वो ज़ोर से हंस पड़ी
वो ज़ोर से हंस पड़ी
रात के ग्यारह बज रहे थे। सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। रितिक अपने हॉस्टल के कमरे में कम्बल ओढ़े सो रहा था। तभी उसे भयंकर हंसी की आवाज़ सुनाई दी। मारे डर के वो बिस्तर से नीचे गिर गया।
बहुत मुश्किल से उसने अपने डर पर काबू पाया और डरते डरते पूछा, "क..क...कौन है... वहां।" उसकी आवाज़ सुनते ही वो डरावनी हंसी बंद हो गई। रितिक थोड़ी देर ज़मीन पर ही बैठा रहा। जब कुछ मिनट तक वो आवाज़ नहीं आई तो उसकी सांस में सांस आई। और वो पुनः अपने बिस्तर पर कम्बल ओढ़ कर लेट गया।
लगभग दो मिनट बाद फिर से उसे एक लड़की के ज़ोर से हंसने की आवाज़ आई। इस बार आवाज़ खिड़की से आ रही थी। रितिक को भरी ठंड में भी पसीने छूटने लगे। वो हिम्मत करके खिड़की की तरफ गया और कांपते हाथों से खिड़की का पर्दा हटाते हुए बोला,"मैं.... पूछ... पूछ रहा हूं....कौन है? सामने....आओ।"
उसने खिड़की से झांकने की कोशिश की पर कोई नहीं दिखा। उसके सवाल पूछते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया। सर्दियों में सन्नाटे की भी अपनी एक आवाज़ होती है।
अब तो रितिक के डर का पारा बहुत बढ़ चुका था। आज उसका रूममेट भी उसके साथ नहीं था। किसी दोस्त के साथ पार्टी पर गया था।
रितिक भाग कर कम्बल में घुस गया। ठंड के मारे कपकपी छूट रही थी या डर की वजह से, ये कहना मुश्किल था। धीरे-धीरे जब उसका मन शांत हुआ और उसने महसूस किया कि अब कोई आवाज़ नहीं आ रही तो वो फिर से लेट गया
पर क्षण भर में ही वो फिर से ज़ोर से हंसने लगी। इस बार आवाज़ दरवाज़े से आ रही थी। रितिक की हालत रोने जैसी हो गई। वैसे बड़ा निडर बना फिरता था वो अपने दोस्तों के बीच। पर आज तो उसकी बैंड ही बज गई थी।
वो फिर कम्बल से निकला और दरवाज़े की तरफ बढ़ा। हिम्मत कर उसने दरवाज़े की चिटकनी खोली। आवाज़ अभी भी आ रही थी। उसने अपनी गर्दन बाहर निकाल कर देखा, कोई नहीं था दूर-दूर तक। उसने तुरंत दरवाज़ा बंद कर दिया और डर से सूखे अपने गले को एक बोतल पानी पीकर शांत किया।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। रितिक डर के मारे अंदर तक कांप गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो दरवाज़ा खोले कि नहीं खोले। घड़ी की तरफ देखा, बारह बज चुके थे। बार - बार हो रही दस्तक ने उसे दरवाज़ा खोलने पर मजबूर कर दिया।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला उसके दोस्त हाथों में केक और फूलों का गुलदस्ता लिए खड़े थे। सब एक स्वर में बोले, " जन्मदिन मुबारक हो रितिक"
रितिक अंदर से इतना डरा हुआ था कि वो मुस्कुरा भी नहीं पा रहा था। उसने कांपते हाथों से गुलदस्ता स्वीकार किया। उसे यूं डर से कांपते देख उसके दोस्त वैभव ने पूछा,"क्या हुआ इतना डरा हुआ क्यों है? कोई भूत देख लिया क्या?"
रितिक को समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे बताए कि अभी उसके साथ क्या हुआ। पर हिम्मत करके उसने सब कुछ बता दिया।
शैली बोली,"कैसी आवाज़ थी रितिक?"
"बहुत डरावनी आवाज़ थी शैली। मैं अंदर तक डर गया। तुम सुनोगी तो तुम भी कांप जाओगी।" रितिक अपने माथे के पसीने पौंछते हुए बोला।
"मैं तो वो आवाज़ रोज़ ही सुनती हूं।" शैली ने गंभीर आवाज़ में कहा।
रितिक ने उसकी तरफ डर से कपकपाते हुए देखा और अपनी थूक को गले से निगलते हुए बोला,"क्या... मतलब... तुम्हारा।"
तभी शैली हंस पड़ी। उसकी हंसी सुनकर रितिक के छक्के छूट गये। वो धम्म से बिस्तर पर बैठ गया। उसे इस हालत में देख सबकी हंसी छूट गई और सब एक साथ बोले, "हैप्पी बर्थडे टू यू रितिक!"
रितिक अभी भी सदमे में था और तभी शैली फिर से ज़ोर से हंस पड़ी।