेंरी ओट में बैठकर रोने लगा। मैंने कहा, मत रो भाई। तभी योगेश ने पीछे मुड़कर देखा और कहा, रोऊँ नहीं तो क्या करूँ। तू तो देख ही रहा है। मुझे कुछ समझ में नहीं रहा था कि आज पहली बार योगेश ने मेंरी आवाज सुनी और मुझसे बात की। मैंने कहा, योगेश क्या तुम मेंरी आवाज सुन सकते हो? योगेश ने कहा, हाँ अब मैं तुम्हारी बातें सुन सकता हूँ पर अब मेंरी बाते मेंरे घरवाले नहीं सुन सकते। क्योंकि मैं अब उनके लिए पराया हो गया। उन्होंने मेंरे शरीर को जला दिया और मुझे वहीं अकेला छोड़कर चले आए। ना कोई मुझे देख पा रहा है और नाही कोई बात कर पा रहा है। अब सिर्फ तुम मुझे देख रहे हो और बातें कर पा रहे हो। मैंने कहा, एक बार फिर से घर जाकर कोशिश करो शायद वह तुम्हें देख सुन सके।

योगेश ने कहा, तुम बड़े ही नादान हो। मेंरा शरीर अब नहीं रहा। मैं तो बस एक रूह हूँ। एक हवा का झोका। अब नाहीं कोई मुझे देख पाएगा और नाहीं सुन पाएगा। मैंने कहा, योगेश दिल छोटा ना करो। मैं तो तुम्हारा अपना हूँ। क्या तुम अब मेंरे साथ मेंरे पास रहोगे। योगेश ने कहा, हाँ। मैं अब यहीं रहूँगा तुम्हारे पास। जिससें मैं अपने परिवार को रोज देख सकूँ। योगेश वहाँ से उठा और मेंरी एक डाल पर आकर बैठ गया। मैंने कहा, योगेश अब रोना नहीं। रात बहुत हो चुकी है अब सो जाओ। योगेश ने हाँ में सिर हिलाया और सो गया। मैं उसके सोते हुए मासूम से चेहरे को निहारते हुए सो गया...........

सुबह जब चिडियों की चहचहाहट से मेंरी आँखें खुली तो मैंने अपने उस डाल पर देखा जहाँ रात को योगेश सो रहा था। पर यह क्या? योगेश नदारद था। मन में अलग सी बैचैनी ने जन्म लिया। मानों मेंरी नजर चारों तरफ दूर दूर तक जाने लगी। कहीं योगेश दिख जाए। कल रात को बड़ा ही उदास था। उसके साथ जो भी हुआ था वह एक अनहोनी थी। पर यह योगेश गया कहाँ? अचानक योगेश मुझे सामने के बिल्डिंग से बाहर निकलता हुआ दिखा। उसी के आगे आगे उसका भाई और पिताजी चल रहे थे। उनके हातों में कुछ सामान थे। वह सड़क पार कर मेंरे पास आए। उन सामानों को मेंरे पास रख दिया। दोनों के आँखों में आँसू था। दोनों सामान रखकर लौटने लगे। सड़क पार करके वह वापस इमारत की ओर जाने लगे। योगेश वहीं सामान के पास बैठ गया। मैंने देखा कि योगेश का भाई पीछे मुड़ा और लौटकर वापस आया और अपने पीछे से एक सलिया निकालकर उसे देखने लगा। उसने उस सलिये को चूमा और मेंरे पास रखकर चला गया। उस सलिए को देखकर जैसे योगेश खुश हो गया। वह उसे उठाने का प्रयत्न करने लगा पर उठा नहीं पा रहा था। योगेश के इस असफल प्रयत्न को देखकर मेंरी आँखों से आँसू बहने लगे। वहीं योगेश भी फूट फूट कर रोने लगा।

आखिर हारकर योगेश ने मेंरी ओर देखा और मुझसे लिपट गया। मैंने भी उसे सहानभूति देते हुए कहा, योगेश यह जो भी हुआ तुम्हारे साथ यह एक घटना थी। आज नहीं तो कल शरीर को त्यागना ही होता है। यह सब उपर वाले की मर्जी है। योगेश की आँखें लाल हो गई थी। उसनें कहा, नहीं मेंरे दोस्त। यह उपर वाले की मर्जी नहीं थी बल्कि इस समाज में रह रहे लोगों की वजह से ऐसा हुआ है। मेंरा शरीर इतना कमजोर नहीं था कि मेंरा साथ इतना जल्दी छोड़ दे। मेंरे शरीर को कमजोर और मेंरा साथ छोड़ने को मजबूर करनेवाले इस समाज में सुखी से रह रहें हैं। मैंने कहा, पर तुम्हारी मौत के जिम्मेंदार यह समाज कैसे है? क्या हुआ है तुम्हारे साथ? मुझे समझाओ।

योगेश ने रोते हुए कहा, आज समाज में चारों ओर आंतक फैला हुआ है। इंसान अपनी खुशी के लिए इंसान के स्वास्थ्य से खेल रहा है। लोगों की सुविधाओं के लिए और मजे के लिए नए नए वस्तुओं और वाहनों का निर्माण हो रहा है। उन वस्तुओं को बनाने के लिए बड़े बड़े कारखाने लगाए जा रहे हैं। यहाँ तक कि मनुष्य सिगारेट का धुआं अपने मजे के लिए अपने अंदर लेता है और फिर वही धुआं बाहर छोड़ देता है। सिगारेट पीने वाले तो केंसर का शिकार होते हैं पर जो नहीं पीते वह भी उसका उसका शिकार हो रहें हैं। मैंने तो कभी सिगारेट को हात नहीं लगाया। फिर भी मुझे केंसर जैसी बीमारी हो गई। डॉक्टर ने बताया कि मुझे पेट का भी केंसर था।

पेट का केंसर केमिकल वाला और मिलावटी भोजन करने से होता है। आज लोग बहुत से किटनाशक का उपयोग फसल व सब्जियों को बचाने के लिए करते हैं। यहाँ तक कि सब्जी हरी और ताजी दिखे इसलिए हानिकारक कलर मिलाते हैं। अब तुम ही बताओ मेंरे बिमारी और मरने का कारण यह आधुनिक समाज नहीं है तो और कौन है? मैंने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए, समाज की भलाई के लिए तुम्हारे तरह बहुत से पेड़ लगाए, परंतु इस समाज ने मुझे क्या दिया? मैंने योगेश को सांत्वना देते हुए कहा, योगेश अब रो कर कोई फायदा नहीं। मैंने इस समाज को देखा है। किस प्रकार यह स्वार्थी हो चला है। मनुष्य मनुष्य जाति को नष्ट करने के रास्ते पर चल पड़ा है। पर जिस तरह मैं सिर्फ देख सकता हूँ। उसी प्रकार तुम भी सिर्फ देख सकते हो। हम इस अनहोनी को रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते।


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