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Yogesh Mali

Others

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Yogesh Mali

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अजीबोगरीब दुनिया.....

अजीबोगरीब दुनिया.....

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आज सुबह से ही मन बेचैनी से भरा हुआ था। ना जाने क्यों आज सड़क पर चारों ओर आवाजें आ रही थी। मैंने खिड़की से झाँक कर देखा, तो कुछ महीलाओं का समूह लड़ाई कर रहा था। महीलाओं को आपस मे लड़ता देख लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी। मेरी भी जिज्ञासा बढ़ने लगी। सीधी सी बात है। मैं भी एक इंसान हूँ। दूसरों के झगड़े पे कान लगाना मेरा अधिकार है। मैं तुरंत ही सुनने के लिए भागकर इमारत से नीचे उतर गया। वहाँ जाकर देखा तो पता चला कि झगड़े का कारण बड़ा ही गंभीर है। वह महिलाएँ लड़ रही थी उन लोगों से जो कि पेड़ काटने आए थे। जो लोग पेड़ काटने आए थे उनके पास पेड़ काटने की अनुमति थी। उनकी भी गलती नहीं थी। वह पेड़ इसलिए काटना चाहते थे क्योंकि उन्हें सड़क चौड़ी करनी थी। पर महिलाओं का कहना था कि पेड़ को बिना काटे ही किसी तरकीब से सड़क को चौड़ा किया जाए। महिलाओं का कहना था कि यह कहाँ का निर्यात है कि एक सड़क को चौड़ा करने के लिए इतने बड़े छायादार पेड़ को काट दिया जाए। महिलाओं ने बताया कि इस तरह से उन्होंने करीब करीब सड़क के किनारे खड़े कितने पेड़ों को काट दिया है। अब यह इसे भी काटना चाहते हैं। आखिरकार जैसे तैसे महिलाओं को समझा बुझाकर घर भेजा गया और पेड़ को मेरे सामने ही काट दिया गया। मुझे भी बहुत तकलीफ़ हुई कि इस नौजवान पेड़ को भरी जवानी में अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। वो भी सिर्फ एक सड़क के लिए। मेरा मन उदास हो गया कि इंसान आज अपने मतलब के लिए किसी बेजुबान सजीव की हत्या कर रहे हैं। मैं घर जाकर खाना खाने बैठा। तो मेरी थाली के अन्न और फल देखकर ऐसा लगा कि कहीं यह भी मुझसे ना बोल पड़े। खाइये हमें, क्या पता हम आखरी कौर हों। मैंने जैसे तैसे अपनी पेट की आग बुझाई और सोने चला गया। दोपहर का समय और गर्मी से मन बेहाल था। सोते समय भी यही सोच रहा था कि अगर यह पेड़ नहीं रहे इस धरती पर, तो कैसा होगा यह जीवन? ना जाने कब सो गया।

तभी एक आवाज़ मेरे कानों मे गुंजन करने लगी। बेटा योगेश, योगेश उठ भी जाओ। देखो शाम के सात बजे हैं। काॅलेज नहीं जाना क्या? मैंने कहा, कहाँ मम्मी। देखो अभी भी उजाला है बाहर। भले ही शाम के सात बजे हैं पर बाहर अभी भी धूप है। मम्मी ने कहा, बेटा काॅलेज जाने में देरी हुई तो। चलो उठो तैयार हो जाओ। मैंने कहा, रोज इतनी धूप में निकलता हूँ तो यह किरणें बहुत चुभती है। मम्मी ने कहा, नया लोशन लाया है वह लगा के जा। सुन, मुंह धोने के लिए पानी मत गिराना। कपड़े को भीगा कर रखा है। उसी से मुंह पोंछ लें। मैंने कहा, ठीक है। पर आज पीने के लिए पानी ज्यादा देना। मम्मी ने कहा, पूरी आधी बोतल पानी है। जब बहुत प्यास लगे तो ही एक घूंट पीना। आजकल पानी के भाव भी बढ़ गए हैं। हमारे नए प्रधानमंत्री जी ने पानी पर सब्सीडी देने की मंजूरी दी है। वो हो जाए तो अच्छा है। तभी बाजू वाली पड़ोसन ने आकर कहा, सुनती हो भाभी, आज के पेपर में छपा है, आज से महीने में तीन बार पानी मिलेगा क्योंकि वैज्ञानिक सफल हो गए हैं खारे पानी को मीठे पानी में बदलने में। मम्मी ने कहा, यह तो तुमने बहुत बड़ी खुशख़बरी सुनाई। मैं कपड़े पहनकर तैयार हो गया था। नाश्ता माँगने पर मम्मी ने कपाट खोला। मैंने कहा, मम्मी आज कुछ अच्छा दो खाने के लिए। मम्मी ने हँसते हुए प्लेट में तीन गोलियां रखी और कहा, ये ले आज तेरे पसंद की पालक पनीर के स्वाद वाली गोली, दूसरी मक्के की रोटी के स्वाद वाली गोली और तीसरी चाॅकलेट दूध वाली कॅल्सियम की गोली। मैंने खुशी से तीनों गोलीयां स्वाद लेते हुए चबा ली। मम्मी ने दो घूंट पानी दिया और मैं पीकर काॅलेज के लिए चल दिया। मम्मी ने कहा, अरे तेरा धूप कवच अच्छे से पहन लें और रास्ते में ऑक्सीजन की टँकी फूल करा लेना। मैंने ऑक्सीजन की टंकी चेक की तो पूरे दिन के लिए प्रर्याप्त गैस थी। मैंने तुरंत चेहरे पर मास्क लगा लिया। इमारत से उतरकर देखा तो सामने ही सवारी खड़ी थी। मस्त चमचमाती कार थी। मैं जाकर उसमें बैठ गया। बैठते ही कार चालक ने कार को चालू किया पर कार बहुत धीमी गती से चल रही थी। मैंने कहा, भाई तेजी बढ़ाओ। तो कार चालक ने कहा, जनाब इसकी गति नहीं बढ़ाई जा सकती। कार तो हमारे समय में चला करती थी। उस समय यही कार पेट्रोल पर तेज गति से दौड़ती थी। पर आज तो पेट्रोल और डीजल सिर्फ अमीरों के गाड़ीयों में देखने को मिलते हैं। हमारे लिए तो बिजली ही है। सूर्यास्त हो चुका था। इसलिए लोगों की भीड़ दिखाई देनी लगी थी। कॉलेज के गेट पर पहुंचा तो नम्रता खड़ी थी। मैं उसके पास गया तो उसने मुझे कहा, योगेश कैसी लग रही हूँ मैं आज? मैंने कहा, कभी मास्क उतारकर आओ मेरे सामने। तब तो पता चलेगा। नम्रता ने कहा, नहीं। तुम्हारे कहने पर एक बार उतारा था मास्क। तो पूरे हफ्ते बिमारियों से घिरी हुई थी। क्लास में चलो तो उतारती हूं। हम दोनों क्लास में गए तो गुरूजी ने पढ़ाना शुरू कर दिया था। हम दोनों क्लास में बैठकर गुरूजी की बातें सुनने लगे। गुरूजी बता रहें थे कि आज से बहुत वर्ष पहले हमारी धरती पर हरियाली थी। चारों तरफ सुहाना मौसम हुआ करता था। सभी आज़ादी से बिना मास्क पहने और बिना ऑक्सीजन टंकी के घूमते थे। मैंने कहा, गुरूजी यह हरियाली और मौसम क्या चीज़ है? गुरूजी ने कहा, बेटा हरियाली का मतलब है हमारे चारों तरफ पेड़ पौधे, हरी हरी घासों के मैदान होते थे। जो कि अब नाम मात्र कुछ अफ्रीका और अमरीका में रह गई है। पहले यहाँ नदीयाँ और तालाब पानी से लबालब रहते थे। यहाँ तक कि जहाँ खुदाई करो जमीन से पानी निकलता था। मैंने कहा, अभी भी खोदेंगे तो पानी निकलेगा। गुरूजी ने कहा, नहीं अब नहीं निकलेगा। क्योंकि आज के समय में चारों तरफ सीमेंट और कांक्रीट की जमीन है। कोई पेड़ पौधा नहीं है। इसलिए भू जल स्तर बिल्कुल ही समाप्त हो गया है। गुरूजी ने बताया कि पेड़ पौधों की वजह से ही हमारी पृथ्वी हरी भरी दिखती थी। यहाँ बहुत से जाती के सजीव पाए जाते थे। जंगल, पेड़ और पौधों के नष्ट होने से असंख्य जीवों की प्रजाति नष्ट हो गई। अब सिर्फ बचे हैं तो हम इंसान। मैंने कहा, हाँ विज्ञान की वजह से। गुरूजी ने कहा, हाँ विज्ञान की वजह से। विज्ञान ही सबसे बड़ा कारण हैं ऐसी दुनिया का। विज्ञान ने आधुनिकता लाई। पर इंसानों ने विज्ञान का ग़लत उपयोग किया। विज्ञान ने ही आधुनिक यंत्रों का आविष्कार भी किया। जैसे की मोबाइल का निर्माण किया ताकि दूर देश में बैठे लोगों से संपर्क किया जा सके। परंतु मनुष्य ने मनोरंजन के लिए इंटरनेट को चुना। उसके गति को बढ़ाते हुए इतना बढ़ाया कि उसके रेडिएशन से बहुत से पक्षी मरने लगे। यहाँ तक की उस रेडिएशन के चपेट में मनुष्य खुद आ गया और अनगिनत बिमारियों के चपेट में आ गया। आखिर मनुष्य के जान पर जब पड़ी तो मोबाइल से इंटरनेट को हटा दिया गया। मनुष्य ने अपने स्वार्थों के लिए जंगल नष्ट कर दिए। जब सड़क बनाने और ब्रिज बनाने के लिए पत्थर की आवश्यकता पड़ी तो बड़े बड़े पर्वतों को काट दिया। इमारत बनाने के लिए तालाबों को पाट दिया। कारखानों को और वाहनों को इतना बढ़ा दिया कि निकलने वाली गैसों ने ओजोन गैस की परत में छेद कर दिया। आज सूर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणें हमें जला रही हैं। हम आज जल, शुद्ध वायु और भोजन के लिए तरस गए हैं। वह भी सिर्फ दिखावे और आधुनिकता के कारण। पहले मनुष्य कहता था, पेड़ हटाओ शहर बनाओ। फिर जब समस्या बढ़ी तो कहा, पेड़ लगाओ, पर्यावरण को बचाओ। आज मनुष्य का नारा है कि पेड़ लगाओ खुद की जान बचाओ। तभी अचानक प्रधानाचार्य ने हमारे क्लास में दस्तक दी। और मुस्कराते हुए खुशी से कहा, प्रधानमंत्री ने देश के सभी नागरिकों को तीन की सरकारी छुट्टी का ऐलान किया है। इसकी वजह यह है कि हमारे ही शहर में एक बरगद पौधा मिला है। हमारे शहर में तो खुशी की लहर दौड़ गई है। सभी मिडिया वाले और लोगों की वहाँ भीड़ एकत्र हो गई है। सैनिकों को उस पौधे की रक्षा के लिए बुलाया गया है। वैज्ञानिकों का भी एक समूह वहाँ पहुंच गया। लोगों के मन में अब फिर से नए जीवन जीने की उम्मीद दिखाई पड़ रही है।

तभी ऐसा लगा कि किसी ने मुझे झकझोर कर उठाया। मैंने आँख खोला तो मम्मी ने कहा, उठ शाम के सात बज चुके हैं। खेलने नहीं जाएगा क्या? मैंने खिड़की में देखा तो बाहर अँधेरा हो चुका था। पर मेरा सपना मुझे याद था। मैं उस सपने को सोचकर मन ही मन हँसने लगा।



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