वो बड़ी बड़ी आँखें
वो बड़ी बड़ी आँखें
मेडिकल स्टोर से दवा खरीद कर वो पीछे घूमा और उसकी नजरें उससे टकरा गईं। वो हिरनी जैसी बड़ी बड़ी आँखे उसके अंतर्मन में बस गईं। काले रंग का बुरका पहने उसके चेहरे पर आँखों के अलावा कुछ भी तो नहीं दिखता था।
अगले दिन।
कॉलेज के बगल में स्थित स्टेट बैंक के चालान काउंटर पर।
स्टूडेंट्स की भीड़ के बीच खड़ा वो अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था।
कॉलेज नें फीस जमा करने के लिए एक नया फ़रमान जारी किया था। अब फीस केवल चालान के माध्यम से ही जमा होगी। बैंक नें भी ये सेवा सप्ताह में केवल एक दिन देने का निर्णय किया था।
बड़ी मुश्किल से उसने फीस जमा की और बाहर निकला।
सिर झुकाये चैनल गेट पार करने की फिराक में वो किसी से टकराया। सॉरी सॉरी बोलते हुए उसने सिर उठाया और वही
जानी पहचानी बड़ी बड़ी आँखे उसे अपनी ओर देखती दिखीं। दो दिन में दो बार उसका सामना उन बड़ी बड़ी आँखों से हुआ था।
वो बाहर साइकिल स्टैंड पर आया और साइकिल उठा कर पैदल ही फुटपाथ पर चलने लगा। अचानक पीछे से एक तेज रफ्तार बाइक आयी और अनियंत्रित हो कर ठीक उसकी बगल में खड़े बिजली के पोल से टकरा गई। बाइक सड़क पर गिरी और बाइक के पीछे बैठे आदमी का सिर पोल से जा भिड़ा। अफरातफरी मच गई।
उस समय उसने इंसानियत के नाते उन घायल और बेहोश बुजुर्गवार को अस्पताल पहुँचाया। उनकी हालत गंभीर थी।
उनकी जेब में पड़े टू जी फोन से उसने। उनके घर इस हादसे की सूचना दी।
एक घंटे में उन घायल बुजुर्ग के परिजन अस्पताल पहुंचे।
डॉक्टरों की टीम ऑपरेशन की तैयारी कर रही थी और इस क्रम में ए पॉजिटिव ग्रुप के खून की मांग की गई। शाम के पांच बजे थे। डॉक्टरों के अनुसार उन्हें तत्काल खून चाहिये था। बुजुर्गवार के परिजनों नें अपना अपना ब्लड टेस्ट करवाया लेकिन किसी का भी ब्लड ए पॉजिटिव नहीं ठहरा।
उसने भी टेस्ट करवाया और ग्रुप मैच कर गया। समस्या का तात्कालिक समाधान हो गया था।
ब्लड डोनेट कर वह बाहर आया और बिना किसी से कुछ बोले बाहर की ओर भागा क्योंकि घटनास्थल पर उसी बिजली के पोल के सहारे वह ताला लगा कर अपनी साइकिल खड़ा कर आया था।
वो हॉस्पिटल गेट तक पहुंचा ही था कि पीछे से किसी नें उसके कंधे पर हाँथ रखा। वो पीछे घूमा और एक बार फिर उसकी आँखे। उन बड़ी बड़ी
आँखों से टकरा गईं।
इस बार उसे एक मीठी आवाज भी सुनाई दी।
। शुक्रिया। बहुत बहुत शुक्रिया।
किस बात का शुक्रिया ?वो बोला।
आप मेरे अब्बू को अस्पताल लेकर आये। अपना खून दिया। इस बात का शुक्रिया। आवाज आयी।
एक शर्त पर शुक्रिया क़ुबूल है कि आप पहले अपना नाम बताइये। वो बोला।
जी। नूरी। और आप ?
प्रकाश। नाम है मेरा।
जी। एक बार फिर शुक्रिया और हंसते हुए उसने चेहरे से नकाब हटाई।
उसका दिल जोर से धड़का। और वो मुँह फाड़े एकटक नूरी का नूरानी चेहरा देखने लगा।
अपने आप को काबू में कर वो नूरी से बोला। अब इजाजत दीजिये।
ठीक है। चले जाइयेगा। अब्बू ऑपरेशन थिएटर में हैं। मेरी गुजारिश है। प्लीज। एक कप चाय ही पी लीजिये। नूरी नें कहा।
प्रकाश इंकार नहीं कर सका।
वे दोनों एक रेस्टोरेंट के कोने में बैठे चाय पी रहे थे।
दोनों के बीच गहरी ख़ामोशी अपना दामन फैलाये खड़ी थी। लेकिन उनकी आँखे आपस में बातें कर रहीं थीं। चाय का कप खाली हो गया। वेटर कप प्लेट उठा ले गया। लेकिन आँखों की बातें ख़त्म ही नहीं हो रहीं थी।
अचानक नूरी की नजरें झुक गईं। प्रकाश को लगा वह किसी सम्मोहन से बाहर निकल आया है।
नूरी नें ख़ामोशी से उसकी जेब से पेन निकाला और उसका दायां हाँथ अपने बायें हाँथ में पकड़ा।
प्रकाश के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। नूरी नें
उसकी हथेली पर अपना नम्बर लिख दिया और उसे
पेन पकड़ा कर अपनी हथेल उस के आगे कर दी।
प्रकाश अपनी हथेली देख रहा था और वो अपनी।
दोनों रेस्टोरेंट से बाहर आये।
प्रकाश एक बार फिर। एकटक उसका चेहरा देखने लगा।
वो बोली। अब इजाजत है। आप जाइये।
प्रकाश ऑटो में सवार हुआ और साइकिल लेकर घर
पहुंचा।
प्रकाश की कहानी बड़ी कारुणिक थी। अपनी माँ को उसने कभी देखा नहीं था। जब वो चार साल का था तभी उसके पिता नें दूसरा विवाह कर लिया। कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक चला। फिर जब प्रकाश बारह साल का हुआ तब तक उसके दो सौतेले भाई संसार में आ चुके थे। धीरे धीरे सौतेली माँ की निगाह बदलने लगी और जब वो पंद्रह साल का हुआ और जिस दिन उसने हाईस्कूल प्रथम श्रेणी से पास किया। उसी के एक सप्ताह बाद। उसके पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। और प्रकाश
के बुरे दिन शुरू हो गए।
एक दिन मजबूर होकर उसे। घर छोड़ना पड़ा।
उसे अब जिंदगी के साथ एडजस्ट करने की आदत डालनी थी। और उसने बखूबी एडजस्ट किया।
छोटे बच्चों का होम ट्यूटर बन कर और छोटे मोटे पार्ट टाइम काम करके उसने अपनी पढाई जारी रखी
अब वो एक्सेल इंस्टिट्यूट से फाइन आर्ट्स की मास्टर डिग्री पूरी कर रहा था। ये कॉलेज। आर्ट्स का टॉप कॉलेज था और एक प्रतिष्ठित कला संस्थान
था। ग्रेजुएट होते ही उसने कई कंपनियों में आर्ट डिजाइनर का ऑनलाइन काम शुरू किया जो ठीक ठाक चल रहा था। उसे अब जीविकोपार्जन के लिए कोई और काम नहीं करना पड़ता था।
नूरी की आँखों में खोया वो घर पहुंचा। दो कमरे का वो फ्लैट उसने अपनी मेहनत से खरीदा था। उसका जीवन स्तर बहुत साधारण था। घर पहुँच कर उसने
चाय बनाई और प्याली पकड़े अपने आर्ट स्टूडियो में
घुसा। कैनवास के सामने खड़ा वो। कपड़े से ढकी
एक पेंटिंग पर उँगलियाँ फिरा रहा था। उसने पेंटिंग से कपड़ा हटाया और एक बार फिर उसका उन्ही दो
बड़ी बड़ी आँखों से सामना हुआ।
उस दिन रात दो बजे तक वो पेंटिंग करता रहा।
अब उन आँखो के इर्द गिर्द नूरी का चेहरा आकार ले चुका था।
उसने दाये हाँथ की हथेली खोली और उसका दिल धक् से रह गया। नूरी का नम्बर मिट गया था। केवल उसकी परछाई बाकी थी वो भी स्पष्ट नहीं थी
एक लंबी सांस खींच कर वो किचेन में आया। जो कुछ खाने पीने लायक मिला खाया और सो गया।
सुबह ग्यारह बजे वो कॉलेज पहुंचा और कुछ सोच कर शाम चार बजे वो हॉस्पिटल पहुँच गया। रिसेप्सन पर उसे पता चला मोहम्मद इश्तियाक
बेग। जिनका कल ऑपरेशन हुआ था। वे प्राइवेट वार्ड नम्बर तीन में थे। वो वार्ड में पहुंचा। नूरी अपने अब्बू के सिरहाने बैठी थी। प्रकाश को देख उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई।
सुख दुख चर्चा के दौरान उसे पता चला की बेग साहब खतरे से बाहर हैं। आधे घंटे वहाँ ठहर कर वो नूरी से बोला। इजाजत दीजिये। अब चलता हूँ। ।
ठीक है चले जाइएगा। मेरी गुजारिश है। अभी वो इतना ही बोल पाई थी कि प्रकाश जल्दी से बोला। एक कप चाय पिला ही दीजिये।
तभी नूरी की अम्मी दोनों हाँथो में झोला पकड़े आयीं। उन्होंने झोला रख कर सवालिया नजरों से प्रकाश को देखा।
अम्मी। ये प्रकाश हैं। कल ये ही अब्बू को लेकर अस्पताल आये थे और खून दिया था। नूरी नें बड़ी संजीदगी से कहा।
अम्मी के चेहरे पर आभार के भाव आये। और प्रकाश नें उनका अभिवादन किया।
कुछ देर बाद वे दोनों उसी रेस्टोरेंट में। उसी कोने वाली टेबल पर बैठे थे। प्रकाश नें अपनी सफाचट
हथेली उसके आगे रखी और बोला। प्लीज नम्बर एक बार फिर लिख दीजिये।
नूरी नें अपना फोन निकाला। प्रकाश का नम्बर मिलाया। घंटी बजी। फिर भी अपने बैग से उसने एक परमानेन्ट मार्कर निकाला और प्रकाश की हथेली अपने हाँथ में पकड़। अपना नंबर लिख कर बोली। अब हाँथ भी धोएंगे तो भी नम्बर नहीं मिटेगा। एक बार फिर उसके स्पर्श से प्रकाश के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई।
उस रात उसने वो नम्बर मिलाया। घंटी बजी और आवाज आयी। बड़ी देर कर दी। फ़ोन करने में।
प्रकाश कुछ नहीं बोला तो आवाज आयी। हैलो !
सुन रहे हैं न ?
ह। हाँ। प्रकाश बोला।
पांच मिनट इधर उधर की बातें हुईं और वार्तालाप बंद हुआ।
इसी बीच अपने काम के सिलसिले में। प्रकाश मुंबई चला गया। और पन्द्रह दिन बाद लौटा।
नूरी के पिता लगभग स्वस्थ्य हो चुके थे और अपने मेडिकल स्टोर में बैठने लगे थे। नूरी उनकी इकलौती बेटी थी जो एक्सेल इंस्टीटियूट से ज्वैलरी डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी। इसी साल वो कोर्स पूरा होने वाला था।
प्रकाश मुंबई से लौट कर आया और आते ही सबसे पहले नूरी का पोर्ट्रेट देखा और उसे फोन किया।
आवाज आयी। अरे कहाँ गायब हो गये थे ? इतना फोन किया। अापने उठाया नहीं !
प्रकाश नें कहा। मुलाकात होगी ?
होगी।
कहाँ ?
वहीं।
ठीक है।
शाम चार बजे। उसी रेस्टोरेंट में और उसी कोने वाली टेबल पर वे बैठे थे। दोनों के बीच खामोशी
फैली थी। क्योंकि आँखे बात कर रही थीं।
इस तरह एक ही कॉलेज में पढ़ते हुए। दोनों नें अपना अपना कोर्स पूरा किया। अब समय आ गया था। रास्ते अलग हो रहे थे। धीरे धीरे मुलाकातें कम होती गईं। प्रकाश मुंबई में स्थापित हो गया।
अब नूरी के परिवार में उसकी शादी के चर्चे शुरू हुए
नूरी न जाने क्यों उदास हो गई। न हाँ बोलती न
न बोलती। सैकड़ों बार प्रकाश का नंबर मिलाने के बावजूद बात नहीं हो पाई। हर बार एक ही आवाज आती। " इस नम्बर की सभी सेवायें अस्थाई रूप से बंद कर दी गईं हैं। "
इधर प्रकाश अपने आलीशान फ्लैट के ड्राइंगरूम
में बैठा दीवाल पर लगा नूरी का पोर्ट्रेट देख रहा था
वो बड़बड़ा रहा था। " मैं आपसे बहुत मोहब्बत करता हूँ नूरी। लेकिन समाज और धर्म की दीवाल बीच में खड़ी है। मैं कैसे आपके साथ शादी कर सकता हूँ। आप मुस्लिम हैं। मैं हिंदू। हमारा समाज इस सम्बन्ध को मान्यता नहीं देगा। । " यही
सब बड़बड़ाते हुए उसकी आँखों से टप टप आँसू
गिरने लगे।
फिर यकायक उसके मुख पर दृढ़ता के भाव आये और वो जोर से बोला। कुछ भी हो एक कोशिश तो करनी ही होगी।
और दूसरे दिन सुबह वो प्लेन में बैठा था।
प्रकाशनूरी के घर के सामने टैक्सी से उतरा। शादी का माहौल देख। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। आखिरकार लड़खड़ाते कदमों से वो
वेडिंग हॉल में पहुंचा। जहां नूरी दुल्हन बनी बैठी थी। दूल्हा सामने बैठा था। बीच में झीना पर्दा पड़ा था। निकाह की रस्म चल रही थी।
मौलवी साहब नें नूरी से पूछा। आपको निकाह क़ुबूल है ?
कोई आवाज नहीं आयी।
दूल्हे के ठीक पीछे। प्रकाश खड़ा धड़कते दिल से नूरी को देख रहा था। अपनी आदत के अनुसार वो इस स्थिति में भी एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा था।
मौलवी की आवाज फिर गूंजी। आपको निकाह
क़ुबूल है ?
नूरी नें एक बार अपना सिर उठा कर दूल्हे की तरफ देखा और उसकी बड़ी बड़ी आँखे प्रकाश की आँखों से जा मिलीं।
मौलवी साहब की आवाज आयी। क्या आपको निकाह क़ुबूल है ?
नूरी के मुँह से निकला। नहीं।
अफरातफरी मच गई। दुल्हन नें शादी के मंडप में शादी से इंकार कर दिया।
उसने ऐसा क्यों किया ? ये किसी को समझ में नहीं आया।
बारात वापस चली गई।
और सजे सजाये वेडिंग हाल में प्रकाश अकेला बैठा रह गया।