मेरा जंगल और मैं....

मेरा जंगल और मैं....

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कुछ ही समय हुआ है अपने माता पिता से अलग हुए। ऐसा लग रहा है जैसे सारे जहाँ ने मुझसे मुह फेर लिया हो। बस मेरे सामने था मेरा प्यारा जंगल। जिन पेडों पर चढ़ना सिखा अपनी मम्मी के साथ और एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछलना सिखाया पिताजी। आज वह पेड़ तो दिखाई दे रहें हैं पर मेरे माता पिता नहीं दिख रहें। समझ मे नहीं आ रहा कि क्या करूँ कि मेरे माता पिता मुझे फिर से मील जाएँ। कभी अकेले रहा नहीं।

मम्मी हमेशा मुझे सीने से लगाए रखती थी। बरसात आते ही अपने शरीर से मुझे ढ़ँक लेती थी। स्वयं भीगती पर पुछे भीगने नहीं देती। आज यह जंगल मुझे सुना सुना लग रहा है। याद आ रहा है वो अंतिम पल जब मेरे माता पिता मेरे साथ एक पेड पर खेल रहे थे। तभी कुछ शिकारी हात मे जाल लेकर दौडे आए और मेरी माँ ने मुझे पेड़ की खाली जगह मे मुझे छुपा दिया। मेरे पिताजी ने बड़ी बहादुरी से उनका सामना किया। दो लोगों को घायल भी किया। पर यह मानव बुद्धिमान होने के साथ साथ निर्दयी भी होते हैं। जाल डालकर मेरे पिताजी को भी पकड़ लिया।

मेरे माता पिता को एक ही पिंजडे मे डालकर जब वो ले जा रहे थे तब मेरी माँ के आँखों से आँसू छलक पड़े। वो आँसू मेरे लिए थे शायद। मैं चाहकर भी अपने माता पिता को छुड़ा नहीं सकता था। मेरे पास उतनी शक्ति नहीं थी कि अपने माता पिता को उन निर्दयी मानवों से छुड़ा लूँ। आखिर एक छोटा सा बंदर का बच्चा उन मानवों का क्या कर सकता है। मेरे लिए यह जंगल अब सुना सुना सा लग रहा था। जंगल के सभी प्राणी सहमे हुए है। जंगल मे चारों ओर शांतिपूर्ण मौहोल है। जंगल के सभी बंदर अपने आप को छुपाए बैठे हैं। संध्या का समय और पक्षियों की गूंज ने मेरे एकांत और चिंतित मन को झकझोर कर रख दिया। मेरे सामने ही चिडिय़ा का एक घोसला है जिसमें दो बच्चे हैं। जो की अपने माता के लौट आने पर बहुत खुश हैं। खुशी से वह चिंउ चिंउ की आवाज निकाल रहें हैं। चारों तरफ पक्षियों के घोसले मे ऐसा ही वातावरण बना हुआ है। सूरज पलायन कर गया है। अँधेरे ने चारों ओर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। सभी प्राणियों और पक्षियों के बच्चे अपने अपने माता पिता के साथ हैं। पर मैंं मायूस होकर एक डाल पर पेट के बल लेटा हुआ हूँ। मेरे आँखों से टपकते आँसू निचे जमीन पर पड रहे थे। मुझे रोता देख सामने के घोसलें से एक चिडिय़ा मेरे पास आई। वह मुझे अपने बच्चों की तरह ही प्यार देती थी।

मेरे पास आकर उसने अपने पँखों से मेरे आँसुओं को पोछने का प्रयत्न किया। चिडिय़ा ने कहा, बेटा मुशिबत तो हर किसी पर आती है। जिवन मे इस तरह के बहुत से मोड आते है जब हम अपने परिवार से अलग हो जाते हैं। अब हमें ही देख लो। मैं अपने बच्चों को कितना प्रेम करती हूँ। पूरा दिन मेहनत करके दाना लाती हूँ। इन्हें खिलाती हूँ। इन्हें उड़ना भी सिखाऊँगी पर जैसे ही यह उड़ना सीख जाएंगे।

मुझे छोड़कर यह कहीं दूर अपना घर बनाएंगे। अपना नया परिवार बनाएंगे। चाहे कोई प्राणी हो या इन्सान एक ना एक दिन अपने मात पिता से अलग होता ही है। हम नहीं चाहते तो भी मौत उन्हें हमसे अलग कर देती है।

मैंं मानती हूँ कि तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम्हें माँ की जरूरत है। पर यह इन्सान बड़ा मतलबी होता है। यह अपने मतलब के लिए हमें हमारे परिवार से अलग कर देता है। तुम देखो एक बार इस जंगल को। मेरे माता पिता और पूर्वजों ने मुझे बताया था कि पहले हमारा जंगल बहुत विशाल था। बहुत से भिन्न भिन्न फलों के पेड़ हमारे जंगलों मे थे। पर मनुष्य की बढ़ती आबादी और उनके स्वार्थ ने हमारे जंगलों के पेड़ को काट दिया। बहुत से ऐसे पेडों को काटा जिनकी उम्र सौ से भी उपर थी। बहुत से पेड़ों की तो जाती ही समाप्त कर दी। मैं कभी कभी उड़कर शहर मे भी जाती हूँ। मनुष्यों को देखती हूँ। वह अपने लाभ के लिए अपने भाईयों से लड़ते है। अपने माता पिता से झूठ बोलते हैं। यहाँ तक की मनुष्यों को मैंंने अपने बूढ़े माता पिता को घर से बाहर निकालते हुए देखा है। यह लोग इंसान है पर इंसानियत को भूल चुके हैं। यह बहुत ही धूर्त होते हैं।

भूलकर भी इनके पास नहीं जाना चाहिए। मुझे चिडिय़ा की बातें बिलकुल अपनी माँ की बातों जैसे ही लग रहें थे। चिडिय़ा ने कहा, तुम चिंता मत करो। आज से तुम मेरे बेटे हो। मैं भी चिडिय़ा को अपनी माँ मानने लगा। अब रोजाना का यह नियम हो गया। चिडिय़ा रोज सुबह होते ही अन्न के तलाश मे चली जाती। मैं उसके बच्चों की रखवाली करता। उनके साथ खेलता। पास के ही फलों के पेड़ से पके हुए नरम नरम फल खाता। बहुत से फल बहुत ही कड़क थे पर मैं उसे खा नहीं पाता। बडे बंदर उन फलों को बडें ही चाव से खाते। वो अपने बच्चों को भी उन फलों का रस पिलाते। पर मेरे पास मेरी माता नहीं थी जो मुझे उन फलों को तोडकर अंदर का भाग खिलाए। मैं स्वयं ही अपना पेट भरता।

संध्या के समय जब चिडिय़ा माँ घर आती तो मुझे बहुत प्रेम करती। मुझे पूरे दिन का वृत्तांत सुनाती। शहर की जानकारी देती। मुझे यह भी बताती कि आज उसने शहर मे मानवों की कौन सी हरकत देखी। मैं धीरे धीरे बड़ि होने लगा था। चिडिय़ा के बच्चे भी बड़े हो गए। वो भी अब उड़कर रोज शहर जाते थे। मैं समय के हिशाब से सभी बंदरों मे बहुत होशियार था। मेरा कद काठी भी सभी बंदरों से अलग था। मैं देखते ही देखते सभी बंदरों मे काफी फूर्तीला और तेज था। मेरी शक्ति के आगे कोई नहीं टिकता था। चिडिय़ा के द्वारा बताई जानै वाली मानवों की कहानी ने मुझे उनकी तरह ही होशियार और चतुर बना दिया था। पर मेरे अंदर मानवों को लेकर एक नफरत सी पैदा हो गई थी।

एक दिन मैं रोजाना की तरह यहाँ वहाँ उछल कूद करके अपना मनोरंजन कर रहा था। तभी मेरी नजर कुछ मनुष्यों पर पड़ी। जो अपने जाल लिए जंगल मे आ रहे थे। मैंने देखा उनके हात मे अपने शेर सिंह के छोटा बेटा है जिसे उन्होंने पकड़ लिया है। उसे उन्होंने एक पिंजडे मे डाल रखा है। उन्हें देखते ही मुझे मेरे बचपन का वो दिन याद आ गया। मेरा दिल दहल उठा उस घटना को याद करके। मैंने उन्हें सबक सिखाने का निर्णय लिया। मैंने संध्या होने का इंतजार किया। जैसे ही उन्होंने ने अपने मचान लगाए और तंबू बनाने लगे वैसे ही मैंने मौका पाकर शेर सिंह के बेटे का पिंजरा खोल दिया और उसे लेकर दूर शेर सिंह के गुफा मे छोड़ दिया। यहाँ पिंजरा खाली देख उन्हें बहुत क्रोध आया। वह जंगल मे एक दूसरे से अलग होकर उस बच्चे को ढूँढने लगे। मैंने रात के अँधेरे का लाभ उठाया। उन्हें एक एक करके खूब पीटा और काट काट के उन्हें घायल कर दिया।

सभी मनुष्य अपने आप को बचाकर भाग निकले। पहली बार ऐसा हुआ था कि वह मनुष्य खाली हात लौट गए थे। पूरे जंगल मे सभी ओर मेरी ही चर्च थी। सभी प्राणियों ने मेरी खुब प्रशंसा की। शेर सिंह ने भी खुश होकर मुझे शाबाशी दी। उसके बेटे की जान बचाई इसलिए उसने सुक्रिया भी कहा। मैंने भी उस दिन से जंगल की और उसमे रहनेवाले सभी प्राणियों की रक्षा करने की कसम खाई। मैं जंगल मे किसी भी मनुष्य को आने नहीं देता। मनुष्यों के अंदर भी मेरा खौफ बढ़ गया था। वह जंगल मे आने से डरने लगे थे। मनुष्यों ने मुझे पकडऩे के लिए बहुत बार जाल बिछाया। पर वह कामयाब नहीं हुए। मुझे पकडने के लिए ईनाम भी रखा गया।अलग अलग राज्यों से अच्छे व बड़े धुरंधर शिकारीयों को भी बुलाया गया पर वह भी मुह की खाकर चल दिए।

सर्कस वाले मुझे पकड़ने के लिए बहुत उत्सुक थे। उन्होंने लोगों को बहुत से लालच दिए। मैं भी अब बहुत सावधान रहने लगा था। एक दिन मैं संध्या के समय एक डाल पर बैठा हुआ था कि चिडिय़ा माँ मेरे पास आई।

उसनें कहा, बेटा आज मे शहर मे घुमने गई थी। वहाँ मैंने सर्कस वालों को देखा। मैं भी उनके खेमे के अंदर घुस गई। मैंने देखा कि वहाँ पर बहुत से जानवर अपने करतब दिखाकर मनुष्यों का मनोरंजन कर रहें हैं। मैंने वहाँ तुम्हारे माता पिता को भी एक पिंजरें मे कैद देखा। मैं उनके पास तो नहीं गई। पर सोचा तुम्हे बता दूँ। मैं खुशी के मारे रोने लगा। मैंने कहा, मुझे भी देखना है अपने माता पिता को। मुझे अभी ले चलो वहाँ। चिड़िया ने कहा, यहाँ से उत्तर की ओर एक शहर है। जहाँ बड़ी बड़ी लंबी ईमारत है। वहीं पर एक मैंदान मे वह सर्कस लगा है। शाम होते ही वहाँ बहुत उजाला रहता है। रंग बिंरगे अलग अलग रंग के प्रकाश देनेवाले यंत्र वहाँ लगे हैं। जो मनुष्य द्वारा बनाया गया सुर्य है। वहीं पर एक बड़े से तंबू के अंदर बहुत से पिंजरे हैं। वहीं पर तुम्हारे माता पिता कैद है। पर वहाँ जाना तुम्हारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। मैंने चिडिय़ा माँ से कहा, चाहे मेरी जान भी चली जाए।

पर एक बार अपने माता पिता से मिलना चाहूँगा। चिडिय़ा माँ ने कहा, बेटा अभी अँधेरा हो गया है और रात के समय है। मैंं तूझे लेकर सुबह चलूँगी। तु अभी सो जा। मैंने कहा, ठिक है। मैं जाकर लेट गया और चिडिय़ा माँ भी अपने घोसलें मे सोने चली गई। मेरे मन मे जोरो का तूफान उठने लगा। मेरे माता पिता का चेहरा मेरे आँखों के सामने आने लगा। मैं उठा और उत्तर की ओर दौड पडा़। आज मेरे अंदर एक अलग सी फूर्ती थी। मैं एक डाल से दूसरे डाल, एक पेड़ से दूसरे पेड पर छलांग मारता हुआ आगे बढ़ने लगा। देखते ही देखते जंगल समाप्त हो गया। मेरे सामने अब खेतों का सिलसिला शुरू हुआ। जल्दी ही खेतों और मैंदानों को पार कर गया। मेरे सामने अब एक ऊजाले से भरा हुआ ईमारतों का जंगल दिखाई दे रहा था।

जैसा चिडिय़ा माँ ने कहा था वैसा ही शोरगुल से भरा हुआ शहर था। मैं देखते ही देखते एक ईमारत पर चढ़ गया। मैं वहीं से छुपते छुपाते ईमारत पर चढ़ा जहाँ अँधेरा अधिक था। मैंने ईमारत पर चढ़ कर देखा तो सामने सड़क पर अनगिनत वाहन दौड रहे थे। जिसे मानव अपने मर्जी के अनुसार दौडा़ रहा था। ईतनी लंबी लंबी ईमारत और वाहनों को देखकर मनुष्य के बुद्धि पर बड़ी हैरानी हुई। पर यहाँ के वातावरण मे ईतना धूल और धुआं था कि स्वास्थ्य खराब हो जाए। मैंने यहाँ वहाँ नजर घुमाकर देखा तो सामने के मैंदान मे बड़ा सा तंबू लगा हुआ था। वहाँ तंबूओं पर बहुत से जंगली प्राणियों के चित्र थे। मैं समझ गया कि यही वह जगह है जहाँ मेरे माता पिता को कैद करके रखा गया है। पर वहाँ बहुत उजाला था। वहाँ लोगों की भीड़ देखकर ऐसा लगा जैसे सारा शहर वहीं उमड़ पड़ा है। वहाँ छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुढ़े भी थे। मेरा वहाँ जाने का उचित समय नहीं था।

मैंंने सोचा क्यों ना यहीं थोड़ा विश्राम कर लूँ। जैसे भीड़ समाप्त होगी वहाँ चला जाऊँगा। मैं यहाँ वहाँ ईमारत के छत पर टहलने लगा तभी मेरी नजर सामने के ईमारत पर पड़ी। वहाँ एक महीला कुछ कर रही थी। उसके पीछे की तरफ कुछ फल रखे हुए थे। मैंने सोचा क्यों ना थोड़ी पेट पूजा कर लूँ। बहुत दूर से आया था। थकान और भूक ने हाल बेहाल कर रखा था। मैंने झट से उस ईमारत पर छंलाग लगाई। और उसके खिड़की के सहारे अंदर घूसा। मैंने झट से कुछ केले उठाए और जाने लगा तो जोर जोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी। मैं डर गया। मुझे लगा उसने मुझे देख लिया पर यह क्या वहाँ कोई नहीं था। मैंने अंदर झाँका तो देखा तो महिला अपने से बुढ़े महिला पर चिल्ल चिल्ला कर कुछ कह रही थी। उसके आँखों मे क्रोध था पर बुढ़ी महिला के आँखों मे आँसू थे। मुझे उस बुढ़ी महिला पर दया आ रही थी। पर उस जवान महिला को नहीं।

मैं वहाँ बिना कुछ बोले झट से बाहर निकल गया। मुझे चिडिय़ा माँ की बातें याद आ गई। मैं झट से उसी ईमारत पर पहुंच गया जहाँ मैं पहले था। मैंने पेट भर के फल खाया और लेट गया। कुछ देर बाद जब मेरी आँखें खुली तो देखा कि अब उतना उजाला नहीं था। सड़कों पर वाहन भी नहीं थे। अचानक एक दो वाहन दिखाई पड़ रही थी। मैंने उस मैंदान और तंबू की ओर देखा तो वहाँ पर भी भीड़ का नामोनिशान नहीं था। वहाँ पर भी अब कम उजाला था। यही मौका था माता पिता को वहाँ से छुड़ाने का। मैं झट से ईमारत से निचे उतरा और उसी ओर दौड पड़ा। जल्दी ही मैं वहाँ पहुंच गया। द्वार पर एक व्यक्ति डंडा लिए सो रहा था। मैंने बिना आवाज किए धीरे से अंदर छंलाग लगाई। वहाँ बहुत से छोटे छोटे तंबू थे जिसमें कुछ मानव सो रहे थे। मैंने देखा कि एक ओर हाती की सूँड हिलती दिख रही है। मैं उसी तरफ बढ़ा। वहाँ पहुंचकर जब देखा तो वहाँ का नजारा बड़ा ही भयानक था।

वहाँ बहुत से प्राणी थे जो पिंजरे मे बंद थे। ईतने विशाल हाती को भी उन्होंने जंजीरों से बाँध कर रखा था। मैं झट से पिंजरों मे झाँक झाँक कर अपने माता पिता को ढूंढने लगा। एक पिंजरा सामने ही था जिसमे मेरे माता और पिता सो रहे थे। उनकी हालत देखकर मेरे आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। मैंने अपने मम्मी को आवाज दी तो दोनों जाग गए। मुझे देखकर वह डरकर पीछे हट गए। पिताजी ने क्रोध मे कहा, आगे आया तो जान ले लूँगा। मैंने कहा, हाँ ले लो जान अपने बेटे का। यह सुनकर मेरी मम्मी दौड़कर मेरे पास आ गई। पिंजरे से हात निकालकर मेरे सिर और चेहरे को सहलाने लगी। पिताजी ने मुसकराते हुए कहा, देखो मेरा बेटा मुझसे भी ज्यादा सुंदर और बलशाली दिखता है।

मम्मी ने कहा, रहने दो तुम। मेरे बेटे को नझर मत लगाना। पिताजी ने कहा, क्या एक पिता की नजर लगती है अपने बेटे को। मम्मी ने कहा, मैं रात दिन यही प्रार्थना करती थी कि मरने के पहले एक बार अपने बेटे को देख लूँ। आज ऊपर वाले ने यह ईच्छा भी पूरी कर दी। अगर तुम आज नहीं मिलते तो यह सर्कस के लोग दो दिन बाद हमारी हत्या कर देते। क्योंकि हम बूढ़े हो चुके है अब हमसे काम नहीं होता। अब हमारी जरूरत इन्हें नहीं है। मैंने कहा, आप लोग चिंता ना करें। मैं आप लोगों को कुछ होने नहीं दूँगा। मैंने पिंजरें का दरवाजा खोला जिसकी आवाज सुनकर दूसरे जानवर भी उठ गए। मुझे देखकर वह जोर जोर से चिल्लाने लगे। उनकी आवाज सुनकर कुछ लोग वहाँ आ गए।

मैंने झट से मम्मी और पिताजी को बाहर निकाला। उन लोगों ने मुझे घेर लिया था। उसमें से एक व्यक्ति ने कहा, देखो जिसे हम पकड़ना चाहते थे वह खुद ही यहाँ आ गया। दूसरे ने कहा, देखो अपने परिवार से मिलने आया है। सभी जोर जोर से हँसने लगे। उनके मुखिया ने कहा, पकड़ो इसे और डाल दो पिंजरे मे। शिकार खुद चलकर शिकारी के पास आया है। वह जैसे ही आगे बढ़े मेरे माता पिता ने उनका पैर पकड़ लिया। यह देख मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं क्रोध के मारे आग बबूला हो उठा। मैंने उनपर झपटा मारा। मैं अपनी शक्ति पहचानता था।

मैं कोई उनका गुलाम हाती नहीं था जो अपनी शक्ति को भूलकर एक छोटे से खूँटे मे बँधा रहूँ। मैंने उन्हें उठा उठाकर कर फेंकना शुरू किया। उन्हें काट काट कर घायल कर दिया। सभी के सभी डरकर भाग खड़े हुए। मैंने अपने माता पिता को वहाँ से हात पकड़कर जंगल की ओर चल दिया। अब मेरा परिवार फिर से पूरा हो गया था। मैं मेरी माँ और मेरे पिता खुशी खुशी रहने लगे। आज भी जब लोग उस जंगल को देखते हैं तो उन्हें मेरा खौफ सताता है।


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