वो जब याद आये
वो जब याद आये
आज फिर 2 जनवरी है, कलिका बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सोफे पर बैठी थी, अचानक उसकी नजर सामने पड़े कैलेंडर पर पड़ी, 2 जनवरी और फिर उसके दिल की धड़कने तेज हुई।
कैसे भूल सकती है वो ये तारीख?15 वर्ष हो गए हैं,पर वो घटना नासूर सी रिसती रहती है । मनोमस्तिष्क पर एक गहरी धुंध सी छाने लगती और वो सर पकड़ कर बैठ जाती।
एक-एक दृश्य आँखों के आगे से यूं गुजरने लगता, मानो अभी की घटना हो। वो हॉस्टल में थी, हर छुट्टी में मां पापा के पास जाती रहने।
रिज़र्वेशन ए सी थ्री टीयर में था पहले से ही।उसका ये आना जाना लगा ही रहता था, एक सामान्य सी बात थी, परंतु इस बार कुछ तो था जो उसे अजीब सा लग रहा था। मानो उसका इंट्यूशन उसे सावधान कर रहा हो।
उसकी बर्थ नीचे वाली थी। उसके कैबेन को छोड़कर पीछे वाली बर्थों से निरंतर ठहाकों की आवाजें आ रही थी पर उसे इग्नोर कर वो मुँह तक कंबल ओढ़ कर लेट गई।
सोते हुए ही उसे अहसास हुआ कोई हाथ उसके शरीर पर था। देखा दो बर्थों के बीच, कोई लंबा चौड़ा व्यक्ति जमीन पर ही चादर बिछा कर सो रहा था। ये उसका ही हाथ था।
नींद में पड़ गया होगा सोच कर कलिका ने उसका हाथ धीरे से हटा दिया, वो चौंका और दूसरी ओर पलट कर सो गया। कुछ ही देर में उसके हल्के खर्राटों की आवाज़ आने लगी। कलिका भी निश्चिंत होकर दूसरी ओर करवट लेकर सो गई।
उसके सामने वाली बर्थ पर एक 50,55 वर्ष की आयु के अधेड़ सज्जन थे, जो सो रहे थे। कुछ ही देर में कलिका को फिर एक हाथ अपनी देह पर रेंगता महसूस हुआ। इस बार वो उठ कर बैठ गई, उसे अहसास हो चुका था कि नीचे लेटा व्यक्ति सिर्फ सोने का नाटक कर गंदी हरकतें कर रहा था।
उसकी असहाय नज़र इधर उधर घूमने लगी लेकिन चारों ओर सोते यात्रियों का सन्नाटा था। अचानक ही सामने की बर्थ पर लेटे सज्जत उठ खड़े हुए, लंबे तगड़े---
और नीचे लेते व्यक्ति को हिलाते हुए बोले, ए मिस्टर, क्या बदतमीजी है? बहुत देर से देख रहा हूँ, क्यों परेशान कर रहे हो लड़की को? उनकी आवाज़ में क्रोध था।
अब नीचे लेटा व्यक्ति स्प्रिंग की तरह उछल कर खड़ा हो गया और उनको हल्के से धक्का देते हुए बोला, ए बुड्ढे, अपने काम से काम रख।
अब उन सज्जन का क्रोध देखने लायक था, चिल्लाकर बोले, चुप! एक तो बदतमीजी करता है ऊपर से जुबान लड़ा रहा है।
कलिका का ह्रदय गाड़ी के इंजन से भी तीव्र गति से भाग रहा था। अनहोनी की आशंका से उसका नन्हा दिल कांप रहा था। अब तक अन्य यात्रियों की हरकतों से लग रहा था कि वो सब जाग रहे थे, पर सब दम साधे पड़े थे।
वो दुष्ट उन सज्जन को खींचता हुआ दरवाजे की तरफ ले जा रहा था। उसके इरादे को भांप कलिका भी कंबल फेंक कर उठ खड़ी हुई। ए! क्या कर रहे हो तुम?
वो चीखी, उत्तर में एक रिवाल्वर की नाल उसकी तरफ तन चुकी थी।
वो फिर हिम्मत करके बोली, मुझे पता है, सब लोग जाग रहे हैं, उठिए प्लीज!
पर तब तक वो गुंडा दरवाजा खोल उन सज्जन को
दरवाजा खोल बाहर धकेल चुका था, एक तेज़ चीख और खामोशी-----
अचानक ट्रेन की गति धीमी होनी शुरू हो गई, शायद किसी सह्र्दय यात्री ने चेन खींच दी थी। अन्य किसी यात्री द्वारा पुलिस को सूचना दी जा चुकी थी। ट्रेन रुकते ही पुलिस का प्रवेश, यात्रियों के इशारे पर पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर चुकी थी। जाते जाते भी वो चीख रहा था, तुम लोग जानते नही मैं फलाना मंत्री का गनर हूँ, बहुत पछताओगे। पर पुलिस उसे खींचती हुई ले गई।
अगले स्टेशन पर पापा कलिका के स्वागत के लिए मौजूद थे। उसके चेहरे पर उड़ती हवाईयों को देख कर उन्होंने पूछा, क्या हुआ? पर वो खामोश थी।
घर पहुंचते पहुंचते उसका धैर्य जवाब दे गया, और पूरी घटना बताते हुए वो फूट-फूट कर रो पड़ी।
पिता ने उसे धैर्य बंधाया, सुबह का अखबार
पढ वो पुलिस स्टेशन चलेंगे। उस गुंडे के खिलाफ गवाही देने, पर तीन चार अखबार खरीदने के बाद भी उस दुर्घटना का कोई जिक्र न था, शायद मंत्री का गनर होने का फायदा वो गुंडा उठा चुका था।
घर मे सभी समझ चुके थे, दौड़ भाग कर,बयान देकर भी कुछ फायदा नही होने वाला,और बात दब गई।
पर 15 वर्षों से हर दो जनवरी को, वो मंदिर जाना नही भूलती, उन अनजान अंकल की याद में, उन्ही के नाम से,( जो उसने अपनी समझ इसे रख लिया था, अविनाश अंकल--)2 बच्चियों की फीस देती आ रही थी। और इसमें उसके पति का भी सहयोग था।
