मेरा स्वार्थ....

मेरा स्वार्थ....

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रोज की तरह आज सुबह विद्यालय के गेट पर खड़ा था। विद्यालय का गेट बंद था और वह अपना बैग कंधे पर लटकाए इतंजार कर रहा था कि शायद मैडम को दया आ जाए और वह गेट खोल दे। मैं भी मैदान मे ही बाहर खड़ा था पर मेरी नजर उस बालक पर ही थी। मैड़म गेट की तरफ तनतनाती हुई गुस्से मे चली आई। गेट खोलकर उन्होंने उस बालक से कहा, देख राहुल कितनी बार कहा तुझे कि देरी से मत आया करो पर तुम हो कि सुधरने का नाम नहीं लेते। तुम्हारे माता पिता को बुलाया तो वह भी नहीं आते। अगर तुम कल देरी से आए तो विद्यालय के अंदर नहीं लूँगी। उसका मन उतरा हुआ था। शायद कुछ सोच रहा था। मैडम ने कहा, जा जल्दी कक्षा में। राहुल भागते हुए अंदर चला गया। मैं अपना परिचय भी दे देता हूँ। मेरा नाम योगेश है और मैं इस विद्यालय मे स्पोर्टस शिक्षक हूँ। अर्थात बच्चों का पी.टी. मास्टर। बच्चे हमेशा मेरा इंतजार करते क्योंकि मेरा ही एक विषय है जिसमें बच्चे सभी बधंन से मुक्त होकर खिलखिलाकर हँसते हुए खेलते हैं। उनके चेहरे की मुस्कान और शरारत देखकर मन को अपार खुशी मिलती है मुझे।


आज राहुल की कक्षा को मैदान में लाना था खेलने के लिए। सभी बच्चे कतार से मैदान में आ गए। राहुल भी उनके साथ मैदान में ही खड़ा था। सभी बच्चों के चेहरे पर एक उत्साह था पर राहुल अभी भी मुँह लटकाए किसी चिंता मे डूबा हुआ था। मैने सभी बच्चों का अलग अलग समूह बनाया खेलने के लिए। पर राहुल वहाँ से चल के मेरे पास आया और कहने लगा, सर मेरा आज खेलने का मन नहीं है। क्या मैं सिर्फ बैठ सकता हूँ आज? मैने कहा, क्यों नहीं। तू मेरे पास बैठ और यह बता कि तू रोज देरी से क्यों आता है? मैं तुझे रोज डाँट खाते देखता हूँ। अगर कोई समस्या है तो मुझे बता। मैं बात करता हूँ मैडम से। यह सुनकर उसकी आँखों में एक चमक उठी। जैसे मैने उसके ज़ख्म पर मलहम लगा दिया हो। राहुल ने कहा, सर मैं अगर आप को बताऊँगा तो आप किसी को बताओगे तो नहीं। अगर मेरे दोस्तों को मालूम पड़ गया तो वो मेरा मज़ाक उड़ाएंगे। मैने कहा, किसी को नहीं बताऊँगा। राहुल ने कहा, सर मैं रोज सुबह सुबह बिल्डिंगों में जाकर बाईक और गाड़ियों को धोता हूँ। सुबह चार बजे ही जाता हूँ पर काम खत्म होने में देरी हो जाती है। मैने कहा, तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं। वह कुछ ना बोला, सिर्फ ज़मीन की ओर देखे जा रहा था। मैं समझ गया कि यह बताना नहीं चाहता। मैने बात बदलते हुए कहा, अच्छा राहुल यह बताओ, कितना मिल जाता है तुम्हें यह काम करके। राहुल ने तपाक से बोला, सर करीब करीब चार हजार तो कमा ही लेता हूँ। मेहनत की कमाई बताते समय उसके चेहरे पर खुशी और गर्व साफ साफ झलक रहा था। मैने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, तुम चिंता मत करो। मैडम से मैं बात कर लूँगा। पर तुम मेहनत से काम करो। उसी समय घंटी बजी और सभी बच्चों के साथ वह भी भागकर विद्यालय मे चला गया। विद्यालय छूटते समय मैं सुपरवाइजर मैडम के पास गया। मैडम ने मुझे देखते ही कहा, आईये सर, आज यहाँ कैसे भटकते हुए आ गए। मैने कहा, बस आपसे ही काम था वो भी बहुत जरूरी। मैडम ने कहा, हाँ बोलो क्या काम है? मेरे बस में होगा तो मैं ज़रूर करूँगी। मैने कहा, मैडम सब आपके हाथ में ही है। आप राहुल को तो जानती हो। मैडम ने कहा, हाँ वही ना जो विद्यालय देरी से आता है। अगर वो कल देरी से आया तो अंदर घुसने नहीं दूँगी। मैने कहा, मैडम मैं आपसे बस यही चाहता हूँ कि आप उसे माफ कर दिया करें। मैडम ने कहा, क्यों? मैने कहा, मैडम वो छोटा सा लड़का अपने पिताजी के पैसों पर नहीं बल्कि स्वयं के पैसे से अपना पालन पोषण करता है अपने परिवार के खर्च के साथ साथ स्कूल की फ़ीस भी वही देता है। वह रोज सुबह सुबह काम करने जाता है। जब हम सब सोते रहते हैं उस समय वह अपने पेट के लिए मेहनत करता रहता है। इसलिए उसे सुबह आने मे देरी हो जाती है। मैडम ने कहा, माफ़ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था। आज के बाद उसे नहीं चिल्लाऊँगी। मैने कहा, धन्यवाद मैडम जी। मैं वहाँ से उठकर चला गया।


अगले दिन मैने देखा कि राहुल अपने दोस्तों के साथ खेल रहा है। उसके दौड़ने और खेल के तरीके को देखकर आश्चर्य चकित हो गया क्योंकि उसमें एक अजब सी फूर्ती थी। मुझे उसके अदंर छुपा हुआ एक खिलाड़ी दिखाई दे रहा था। मैने राहुल को आवाज़ दी। राहुल ने मेरी ओर देखा और दौड़ा चला आया। मैने उसे कहा, क्यों राहुल, तू दौड़ता तो बहुत अच्छा है। उसने शरमाते हुए कहा, हाँ गुरूजी। सर, आपको पता है, मेरे यहाँ मुझे दौड़ में कोई नहीं हरा सकता। मैने कहा, अरे वाह! एक काम कर शाम को 4 बजे मुझे मैदान मे मिलेगा। राहुल ने कहा, हाँ क्यों नहीं। मेरे मन मे कुछ अलग सी उथल पुथल चालू थी। मेरे मन मे एक योजना बनने लगी। इसमें मेरा भी थोड़ा स्वार्थ था और राहुल का फायदा। शाम होते ही मैं 4 बजे मैदान मैं पहुंचा तो देखा कि राहुल पहले से ही वहाँ मौजूद था। मैने राहुल से कहा, राहुल अभी तू 9 वी कक्षा मे है। विद्यालय से 1 बजे छूट जाता है। उसके बाद क्या करता है। राहुल ने कहा, कुछ नहीं बस थोड़ा सा होमवर्क पूरा कर लेता हूँ फिर खेलने चला जाता हूँ। शाम के समय पढ़ाई कर लेता हूँ। रात 10 बजे तक सो जाता हूँ। क्योंकि सुबह 4 बजे से गाड़ी धोना होता है। मैने कहा, अगर तुझे खेलने के पैसे मिले तो कैसा रहेगा? वाह सर! तब तो और मज़ा आएगा। पर खेलने के पैसे कौन देगा? मैने कहा, मैं दूँगा तुझे पैसे। शाम के समय 6 बजे से 8 बजे तक तुझे मैं पढ़ाऊँगा। फिर तुझे किसी कोचिंग क्लास की जरूरत नहीं होगी। पर सबसे पहले तुझे थोड़ा मेहनत करना होगा। राहुल ने कहा, मैं तैयार हूँ सर। बस आप बोलो। मैं तुझे सभी खेल सिखाऊँगा और तुझे सिखना है। मैने कहा, पूरे जी जान से तुझे खेलना है बस, क्योंकि अगले महीने ही महापौर खेल स्पर्धा आयोजित होने वाली है और तुझे सभी एकल खेल मे जितना है। राहुल ने सिर हिलाकर हाँ कहा। मैने उसी दिन से उसकी दौड़ने का प्रेक्टिस शुरू कर दिया। उसे लगभग 1 महीने तक दौड़, लॉग जम्प, हॉय जम्प, गोला फेंक, थाली फेंक, और भाला फेंक, सिखा कर पारगंत कर दिया था। मुझे भी सिर्फ एक ही बालक को सिखाना था इसलिए मैने पूरी लगन और मेहनत से उसे सिखाया था। महापौर खेल स्पर्धा मे मैने राहुल का फॉर्म भर दिया। राहुल ने भी पूरे जोश और मेहनत के साथ खेला।

परिणामस्वरूप राहुल सभी ने सभी एकल प्रतियोगिता मे प्रथम, और द्वितीय स्थान हासिल किया। उसे सभी खेलों में मेडल और ईनाम के तौर पर कुछ पैसे मि 15000 हजार हासिल किये थे। राहुल मेडल और पैसे लेकर दौड़ता हुआ मेरे पास आया। मैने उसे गले से लगा लिया। राहुल की मैने मैडल और पैसों के साथ एक अच्छी तस्वीर निकाली। मैने राहुल से कहा, इन पैसों को खर्च मत करना। मैने उसके नाम से उन पैसों को जमा करवा दिया। मैने उस तस्वीर का एक बड़ा सा बैनर बनवा कर मैदान मे लगवा दिया और सभी एकल खेलों और कबड्डी, खोखो का क्लास शुरू कर दिया। मैं और राहुल हम दोनो ही एक साथ मिलकर सिखाने लगे। मैं उसे महीने के अंत मे आए हुए पैसों मे से आधा उसे देने लगा और आधा मैं लेने लगा। राहुल ने अब सुबह गाड़ी धोने का काम बंद कर दिया था। राहुल अब विद्यालय की फ़ीस से लेकर अपने घर की जिम्मेदारी भी अकेले ही संभालने लगा। राहुल की माताजी जब भी मिलती मुझे दुआएं देती हैं। राहुल ने खेल के साथ साथ 9 वी मे 70% लाकर सभी शिक्षकों के आँखों मे चमकने लगा। राहुल अब 10 वी की पढ़ाई भी कर रहा है और जगह खेल मे भाग लेकर अपने हौसले को बुलंद करता जा रहा है। आज भी हम जब शाम को खेलते हैं और बच्चों को सिखाते हैं। भले ही वह मेरा विद्यार्थी

है और मैं उसका शिक्षक। पर राहुल अब मेरे दिल मे बसता है और उसका हौसला और उसका सपना मुझे मेरी मंज़िल तक पहुंचाने का रास्ता दिखाती है। राहुल हमेशा कहता है कि एक दिन मैं कमांडो मे जाकर अपना और आपका नाम रोशन करूँगा। मैं भी यही चाहता हूँ कि उसके हौसलों को उड़ान मिले क्योंकि यही मेरा स्वार्थ है। और आप का नज़रिया क्या कहता है ऐसा स्वार्थ सही है या गलत.....



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