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Prabodh Govil

Abstract

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Prabodh Govil

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वो दोपहर-14(अंतिम भाग)

वो दोपहर-14(अंतिम भाग)

4 mins
201

थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया कि घड़ी चल रही है, समय चल रहा है, दुनिया चल रही है!

मैं ये भी भूल गया कि हर बीतते लम्हे का मैं भुगतान करने वाला हूं। समय मेरे ही ख़र्च पर गुज़र रहा है।

मेरी सांसें तेज़ी से चल रही थीं। मुझसे थोड़े से फासले पर एक और देश के सुरीले बदन में धड़कनें किसी धौंकनी की तरह चल रही थीं।

मैं इस उधेड़बुन में था कि क्या मैं बगल वाले बिस्तर की ओर बढ़ जाऊं ?

क्या मैं सचमुच मुझे मिले मौक़े का फ़ायदा उठा कर इस पल के वर्तमान में डूब जाऊं ?

क्या मैं अपने तीस मिनट के भुगतान का सौदा किसी काइयां सौदागर की तरह कर के इस अवसर की बूंद- बूंद निचोड़ लूं ?

यही सब सोचता हुआ मैं फ़िलहाल ये नहीं सोच पा रहा था कि समय तेज़ी से बीत रहा है।

लड़की ने मेरी ओर देखा और धीरे से बोली- क्या सोच रहे हैं ?

कुछ भी तो नहीं ?

अब मैं उठ जाऊं ?

तुम्हें मेरा काम करना है। मैंने कुछ डूबती हुई सी आवाज़ में कहा।

मैंने कब इनकार किया। लड़की बोली।

मैं किसी असमंजस के बीच चुप सा रहा।

मैं देख रही हूं कि आप ख़ुश नहीं दिखाई दे रहे।

कई बार ख़ुशी दिखाई नहीं देती वह किसी अंतर्धारा की तरह भीतर ही भीतर बहती है।

ओह! मैं उसे बाहर नहीं ला सकी। क्या मैं असफल रही ?

ऐसा क्यों सोचती हो ? तुम्हारे सफ़ल- असफल होने की बात तो अब आयेगी। तुम्हें मेरा काम ध्यान है न ?

बिल्कुल...

तुम हनीमून कक्ष विंग जानती तो हो न... ज़ीरो जेड..

ओ हो बाबा... कहा न अच्छी तरह जानती हूं।

कैसे ? मैंने कुछ घबराते हुए कहा।

वो हमारे मालिक का कमरा है!

क्या ? ? ?

हां, हमारे मालिक इंडिया के ही हैं, वो साल भर में कभी- कभी कुछ दिन के लिए ही यहां आते हैं। वो आपके देश में अपने सूबे के राजा माने जाते हैं। इस बार महारानी साहिबा भी उनके साथ यहां आई हुई हैं। राजा साहब दिन भर अपने कामकाज और मिल्कियत के मामलों को देखने के लिए बाहर ही रहते हैं। रानी साहिबा को आराम पसंद है इसलिए वो प्रायः होटल में ही रह जाती हैं...

मेरी दुनिया घूमने लगी।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।

मैं बुरी तरह घबरा गया। मेरा माथा घूम रहा था। मुझे चक्कर आ रहे थे।

लड़की ने उठ कर दरवाज़ा खोला।

सामने वही मलेशियन लड़का खड़ा था। वही गुलाबी रंगत। वही मंद मुस्कान! हां, रात की पाली की थकान उसके चेहरे पर उतर आई थी। बाल कुछ लहरा कर माथे पर आ गए थे...

मैं सवालिया निगाहों से देखता हुआ उसकी ओर बढ़ा। किंतु उसने मेरी ओर देखा तक नहीं। वह लड़की से कुछ कह रहा था और लड़की को कुछ दे रहा था।

लड़की बोली- ये लीजिए... देखिए कितना सुन्दर फ़ोटो आया है मेरा और आपका ?

क्या ? ? ?

इसी लड़के ने खींचा है इस की- होल से! वाह, उस अद्भुत पल को इसने ख़ूब कैच किया है जब आप अपनी टांगों को ऊपर लाते हुए मुझ पर झुक रहे थे...

मैं जैसे आसमान से गिरा। मुझे लगा जैसे मैं बेहोश हो जाऊंगा।

ये लीजिए मेरा बिल...

मैं कांपने लगा। लड़की ज़ोर से हंसी। फ़िर बोलीघबराइए मत! आप मेरे देश में मेहमान हैं, हम कुछ लेंगे नहीं।

लड़की ने लड़के के हाथ से लगभग छीनते हुए एक ख़ूबसूरत सा वॉलेट मेरी ओर बढ़ाया।

लड़की बोली- हम अपने मेहमान से कुछ ले नहीं रहे... बल्कि आपको दे रहे हैं ये तोहफ़ा... लीजिए।

मैंने लड़खड़ाते हुए वो वॉलेट हाथ में लेकर देखा। उसमें कुछ रिंगित( मलेशियन मुद्रा) रखे हुए थे... शायद वही, जो मैंने उस मलेशियन लड़के को टिप में दिए थे!

मेरा मन ज़ोर से रोने को हुआ। मैंने लड़के का दिया हुआ कैमरा किसी बिच्छू की भांति परे उछाल कर उसे लौटाया और अपने दोनों हाथ जोड़ दिए।

लड़की बोली- अपने को अपराधी मत समझिए... आपने कुछ नहीं किया! केवल सोचने पर किसी भी देश में मुकदमा नहीं चलाया जाता। इंसान सोच तो कुछ भी सकता है। नहीं ? लड़की हंसी.. कोई ज़हरीली हंसी नहीं, बल्कि निश्छल हंसी ! वो दोनों हाथ हिलाते हुए अंधेरे में ओझल हो गए।


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