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Bharat Bhushan Pathak

Action Tragedy

5.0  

Bharat Bhushan Pathak

Action Tragedy

वो अबला नहीं सबला थी

वो अबला नहीं सबला थी

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रागिनी अपने नाम के अनुरूप जीवन के विभिन्न रागों से परिपूर्ण थी। उसमें एक कुशल नारी के सारे गुण मौजूद थे। सिलाई -कढ़ाई, पाककला व अन्य घरेलू काम के साथ -साथ गणित व विज्ञान की प्रवीणता इत्यादि।

साधारण अर्थों में कहा जाय तो वह सर्वगुण सम्पन्ना थी। एक ऐसी नारी जो नारी शक्ति के लिए अद्भुत उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हुई।

रागिनी के पिता मास्टर सक्षम जी एक रिटायर्ड अध्यापक थे। वह 70 वर्ष के होने के बावजदू भी अभी भी पास-पड़ोस के बच्चों को गणित व विज्ञान का ट्यूशन दिया करते थे। यही नहीं जीवन के इस पड़ाव पर भी उनमें तनिक भी सुस्ती नहीं देखी जा सकती थी और तो और किसी के आराम करने की सलाह देने पर वो भड़ककर उस व्यक्ति को यह कह डालते थे कि, "मैं सिर्फ नौकरी से रिटायर्ड हुआ हूँ जीवन से नहीं।" उनकी यही बात उन्हें सबसे अलग करती थी और वो आसपास के नौजवानों के लिए राॅल माॅडल बन गए थे।

रागिनी का परिवार पूरे मुहल्ले में एक सम्मानित परिवार था। लोग इस परिवार की काफी इज्जत करते थे। रागिनी के भैया मेजर विक्रांत आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए जम्मू -कश्मीर में तैनात थे।

मास्टर सक्षम जी के रिटायर्ड होने के बाद रागिनी ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी उठा रखी थी।

वो विश्वविद्यालय में स्नात्ककोत्तर करने के बाद डाॅक्ट्ररेट की उपाधि लेकर लेक्चरर के रूप में कार्यभार संभाल रखी थी।

सब कुछ ठीक चल रहा था रागिनी रक्षाबंधन के सुअवसर पर अपने भैया के कलाई में राखी बाँधने के लिए उतावली हुई जा रही थी। हो भी क्यों न उसका भैया देश का वीर सिपाही भी तो था। इसलिए ऐसे भाई पर किसको अभिमान न होगा। तभी ...फोन की घंटी बजी रागिनी ने यह सोचकर की शायद भैया का फोन होगा भागकर फोन उठाया।

फोन के उस ओर से रागिनी के हेलो करने के बाद उस ओर से जो शब्द सुनाई पड़े ईश्वर यह शब्द किसी को भी न सुनाये।फोन करने वाले ने रागिनी से कहा था हमें गर्व है कि मेजर विक्ररान्त दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। शहीद....शहीद यह शब्द सुनकर रागिनी को ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो किसी ने खींचकर उसके प्राण निकाल लिए हो।

रागिनी अब रो भी तो नहीं सकती थी क्योंकि उसके पिता की इन दिनों तबीयत काफी खराब चल रही थी। अन्दर के कमरे से उसके पिता ने उसको आवाज लगाई:-बेटे ! किसका फोन था तब रागिनी ने बड़ी ही मुश्किल से अपने को संभालते हुए उनसे कहा था, पापा यूनिवर्सिटी से फोन था मेरी एक स्टूडैंट ने किया था। बड़ा मजेदार जोक सुनाई इसलिए हँसी आ गयी और वो बड़ी कठिनाई से हँसते हुए उनसे बोली पापा मैं अभी आई कुछ नाॅट्स बनाने हैं और अपने कमरे में जाकर वह रोने लगी।

अब रागिनी ने आर्मी ज्वाईन करने का निश्चय कर लिया था।

और अगले दिन ही उसका प्यारा भैया तिरंगे में लिपटकर अपनी बहना से अन्तिम बार मिलने आ चुका था।

तब मास्टर सक्षम व मुहल्ले वालों को मेजर विक्ररान्त की शहादत के बारे में पता चल गया। मास्टर सक्षम जो आज तक कहते थे कि मैं अभी रिटायर्ड नहीं हुआ हूँ फूट-फूट कर रोते हुए कहने लगे कि आज मैं रिटायर हो गया। उनके ये शब्द सुनकर रागिनी भी फूट-फूटकर रोने लगी थी।

इसके कुछ दिनों के बाद रागिनी ने अपने पापा से कहा कि पापा मैं आर्मी जॉइन करना चाहती हूँ पहले तो उन्होंने रागिनी को पूरे तौर पर मना कर दिया,पर बाद में रागिनी के लाख मनाने पर वो मान गए।

और अब डाॅक्टर रागिनी मेजर रागिनी बन गयी, और एक दिन फिर मेजर रागिनी की भी शहादत के बाद जब उसके पार्थिव शरीर को तिरंगें में लपेटकर उसके घर पहुँचाया गया और जब कुछ जवानों ने उनके पिताजी को यह बताया कि मेजर रागिनी ने दुश्मनों द्वारा अपने दोनों पैर और एक हाथ कट जाने के बाद भी उफ तक न करते दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया पर दुश्मन की एक गोली इनके सीने को भेदते हुए पार निकल गयी जिससे वो शहीद हो गयीं तो वहाँ आए कुछ लोगों ने इस वीरांगना के लिए जब यह कह दिया कि वो एक महिला थी, एक अबला थीं तो उन्हें फौज में जाने न देना चाहिये था तो हमेशा शान्त रहने वाले मास्टर सक्षम ने जोर से चिल्लाते हुए उन लोगों की तरफ देखते हुए कहा कि, "मेरी बेटी ! अबला नहीं थी। सुना आप लोगों ने वो अबला नहीं सबला थी। अरे सुना कि नहीं, आप लोगों ने वो पागल की भाँति चिल्लाते हुए उनके पास जा-जाकर बार-बार यह कहने लगे कि:- "वो अबला नहीं सबला थी।"


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