मधु मिshra 🍃

Abstract

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मधु मिshra 🍃

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विस्थापित

विस्थापित

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-"अरे..यार! यहाँ पर तो वो बदनाम गली हुआ करती थी.. इस जगह पर मार्केट कॉम्प्लेक्स कब बन गये...! कई सालों के बाद आकर देखा...थैंक गॉड... यहाँ से कचरा तो उठा.. सिटी का यही मेन रोड.. सारे दुकान बाजार यहीं.. मार्केटिंग करते हुए मन न हो तो भी उस तरफ़ नज़र उठ ही जाती थी.. लेकिन अब... ह...(पूरी तसल्ली से... एक गहरी उच्छ्वास लेते हुए ) शहर का ये बदला नक्शा देखकर बहुत अच्छा लग रहा है यार ख़ासकर इस जगह का...! "बदनाम गली की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा...

"यहां से कचरा तो उठा, तुझको इस बात की तसल्ली हो रही है, पर जानता भी है सरकार की मंशा..वो इन्हें शहर भर में बिखेर कर एक निश्चित व्यवसाय से आज़ाद कर देना चाहती है ..ज़रूरी तो नहीं कि ये देह ही बेचें..! " मित्र ने कहा

"तो फ़िर इन्हें.. पहचानेंगे कैसे...?" विस्मय के साथ उसने मित्र से पुनः प्रश्न किया... 

"बनाने दो न सबको अपनी पहचान..! इसलिए तो नदी नाले की तरह सबको समा दिया गया समुद्र में..हो सकता है इनमें भी कोई रत्न छिपा हो...!"


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